कोरोना वायरस ने सभी की जिंदगियों को कितना बदल दिया है. अभी तीन दिन पहले ही तो बर्षा और अभिलाषा कालेज के कैम्पस में मदमस्त घूम रहीं थीं और आज अपने रूम में बंद मुंह बनाएं अपनेअपने फोन में लगी हुई हैं. दोनों दिल्ली विश्वविद्यालय के नामी कालेज में पढ़ती हैं. अभिलाषा लाइफ साइंसेस के छठे सेमेस्टर में है तो बर्षा बीबीए के चौथे सेमेस्टर में. दोनों के इंटर्वल्स चल रहे थे और जल्द ही एनुअल एग्जाम भी होने वाले थे कि कोरोना वायरस के चलते पहले कालेज 31 मार्च तक बंद हुआ और फिर देशभर में लौकडाउन की घोषणा हो गई. लौकडाउन के चलते वे दोनों अपने पीजी में बंद हैं. अभिलाषा इस पीजी में पहले से रह रही थी और सेमेस्टर की शुरुआत में ही बर्षा इस में शिफ्ट हुई थी.

बर्षा और अभिलाषा एकसाथ रहती तो थीं पर दोस्त नहीं थीं, होती भी कैसे, दोस्ती करने का समय था किस के पास.

बर्षा मदमस्त लड़की थी लेकिन कालेज में कोई खास दोस्त नहीं था उस का. नासिक की रहने वाली बर्षा 3 साल से पार्थ के साथ रिलेशनशिप में थी. पार्थ नासिक में ही था और बर्षा यहां दिल्ली में. बर्षा के लिए दोस्ती का मतलब था पार्थ, प्यार का मतलब था पार्थ और परिवार का मतलब भी था तो सिर्फ पार्थ. बर्षा का परिवार रसूखदार था. नौकरीपरस्त मातापिता उस की जरूरतों को तो समझते थे पर उस के मन को कभी नहीं समझ पाए. छोटी बहन से उसे प्यार तो बहुत था लेकिन उम्र में 4 साल छोटी बहन उसे समझती भी तो कैसे. सो, वह बड़ी भी कुछ इसी तरह हुई कि अपने मन की बातें अपने मन में ही रखती थी.

ये भी पढ़ें- मरहम: गुंजन ने अभिनव से क्यों बदला लिया?

वहीं, अभिलाषा सोनीपत की रहने वाली थी. बचपन से हमेशा परिवार की लाड़ली. दोनों भाई उस से बेहद प्यार करते थे और मम्मीपापा की तो जान थी वह. यहां कालेज में भी उस के कई दोस्त थे. हमेशा दोस्तों से घिरी अभिलाषा के लिए शांत पर हमेशा चिड़चिड़ी बर्षा को झेलना मुश्किल हो जाता था. उस ने बर्षा के इस रूम में शिफ्ट होने पर उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, वह उस से कालेज के बाद हैंगआउट करने के लिए भी पूछती थी लेकिन बर्षा कभी पार्थ के साथ फोन पर बात कर रही होती तो कभी चैटिंग. एक बार जब अभिलाषा ने बर्षा से उस की क्लासमेट से नोट्स लाने के लिए कहा था तो बर्षा ने यह कह कर टाल दिया था कि पार्थ दिल्ली आ रहा है और वह उस से मिलने स्टेशन जा रही है. अभिलाषा ने उसे कहा भी कि नोट्स लेने में उसे 5 मिनट से ज्यादा वक्त नहीं लगेगा लेकिन बर्षा नहीं मानी और कालेज से बिना नोट्स लिए ही निकल गई.

उस दिन से ही ऐसी कितनी ही छोटी बड़ी चीजें थीं जिन पर दोनों झगड़ती रहतीं. कभी अभिलाषा के दोस्तों की पीजी पार्टियों से बर्षा परेशान हो जाती तो कभी बर्षा के गंदे पड़े कपड़ों को अपनी कुर्सी पर देख अभिलाषा बिफर पड़ती. एक बार अभिलाषा को जब बहुत भूख लगी थी तो उस ने लंच में आए बर्षा के टिफिन से आलू का परांठा खा लिया था. बर्षा जब कालेज से लंच के लिए लौटी तो खाली टिफिन देख कर उस का मूड खराब हो गया.

‘तुम ने मेरा लंच खाया है?’ बर्षा ने गुस्से से अभिलाषा से पूछा.

‘हां, मुझे भूख लगी थी. तू मुझ से पैसे ले कर कैंटीन से कुछ खा ले,’ अभिलाषा बोली.

‘यार, क्या बदतमीजी है ये. एक कौल कर देती तो मैं कुछ खा लेती वहीं पर. 25 मिनट तक चलते हुए तो नहीं आना पड़ता न मुझे, वो भी इस खाली डब्बे के लिए,’ बर्षा चिल्लाने लगी.

अभिलाषा की आवाज भी अब तेज हो गई. ‘मुझ पर चिल्लाने की जरूरत नहीं है. भूख लगी थी खा लिया और कौल करना भूल गई, सौरी. पर मुझ पर आज के बाद चिल्लाने की कोशिश भी मत करियो. छोटी है, छोटी बन कर रह.’

‘स्टौप टौकिंग, मेरा अभी तुम्हारी शक्ल देखने का भी मन नहीं है.’

‘मैं तो मरी जा रही हूं जैसे तेरी शक्ल देखने के लिए. जा यहां से,’ अभिलाषा अपनी चप्पल पहन बालकनी में जा कर खड़ी हो गई थी.

ये भी पढ़ें- ऑर्डर: क्या अंकलजी ने गुड्डी को अपना फोन दिया?

बर्षा और अभिलाषा हर दिन किसी न किसी बात पर लड़ती थीं. उन दोनों के लिए खुशी की बात यही थी कि वे जबजब लड़तीं तो दोनों में से कोई एक कमरे से बाहर निकल जाया करती थी. बर्षा को अपने कमरे में ही रहना पसंद होता था तो ज्यादातर अभिलाषा ही अपनी किसी दोस्त के पीजी चली जाती थी और कभीकभी वहीं नाइट स्टे करती.

अभिलाषा और बर्षा का पीजी कालेज से 25 मिनट की दूरी पर था. उन के पीजी के पास उन के किसी क्लासमेट या फ्रैंड का पीजी नहीं था. उन के पीजी वाली गली संकरी थी लेकिन आसपास के घरों की ऊंचाई ज्यादा नहीं थी. रात में जब बालकनी में बर्षा खड़ी होती तो उसे खुला आसमान नजर आता था. तारे टिमटिमाते तो उन्हें देख वह खुश हो जाया करती थी, अपने फोन से एक पिक्चर क्लिक करती और पार्थ को भेजा करती. कितनी खुशी मिलती थी उसे पार्थ को अपने हर पल से जोड़ते हुए. जबजब उस से लड़ाई करती तो इतनी उदास हो जाया करती कि अभिलाषा से लड़ना भी उसे व्यर्थ लगता.

अभिलाषा को बर्षा की जिंदगी से कोई मतलब नहीं था, वह उसे उदास देख कर एक पल को कुछ पूछने के बारे में सोचती भी तो दूसरे ही पल उसे बर्षा से अपनी लड़ाइयां याद आ जातीं और वह चुप अपनी किताबों में घुस जाती. लड़ाइयों से अभिलाषा को सब से ज्यादा वह दिन याद आता जब बर्षा ने किचन में आ उस की मैगी के पैन में पानी डाल दिया था और अभिलाषा का खून खौल गया था. हुआ यह था कि अभिलाषा किचन में मैगी बना रही थी और रूम में रखा उस का फोन बज उठा.

अपना फोन उठाने की जल्दी में अभिलाशा किचन से मैगी हिलाने वाला चमचा हाथ में पकड़ तेजी से निकली और गलती से कुर्सी पर सूख रहे बर्षा के कपड़ों पर उस ने चमचा लगा दिया. बर्षा नहा कर बाहर आई तो उस ने देखा उस के टौप पर पीला निशान पड़ा हुआ है. उसे लगा कि अभिलाषा ने यह जानबूझ कर किया क्योंकि उसे पता था आज बर्षा को क्लास में प्रेसेंटेशन देनी है.

बर्षा गुस्से से लाल होती हुई किचन की तरफ बड़ी और बोतल खोल कर जितना पानी उस में था उस ने अभिलाषा की मैगी में उड़ेल दिया. अभिलाषा को भूख बिलकुल बर्दाश्त नहीं थी. सो, बर्षा से लड़ाई और चिल्लमचिल्ली के बाद भी उसे पानी वाली बेस्वाद मैगी खानी पड़ी थी. यह वाक्य उसे जब भी याद आता वह गुस्से से भर जाती थी और उस का मन होता कि बर्षा को खींच कर तमाचा मार दे. वैसे, एक बार जब बर्षा सोतेसोते पलंग के बिलकुल किनारे सरक आई थी तो उसे सरकाने या गिरने से बचाने के बजाय अभिलाषा फोन का विडियो रिकौर्डर खोल कर बैठ गई थी और उस ने बर्षा के गिरने की विडियो बनाई भी थी और अपने दोस्तों में खूब वायरल भी की थी.

अब जब से लौकडाउन हुआ है तब से दोनों इस बात से कम कि बाहर नहीं जा सकते, इस बात से ज्यादा परेशान हैं कि अगले 21 दिन उन्हें एक साथ, एक ही कमरे में काटने हैं. दोनों का लंच और डिनर का खाना भी आना बंद हो गया था, कुछ और्डर वे कर नहीं सकती थीं तो एक ही उपाय था कि दोनों खाना बना कर खाएं. खाना बनाने, बर्तन धोने, झाड़ ूपोंछा करने आदि को ले कर दोनों सुबह शाम लड़ती रहती थीं. अभिलाषा अपनी मम्मी से फोन पर हर दिन बात कर उन्हें हर पल की खबर देती. दूसरी तरफ बर्षा की पार्थ से लड़ाई होती रहती. अभिलाषा ने बर्षा को अभी कल ही फोन पर चिल्लाते सुना था, ‘नहीं करनी मुझे तुम से बात अब, जाओ उस मालविका से ही बातें करो, मुझ से करने की जरूरत नहीं है.’

अब कोरोना वायरस के चलते वे दोनों कहीं आजा नहीं सकतीं, दोनों ही परेशान हैं. दोनों के अकाउंट में पैसे हैं तो दोनों को कुछ खास चिंता नहीं लेकिन घुटन तो उन्हें भी महसूस हो रही है इस चार दीवारी में. आज सुबह से ही बर्षा का मूड कुछ ठीक नहीं यह अभिलाषा को महसूस तो हुआ लेकिन वह उस से कुछ पूछनाजानना नहीं चाहती.

अभिलाषा ‘लव इन द टाइम औफ कोलेरा’ किताब पढ़ रही थी जब उसे बर्षा के रोने की आवाज आई. बर्षा अपने बेड पर थी जो अभिलाषा के बेड से चार कदम दूर ही था. बर्षा का चेहरा चादर से ढका हुआ था तो अभिलाषा को बस उस की आवाज सुनाई दे रही थी. वह बारबार फरमीना और फ्लोरेंटिनो के रोमांस पर फोकस करती और बारबार बर्षा की आवाज उस के ध्यान में बाधा डालती.

ये भी पढ़ें- तू रुक, तेरी तो: रुचि ने बच्चों के साथ क्या किया

‘‘सुन,’’ अभिलाषा ने कहा.

बर्षा ने अभिलाषा की आवाज सुन कर भी उसे अनसुना कर दिया तो अभिलाषा ने फिर आवाज लगाई, ‘‘ओए बर्षा, सुन.’’

‘‘हूं,’’ बर्षा ने जवाब में कहा.

‘‘थोड़ा धीरे रो, मुझे बुक पढ़ने में डिस्टर्बेंस हो रही है,’’ अभिलाषा कहने लगी.

‘‘तुम कितनी हार्टलेस हो, कितनी बुरी हो. तुम्हें दिख रखा है मैं रो रही हूं पर तुम्हें फर्क नहीं पड़ रहा न. तुम्हारा ब्रेकअप होता तो क्या तब भी तुम यही कहती,’’ बर्षा सुबकते हुए कहने लगी.

‘‘मेरा ब्रेकअप होता तो मैं ब्रेकअप पार्टी देती. वैसे भी लड़के इस लायक होते भी नहीं कि उन के लिए आंसू बहाए जाएं, कोई समझदार लड़की उन पर आंसू नहीं बहाती. हां, तू समझदार भी तो नहीं है तो तुझ से ऐसी उम्मीद भी नहीं लगा सकते.’’

‘‘प्लीज, मुझ से बात करने की कोई जरूरत नहीं है,’’ बर्षा अब भी सुबक रही थी.

‘‘हां, जैसे मैं तो मरी जा रही हूं,’’ अभिलाषा ने मुंह बनाते हुए कहा.

बर्षा अपने बेड से उठी और बाथरूम में जा कर शावर के नीचे बैठ रोने लगी. बर्षा और पार्थ का ब्रेकअप हो गया था. पार्थ से बर्षा बेहद प्यार करती थी लेकिन जब से उसे यह पता चला था कि मालविका के पार्थ को प्रोपोज करने के बाद भी वह उस से दोस्ती बनाए हुए है तो बर्षा का शक पार्थ पर गहराता जा रहा था. इस शक और बर्षा की इन्सेक्योरिटी के चलते ही पार्थ ने बर्षा से ब्रेकअप कर लिया था. बर्षा बाथरूम में बैठ कर दिल खोल कर रो रही थी, उस के आंसू पानी की बौछार के साथ मिलते हुए नाली में बह रहे थे और हर एक आंसू के साथ उसे ऐसा लगता मानो उस के दिल के छोटेछोटे टुकड़े भी बह रहे हैं और उस के सीने से दर्द हलका होता जा रहा है.

अभिलाषा बाहर अपने पलंग पर बैठी बर्षा के रोने की आवाज सुन रही थी. तभी अभिलाषा बाहर से जोर से चिल्लाई, ‘‘पानी कम खर्च कर, न्यूज नहीं सुनती क्या, पानी की बचत कर. ऐसे ही हमारा देश कोरोना के बाद पानी की किल्लत से ही जूझने वाला है. कम पानी बहा.’’ बर्षा अपने आंसुओं

के साथसाथ अभिलाषा के तानों का घूंट भी पी गई.

शाम के 7 बज रहे थे जब बर्षा अपने बेड पर आंखें बंद किए लेटी थी. बर्षा अपने और पार्थ के हर उस पल के बारे में सोच रही थी जिन में उसे महसूस होता था कि वे दोनों एकदूजे के लिए ही बने हैं और उन के बीच कभी कोई नहीं आ सकता. अचानक अभिलाषा का फोन बजा तो बर्षा की तंद्रा भंग हुई.

‘‘हां पापा, बोलिए क्या हुआ,’’ अभिलाषा फोन पर बोली. ‘‘क्या…..,’’ अभिलाषा लगभग चीख पड़ी.

अभिलाषा की आवाज सुन कर बर्षा चादर हटा अपने बेड पर बैठ गई. उस की नजरें अभिलाषा के चहरे पर टिक गईं जो धीरेधीरे रोआंसा होने लगा था.

‘‘कहां…कहां हैं मम्मी….मैं…मैं…मैं आ रही हूं….पापा….’’ कहते हुए अभिलाषा जोरजोर से रोने लगी. अभिलाषा को इतनी बुरी तरह रोते बर्षा ने पहले कभी नहीं देखा था. वह तेजी से अपने बेड से उठी और अभिलाषा को थामने लगी. अभिलाषा बस रोए जा रही थी और फोन से लगातार उस के पापा की आवाज आ रही थी.

‘‘अभिलाषा…अभिलाषा…’’ फोन से निकलती हुई आवाज अभिलाषा के कानों तक पहुंच तो रही थी लेकिन शब्दों ने जैसे उस की जबान पर आने से मना कर दिया था.

‘‘अभिलाषा क्या हुआ? बताओ तो हुआ क्या है?’’ बर्षा अभिलाषा से लगातार पूछ रही थी. बर्षा ने अभिलाषा के हाथ से फोन ले लिया.

‘‘हैलो, अंकल…क्या हुआ है,’’ बर्षा ने अभिलाषा के पापा से पूछा.

‘‘बेटा, व…वो….अभिलाषा की मम्मी काफी जल गईं है बेटा. किचन में पूडि़यां तलते हुए कढ़ाई का खौलता हुआ तेल उन के गले से पैर तक छिटक गया. ज्यादा जल गईं हैं होस्पिटल में भर्ती हैं पर अभिलाषा को मत कहना की बहुत ज्यादा जली हैं. उस से कहना कि थोड़ा बहुत जली हैं और कुछ दिन में ठीक हो जाएंगी. उस का ध्यान रखना बेटा… वो पागल है, अपनी मम्मी से बहुत प्यार करती है, रोरो कर अपना हाल बुरा कर लेगी, उस का ध्यान रखना. उस की मम्मी ठीक हैं… तुम दोनों अपना ध्यान रखना.’’

‘‘ओके…अंकल,’’ बर्षा ने कहा और फोन काट दिया.

अभिलाषा बिना रुके बस रोए जा रही थी. बर्षा उसे ले कर बेड पर बैठी और उसे चुप कराने लगी. ‘‘आंटी अब ठीक हैं अभिलाषा, अंकल ने कहा है वे जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’

अभिलाषा अब भी कुछ नहीं सुन रही थी बस रोए जा रही थी. बर्षा उठ कर गई और गिलास में पानी ले आई. अभिलाषा ने पानी पिया और दोनों हथेलियां आंखों पर रख रोने लगी. वह बिलकुल बच्चों की तरह रो रही थी.

‘‘आंटी ठीक हो जाएंगी जल्दी,’’ बर्षा दिलासा देते हुए बोली.

‘‘मुझे मम्मी के पास जाना है,’’ अभिलाषा सुबकते हुए बोल पड़ी.

‘‘लौकडाउन खत्म होते ही चले जाना. अभी संभालो खुद को.’’

अभिलाषा ने अपना फोन उठाया और पापा को कौल लगा दिया.

‘‘पापा, मम्मी को होश आ गया तो बात करा दीजिए, मुझे उन से बात करनी है,’’ एक मिनट रुक अभिलाषा कहने लगी, ‘‘हैलो, हैलो…मम्मी आप ठीक हैं न….आप ठीक हैं न. आप को ज्यादा चोट तो नहीं आई….’’ मम्मी से बात करते हुए अभिलाषा का रोना शांत हो गया था. बर्षा को यह देख कर राहत मिली. वह उठी और बालकनी में जा कर बैठ गई.

बाहर अंधेरा छा चुका था. कोरोना वायरस से लोग इतने डरे हुए हैं कि अपने घरों से बाहर कोई दिखाई ही नहीं देता अब. अंधेरे में बालकनी के एक कोने में बैठी बर्षा खुले आसमान को ताक रही थी. आज न फोन उस के हाथ में था और न फोन के दूसरी तरफ पार्थ. अभिलाषा की मम्मी के साथ जो कुछ हुआ था उसे सुन कर बर्षा को अपना गम बहुत छोटा लगने लगा था. वह घुटनों के दोनों तरफ बांहें बांधे बैठी हुई थी कि तभी अभिलाषा कमरे से निकल कर आई और उस के बगल में आ कर बैठ गई.

‘‘आंटी ठीक हैं?’’ बर्षा ने पूछा.

‘‘हां,’’ अभिलाषा ने जवाब दिया. अभिलाषा की आंखें अब भी नम थीं और आंखों की किनारी से ऐसा लग रहा था मानो दो बूंदे बस छलकने ही वाली हैं.

‘‘तुम ठीक हो?’’ बर्षा अभिलाषा की ओर देखते हुए पूछ पड़ी.

‘‘नहीं.’’

‘‘हम्म.’’

‘‘और तुम,’’ अभिलाषा ने आसमान की ओर देखते हुए कहा.

‘‘नहीं,’’ बर्षा ने कहा और वह भी उसी आसमान में उसी ओर देखने लगी जिस ओर अभिलाषा की नजरें थीं.

‘‘बर्षा….’’

‘‘हां?’’

‘‘सौरी…एंड…थैंक यू…’’

‘‘कोई बात नहीं.’’

‘‘अगर तुम न होती तो पता नही यह रात कैसे कटती. यह दीवारें काटने को दौड़ती मुझे और मैं घुटघुट कर मर जाती,’’ अभिलाषा बोली.

‘‘जबतक मैं हूं तबतक तुम्हें काटने और मारने का हक सिर्फ मुझे है,’’ बर्षा ने कहा और हलकी सी हंसी हंस दी.

बर्षा की बात सुन अभिलाषा की हंसी भी छूट गई. दोनों अपलक आसमान में चांद को निहार रही थीं. अभिलाषा ने आंखें बंद कर लीं और बर्षा के कांधे पर सिर रख लिया. बर्षा ने अपना सिर अभिलाषा के सिर की तरफ झुका लिया. दोनों की आंखें नम अपनेअपने गम से भरी हुई थीं. बर्षा गुनगुनाने लगी, ‘रात का शौक है….रात की सौंधी सी खामोशी का शौक है….शौक है….’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...