नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को ही बेरोजगार दिवस जोरशोर से मना कर भारतीय जनता पार्टी के सामने खड़ी पार्टियों ने यह जता दिया है कि केवल नारों और वादों से देश की मुसीबतों का हल नहीं किया जा सकता. भारतीय जनता पार्टी जिस हिंदूहिंदू और मंदिरमठ के नाम पर राज कर रही है उस की पोल खुल रही है क्योंकि देश की क्या किसी भी आम जने की समस्या का हल पूजापाठ और मंदिर नहीं हैं, समस्या का हल तो नए कारखाने, नए व्यापार और उन को बल देने वाली उच्च तकनीकी शिक्षा है.

कोविड के कहर से दुनियाभर की सरकारों को अपने काम समेटने पड़े हैं और जनता की जान बचाने के लिए लौकडाउन करने पड़े थे पर उन देशों ने इस मौके का इस्तेमाल अपने नेता के गुणगान में नहीं किया. हमारे यहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार कोविड की मार से कराह रहे देश को नए कानूनों, नए टैक्सों और जन्मदिनों की दवा दे रही है, कोई सहायता नहीं. यह नई बात नहीं है.

हमारे किसी भी पौराणिक ग्रंथ को पढ़ लें. उस में वही सोच मिलती है जो आज भाजपा सरकार की है. शिव पुराण की पहली पंक्तियों में ही एक ऋ षि का दूसरे से मिलने पर अपने जन्म को तर जाना कहता है. भाजपा भी जनता से यही कह रही है कि हम पूजने के लिए आप को मिल रहे हैं, यह काफी नहीं है क्या. प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर 3 सप्ताह तक अखंड जागरण सा माहौल करना जताता है कि पार्टी और उस की सरकार के पास न कोईर् ठोस सोच है, न रास्ता. वह खोदखोद कर पूजापाठी स्टंटों को ढूंढ़ रही है और यह जनता की मूर्खता है कि इस भुलावे में है कि इस से उस का कल्याण हो जाएगा.

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इस देश की माटी में बहुत दम है. यहां की बारिश और गरमी भी सही जा सकती है और सर्दी भी. यहां आराम से उत्पादन भी हो रहा है और खेती भी. और इसीलिए सदियों से यहां के राजाओं और मंदिरों की शानबान की चर्र्चा दूसरे देशों में होती रही और पहाड़ों या पानी के रास्ते विदेशी इस देश में आते रहे, कुछ बसने के लिए, कुछ राज करने के लिए तो कुछ लूटने के लिए. आज बाहरी लूट से तो हम आजाद हैं पर सरकारी नीतियों और सत्ता ने जनता को अपना गुलाम बना कर लूटना शुरू कर रखा है.

नरेंद्र मोदी ने ऋ षि का रूप धारण कर के यह बताना चाहा है कि वे तो मोहमाया के झंझटों से दूर हैं, फकीर हैं और झोले वाले हैं. तो फिर उन को अपने जन्मदिन को गाजेबाजे से मनवाने की क्या जरूरत थी कि विपक्ष को उसे बेरोजगार दिवस कहने का मौका मिल गया.

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इस देश की दिक्कत यही रही है कि यहां की आम जनता मेहनती और कम में संतोष करने वाली रही है वहीं पर अपने हकों को दूसरों के हवाले करने वाली भी रही है. गांव का पुजारी हो, ठाकुर हो, इलाके का हाकिम हो या देश का राजा, उसे सिर्फपूजना आता है. जो राजा बनता है वह पुजवाने का आदी हो जाता है. नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपनी जो छवि सीधे, शरीफ व्यक्ति की बनाई थी उस पर सूटबूट तो जड़ ही गए, अब 21 दिनों के जन्मदिनों के धागे भी बंधने लगे हैं.

यह व्यक्ति पूजा ही की आदत है जो जनता को महंगी पड़ती है. पूजापाठी जनता को सिखाया ही यही जाता है. या तो उस का उद्धार कोई ऊपर वाला करेगा या राजा.

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