निर्माता: राफत फिल्मस
निर्देशक और कैमरामैन: अग्निदेव चटर्जी
कलाकार: शर्मन जोशी, पूजा चोपड़ा, तेज श्री प्रधान, राजेश शर्मा, लीना प्रभू, मनोज जोशी, लीना भट्ट,राजू खेर , स्वीटी वालिया, सुमित गुलाटी व अन्य
अवधि: दो घंटे दस मिनट
प्यार व शादी को लेकर कई फिल्में बन चुकी हैं. अब फिल्मकार परफैक्ट जीवन साथी की तलाष को लेकर एक फिल्म ‘‘बबलू बैचलर’’ लेकर आए हैं, जो कि 22 अक्टूबर को सिनेमाघरों में पहुंची है. वैसे यह फिल्म 22 मार्च 2020 को सिनेमाघरों मंे आने को तैयार थी, मगर 17 मार्च 2020 से ही पूरे देश के सिनेमाघर बंद हो जाने से यह फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पायी थी. अब यह फिल्म प्रदर्शित हुई है.
कहानीः
फिल्म की कहानी के केंद्र में लखनउ शहर में रह रहे जमींदार ठाकुर साहब(राजेश शर्मा) के बेटे बबलू (शर्मन जोशी ) के इर्द गिर्द घूमती है. बबलू पिछले सात साल से परफैक्ट जीवन साथी की तलाश में लगे हुए हैं. शादी कराने वाले मशहूर एजेंट तिवारी(असरानी) भी उनकी मदद नही कर पाते. तिवारी, बबलू व उनके परिवार को अवंतिका(पूजा चोपड़ा )से मिलवाते हैं.
लेकिन अवंतिका का अपना बॉयफ्रेंड है, पर वह अपने माता पिता से इस बारे में नहीं बताती, जिसके चलते अवंतिका और बबलू की शादी तय हो जाती है. मगर दूसरे दिन अवंतिका, बबलू को मिलने के लिए बुलाती है और उसे सच बताते हुए शादी तोड़ने के लिए कहती है. बबलू अपने घर पर ऐेलान कर देता है कि वह अवंतिका से शादी नहीं करेगा. फिर अपने फूफा की बेटी की शादी में बबलू की मुलाकात महत्वाकांक्षी व फिल्म हीरोईन बनने का सपना देख रही स्वाती (तेजश्री प्रधान) से होती है.जिससे बबलू को प्यार हो जाता है.
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और बबलू अपने घर पर स्वाती को अपनी बचपन की प्रेमिका बताकर षादी कर लेता है. एक रियालिटी शो के लिए ऑडिशन दे चुकी स्वाती को उसके परिणाम की प्रतीक्षा है, इसलिए वह पहली रात हनीमून मनाने से इंकार कर देती है.फिर दोनों हनीमून मनाने के लिए दूसरी जगह जाते हैं, पर रियालिटी शो में चयन हो जाने के कारण वह बबलू को नींद की गोली मिश्रित दूध पिलाती है,कुछ देर में बबलू सो जाते हैं और बबलू के नाम पत्र लिखकर स्वाती मंुबई चली जाती है.अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए बबलू मंुबई जाता है,जहां उसकी मुलाकात फिर से अवंतिका से होती है,जो कि अब पत्रकार और एक टीवी चैनल की हेड बन चुकी है.
अवंतिका,बबलू को स्वाती तक पहुंचाती है. मगर स्वाती, बबलू संग वापस आने से इंकार कर देती है.बबलू को अवंतिका से और अवंतिका को बबलू से प्यार भी हो जाता है. मगर स्वाती की वजह से बबलू अवंतिका के प्यार को स्वीकार किए बगैर लखनउ वापस आ जाता है. इधर अवंतिका का सहायक चैनल पर स्वाती के षादीषुदा होने की खबर चला देता है.
अचानक एक दिन पता चलता है कि ठाकुर साहब ने बबलू की पुनः स्वाती से शादी करने की तैयारी कर ली है, तभी वहां पर अवंतिका भी पहुंचती है. फिर काफी कुछ घटता है.
लेखन व निर्देशनः
अग्निदेव चटर्जी अच्छे कैमरामैन हैं, मगर निर्देशन में वह मात खा गए. उनका निर्देशन किसी भी दृश्य में प्रभावी नहीं लगता. फिल्म की पटकथा भी काफी बिखरी हुई और कमजोर है. फिल्म की शुरूआत रेडियो पर प्रसारित हो रहे शादी कराने वाले एक एप के विज्ञापन से होती है, पर उसका फिल्म की कहानी में कोई योगदान नही होता.इसका उपयोग ही गलत -सजयंग से किया गया है.
कहानीकार सौरभ पांडे ने उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि में परफैक्ट जीवन साथी की तलाश की एकदम सही उठायी, मगर बाद में कई तरह के उपदेश ठूंसते हुए पटकथा बहुत गड़बड़ कर दी. सारे दृश्य घिसे पिटे हैं. मसलन,बबलू और उनके पिता का सिगरेट पीने वाला दृष्य जिसमें स्वाती के घर से भाग जाने पर बात करते हुए पिता, बबलू से उसे वापस लेकर आने के लिए कहते हैं. मुंबई में जब बबलू , अवंतिका के साथ स्वाति के घर पर मिलता है,तो स्वाती जिस तरह का व्यवहार करती है, वह बहुत ही हास्यास्पद है.
इंटरवल से पहले कुछ हद तक फिल्म ठीक है,मगर इंटरवल के बाद जिस तरह से फिल्म आगे ब- सजय़ती है, उसे देखते हुए दर्शक सोचने लगता है कि यह कब खत्म होगी. क्लायमेक्स तक पहुंचते पहुंचते फिल्म दम तोड़ चुकी होती है.फिल्म के ज्यादातर संवाद बेकार है. अवंतिका के सहायक द्वारा स्वाती के षादीषुदा होने की खबर को जिस -सजयंग से दिखाया गया है, उसका भी कहानी में कोई योगदान नजर नही आता.पटकथा लेखक व फिल्मकार ने रायता काफी फैलाया, मगर उसे समेटने में बुरी तरह से विफल रहे हैं.
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अभिनयः
कुंवारे बबलू के किरदार में शर्मन जोशी ने बेहतरीन अभिनय किया है. वह विभिन्न भावनाओं को व्यक्त करने में सफल रहे हैं. लेकिन पब के अंदर के गाने में वह जमते नही है. मगर शर्मन जोशी का उत्कृ-ुनवजयट अभिनय फिल्म को डूबने से बचाने में समर्थ नहीं है.
अवंतिका के किरदार में पूजा चोपड़ा अपने अभिनय की छाप छोड़ जाती हैं. स्वाती के किरदार में तेजश्री प्रधान कुछ खास जलवा नही दिखा पायीं.