पढ़ेलिखे सुनील पूनियां 5 साल पहले गरीबी व तंगहाली से परेशान हो कर अपने सपनों को पंख लगाने के लिए गांव से अपना घरबार छोड़ कर जयपुर आए थे. उन की आंखों में बेहतर भविष्य के सपने थे और दिल में कड़ी मेहनत कर के फौज में भरती होने का संकल्प था, पर अब उम्मीद का दामन छूटता जा रहा है.
शरीर से हट्टेकट्टे सुनील पूनियां का कहना है, ‘‘साल 2019 में 12वीं जमात पास करने के बाद मु?ो महसूस हुआ कि अब मैं फौज में भरती के काबिल हूं और मेरे घर वालों को भी उम्मीद थी कि मैं उन के सपनों को पूरा करूंगा, इसलिए उन्होंने लाखों रुपए खर्च कर के मु?ो जयपुर जैसे महंगे शहर में भेजा और पढ़ाईलिखाई का पूरा खर्चा भी ?ोला. 3 साल हो गए फौज की तैयारी करते हुए, लेकिन ‘अग्निवीर’ ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.’’
अजमेर के रहने वाले सूरज कुमार मजदूर परिवार से आते हैं. उन्हें बचपन से सेना में नौकरी करने का जुनून था. उन्होंने साल 2018 में सेना में भरती की तैयारी शुरू की थी.
मार्च, 2021 में उन्होंने फिजिकल और मैडिकल टैस्ट भी क्वालिफाई कर लिया, लेकिन फिर सेना में भरती के लिए आगे का एग्जाम ही नहीं हुआ और 15 महीने का इंतजार बेकार चला गया.
सूरज कुमार की तरह गजेंद्र सिंह भी एक गरीब किसान परिवार से आते हैं और पिछले 3 साल से सेना की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने भी पिछले साल ही मैडिकल टैस्ट क्वालिफाई कर लिया था, लेकिन ‘अग्निपथ योजना’ आते ही उन की उम्मीदें टूट गई हैं.
सीकर के रहने वाले नरेंद्र जाखड़ ने बचपन से सिर्फ सेना में जाने का ही सपना देखा है. उन के पिता मामूली किसान हैं और कर्जा ले कर हर महीने 4,000 रुपए की फीस भर कर किसी संस्थान में पढ़ाई करवा रहे थे, लेकिन ‘अग्निपथ’ ने उन्हें अंदर से तोड़ सा दिया है. उन्हें नहीं पता कि परिवार का कर्ज कैसे उतरेगा और महज 4 साल की नौकरी वाले से शादी भी कौन करेगा.
चूरू जिले के रहने वाले अमित सिंह भी 3 साल से सेना की तैयारी कर रहे हैं और यह उन के लिए आखिरी मौका था. इस बार क्वालिफाई करने का पूरा भरोसा था, लेकिन उन्हें अब दूसरी चिंता सता रही है. अब वे ‘अग्निवीर’ की भरती में हिस्सा लेने के काबिल नहीं रहे हैं. उन्हें चिंता है कि पढ़ाई के लिए लिया गया कर्जा कैसे चुका पाएंगे.
‘अग्निपथ’ पर भारी बेरोजगारी
जयपुर के जिला रोजगार कार्यालय में बीते 2 साल में तकरीबन ढाई लाख नौजवानों ने रजिस्ट्रेशन कराया है, जबकि जिले में बेरोजगारों का गैरसरकारी आंकड़ा 5 लाख से ज्यादा का है, जिन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिली, जबकि प्राइवेट नौकरी के आंकड़े विभाग के पास उपलब्ध ही नहीं हैं.
प्रदेश सरकार इन नौजवानों को सालाना 6,000 रुपए बेरोजगारी भत्ता देती है यानी 500 रुपए महीना, जबकि महंगाई की दर तेजी से बढ़ रही है. सवाल यह है कि क्या कोई भी नौजवान 500 रुपए महीने में अपनी पढ़ाईलिखाई या खुद का खर्चा चला सकता है? जबकि पूरे प्रदेश के आंकड़े और भी चिंताजनक हैं.
2 साल में 8 लाख बेरोजगार नौजवान रोजगार कार्यालय पहुंचे, लेकिन विभाग 349 करोड़ रुपए खर्च कर के सिर्फ 765 लोगों को ही प्राइवेट नौकरी दिला पाया है.
रोजगार विभाग कहता है कि साल 2016 के बाद कोर्ट की रोक के बाद प्रदेश के किसी भी जिले में कोई भी चपरासी, ड्राइवर, ग्रुप सी व ग्रुप डी तक की सरकारी नौकरी नहीं लगा पाया है.
जयपुर जिला रोजगार कार्यालय का तर्क है कि रोजगार मेलों में नौजवानों को प्राइवेट कंपनियों में नौकरी दिलाई जाती है, लेकिन इस में ज्यादातर को वाटरमैन, फायरमैन, गार्ड जैसे पदों पर 8 से 10 हजार रुपए महीने की नौकरी ही मिली है.
परदे के पीछे की कहानी
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तीनों सेना के प्रमुखों की मौजूदगी में 14 जून, 2022 को भारतीय सेना में नए सैनिकों की भरती के लिए ‘अग्निपथ योजना’ की शुरुआत का ऐलान किया था, लेकिन ‘अग्निपथ योजना’ का पथ इस के ऐलान के पहले दिन से ही सुलगता दिख रहा है.
हकीकत तो यह है कि ‘अग्निपथ योजना’ सैनिकों के वेतन पर कैंची चलाने और पैंशन वगैरह के खर्चे की जिम्मेदारी से छुटकारा पाने और कौंट्रैक्ट के आधार पर शौर्ट टर्म के लिए सैनिकों की भरती करने की नीयत से लागू की गई है.
सेना को छोड़ कर अन्य सरकारी मुलाजिमों को मिलने वाली पैंशन को भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने साल 2004 से खत्म कर दिया था. न्यू पैंशन स्कीम लागू करते समय वाजपेयी सरकार और उस के चहेतों ने इस का ऐसा गुणगान किया था कि कैसे भी कर के अब इस से कर्मचारियों का भला हो जाएगा.
कितना भला हो रहा है, यह तो भुक्तभोगी ही जानते हैं. कहा गया था कि इस योजना से सरकारी कर्मचारियों का पैसा शेयर बाजार में लगेगा और उस से होने वाली दिन दूनी रात चौगुनी आमदनी से आने वाले समय में कर्मचारियों और उन के परिवरों के वारेन्यारे हो जाएंगे.
ओल्ड पैंशन स्कीम में तयशुदा राशि पाने वाले रिटायर्ड कर्मचारी इन के ऐश को देख कर कुढ़ते रहेंगे. इस तरह का सारा प्रचार कर्मचारियों को छलने के लिए किया गया था और एनपीएस की हकीकत अब सब के सामने है.
मोदी सरकार का ट्रैक रिकौर्ड यह रहा है कि कोई भी नई योजना लाने से पहले उस योजना से प्रभावित पक्षों से किसी तरह की कोई चर्चा नहीं करती है.
जो गलती इस सरकार ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लाने, नोटबंदी करने और नागरिकता कानून लागू करने और कृषि कानून बनाते वक्त की थी, वही गलती ‘अग्निपथ योजना’ पर चलने की की है. इस योजना से प्रभावित होने वाले स्टेकहोल्डर (भरती की इच्छा रखने वाले युवा, सेवारत जवान और अफसर, सघन भरती के इलाकों के जनप्रतिनिधि और आमजन) के साथ कभी कहीं कोई बातचीत नहीं की गई. संसद को भी भनक नहीं लगने दी.
छलावा कैसे
सेना में रह चुके जनरल, अफसरों, ‘परमवीर चक्र’ पाए सैनिकों और सैन्य विशेषज्ञों ने ‘अग्निपथ योजना’ पर एतराज जताया है और इस के गंभीर नतीजों के बारे में आगाह किया है.
कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. युवा वर्ग की ओर से बड़े लैवल पर खिलाफत देखने को मिल रही है. इस नई योजना के बचाव में सरकार ने विज्ञापनों पर जनता से वसूले टैक्स की बड़ी राशि भी खूब खर्च की है. सरकार और उस के अंधभक्तों के तर्क भी अजीब हैं.
‘अग्निपथ योजना’ शुरू करने के पीछे सरकार की असली मंशा क्या रही है, यहां हम ‘अग्निपथ योजना’ के अलगअलग पहलुओं के बारे में उठे ऐसे ही सवालों और इस से भविष्य के गर्भ में पल रही शंकाओं को सिलसिलेवार सम?ा सकते हैं :
सैनिकों की संख्या कम करना
भारतीय सेना में हर साल तकरीबन 60,000 सैनिक रिटायर हो रहे हैं और पहले हर साल तकरीबन इतनी ही संख्या में नए सैनिक भरती किए जाते थे.
लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि भारतीय सेना में हर साल 50,000 से ज्यादा लोगों की भरती हुआ करती थी. ये आंकड़े भी दिए गए कि साल 2016-17 में 54,815, साल 2017-18 में 52,839 और साल 2018-19 में 57,266 भरती की गई थीं.
मोदी सरकार ने साल 2020 से कोरोना का बहाना बना कर सेना की कोई नियमित भरती नहीं की है. सेना में वर्तमान में तकरीबन सवा लाख पद खाली हैं, फिर भी तकरीबन 3 साल से सरकार ने भरती नहीं निकाली थी और अब ‘अग्निपथ योजना’ के तहत इस साल 46,000 नौजवानों को सेना में शामिल किए जाने की इस घोषणा को अभूतपूर्व बताया जा रहा है. जो 46,000 सैनिक भरती किए जाएंगे, उन में से तीनचौथाई को 4 साल बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा.
अगर यह योजना अपने वर्तमान स्वरूप में लागू होती है, तो आने वाले 15 सालों में हमारे सैन्य बलों की संख्या आधी या उस से भी कम रह जाएगी. इसलिए साफ है कि सरकार की इस चाल का मूल मकसद है सैनिकों की संख्या तकरीबन आधी करना, ताकि उन को दी जाने वाली तनख्वाह बचाई जा सके और साथ में पैंशन वगैरह की जिम्मेदारी से छुटकारा पाया जा सके.
नए सैनिकों की भरती की संख्या को घटाना, भरती किए गए रंगरूटों में से हर 4 साल बाद 4 में से 3 सैनिकों को बिना पैंशन घर भेज देना, उन सब नौजवानों और परिवारों के साथ नाइंसाफी है, जिन्होंने फौज को देशसेवा के साथ कैरियर के रूप में देखा है.
अंधभक्त, जिन में सेना के रिटायर्ड कुछ अफसर भी शामिल हैं, कुतर्क दे रहे हैं कि सेना में जरूरत से ज्यादा सैनिक भरती कर उन में से तीनचौथाई को 4 साल बाद वापस घर भेजा जाएगा. हकीकत तो यह है कि सेना में खाली पड़े सवा लाख पदों के विरुद्ध केवल 46,000 सैनिक ही भरती किए जाने हैं.
पहले के सालों का आंकड़ा देखें, तो साल 2020 से पहले हर साल 50,000 से ऊपर रैगुलर सैनिक भरती किए जाते रहे हैं, पर लगता है कि अब यह बीते दिनों की बात होने वाली है.
19 जून को सेना प्रमुखों की प्रैसवार्त्ता को सुन कर एकदम साफ हो जाता है कि रैगुलर भरती की जगह अब भरती की प्रक्रिया ‘अग्निपथ योजना’ के तहत ही होगी. जिन नौजवानों ने सेना में भरती होने के लिए पहले से इम्तिहान पास कर रखा है, पर उन की जौइनिंग नहीं हुई है, उन्हें भी इसी योजना के तहत दोबारा अप्लाई करना होगा.
तनख्वाह में फर्क
यह भी कुतर्क है कि ‘अग्निपथ योजना’ में नौजवानों (17.5 साल से 21 साल की उम्र) की भरती की जाएगी और इस से उन को रोजगार मिलेगा. तथ्य यह है कि सेना में इस से पहले हर साल 18 साल से 21 साल के नौजवानों को भरती किया जाता रहा है. क्या इस से पहले उम्रदराजों को भरती किया जाता था? सेना में भरती की हमेशा से यही उम्र रही है और वह भी पूरी तनख्वाह और स्थायित्व के साथ.
‘अग्निवीरों’ को देय मामूली सी फिक्स्ड तनख्वाह भी बहुत अच्छी धनराशि बताई जा रही है. सवाल उठता है कि इन अग्निवीरों को पहले की भरती के सैनिकों के बराबर तनख्वाह क्यों नहीं? समान काम करते हुए भी ऐसे ‘अग्निवीर’ एक रैगुलर सैनिक के समान तनख्वाह भी नहीं पाएंगे. काम वैसा तो तनख्वाह भी वैसी ही होनी न्यायोचित है. तनख्वाह में यह असमानता क्यों?
तैयार होंगे अकुशल फौजी
ज्यादातर रिटायर्ड फौजी अफसर यह जायज सवाल उठा रहे हैं कि महज 4 साल में नौजवानों को कैसे और कितना ट्रेंड कर लिया जाएगा कि सेना की क्वालिटी में सुधार हो जाएगा? मतलब यह कि सेना का सिर्फ युवा होना जरूरी नहीं है, उस का उचित ट्रेनिंग पाने के बाद क्वालिटी वाला होना भी जरूरी है.
रिटायर्ड अफसर मनोज जोशी कहते हैं, ‘‘युवा मिलिटरी का क्या फायदा, अगर वह आधी ट्रेंड है. 4 साल में से 6 महीने बेसिक ट्रेनिंग, 8 महीने छुट्टी और कम से कम एक साल प्रोफैशनल ट्रेनिंग में चले जाएंगे. आप के पास तकरीबन 2 साल की नौकरी बचती है. जब तक आप ने कुछ बातें सीखीं, तब तक आप के बाहर जाने का वक्त हो जाएगा. मु?ो नहीं पता कि इस से सेना को क्या फायदा होगा?’’
सवाल उठना लाजिमी है कि 6 महीने ट्रेनिंग वाला ‘अग्निवीर’ 2 साल की ट्रेनिंग वाले फौजी की तरह कैसे सक्षम हो सकेगा? सेना में ठेके पर नौकरी की वास्तविक अवधि ट्रेनिंग और छुट्टियों वगैरह का समय निकाल देने के बाद तकरीबन ढाई साल रहने वाली है.
जिस को केवल 4 साल नौकरी करनी है, उस का अनुशासन लैवल एक रैगुलर सैनिक की तरह हो ही नहीं सकता. एक बात और भी है कि सेना के मूलभूत चरित्र और तानेबाने से खतरनाक छेड़छाड़ के नतीजे उलट भी आ सकते हैं.
नागरिक समाज का सैन्यकरण
शब्दों के जाल से जनता को भ्रमित करने में माहिर इस सरकार ने अग्नि के साथ वीर का बेतुका और निर्लज्जता भरा संयोजन किया है. क्या यह अग्नि लगाने के लिए हथियार चलाने में ट्रेंड जवानों को किसी खास माइंडसैट के साथ भेजे जाने की साजिश का हिस्सा है?
हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जिस में धर्म और जाति के नाम पर खुलेआम नफरत फैलाई जा रही है. समाज को बांटने का खेल चल रहा है. इन मामलों में शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी कई आशंकाओं को जन्म दे रही है. ऐसे हालात में इस योजना के मकसद के बारे में सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं यह सरकार का नागरिक समाज का सैन्यकरण और सेना को राजनीतिक टूल बनाने की दिशा में बढ़ता कदम तो नहीं है?
4 साल के ठेके पर सैनिक रख कर उन की भरी जवानी में उन पर अनफिट का ठप्पा लगा कर घर भेज देने के बुरे नतीजे कुछ सालों बाद सामने आएंगे.
यह सवाल उठाना भी जायज है कि जो तीनचौथाई रंगरूट हर 4 साल बाद सेना से निकाले जाएंगे, उन में से अगर मुट्ठीभर ‘अग्निवीर’ भी व्यवस्था के प्रति नाराज हो कर या माफिया के चंगुल में फंस कर अपराध की ओर चले गए, तो समाज की शांति को खतरा पैदा हो सकता है, क्योंकि उन में से ज्यादातर पुलिस की तुलना में ज्यादा हथियारों के जानकार होंगे.
कारपोरेट में खुशी की लहर
यह सरकार और इस से फायदा ले रहे कारपोरेट इतने बेशर्म हैं कि हर बात में आमजन को गुमराह करते हैं. सरकार की मेहरबानी से देश के संसाधनों को कौडि़यों के भाव लूटने और कारपोरेट टैक्स में बेतहाशा छूट हासिल कर मालामाल बने ऐसे लोगों की तो इस योजना की घोषणा से बांछें खिल उठी हैं.
उद्योग संगठन सीआईआई सरकार की ‘अग्निपथ योजना’ की जिन शब्दों में तारीफ कर रहा है, उस से ऐसा लग रहा है जैसे ‘अग्निवीर’ फौज के लिए नहीं, देश के उद्योगों के लिए मानव संसाधन के रूप में तैयार किए जाने वाले हैं.
बड़े कारोबारी आनंद महिंद्रा कह रहे हैं कि महिंद्रा कंपनी अपनी फैक्टरी में गार्ड की नौकरी देगी. यह सब सुन कर लग रहा है कि भारतीय सेना, सेना न हुई वाचमैन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट हो गई है.
उद्योगपतियों के इन प्रस्तावों पर बहुत से रिटायर्ड बड़े फौजी अफसर सवाल उठा रहे हैं कि हर साल हजारों की संख्या में सैनिक रिटायर होते हैं, उन में से कितनों को इन्होंने नौकरियां दी हैं?
एडमिरल रह चुके अरुण प्रकाश ने आनंद महिंद्रा से पूछा है कि ‘अग्निवीरों’ का इंतजार क्यों करना है, अब भी हजारों की संख्या में कुशल और ट्रेंड रिटायर्ड सैनिक मिल जाएंगे.
कर्नल सलीम दुर्रानी लिखते हैं, ‘प्रिय महिंद्राजी, हर साल तकरीबन 60 से 70 हजार पूरी तरह प्रशिक्षित जवान रिटायर होते हैं. अगर पूछने की इजाजत हो, तो इन में से कितने आप के पास नौकरी कर रहे हैं? हम ‘अग्निवीरों’ पर बाद में आएंगे, जब समय आएगा.’
बेरोजगार रिटायर्ड सैनिक
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल कह रहे हैं कि ‘अग्निवीरों’ को राज्य सरकार नौकरी देगी. चिंतक और राजनीतिक मामलों के विश्लेषक योगेंद्र यादव ने उन से ठीक सवाल पूछा है कि रिटायर्ड सैनिक अभी हैं, उन के लिए क्या किया है आप ने?
गौरतलब है कि हरियाणा में कुल रिटायर्ड सैनिक 2 लाख, 90 हजार हैं, जिन्होंने नौकरी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया. 29,275 हैं, जिन्हें नौकरी दी. मात्र 534 यानी 1.82 फीसदी हैं. क्या यही ‘अग्निवीरों’ के साथ करेंगे?
बेबुनियाद 10 फीसदी रिजर्वेशन
बरगलाने के लिए यह भी कहा जा रहा है कि ‘अग्निवीरों’ को 10 फीसदी का आरक्षण केंद्रीय बलों में दिया जाएगा. क्या इस से सारे ‘अग्निवीर’ पुलिस बलों में एडजस्ट हो जाएंगे?
प्रखर पत्रकार उर्मिलेश ने इस आश्वासन में ?ाल की ओर इशारा करते हुए सटीक टिप्पणी की है, ‘संविधान के किस अनुच्छेद के तहत ‘अग्निपथ’ के तहत भरती ‘अग्निवीरों’ को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल में 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा? पर वहां पहले से एससी, एसटी, ओबीसी का आरक्षण है, फिर यह 10 फीसदी किधर से आएगा? क्या एससी, एसटी, ओबीसी के रिजर्वेशन पर कैंची चला कर ‘अग्निवीरों’ को रिजर्वेशन दिया जाएगा? इन सवालों का कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है.’
सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्वेशन की सीमा 50 फीसदी तक सीमित कर रखी है, तो 10 फीसदी रिजर्वेशन ओबीसी या सामान्य वर्ग के कोटे से काट कर देगी सरकार? लौलीपौप देना था, दे दिया. अगर ‘अग्निवीरों’ को ‘होरिजैंटल रिजर्वेशन’ देंगे, जैसा कि वर्तमान में रिटायर्ड सैनिकों को दिया जा रहा है, तो इस का सीधा नुकसान ओबीसी और सामान्य वर्ग व रिटायर्ड सैनिकों को ?ोलना पड़ेगा.
सुरक्षा क्षेत्र में ठेकेदारी
एक बात और है. इस की क्या गारंटी है कि ‘अग्निपथ’ जैसी ठेके की कोई योजना पुलिस या अन्य केंद्रीय बलों के लिए भविष्य में लाई जाएगी? क्या सरकार ऐसा कोई आश्वासन दे रही है? जब सेना में ठेके पर सैनिक रखने की योजना लागू की जा रही है, तो ऐसी योजना सीआईएसएफ व पुलिस फोर्स में भी देरसवेर लागू कर के ही मानेंगे. इन में बहुतेरी सेवाओं के लिए संविदा कार्मिक रखने का प्रपोजल विचाराधीन चल रहा है.
तालीम पर भारी रिजैक्टेड का ठप्पा
सीनियर सैकंडरी पास किशोर 4 साल की सेना की हार्ड ड्यूटी के दौरान उस को पढ़ाई जारी रखने का मौका कैसे मिलेगा? जो फौज में हैं, वे इस बारे में अच्छी तरह जानते हैं. मतलब, 4 साल में आगे पढ़ने की कोई उम्मीद नहीं है, फिर वह वापस सामान्य जिंदगी में आएगा, तो औरों से 4 साल पीछे हो जाएगा.
जिस देश में पोस्ट ग्रेजुएट और बीटैक किए नौजवानों को कारपोरेट सैक्टर में उचित तनख्वाह पर नौकरी नहीं मिल पा रही है, इन 10वीं व 12वीं पास को क्या मिलेगी? आर्मी से रिजैक्टेड का ठप्पा लगे इन 4 साल की नौकरी वाले ‘अग्निवीरों’ को कौन पूछेगा?
सैनिक अफसरों की चमचागीरी
इस योजना से सेना में अफसरों की चमचागीरी को बढ़ावा मिलेगा. फौज में पक्के होने के लिए ‘अग्निवीरों’ में चमचागीरी की होड़ लग जाएगी. सेना में करप्शन बढ़ने का खतरा है.
सेना के अफसर इन ‘अग्निवीरों’ की लाचारी का फायदा उठा कर उन के साथ नौकर जैसा सुलूक करेंगे और घरेलू काम करवाएंगे. कई सैन्य अफसर ऐसे देखे गए हैं कि जब वे बड़े शहरों में अपने घर बनवाते हैं, तब उस में जवानों को ?ांक देते हैं.
क्यों सैनिक नहीं शस्त्र चाहिए
अब तक दूरसंचार और रेलवे में मध्यम व निम्नमध्यम तबके के नौजवानों के लिए रोजगार की सब से ज्यादा गुंजाइश रहा करती थी. इन दोनों क्षेत्रों में कम पढ़ेलिखे नौजवानों के साथसाथ ज्यादा पढ़ेलिखे तकनीकी तालीम पाए नौजवानों को सरकारी नौकरी के मौके मिल जाते थे. लाखों परिवारों का उस से पेट पलता था.
नरेंद्र मोदी ने रिलायंस जिओ को पनपाने की नीयत से हमारे देश के समृद्ध दूरसंचार विभाग को कंगाली की ओर धकेल दिया. रेलवे में ठेका प्रथा लागू कर उस के निजीकरण को पंख लगा कर नौजवानों के रोजगार के अवसरों को समेट दिया है. ये दोनों क्षेत्र निजी हाथों को सौंपे जा रहे हैं, तो धीरेधीरे इन क्षेत्रों में रोजगार की उम्मीद भी खत्म होती जा रही है.
संचार और रेलवे के बाद सेना ही है, जो सब से ज्यादा रोजगार देती है, पर सेना में सरकार को अब ‘सैनिक’ नहीं चाहिए, ‘शस्त्र’ चाहिए. सेना में भी अब सरकार ‘हायर ऐंड फायर’ की नीति अपना कर सैनिकों की संख्या कम करने पर तुली हुई है.
शस्त्र खरीदने पर ज्यादा जोर है, ताकि एक अवधि के बाद नई जनरेशन का शस्त्र खरीदने का बहाना बना कर शस्त्र निर्माता देशों की तिजोरियां भरी जा सकें और बदले में हथियार दलालों को खुल कर दलाली का मौका मिलता रहे.
लिहाजा, देहात और शहर के निम्नमध्यम तबके के नौजवानों द्वारा रोजगार की मारामारी के वर्तमान दौर में इस योजना में शामिल होने के लिए अप्लाई करने को मजबूर होने का मतलब यह नहीं सम?ा जाना चाहिए कि यह योजना कामयाब है और वे इसे स्वीकार कर रहे हैं. यह तो बेरोजगार नौजवानों की मजबूरी का नाजायज फायदा उठाने की चाल ही होगी.
रिटायर हो चुके सूबेदार तेज सिंह फगोडिया का कहना है कि देश के कमेरे तबके के नौजवानों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाली ‘अग्निपथ योजना’ को रद्द कर सेना में भरती के काबिल नौजवानों को पहले की तरह रैगुलर सैनिकों के रूप में भरती करना चाहिए और उन को पूरी तनख्वाह पर कम से कम 15 साल तक सेना में सेवा का मौका मिलना चाहिए.
लेकिन एक पुरानी कहावत है कि ‘ताज जब इनसान के सिर पर सवार हो जाता है, तो उस को सिरफिरा बना कर उस से सबकुछ ऊटपटांग करवाता है…’ ऐसा ही कुछ यहां होता दिख रहा है.
यह है योजना
गौरतलब है कि ‘अग्निपथ योजना’ के लिए भरती होने वाले नौजवानों को 4 साल तक फिक्स तनख्वाह पर रखते हुए उन को कठोर ट्रेनिंग और हार्ड ड्यूटी देने के बाद उन में से 25 फीसदी की ही परमानैंट नियुक्ति की जाएगी. बाकी के बचे 75 फीसदी नौजवानों को उन्हीं की तनख्वाह में से काटी गई 30 फीसदी राशि और उस में उतना ही हिस्सा सरकार अपनी ओर से मिला कर उन को दे दिया जाएगा और उन पर रिजैक्टेड का ठप्पा लगा कर बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा.
उन की चढ़ती जवानी की ऊर्जा को चूस कर, बिना किसी पैंशन वगैरह सुविधाओं के, पहले से भयावह होती जा रही बेरोजगारों की भीड़ में धकेल दिया जाएगा.
20 जून, 2022 को ‘अग्निपथ योजना’ का जो नोटिफिकेशन जारी किया गया था, उस में बताया गया है कि 4 साल बाद उस बैच में भरती किए गए सभी ‘अग्निवीरों’ को सेना से मुक्त कर दिया जाएगा. उन्हें रैगुलर बैच यानी नियमित कैडर में नामांकन के लिए दोबारा अप्लाई करना होगा. फिर से भरती की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा और उन में से सिर्फ 25 फीसदी को ही रैगुलर सैनिक के रूप में भरती किया जा सकेगा.
सेना ने यह भी कहा है कि ‘अग्निवीर’ भारतीय सेना में एक अलग रैंक बनाएंगे, जो कि किसी भी दूसरे मौजूदा रैंक से अलग होगा. रैगुलर सैनिकों को साल में 90 दिन की छुट्टियां मिलती हैं जबकि ‘अग्निवीरों’ को साल में 30 दिन की छुट्टियां मिलेंगी और वरदी पर अलग बैज लगेगा.
आजादी के ‘अमृतकाल महोत्सव’ में लागू की गई इस योजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बोल्ड कदम कह कर उन की शान में कसीदे गढ़े व पढ़े गए. नाइंसाफी देखिए कि थल सेना और वायु सेना में जो पक्की भरती की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी (जिस में फाइनल टैस्ट या नियुक्तिपत्र जारी करने बाकी थे) को भी रद्द कर दिया गया.