डलास (टैक्सास) में लीना से रीवा की दोस्ती बड़ी अजीबोगरीब ढंग से हुई थी. मार्च महीने के शुरुआती दिन थे. ठंड की वापसी हो रही थी. प्रकृति ने इंद्रधनुषी फूलों की चुनरी ओढ़ ली थी. घर से थोड़ी दूर पर झील के किनारे बने लोहे की बैंच पर बैठ कर धूप तापने के साथ चारों ओर प्रकृति की फैली हुई अनुपम सुंदरता को रीवा अपलक निहारा करती थी. उस दिन धूप खिली हुई थी और उस का आनंद लेने को झील के किनारे के लिए दोपहर में ही निकल गई.

सड़क किनारे ही एक दक्षिण अफ्रीकी जोड़े को खुलेआम कसे आलिंगन में बंधे प्रेमालाप करते देख कर वह शरमाती, सकुचाती चौराहे की ओर तेजी से आगे बढ़ कर सड़क पार करने लगी थी कि न जाने कहां से आ कर दो बांहों ने उसे पीछे की ओर खींच लिया था.

तेजी से एक गाड़ी उस के पास से निकल गई. तब जा कर उसे एहसास हुआ कि सड़क पार करने की जल्दबाजी में नियमानुसार वह चारों दिशाओं की ओर देखना ही भूल गई थी. डर से आंखें ही मुंद गई थीं. आंखें खोलीं तो उस ने स्वयं को परी सी सुंदर, गोरीचिट्टी, कोमल सी महिला की बांहों में पाया, जो बड़े प्यार से उस के कंधों को थपथपा रही थी. अगर समय पर उस महिला ने उसे पीछे नहीं खींचा होता तो रक्त में डूबा उस का शरीर सड़क पर क्षतविक्षत हो कर पड़ा होता.

सोच कर ही वह कांप उठी और भावावेश में आ कर अपनी ही हमउम्र उस महिला से चिपक गई. अपनी दुबलीपतली बांहों में ही रीवा को लिए सड़क के किनारे बने बैंच पर ले जा कर उसे बैठाते हुए उस की कलाइयों को सहलाती रही.

‘‘ओके?’’ रीवा से उस ने बड़ी बेसब्री से पूछा तो उस ने अपने आंचल में अपना चेहरा छिपा लिया और रो पड़ी. मन का सारा डर आंसुओं में बह गया तो रीवा इंग्लिश में न जाने कितनी देर तक धन्यवाद देती रही लेकिन प्रत्युत्तर में वह मुसकराती ही रही. अपनी ओर इशारा करते हुए उस ने अपना परिचय दिया. ‘लीना, मैक्सिको.’ फिर अपने सिर को हिलाते हुए राज को बताया, ‘इंग्लिश नो’, अपनी 2 उंगलियों को उठा कर उस ने रीवा को कुछ बताने की कोशिश की, जिस का मतलब रीवा ने यही निकाला कि शायद वह 2 साल पहले ही मैक्सिको से टैक्सास आई थी. जो भी हो, इतने छोटे पल में ही रीवा लीना की हो गई थी.

लीना भी शायद बहुत खुश थी. अपनी भाषा में इशारों के साथ लगातार कुछ न कुछ बोले जा रही थी. कभी उसे अपनी दुबलीपतली बांहों में बांधती, तो कभी उस के उड़ते बालों को ठीक करती. उस शब्दहीन लाड़दुलार में रीवा को बड़ा ही आनंद आ रहा था. भाषा के अलग होने के बावजूद उन के हृदय प्यार की अनजानी सी डोर से बंध रहे थे. इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद रीवा के पैरों में चलने की शक्ति ही कहां थी, वह तो लीना के पैरों से ही चल रही थी.

कुछ दूर चलने के बाद लीना ने एक घर की ओर उंगली से इंगित करते हुए कहा, हाउस और रीवा का हाथ पकड़ कर उस घर की ओर बढ़ गई. फिर तो रीवा न कोई प्रतिरोध कर सकी और न कोई प्रतिवाद. उस के साथ चल पड़ी. अपने घर ले जा कर लीना ने स्नैक्स के साथ कौफी पिलाई और बड़ी देर तक खुश हो कर अपनी भाषा में कुछकुछ बताती रही.

मंत्रमुग्ध हुई रीवा भी उस की बातों को ऐसे सुन रही थी मानो वह कुछ समझ रही हो. बड़े प्यार से अपनी बेटियों, दामादों एवं 3 नातिनों की तसवीरें अश्रुपूरित नेत्रों से उसे दिखाती भी जा रही थी और धाराप्रवाह बोलती भी जा रही थी. बीचबीच में एकाध शब्द इंग्लिश के होते थे जो अनजान भाषा की अंधेरी गलियारों में बिजली की तरह चमक कर राज को धैर्य बंधा जाते थे.

बच्चों को याद कर लीना के तनमन से अपार खुशियों के सागर छलक रहे थे. कैसा अजीब इत्तफाक था कि एकदूसरे की भाषा से अनजान, कहीं 2 सुदूर देश की महिलाओं की एक सी कहानी थी, एकसमान दर्द थे तो ममता ए दास्तान भी एक सी थी. बस, अंतर इतना था कि वे अपनी बेटियों के देश में रहती थी और जब चाहा मिल लेती थी या बेटियां भी अपने परिवार के साथ हमेशा आतीजाती रहती थीं.

रीवा ने भी अमेरिका में रह रही अपनी तीनों बेटियों, दामादों एवं अपनी 2 नातिनों के बारे में इशारों से ही बताया तो वह खुशी के प्रवाह में बह कर उस के गले ही लग गई. लीना ने अपने पति से रीवा को मिलवाया. रीवा को ऐसा लगा कि लीना अपने पति से अब तक की सारी बातें कह चुकी थी. सुखदुख की सरिता में डूबतेउतरते कितना वक्त पलक झपकते ही बीत गया. इशारों में ही रीवा ने घर जाने की इच्छा जताई तो वह उसे साथ लिए निकल गई.

झील का चक्कर लगाते हुए लीना रीवा को उस के घर तक छोड़ आई. बेटी से इस घटना की चर्चा नहीं करने के लिए रास्ते में ही रीवा लीना को समझा चुकी थी. रीवा की बेटी स्मिता भी लीना से मिल कर बहुत खुश हुई. जहां पर हर उम्र को नाम से ही संबोधित किया जाता है वहीं पर लीना पलभर में स्मिता की आंटी बन गई. लीना भी इस नए रिश्ते से अभिभूत हो उठी.

समय के साथ रीवा और लीना की दोस्ती से झील ही नहीं, डलास का चप्पाचप्पा भर उठा. एकदूसरे का हाथ थामे इंग्लिश के एकआध शब्दों के सहारे वे दोनों दुनियाजहान की बातें घंटों किया करते थे.

घर में जो भी व्यंजन रीवा बनाती, लीना के लिए ले जाना नहीं भूलती. लीना भी उस के लिए ड्राईफू्रट लाना कभी नहीं भूली. दोनों हाथ में हाथ डाले झील की मछलियों एवं कछुओं को निहारा करती थीं. लीना उन्हें हमेशा ब्रैड के टुकड़े खिलाया करती थी. सफेद हंस और कबूतरों की तरह पंक्षियों के समूह का आनंद भी वे दोनों खूब उठाती थीं.

उसी झील के किनारे न जाने कितने भारतीय समुदाय के लोग आते थे जिन के पास हायहैलो कहने के सिवा कुछ नहीं रहता था. किसीकिसी घर के बाहर केले और अमरूद से भरे पेड़ बड़े मनमोहक होते थे. हाथ बढ़ा कर रीवा उन्हें छूने की कोशिश करती तो हंस कर नोनो कहती हुई लीना उस की बांहों को थाम लेती थी.

लीना के साथ जा कर रीवा ग्रौसरी शौपिंग वगैरह कर लिया करती थी. फूड मार्ट में जा कर अपनी पसंद के फल और सब्जियां ले आती थी. लाइब्रेरी से भी किताबें लाने और लौटाने के लिए रीवा को अब सप्ताहांत की राह नहीं देखनी पड़ती थी. जब चाहा लीना के साथ निकल गई. हर रविवार को लीना रीवा को डलास के किसी न किसी दर्शनीय स्थल पर अवश्य ही ले जाती थी जहां पर वे दोनों खूब ही मस्ती किया करती थीं.

हाईलैंड पार्क में कभी वे दोनों मूर्तियों से सजे बड़ेबड़े महलों को निहारा करती थीं तो कभी दिन में ही बिजली की लडि़यों से सजे अरबपतियों के घरों को देख कर बच्चों की तरह किलकारियां भरती थीं. जीवंत मूर्तियों से लिपट कर न जाने उन्होंने एकदूसरे की कितनी तसवीरें ली होंगी.

पीले कमल से भरी हुई झील भी 10 साल की महिलाओं की बालसुलभ लीलाओं को देख कर बिहस रही होती थी. झील के किनारे बड़े से पार्क में जीवंत मूर्तियों पर रीवा मोहित हो उठी थी. लकड़ी का पुल पार कर के उस पार जाना, भूरे काले पत्थरों से बने छोटेबड़े भालुओं के साथ वे इस तरह खेलती थीं मानो दोनों का बचपन ही लौट आया हो.

स्विमिंग पूल एवं रंगबिरंगे फूलों से सजे कितने घरों के अंदर लीना रीवा को ले गई थी, जहां की सुघड़ सजावट देख कर रीवा मुग्ध हो गई थी. रीवा तो घर के लिए भी खाना पैक कर के ले जाती थी. इंडियन, अमेरिकन, मैक्सिकन, अफ्रीका आदि समुदाय के लोग बिना किसी भेदभाव के खाने का लुत्फ उठाते थे.

लीना के साथ रीवा ने ट्रेन में सैर कर के खूब आनंद उठाया था. भारी ट्रैफिक होने के बावजूद लीना रीवा को उस स्थान पर ले गई जहां अमेरिकन प्रैसिडैंट जौन कैनेडी की हत्या हुई थी. उस लाइब्रेरी में भी ले गई जहां पर उन की हत्या के षड्यंत्र रचे गए थे.

ऐेसे तो इन सारे स्थलों पर अनेक बार रीवा आ चुकी थी पर लीना के साथ आना उत्साह व उमंग से भर देता था. इंडियन स्टोर के पास ही लीना का मैक्सिकन रैस्तरां था. जहां खाने वालों की कतार शाम से पहले ही लग जाती थी. जब भी रीवा उधर आती, लीना चीपोटल पैक कर के देना नहीं भूलती थी.

मैक्सिकन रैस्तरां में रीवा ने जितना चीपोटल नहीं खाया होगा उतने चाट, पकौड़े, समोसे, जलेबी लीना ने इंडियन रैस्तरां में खाए थे. ऐसा कोई स्टारबक्स नहीं होगा जहां उन दोनों ने कौफी का आनंद नहीं उठाया. डलास का शायद ही ऐसा कोई दर्शनीय स्थल होगा जहां के नजारों का आनंद उन दोनों ने नहीं लिया था.

मौल्स में वे जीभर कर चहलकदमी किया करती थीं. नए साल के आगमन के उपलक्ष्य में मौल के अंदर ही टैक्सास का सब से बड़ा क्रिसमस ट्री सजाया गया था. जिस के चारों और बिछे हुए स्नो पर सभी स्कीइंग कर रहे थे. रीवा और लीना बच्चों की तरह किलस कर यह सब देख रही थीं.

कैसी अनोखी दास्तान थी कि कुछ शब्दों के सहारे लीना और रीवा ने दोस्ती का एक लंबा समय जी लिया. जहां भी शब्दों पर अटकती थीं, इशारों से काम चला लेती थीं.

समय का पखेरू पंख लगा कर उड़ गया. हफ्ताभर बाद ही रीवा को इंडिया लौटना था. लीना के दुख का ठिकाना नहीं था. उस की नाजुक कलाइयों को थाम कर रीवा ने जीभर कर आंसू बहाए, उस में अपनी बेटियों से बिछुड़ने की असहनीय वेदना भी थी. लौटने के एक दिन पहले रीवा और लीना उसी झील के किनारे हाथों में हाथ दिए घंटाभर बैठी रहीं. दोनों के बीच पसरा हुआ मौन तब कितना मुखर हो उठा था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस की अनंत प्रतिध्वनियां उन दोनों से टकरा कर चारों ओर बिखर रही हों.

दोनों के नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी. शब्द थे ही नहीं कि जिन्हें उच्चारित कर के दोस्ती के जलधार को बांध सकें. प्रेमप्रीत की शब्दहीन सरिता बहती रही. समय के इतने लंबे प्रवाह में उन्हें कभी भी एकदूसरे की भाषा नहीं जानने के कारण कोई असुविधा हुई हो, ऐसा कभी नहीं लगा. एकदूसरे की आंखों में झांक कर ही वे सबकुछ जान लिया करती थीं. दोस्ती की अजीब पर अतिसुंदर दास्तान थी. कभी रूठनेमनाने के अवसर ही नहीं आए. हंसी से खिले रहे.

एकदूसरे से विदा लेने का वक्त आ गया था. लीना ने अपने पर्स से सफेद धवल शौल निकाल कर रीवा को उठाते हुए गले में डाला, तो रीवा ने भी अपनी कलाइयों से रंगबिरंगी चूडि़यों को निकाल लीना की गोरी कलाइयों में पहना दिया जिसे पहन कर वह निहाल हो उठी थी. मूक मित्रता के बीच उपहारों के आदानप्रदान देख कर निश्चय ही डलास की वह मूक मगर चंचल झील रो पड़ी होगी.

भीगी पलकों एवं हृदय में एकदूसरे के लिए बेशुमार शुभकामनाओं को लिए हुए दोनों ने एकदूसरे से विदाई तो ली पर अलविदा नहीं कहा.

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