लेखक- शाहनवाज
लड़केलड़की की कुंडलियों में यदि 36 गुणों में सभी गुणों का मिलान हो जाए तो क्या इस की कोई गारंटी है कि वैवाहिक जीवन खुशहाल रहेगा? यदि ऐसा न हुआ तो इस में किस का दोष माना जाएगा? क्या शादी से पहले कुंडली मिलान करना आवश्यक है या फिर कुंडली मिलान की प्रक्रिया के पीछे समाज को बांटे रखने वाली मानसिकता काम करती है? क्या यह सिर्फ एक धर्म में ही है या इस जैसी कोई प्रक्रिया अन्य धर्मों में भी पाई जाती है?
साल था जनवरी 2018, जब राजीव की शादी के लिए जगहजगह लड़की तलाशने के लिए लोगों के घर जाया जा रहा था. उन के घर वाले ऐसी बहू की तलाश में थे जो सुंदर हो, सुशील हो, घरबार का काम करना आता हो, पढ़ीलिखी हो इत्यादि. खानदान के पंडित बड़ी मेहनत से कुंआरी लड़कियों के रिश्ते का पता करते और एक के बाद एक लड़के की कुंडली के अनुसार लड़कियों को छांटते रहे. घर वालों ने तो पंडितजी से साफ कह दिया था कि लड़केलड़की की कुंडली में कम से कम 24 गुण तो मिलने ही चाहिए.
राजीव की कुंडली के अनुसार घर के पंडित का लड़की ढूंढ़ना थोड़ा मुश्किल होने लगा तो घर वालों ने अपने गांव के कुछ और पंडितों को भी लड़की ढूंढ़ने के इस काम में शामिल कर लिया. अंत में पंडितों के काफी तलाशने के बाद ऐसी लड़की मिल ही गई जिस से राजीव की कुंडली के 36 में से 32 गुणों का मिलान हो गया. राजीव के घर वाले बहुत खुश हुए और जल्द ही लड़की वालों से मिल कर रिश्ते की बात भी पक्की कर आए. अप्रैल तक आतेआते राजीव की शादी हो गई और नया जोड़ा हनीमून के वास्ते कुछ दिनों के लिए शिमला चला गया.
राजीव और कल्पना की शादी के कुछ महीने अभी हुए भी नहीं थे कि उन के बीच छोटीमोटी बातों को ले कर अनबन होनी शुरू हो गई. पहले बात केवल एकदूसरे के प्रति नाराजगी तक थी, लेकिन कुछ समय बाद यह छोटीमोटी अनबन छोटेमोटे झगड़ों का रूप धारण करने लगी.
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घर वाले उन के बीच इन छोटे झगड़ों को इग्नोर किया करते थे और कहते थे, ‘‘जिन पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता है उन के बीच प्यार भी उतना ही होता है.’’ अब यह बात कितनी सही कितनी गलत थी, यह तो बाद में ही सम झ आया जब छोटेमोटे झगड़े इतने बढ़ने लगे कि सभी को चिंता होने लगी.
जैसेतैसे राजीवकल्पना की शादी को 7-8 महीने गुजर गए. उन का कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता था जब वे झगड़ा न करते हों. साल 2019 की शुरुआत में ही वे दोनों एकदूसरे से इतने परेशान हो गए कि उन दोनों ने ही अपने परिवार की न मानते हुए एकदूसरे को तलाक देने का फैसला कर लिया. और अप्रैल 2019 के आतेआते वे दोनों कानूनी तरीके से एकदूसरे से अलग हो गए.
जिस जोड़े की कुंडली में 36 में से 32 गुणों का मिलान हो जाए, उस के बाद भी यदि शादी के बाद इतनी समस्याएं हों तो इस में किस का दोष है? क्या कुंडली मिलान करने वाले पंडित से गलती हुई? या फिर यह कुंडली वाला पूरा सिस्टम ही इस के पीछे का दोषी है? क्या शादीब्याह से पहले कुंडली देखना और गुणों का मिलान करना मात्र ढकोसला है या फिर इस के पीछे समाज को बांटे रखने वाली मानसिकता काम करती है?
एक पल के लिए यदि हम मान भी लें कि कुंडली मिलाने वाले पंडित की गलती के कारण ये सभी समस्याएं नवविवाहित जोड़े को सहनी पड़ीं, लेकिन हम ने अपने जीवन में कई ऐसे उदाहरण देखे हैं जिन में सर्वगुण संपन्न कुंडली मेल के बाद भी विवाहित जोड़ा अपना वैवाहिक जीवन सफल नहीं बना पाता. और हम ने यह भी देखा है कि कुंडली मेल बिलकुल भी न होने पर कई जोड़े बेहद सुखद वैवाहिक जीवन गुजारते हैं. ऐसे में कुंडली मिलान की परंपरा पर सवाल उठना उचित हो जाता है कि जब इस के मिलने या न मिलने से विवाहित जोड़े के जीवन में कोई असर नहीं पड़ता तो अभी भी बहुसंख्य शादीब्याहों में इस परंपरा को इतना अधिक मोल क्यों दिया जाता है?
क्या है कुंडली मिलान
दावा किया जाता है कि कुंडली आप की ऊर्जा प्रणाली और उस पर ग्रहों की प्रणाली के प्रभावों का वर्णन करती है.
विवाह के समय लड़के और लड़की की जन्म कुंडलियों को मिला कर देखा जाता है. कुंडली मिलान की इस विधि में 36 गुण होते हैं. विवाह की मान्यता के लिए 36 में से कम से कम 18 गुणों का मिलान होना चाहिए. इन 18 गुणों में नाड़ी, माकुट, गण, मैकी, योनि, तारा वासिफ वर्ण जैसे 8 कूटों में बंटे अंक होते हैं.
कुंडली मिलान अपनेआप में वैज्ञानिक नहीं है. सब से पहले तो एस्ट्रोलौजी को ही वैज्ञानिक नहीं माना गया है.
क्यों बन गया जरूरी
यदि हम कुंडली मिलान प्रथा को और इस की प्रक्रिया को ध्यान से अध्ययन करें तो पाएंगे कि इस मिलान के 36 गुणों में सब से महत्त्वपूर्ण गुण (जिसे गुण नहीं माना जाना चाहिए) वर्ण कूट है. वर्ण कूट से अभिप्राय वर्ण व्यवस्था से है. यानी, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. इन्हीं वर्णों से ही जातियों का उत्थान होता है. और तो और, वर्ण कूट को कुंडली मिलान की प्रक्रिया में सब से पहला स्थान दिया गया है.
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कुंडली मिलान की यह प्रक्रिया समाज में तब से ही चलती आ रही है जब से भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का उत्थान हुआ. पुराने समय में कुंडली मिलान की उपयोगिता केवल बेहतर साथी की तलाश के लिए (जिस की कोई गारंटी अभी भी नहीं है) ही नहीं, बल्कि जाति व्यवस्था कायम रखने के लिए भी थी.
वर्ण व्यवस्था समाज में एक तरह की छतरी के समान होती है, जिस के अंदर अलगअलग जातियों का समावेश होता है. हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था को बेहद अहम स्थान दिया गया है. ब्राह्मण का विवाह ब्राह्मण से, क्षत्रिय का विवाह क्षत्रिय से, वैश्य का विवाह वैश्य से और शूद्र का विवाह शूद्र से ही हो, इस चीज का क्रियान्वयन कुंडली मिलान की प्रक्रिया से ही संभव था.
भारत में जाति व्यवस्था ने समाज को हमेशा बांट कर रखा. उस के पीछे सब से बड़ा कारण समाज में कुछ लोगों के पास ही सब से अधिक संसाधन और सब से अधिक अधिकारों को अपने हाथों में बनाए रखना था. और यह सब समाज में बिना धर्म के लागू करना संभव ही नहीं था. मुट्ठीभर लोग, जिन के हाथों में संसाधन और अधिकारों का केंद्रीयकरण हो गया, समाज को अपने आने वाली पीढि़यों में हस्तांतरित करना चाहते थे.
इसी कारण उन्होंने समाज में लोगों के पेशे के अनुसार उन्हें विभाजित कर दिया. किसी दूसरी जाति का व्यक्ति किसी अन्य जाति के साथ संबंध न बना ले, इसीलिए तरहतरह की पाबंदियां लगा दी गईं. यह केवल संबंध बनाने की बात नहीं थी, बल्कि एक जाति का खून दूसरी जाति में मिश्रित न हो जाए, इस के ऊपर कंट्रोल करने के लिए कुंडली मिलान की प्रथा सब से अहम थी.
आज के समय में भी शादी से पहले कुंडली मिलान की यह प्रथा आम घरों में बेहद आम है. चाहे लड़के के लिए लड़की तलाशनी हो या फिर लड़की के लिए लड़का, कुंडली में जब तक 18 गुण नहीं मिल जाते तब तक शादी के लिए मंजूरी नहीं मिलती. और कुंडली मिलान की यह प्रथा, पढ़ाईलिखाई से वंचित लोगों के साथसाथ खूब पढ़ेलिखे लोग भी अपनी शादी के लिए योग्य वर या वधू की तलाश के लिए प्रयोग करते हैं.
सफल होने की नहीं है गारंटी
चूंकि ज्योतिष विद्या या एस्ट्रोलौजी किसी तरह का कोई विज्ञान नहीं है, इसलिए इस का एक हिस्सा यानी कि कुंडली मिलान का भी किसी तरह का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. कुंडली प्रथा में जिस तरह ग्रहों और नक्षत्रों के मेल या अमेल से किसी व्यक्ति के लिए कौन योग्य है और कौन नहीं, इस का आकलन करने की नाटकनौटंकी की जाती है, उस से यह कहीं से भी न तो वैज्ञानिक लगती है और न ही यह कोई विज्ञान है.
मामला केवल जाति व्यवस्था को बनाए रखना है, बाकी सब तो मदारी के खेल जैसा है. जिस से लोगों को लगता है कि ज्योतिषी जो भी राहू, केतु, शनि, मंगल कर रहा है वह सब ठीक ही होगा. जबकि, कुंडली मिलान से बनाए जाने वाले संबंध अपने वैवाहिक जीवन में सफल हों, इस की कोई गारंटी नहीं है.
मसलन, राजीव का ही उदाहरण ले लीजिए. 36 में से 32 गुणों के मिलान के बावजूद शादी का एक साल भी नहीं हुआ और दोनों का तलाक हो गया.
उसी प्रकार रवि की शादी का किस्सा है. कालेज के दिनों में रवि का कालेज में एक लड़की से प्रेम हो गया. लड़की का नाम बुशरा हसन था. बुशरा और रवि ने अपने घर पर एकदूसरे के बारे में बताया. लेकिन कोई बात नहीं बनी. अंत में रवि और बुशरा ने कानूनी तरीके से कोर्ट में जा कर शादी कर ली. हाल में उन से मुलाकात हुई तो वे एकदूसरे के साथ बेहद खुश नजर आए.
आजकल इन शादियों को रोकने के लिए लव जिहाद का नारा दिया जा रहा है ताकि धार्मिक भेदभाव की लकीरों को ऊंची दीवारों में बदला जा सके.
यदि हम पौराणिक कथाओं की बात करें तो भगवान राम और सीता की जोड़ी के समय जब उन की कुंडली का मिलान महर्षि गुरु वशिष्ठ द्वारा किया गया, तो कहा जाता है कि उन की जोड़ी में 36 में से 36 गुणों का ही मिलान हो गया था. परंतु जब 36 गुणों का मेल हो ही गया था तो अंत में सीता को क्यों धरती में समाना पड़ा?
कुंडली प्रथा कितनी व्यावहारिक
कुंडली मिलान की प्रथा केवल समाज में पहले से मौजूद जाति व्यवस्था को मजबूती देती है. इस से यह सवाल बनता है कि आज के आधुनिक समाज में कुंडली मिलान अपनी कितनी व्यावहारिकता रखता है?
उदाहरण के लिए रवि और बुशरा की जोड़ी को ही ले लीजिए. यदि हम नाम से दोनों के धर्म का अंदाजा लगाएं तो रवि हिंदू धर्म से और बुशरा मुसलिम धर्म से ताल्लुक रखती है. इस हिसाब से तो रवि का मेल किसी भी तरीके से बुशरा के साथ होना ही नहीं चाहिए. लेकिन सचाई कुछ और ही बयां करती नजर आ रही है कि दोनों एकदूसरे के साथ बेहद खुश हैं.
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में कई ऐसे हैं जिन्होंने विधर्मी से विवाह किया और उन के विवाह भी सफल रहे, कैरियर भी. उसी प्रकार एक सवाल यह भी बनता है कि जिन धर्मों में कुंडली मिलान जैसी प्रथाओं को प्रैक्टिस नहीं किया जाता, क्या उन के यहां रिश्ते होते ही नहीं? या फिर क्या उन में शादियां होती ही नहीं? और अगर होती हैं तो क्या उन के रिश्ते टूट जाते हैं?
आज के आधुनिक समाज में एस्ट्रोलौजी, हौरोस्कोप इत्यादि पर भरोसा करना खुद को वक्त में पीछे धकेलने जैसा है. एक तरह दुनिया में विज्ञान तेजी से प्रगति के रास्ते पर है तो कुछ लोग दूसरी तरफ धर्म का चश्मा लगा कर दुनिया को पीछे धकेलने का काम कर रहे हैं.
बाकी धर्म वाले भी पीछे नहीं
यदि यह लगता है कि केवल हिंदू धर्म में ही कुंडली मिलान की प्रथा विद्यमान है तो आप गफलत में हैं. कुंडली मिलान की प्रक्रिया एक ही समाज में एक वर्ग को दूसरे वर्ग से रिश्ते जोड़ने से रोकती है, एक तरह से यह बैरिकेड की तरह काम करती है.
भारत के मुसलिम समुदाय के लोग अपना आंगन बड़ा साफसुथरा दिखाने की कोशिश करते हैं. कहते हैं कि मुसलमानों में किसी तरह की कोई जाति नहीं होती, सब बराबर होते हैं इत्यादि. मुसलिम समुदाय में जाति होती है कि नहीं, यह जानने के लिए सब से सीधा और आसान तरीका इंटरनैट पर सर्च करना है. इंटरनैट खोलिए. गूगल पर मुसलिम मैट्रिमोनी टाइप कीजिए. किसी भी एक वैबसाइट पर विजिट कीजिए और थोड़ा सा सर्फिंग कीजिए. शेख, सिद्दीकी, अनवर, आरिफ, मलिक, अली इत्यादि कर के आप को मुसलमानों में जातियों की एक लंबी लिस्ट देखने को मिल जाएगी.
बेशक, मुसलिम में कुंडली मिलान जैसी प्रक्रिया नहीं फौलो की जाती लेकिन जाति का ध्यान तो रखा जाता है. मुसलिम समुदाय में अगड़े माने जाने वाले (मुगल, पठान, सैयद, शेख आदि) नहीं चाहते कि उन की शादी पिछड़े माने जाने वाले (अंसारी, नाई, सिद्दीकी, जोलाहा आदि) के घर में हो चाहे आर्थिक व शैक्षिक स्थिति एकजैसी हो. किसी ऊंची जाति के मुसलिम से यदि आप पूछ लेंगे कि क्या वे अपने बच्चों की शादी भंगी (अछूत मुसलिम) के घर में करेंगे, तो उन का जवाब न में ही होगा. वैसे, बता दें कि मुसलिम समुदाय में यह दावा किया जाता है कि वे छुआछूत प्रैक्टिस नहीं करते. दरअसल, कह देने भर से किस का क्या जाता है.
भारत में वैसे तो मुसलिम समुदाय अल्पसंख्यक है लेकिन इसी समुदाय की बहुसंख्य आबादी गरीब है, पिछड़ी है. जाहिर सी बात है कि भारत के मुसलिम समुदाय का बहुसंख्य हिस्सा पिछड़ा है या दलित है, जो कि अलगअलग पेशों में लगा हुआ है. जब शादीब्याह की बात होती है तो मुसलिम समुदाय में जाति व्यवस्था क्लीयर कट नजर नहीं आती.
कुछ ऐसा ही सिख समुदाय का भी हाल है. कुंडली मिलान यहां भी प्रैक्टिस नहीं की जाती, लेकिन जाति व्यवस्था तो कायम है. इंटरनैट पर ही सिख मैट्रिमोनी टाइप करने और किसी ंवैबसाइट पर विजिट करने भर से मालूम हो जाएगा कि यहां भी जाति के अनुसार ही लोग अपने घर के लड़केलड़कियों की शादी तय करते हैं. जाट, राजपूत, सैनी, अरोड़ा, भाटिया, बत्रा इत्यादि अपने या अपने से ऊपर की जातियों में अपने बच्चों की शादी करवाना चाहते हैं, अपने से निचली जाति में नहीं.
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क्या करना चाहिए
बात सिर्फ कुंडली मिलान तक ही सीमित नहीं है. कुंडली मिलान समाज में एक धर्म में ही मुख्यरूप से प्रैक्टिस की जाती है, लेकिन वैसी ही प्रक्रिया अन्य धर्मों में भी तो विद्यमान है.
एक तरफ तो पहले ही ज्योतिष ज्ञान (एस्ट्रोलौजी) को वैज्ञानिक नहीं माना गया है, वहीं दूसरी ओर इन को मानने वाले लोगों की संख्या समाज में बहुत बड़ी है. अर्थात, वे सभी अवैज्ञानिक चीजों पर भरोसा करते हैं. इस की वजह से आधुनिक समाज की यह ट्रेन आज भी कहीं न कहीं उन्हीं पुरानी अवैज्ञानिक, रूढि़वादी, अंधविश्वास की पटरी पर सवार है जो कि अकसर जातिवाद जैसे स्टेशन पर ही प्रस्थान करती है.
भारत को आजाद हुए 73 साल हो चुके हैं परंतु आज भी हमारे समाज से जातिवाद खत्म नहीं हुआ. इस की वजह केवल एक है कि हमारे दादादादी, नानानानी, मांबाप ने इस जाति व्यवस्था को कायम किया हुआ है.
अपनी जाति में बच्चों की शादियां करवा के अगर हम भी अपने पूर्वजों के किए हुए काम को करेंगे तो हमें कोई हक नहीं यह सवाल करने का कि, ‘भारत से जाति कभी क्यों नहीं जाती?’ इस जाति व्यवस्था के खात्मे के लिए यह जरूरी है कि हम इस कुंडली मिलान की सब से पहली सीढ़ी को ही न चढ़ें.
समय विज्ञान का है, न कि धार्मिक अंधविश्वास और पोंगेपन का. खुद को तैयार कर लें और अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य प्रदान करें. ज्योतिष ने कोविड जैसी महामारी की कोई भविष्यवाणी नहीं की थी. किसी पूजापाठ ने कोविड को खत्म नहीं किया.