रात के तकरीबन 8 बज रहे थे. पटना शहर के शिवपुरी इलाके में अमूमन  इस समय काफी चहलपहल रहती है, लेकिन उस दिन बारिश के मौसम ने सभी को घरों में सिमट जाने के लिए मजबूर कर दिया था. यही वजह थी कि सड़कें सुनसान पड़ी थीं. आसमान में कालेकाले बादलों ने शाम से ही डेरा जमा लिया था.

26 साल का गोरा, तंदुरुस्त नौजवान रुद्र प्रताप गाड़ी चला रहा था. बगल वाली सीट पर उस का खास दोस्त आदित्य बैठा था, जो देखने में सांवले रंग का इकहरे बदन का नौजवान था. रेडियो पर गाना बज रहा था ‘भीगीभीगी सड़कों…’ और दोनों साथसाथ मस्ती में गाए भी जा रहे थे…

“यार रुद्र, क्या मस्त मौसम है, क्या शानदार गाना है, ऐसे में बस किसी अपने का साथ हो जाए तो जिंदगी में  मजा आ जाए…” आदित्य ने खिड़की के कांच को नीचे कर बाहर की ओर देखते हुए कहा.

“देख, अपनेवपने का मैं नहीं जानता, पर… अच्छा, चल तेरे सामने जो बक्सा है उसे खोल,” रुद्र प्रताप ने दोस्त के मूड का खयाल रखते हुए कहा.

आदित्य ने बड़े जोश से बक्सा खोला और उछल पड़ा, “तू न सचमुच कमाल है कमाल… लेकिन ड्रिंक ऐंड ड्राइव… पकड़े गए तो?”

आदित्य एक साधारण परिवार का लड़का था. उसे दुनियादारी की खूब समझ थी, पर रुद्र प्रताप करोड़पति पिता का एकलौता बेटा था.

“कुछ नहीं होता, बस जेब में करारे नोटों की गड्डी होनी चाहिए… अब तू ज्ञान ही देगा या मजे भी करेगा…” रुद्र प्रताप को अपने पिता के पैसों पर बहुत घमंड था, यह उस की इस बात से साफ जाहिर हो रहा था.

“कुछ खाने के लिए नहीं है?” आदित्य ने शराब की बोतल को आगेपीछे   देखते हुए कहा.

“पीछे की सीट पर देख…” रुद्र प्रताप ने पीछे की ओर इशारा करते हुए कहा.

“आज तो बस हम मजे ही मजे करेंगे. एक काम करते हैं तेरे औफिस वाले फ्लैट पर चलते हैं,” आदित्य ने सुझाव दिया.

“तू जैसा कहे…” रुद्र प्रताप ने हामी भरी.

‘भीगीभीगी सड़कों…’ दोनों एकदूसरे की ओर देख कर फिर से गाने लगे.

“यार रुद्र, इस गाने के साथ मेरे जज्बात कुछ ज्यादा ही मचल रहे हैं,” आदित्य ने चेहरे पर शैतानी मुसकान लाते हुए कहा.

“हां यार, मेरे भी…” रुद्र प्रताप ने आंख मारी.

अचानक तभी उन्हें सड़क किनारे 2 लड़कियां खड़ी दिखाई दीं, जो इस तेज बारिश में लोगों से मदद मांग रही थीं.

“दीदी, बहुत ठंड लग रही है, जल्दी से घर चलो न…” बारिश में भीगती बिन्नी ने ठिठुरते हूए खुद को अपनी बड़ी बहन पूर्वी से चिपकाते हुए कहा.

“मैं समझ रही हूं बिन्नी, पर तुझे भी क्या जरूरत थी सुबह मेरे साथ ईंट भट्ठे पर आने की, अब कोई सवारी मिले तो चलूं न,” परेशान पूर्वी ने चेहरे से पानी पोंछते हुए जवाब दिया. उस समय उस का पूरा ध्यान सड़क पर आजा रही गाड़ियों पर था.

“मरते समय बापू ने मुझ से वचन लिया था कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूं… उस का क्या?” बिन्नी ने ठिठुरते हुए भी जबाव दिया.

यह बात सुनते ही पूर्वी ने अपनी बहन के माथे को स्नेह से चूम लिया. 18 साल की पूर्वी अपनी 11 साल की बहन बिन्नी और मां के साथ शहर के भीतरी हिस्से में बनी झुग्गी बस्ती में रहती थी. उस की खूबसूरती में कोई कमी न थी, पर वह खूबसूरती लोगों को न दिखे, इस की कोशिश खूब होती थी. इस के लिए लोगों से कम बात करना, चिढ़ कर जबाव देना, बातबेबात पत्थर चला देना जैसी बेतुकी बातें शामिल थीं.

ऐसा पहले नहीं था, पर पिछले साल पिता की मौत होते ही ऐसे लोगों की लाइन लग गई थी, जो पूर्वी की मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे थे. अपने स्वाभिमान का खयाल रखते हुए वह ईंट भट्ठे पर बहीखाते के काम पर लग गई थी. उस ने सरकारी स्कूल में 10वीं जमात तक पढ़ाई भी की थी.

आज भी पुर्वी वहीं से लौट रही थी. रास्ते में बीमार मां के लिए दवाएं खरीदने लगी, तभी ईंट भट्ठे की ओर से निकलने वाली आखिरी बस छूट गई थी. नतीजतन, दोनों बहनें पैदल ही घर की ओर चल पड़ी थीं. उन्हें उम्मीद थी कि रास्ते में कोई न कोई इंतजाम हो ही जाएगा. लेकिन बरसात ने समस्या को बढ़ा दिया था.

तभी रुद्र प्रताप और आदित्य की गाड़ी वहां से गुजरी. दोनों लड़कों ने एकदूसरे की ओर शरारत भरी निगाहों से देखा और गाड़ी रोक दी. तब तक पूर्वी कार की खिड़की तक आ चुकी थी.

“झुग्गी बस्ती तक छोड़ देंगे बाबू…”

पूर्वी ने हाथ जोड़ कर कहा.

बारिश में भीगती हुई लड़की, चेहरा पानी में धुल कर चमक रहा था. रुद्र प्रताप और आदित्य की मुंहमांगी मुराद जैसे सामने खड़ी थी.

‘हांहां, क्यों नहीं…’ दोनों एकसाथ बोल पड़े.

पीछे का दरवाजा खोल दिया गया. पूर्वी अपनी बहन के साथ गाड़ी में बैठ गई. गाड़ी चलने लगी. दोनों ने सामने के मिरर से पूर्वी को निहारा.

रुद्र प्रताप ने स्टेयरिंग से हाथ हटा कर आदित्य की ओर बढ़ाया. आदित्य ने इशारे को समझ उस के हाथ को गरमाहट से थाम लिया.

उस समय पूर्वी का परेशान चेहरा घुंघराले बालों से ढका हुआ था, केवल पतले होंठ, जो बारिश में भीगने के चलते और भी गुलाबी हो गए थे, वही उन्हें दिख रहे थे. दोनों की बांछें ऐसे खिल गईं, जैसे पूर्वी उन्हीं के लिए आई हो.

“दीदी, पानी…” बिन्नी ने कराहते हुए कहा. बिन्नी का बुखार बढ़ता ही जा रहा था. होंठ सूख गए थे.

“बस, थोड़ी देर और बिन्नी…” कहते हुए पूर्वी ने अपने भीगे दुपट्टे से उस का चेहरा पोंछा.

दोनों लड़कों की दहकती निगाहें अब भी पूर्वी से चिपकी हुई थीं.

“दीदी, पानी…” और बिन्नी बेहोश हो गई.

“बिन्नी… बिन्नी…” पूर्वी ने जोर से आवाज लगाई.

बिन्नी का शरीर जैसे ढीला पड़ गया था. पूर्वी ने अपनी बहन को सीने से भींच  लिया. बिन्नी का शरीर भट्ठी की तरह तप रहा था. पूर्वी उस के शरीर की गरमी को अपने अंदर ले लेना चाहती थी. वह परेशान लड़की किसी से और मदद नहीं लेना चाहती थी, अपनेआप ही इस परेशानी को सुलझाना चाहती थी.

रुद्र प्रताप और आदित्य, जो अब तक औफिस वाले फ्लैट की प्लानिंग में उलझे हुए थे, बिन्नी के बेहोश होते ही जैसे होश में आ गए.

‘क्या हुआ है बिन्नी को?’ दोनों ने एकसाथ पूछा.

बेचैन पूर्वी ने इसी तरह अपने पिता को खो दिया था. उस दिन भी उस के पिता ने भी उसी की गोद में लेटे हुए आखिरी सांस ली थी. उसे वह सीन याद आने लगा और वह एक अलग ही दुनिया में खो गई.

तब तक रुद्र प्रताप ने गाड़ी रोक दी. वे दोनों पीछे आए. अचानक पूर्वी को खतरा सामने दिखने लगा, जिस के लिए वह कुछ हद तक तैयार भी थी.

पूर्वी ने बाएं हाथ से अपना चाकू, जिसे वह हमेशा अपनी कमर में खोंसे रखती थी, कस कर थामा लिया, लेकिन उस की जरूरत नहीं पड़ी.

गाड़ी में हलचल मच गई. पीछे की सीट पर आते ही रुद्र प्रताप ने बिन्नी के माथे को छुआ. आदित्य बिन्नी की हथेली और पैर को मलने लगा. इतने में रुद्र प्रताप जल्दी जा कर आगे से पानी की बोतल ले आया और बूंदबूंद पानी बिन्नी के अधखुले होंठों पर लगातार गिराने लगा. आदित्य अब भी उस के हाथपैर मल रहा था.

“डाक्टर अंकल को फोन कर,” आदित्य ने रुद्र प्रताप से कहा.

“हां, किया था मैं ने, नैटवर्क नहीं मिल रहा…” रुद्र प्रताप ने एक बार फिर नंबर डायल करते हुए कहा.

“चल, बिन्नी को क्लिनिक ले कर चलते हैं,” आदित्य ने तेजी दिखाई.

“ठीक है,” कहते हुए रुद्र प्रताप आगे आ गया.

पूर्वी अभी भी चाकू थामे जड़वत उन दोनों की सारी बातें सुन रही थी.

क्लिनिक बंद होने ही वाला था. रात काफी गहरी हो चुकी थी.

“अंकल, प्लीज… थोड़ा देखिए न, बिन्नी को क्या हो गया…” रुद्र प्रताप ने गिड़गिड़ाते हुए कहा.

डाक्टर बिना कुछ पूछे बिन्नी का मुआयना करने लगे और बोले, “सिस्टर, इन्हें वार्ड में ले चलो…”

थोड़ी देर बाद डाक्टर ने वार्ड से बाहर आ कर बताया, “घबराने की कोई बात नहीं है. कमजोरी, बुखार और भूखप्यास की वजह से बिन्नी बेहोश हो गई थी. सलाइन दी जा रही है, जल्दी ही उसे होश आ जाएगा…. हां, अगर और देर हो जाती तो मामला बिगड़ सकता था.”

वे रुद्र प्रताप के फैमिली डाक्टर थे. वे तीनों रातभर वहीं रहे. गाड़ी में रखी खाने की चीजें तीनों ने मिलबांट कर खाईं.

सुबह तक बिन्नी को होश आ गया था. रुद्र प्रताप तो उन्हें उन के घर तक छोड़ना चाहता था, पर पूर्वी ने मना कर दिया.

पूर्वी ने उन दोनों का शुक्रिया अदा करना चाहा, पर उस से पहले ही रुद्र प्रताप बोल उठा, “देखो, थैंक्यू मत कहना. जो भी हुआ वह इनसानियत थी, उस के आगे कुछ नहीं.”

वे दोनों बहनें वहां से जाने ही वाली थीं कि पीछे से रुद्र प्रताप ने कहा, “पूर्वी, चाकू का इस्तेमाल सही जगह पर जरूर करना.”

यह सुन कर पूर्वी झेंप गई. उसे लगा कि उस की चोरी पकड़ी गई है. उस ने मुसकराते हुए अपनी नजरें झुका लीं और फिर एक नजर रुद्र प्रताप और आदित्य की तरफ देखते हुए वह घर की ओर चल दी.

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