अलार्म की आवाज से गीत की नींद खुल गई. कल की ड्रिंक का हैंगओवर था, इसलिए सिर भारी था. उन्होंने ग्रीन टी बना कर पी और फिर मौर्निंग वाक के लिए चली गईं. सुबह की ठंडी हवा और कुछ लोगों से हायहैलो कर के ताजगी आ जाएगी. फिर तो वही रोज का रूटीन कालेज, लैक्चर बस…

कल से नैना उन की सहेली उन के मनमस्तिष्क से हट ही नहीं रही थी. उन की कहानियों की आलोचना करतेकरते कैसे अपना आपा खो बैठती थी.

‘‘गीत, तुम्हारी कहानी की नायिका पुरुष के बिना अधूरी क्यों रहती है?’’

‘‘नैना, मेरे विचार से स्त्रीपुरुष दोनों एकदूसरे के पूरक हैं. एकदूसरे के बिना अधूरे हैं.’’

वह नाराज हो कर बोली, ‘‘नहीं गीत, मैं नहीं मानती. स्त्री अपनी इच्छाशक्ति से आकाश को भी छू सकती है. सफल होने के लिए दृढ़इच्छा जरूरी है.’’

बड़ीबड़ी बातें करने वाली नैना पति का अवलंबन पाते ही सबकुछ भूल गई और पिया का घर प्यारा लगे कहती हुई चली गई.

नैना के निर्णय से गीत का मन खुश था. वे मन ही मन मुसकरा उठीं और फिर वहीं बैंच पर बैठ गईं. बच्चों को स्कैटिंग करता देखना उन्हें अच्छा लग रहा था. वे बच्चों में खोई हुई थीं, तभी बैंच पर एक आकर्षक युवक आ कर बैठ गया. उन्होंने उस की ओर देखा तो वह जोर से मुसकराया. उस की उम्र 30-32 साल होगी.

वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘माई सैल्फ प्रत्यूष.’’

‘‘माई सैल्फ गीत.’’

‘‘वेरी म्यूजिकल नेम.’’

‘‘थैंक्यू.’’

उस का चेहरा और पर्सनैलिटी देख गीत चौंक उठी थीं, जिस पीयूष की यादों को वे अपने मन की स्लेट से धोपोंछ कर साफ कर चुकी थीं, उस व्यक्ति ने आज उन यादों को पुनर्जीवित कर दिया था.

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वही कदकाठी, वही मुखाकृति, वही चालढाल, वही अंदाज और चेहरे पर लिखी मुसकान तथा वही लापरवाह अंदाज.

गीत डिगरी कालेज में लैक्चरर थीं. उम्र 38 साल थी, लेकिन लगती 30-32 की थीं. रूपमाधुर्य और सौंदर्य की वे धनी थीं. गोरा संगमरमरी रंग, गोल चेहरे पर कंटीली आकर्षक आंखें और होंठ के किनारे पर कुदरत प्रदत्त तिल उन के सौंदर्य को मादक बना देता था.

प्रत्यूष को देखते ही गीत को अपने कालेज के दिन याद आ गए. जब वे और पीयूष यूनिवर्सिटी की लवलेन में एकदूसरे से मिला करते थे. कौफीहाउस के कोने वाली मेज पर बैठ कर एक कौफी के कप के साथ घंटों गुजारा करते थे. कभी किसी पेपर के प्रश्न डिस्कस करते तो कभी अपने भविष्य के सपने संजोते. लेकिन एक हादसे ने क्षणभर में सबकुछ उलटपुलट कर दिया.

एक ऐक्सीडैंट में पापामम्मी दोनों ने एकसाथ दुनिया से विदा ले ली. उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. वाणी 12वीं कक्षा में तो किंशुक 10वीं कक्षा में था. ऐसी स्थिति में भला वे अपनी खुशियों के बारे में कैसे सोच सकती थीं. उन्होंने पीयूष के प्यार को नकार दिया. यद्यपि वह उन के साथ जिम्मेदारी निभाने को तैयार थे.

अपने जीवन के लक्ष्य को बदल कर वे डिगरी कालेज में लैक्चरर बन गईं. कई साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ गईं, कई पत्रिकाओं में नियमित कौलम लिखने लगीं. वाणी और किंशुक दोनों ही विदेश में सैटल हो गए. अब उन के लिए समस्या है उन के मन के रीतेपन की. उन्हें अपना अकेलापन सालता रहता है, अंदर ही अंदर कचोटता रहता है.

प्रत्यूष से रोज मिलनाजुलना होने लगा. मुसकराहट बातचीत में बदल गई. दोनों को एकदूसरे का साथ मनभावन लगने लगा. उस ने बातोंबातों में अपनी दर्दभरी कहानी बताई कि उस के पिता बचपन में ही एक ऐक्सीडैंट में उसे अकेला कर गए थे. मां ने दूसरी शादी कर ली. उन के पास पहले से एक बेटा था, इसलिए उसे न तो कभी मां का प्यार मिला और न पिता का. मां हर समय डरीसहमी रहतीं और वह स्वयं को अवाछिंत सा महसूस करता. हां, पढ़ने में तेज था, इसलिए इंजीनियर बन गया. यही उस के जीवन की पूंजी है. अब तो उन लोगों से उस का कोई रिश्ता नहीं है. इतनी बड़ी दुनिया में बिलकुल अकेला है, उस की आंखें डबडबा उठी थीं.

प्रत्यूष की कहानी सुन कर गीत के मन में उस के प्रति सहानुभूति और प्यार दोगुना बढ़ गया.

एक दिन उन्होंने पूछा, ‘‘तुम्हारा फ्लैट किस फ्लोर में है?’’

‘‘अरे मेरा क्या? वन रूम फ्लैट किराए पर ले रखा है. शांतनु के साथ शेयर कर के रह रहा हूं.’’

पार्किंग में उसे किसी लड़के के साथ देख उस की बातों पर विश्वास हो गया था.

जौगिंग आपस में मिलने का बहाना बन गया. उन्हें अपनी जिंदगी हसीन लगने लगी थी. दोनों बेंच पर बैठ कर आपस में कुछ कहते, कुछ सुनते.

महानगरों की जीवनशैली है कि कोई किसी के व्यक्तिगत जीवन में रुचि नहीं लेता. छोटे शहरों में तुरंत लोगों को गौसिप का चटपटा विषय मिल जाता है और एकदूसरे से कहतेसुनते चरित्र पर लांछन तक बात पहुंच जाती है.

प्रत्यूष कभी लिफ्ट में तो कभी नीचे ग्राउंड में आ फिर पार्किंग में टकरा ही जाता. उस का आकर्षक व्यक्तित्व और निश्छल मुसकान से ओतप्रोत ‘हाय ब्यूटीफुल’, ‘हाय स्मार्टी’ सुन कर वे प्रसन्न हो उठतीं. फिर वे भी उसे ‘हाय हैंडसम’ कह कर मुसकराने लगी थीं.

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यदि किसी दिन वह नहीं दिखाई देता तो उस दिन गीत की निगाहें प्रत्यूष को यहांवहां तलाशतीं. फिर उदास और निराश हो उठती थीं.

गीत समझ नहीं पा रही थीं कि उसे देखते ही वे क्यों इतनी खुश हो जाती हैं. 5-6 दिन से वह दिखाई नहीं दे रहा था. उन्हें न तो उस का फ्लैट का नंबर मालूम था और न हीं फोन नंबर. वे उदास थीं और अपने पर ही नाराज हो कर कालेज के लिए तैयार हो रही थीं.

तभी घंटी बजी. मीना किचन में नाश्ता बना रही थी. इसलिए गीत ने ही दरवाजा खोला. उसे सामने देख रोमरोम खिल उठा.

‘‘ऐक्सक्यूज मी, थोड़ी सी कौफी होगी? उस ने सकुचाते हुए पूछा.’’

‘‘आओ, अंदर आ जाओ.’’

अंदर आते ही ड्राइंगरूप में चारों ओर निगाहें घुमाते हुए बोला, ‘‘अमेजिंग, इट्स अमेजिंग, ब्यूटीफुल… आप जितनी सुंदर हैं, अपने फ्लैट को भी उतना ही सुंदर सजा रखा है.’’

‘‘थैंक्यू,’’ उन्होंने मुसकराते हुए औपचारिकता निभाई थी.

‘‘नाश्ता करोगे?’’

‘‘माई प्लैजर.’’

मीना ने आमलेट बनाया था. उस के लिए भी एक प्लेट में ले आईं. वह बच्चों की तरह खुश हो कर पुलक उठा, ‘‘वाउ, वैरी टेस्टी.’’

उसे अपने साथ बैठ कर नाश्ता करते देख गीत का मन उल्लसित हो उठा. उस का संगसाथ पाने के लिए वे उसी के टाइम पर जौगिंग पर जाने लगी थीं. अपना परिचय देते हुए उस ने बताया था कि वह इंजीनियर है और अमेरिकन कंपनी ‘टारगेट’ में काम करता है. वह चैन्नई से है… उसे हिंदी बहुत कम आती है, इसलिए कोई ट्यूटर कुछ दिनों के लिए बता दें.

गीत खुश हो उठीं. जैसे मुंह मांगी मुराद पूरी हो गई हो. जब उन्होंने बताया कि वे हिंदी में पत्रिकाओं में कहानियां, लेख और कौलम लिखती हैं.

यह सुन कर आश्चर्य से उस का मुंह खुला का खुला रह गया, ‘‘आप इंग्लिश की लैक्चरर और हिंदी में लेखन, सो सरप्राइजिंग.’’

मुलाकातें बढ़ने लगीं. संडे को दोनों फ्री होते तो साथ में खाना खाते, बातें करते और शाम को लौंग ड्राइव पर जाते. हिंदी पढ़ना तो शायद बहाना था.

उन्हें साथी मिल गया था, जिस के साथ वे भावनात्मक रूप से जुड़ती जा रही थीं. उस की पसंद का स्पैशल नाश्ता, खाना, अपने हाथों से बनातीं और उसे खिला कर उन्हें आंतरिक खुशी मिलती.

वह आता तो अपनी मनपसंद सीडी लगाता, कौफी बनाता और फिर दोनों साथसाथ पीते. कभीकभी बीयर भी पी लेते.

वह अकसर गीत की हथेलियों को अपने हाथों से पकड़ कर बैठता. उस का स्पर्श उन्हें रोमांचित कर देता. कई बार उन के मन में खयाल आता कि उन्हें क्या होता जा रहा है… क्या उन्हें प्रत्यूष से प्यार हो गया है? वह उम्र में उन से छोटा है. लेकिन उसे देखते ही वे सबकुछ भूल जातीं. उस के प्यार में डूबती जा रही थीं. कई बार दोनों रोमांटिक धुन बजा कर डांस भी करते.

एक दिन उस ने थिरकतेथिरकते मदहोश हो कर उन्हें अपनी बांहों में भर कर किस कर लिया. यद्यपि वे संकोचवश शरमा कर उस से अलग हो गईं, पर सच तो यह था कि शायद इन पलों का वे कब से इंतजार कर रही थी.

काश, वह हमेशा के लिए उन की नजरों के सामने रहता. वे हर क्षण षोडशी की भांति उस की कल्पना में खोई रहतीं. इन क्षणों को अपनी मुट्ठी में, स्मृति में कैद कर लेना चाहती थीं.

एक दिन उन के लंबे बालों से खेलते हुए उस ने छोटे बालों के लिए अपनी पसंद जाहिर की.

वे पार्लर गईं और अपने लंबे बालों पर कैंची चलवा दी. नए हेयर कट में स्वयं को आईने में देख शरमा उठीं. जाने क्यों प्रत्यूष के प्रति उन के मन में दीवानापन बढ़ता ही जा रहा था.

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गीत सहमी सी रहतीं कि कहीं प्रत्यूष उन्हें छोड़ कर दूसरी हमउम्र लड़की के साथ अपने प्यार की पींगें न बढ़ाने लगे.

उस दिन नीचे खड़ी लिफ्ट का इंतजार कर रही थीं, तभी वहां प्रत्यूष भी आफिस से लौट कर आ गया. उन के चेहरे पर उस की निगाह पड़ी तो मुंह खुला का खुला रह गया.

खुशी के मारे आज सब के सामने उस ने उन्हें अपनी बांहों के घेरे में जकड़ लिया.

गीत ने अपेन को छुड़ाते हुए प्यार भरे स्वर में कहा, ‘‘सब देख रहे हैं.’’

‘‘नाइस हेयर स्टाइल… लुकिंग सो स्वीट ऐंड यंग.’’

उस की आंखों में प्यारभरी खुशी का भाव दिखाई दे रहा था. उस की आंखों में उन के प्रति दीवानगी साफ दिखाई दे रही थी. शायद यही तो वे कब से चाह रही थीं.

‘‘आज शाम को क्या कर रही हो? फ्री हो तो शौपिंग पर चलते हैं.’’

गीत प्रत्यूष के साथ मौल गईं. अभी तक वे इंडियन ड्रैसेज ही पहनती थीं, लेकिन आज उस के आग्रह को नहीं टाल पाईं. ढेरों वैस्टर्न ड्रैसेज पसंद कर लीं. जब उन ड्रैसेज को ट्रायलरूम में पहन कर उसे दिखातीं तो उस की आंखें खुशी से चमक उठतीं.

वहीं कैफेटेरिया में दोनों कौफी का और्डर दे कर एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले बैठे थे.

‘‘गीत, तुम ने तो मुझे अपना दीवाना बना लिया है,’’ वह बोला.

गीत उस के चेहरे से अपनी नजरें नहीं हटा पा रही थीं. मुसकरा पड़ी थीं. लेकिन मन ही मन सोच रही थीं कि वह 38 साल की प्रौढ़ा और यह 28 साल का खूबसूरत स्मार्ट युवक जाने कब उन्हें छोड़ कर अकेला कर दे, इसलिए उन्हें अपने पर कंट्रोल करना होगा. गलत रास्ते पर कदम बढ़ाती चली जा रही हैं. उन्हें उस से दूरी बना कर अपनी पुरानी दुनिया में लौटना होगा.

मगर उसे देखते ही उन के इरादे रेत के महल की तरह ढह जाते और वे उस के प्यार में डूब जातीं. उस के साथ कभी पिक्चर, थिएटर, कभी ड्रामा, कभी डिनर तो कभी मौल… समय को पंख लग गए थे. इन मधुर पलों को वे अपनी स्मृतियों में संजो लेना चाहती थीं.

जब भी वह उन का हाथ पकड़ता, वे सिहर उठतीं, एक दिन फ्रिज से बीयर की बोतल निकाल कर बोला, ‘‘आज सैलिब्रेशन हो जाए.’’

‘‘किस बात की?’’

‘‘मेरीतुम्हारी दोस्ती के लिए.’’

मंदमंद संगीत, हलका सुरूर… वे मुसकरा उठी थीं. थिरकतेथिरकते वे उस की बांहों में खो गईं.

आज दोनों के बीच के सारे बंधन टूट गए. दोनों एकदूसरे में समा गए. वे गहरी निद्रा के आगोश में चली गईं.

जब आंख खुली, तो अपनी अस्तव्यस्त दशा देख एक क्षण को उन्हें झटका सा लगा कि उफ, उन्होंने यह क्या कर डाला. प्रत्यूष उन के बारे में क्या सोचेगा? शायद शरीर की चाहत के कारण वे बहक गई थीं.

वे तेजी से दूसरे कमरे में गई तो देखा प्रत्यूष आराम से सो रहा है. उन के अंदर उस से नजरें मिलाने का भी साहस नहीं हो रहा था.

रात्रि का खुमार नहीं उतरा था, चेहरे पर तृप्ति और संतुष्टि की मुसकान थी तो मन ही मन प्रत्यूष के रिएक्शन के प्रति डर और घबराहट भी थी. उन की निगाहें आकाश में उगते सूर्य के गोले को देख रही थीं. उगता सूर्य कितनों के जीवन में खुशियों का उजाला लाता है, तो कितनों को गम देता है. आज चिडि़यों का चहचहाना उन के कानों में मधुर संगीत का आभास दे रहा था. रोज की तरह उन्होंने उन के लिए दाना डाला.

प्रत्यूष की आहट से वे संकुचित हो उठी. वे उस का सामना करने से हिचक रही थीं. उस के हाथों में ग्रीन टी का कप था.

‘‘हैलो…’’ उस ने कप को मेज पर रखा और फिर घुटनों के बल उन का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मैं भी अकेला, तुम भी अकेलीं विल यू मैरी मी?’’

ये वे लफ्ज थे, जिन का गीत को बरसों से इंतजार था. आज पहली बार उन्होंने स्वयं उसे अपनी बांहों में भर लिया.

गीत खुशियों के झूले में झूल रही थीं. शादी कर के अपने रिश्ते को एक नाम देना चाहती थीं, वे अपने भाईबहन और करीबियों को बुला कर अपनी खुशी में शामिल करना चाहती थीं.

सब से पहले प्रत्यूष की मां से मिलने चलने का आग्रह उन्होंने उस से किया तो वह नाराज हो उठा. वह आर्यसमाज मंदिर में गुपचुप तरीके से शादी करने के पक्ष में था और वे कोर्ट के द्वारा रजिस्टर्ड मैरिज करना चाहती थीं. इसी विषय में दोनों के बीच थोड़ा तनाव भी हो गया. वह उन के लिए एक डायमंड की अंगूठी ले आया था, लेकिन उन की पारखी निगाहें पलभर में पहचान गईं कि यह नकली है.

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कुछ दिन बाद ही उस ने बताया कि शांतनु उसे धोखा दे कर उस के पैसेकपड़े सबकुछ ले कर न जाने कहां चला गया. कमरे को भी छोड़ दिया है. उस के प्यार में पागल वे उस की बातों में आ गईं और दोनो लिवइन में रहने लगे. गीत ने उस पर विश्वास कर के हमदर्दी दिखाते हुए अपना एटीएम कार्ड दे दिया.

प्रत्यूष उन के पैसों पर ऐश करने लगा. कभी शौपिंग तो कभी पार्टी के बिल के मैसेज उन के फोन पर उन्हें मिलते रहते. जब एक दिन उन्होंने पूछा कि किस के संग पार्टी थी तो वह अकड़ कर बोला, ‘‘मेरी सैलरी आने वाली है… सारे पैसे चुका दूंगा.’’

उस के कहने का लहजा उन्हें अच्छा नहीं लगा. उन्होंने गौर किया कि जब भी कोई फोन आता तो वह उन के सामने बात नहीं करता. दूसरे रूम में भी नहीं वरन घर से बाहर जा कर घंटों लंबी बातें करता. उन्होंने उस का फोन या लैपटौप चैक करने की कोशिश की पर वह हरदम लौक लगा कर रखता और अपना पासवर्ड भी नहीं बताता.

उस की यह सब बातें उन्हें खटकने लगीं. उन्हें महसूस हुआ कि जरूर कहीं दाल में काला है. अचानक उन की छठी इंद्रिय जाग्रत हो उठी. उन्होंने चुपचाप से कई जगह स्पाई कैमरे लगवा दिए. फिर वे उस की असलियत पता लगाने में जुट गईं.

सोसायटी के वाचमैन और प्राइवेट डिटैक्टिव की सहायता से चंद दिनों में ही उन की आंखों के समक्ष उस के कुकर्मों की कुंडली खुल गई. वह स्वयं अपनी मृगमरीचिका में छले जाने से बच गईं  थीं.

प्रत्यूष इंजीनियर नहीं था वरन, एक गैंग का सदस्य था, जो अलगअलग शहरों में प्यार का जाल बिछा कर लड़कियों को फंसा कर उन की अस्मत से खेलता था और लौकर में रखी रकम लूटता था. इस में उस का भोलाभाला सुंदर चेहरा और धारा प्रवाह इंग्लिश बोलना बहुत काम आता था.

इस बार गीत को लूटने का जाल रचा था. उन के लौकर को मास्टर चाभी से खोलने की कोशिश करने की संदिग्ध हरकतें कैमरे में कैद थीं. वह उन का डायमंड सैट और कैश ले कर नौ दो ग्यारह होने की कोशिश में था.

पुलिस ने कैमरे के सुबूत के आधार पर उस के हाथों में हथकड़ी लगा दी.

गीत का प्यार का खुमार उतर चुका था. उसे इस हालत में देख उन की आंखें डबडबा उठीं थीं. जीवनसाथी की तलाश में वे अपने ही बुने जाल से मुक्त हो कर बहुत खुश थीं. वे अपने अनुभव को शब्दों के माध्यम से सब के सामने ला कर अपनी छठी इंद्रिय को बारबार धन्यवाद दे रही थीं.

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