सवाल
मेरी उम्र 55 वर्ष है. मायका मेरा संपन्न है. 2 भाई हैं, दोनों बहुत अच्छा कमा रहे हैं, अपने अलगअलग घरों में रहते हैं. मम्मीपापा दोनों अपनी पैतृक कोठी में रहते थे. दोनों की पिछले वर्ष मृत्यु होने के बाद उस पैतृक कोठी को बेचने की बात उठी. मैंने उस में अपना हिस्सा मांगा क्योंकि मेरे पति की कोई खास कमाई नहीं है. भाइयों के पास धनदौलत, जमीनजायदाद की कमी नहीं है. इसलिए पैतृक संपत्ति में से मैं ने अपना हक मांगा. लेकिन दोनों भाइयों के मुंह बन गए. रिश्तेदारी में मुझे लालची औरत समझा जा रहा है. क्या मैं ने अपना हक मांग कर कोई गलत काम किया है. मुझे अपराधबोधी बनाया जा रहा है. मैं मानसिक यंत्रणा से गुजर रही हूं. बताइए, क्या मैं इस से पीछे हट जाऊं, अपना हक न लूं?
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जवाब
यह अफसोस की बात है कि हमारे समाज में पैतृक संपत्ति में अपना बराबर का हक मांगने वाली लड़कियों की समाज में लालची स्त्री की छवि बनती है, न कि अपने हक के लिए जागरूक लड़की की. मतलब लड़की सिर्फ अपने हिस्से के हक को मांगने भर से भी लालची, तेजतर्रार और विद्रोही मान ली जाती है जबकि भाई अपनी बहन के आर्थिक हक को मारने के बाद भी लालची नहीं माने जाते. अकसर ही बहनों का हक छीनने का न तो भाइयों को खुद ही कोई अपराधबोध होता है और न ही परिवार, रिश्तेदार या समाज ही उन्हें ऐसा महसूस कराने की कोशिश करते हैं. लेकिन यदि संपत्ति में अपना हिस्सा लेने के कारण भाइयों से संबंध खत्म या खराब हो जाएं तो परिवार, रिश्तेदार और समाज के लोग अकसर ही इस बात के लिए बहनों को और भी ज्यादा अपराधबोध में डालने की भरपूर कोशिश करते हैं.
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मायके से संबंध खराब होने और रिश्तेदारों में छवि बिगड़ने के डर के चलते ही हिंदू उत्तराधिकार कानून बनने के 13 सालों बाद भी ज्यादातर लड़कियां पैतृक संपत्ति में अपना हक नहीं ले पा रही हैं. समय के साथ लड़कों की सोच में बदलाव होगा, सो होगा लेकिन इस की पहल लड़कियों को ही करनी होगी क्योंकि खुद चल कर कोई उन का हक देने नहीं आएगा. साथ ही यदि मातापिता बचपन से ही सिर्फ बेटों को ज्यादा अहमियत न दें और लड़कियों को अकसर ही भाइयों की खुशी के लिए कुछ न कुछ त्याग करने को न कहें तो बेटे भी संपत्ति के बंटवारे को बहुत ही सहजता से लेंगे. लेकिन तब तक महिलाओं को मायके से संबंध खराब होने के डर से अपने आर्थिक हकों को नहीं छोड़ना चाहिए. जो संबंध सिर्फ संपत्ति के देने और न देने से ही कमजोर या मजबूत होता हो उस संबंध के खोखलेपन को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
बहरहाल, आप अपराधबोध से ग्रस्त न हों और अपना हक लेने में संकोच न करें.