इन दिनों छात्र-छात्राएं परीक्षाओं की तैयारियों में मशगूल हैं. तमाम ऐसे बच्चे हैं, जो परीक्षा का नाम सुनकर अत्यधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं, लेकिन कुछ मनोचिकित्सकीय सुझावों पर अमल कर परीक्षा और इससे जुड़ा तनाव एक ऐसी सच्चाई है जिससे हर उम्र का बच्चा, छात्र-छात्रा व व्यक्ति गुजरता है. वहीं सच यह भी है कि इस तनाव से भलीभाति निपट सकते हैं, बशर्ते कि परीक्षार्थी व उनके अभिभावक कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें .

इन हालातो में बढ़ सकता है तनाव

-जब हम परीक्षा या इसके परिणामों को पूर्ण रूप से अपने भविष्य व सपनों से जोड़ लेते हैं.

-जब हम परीक्षा व उसमें प्राप्त नबरों को ही अपनी काबिलीयत का प्रमाण समझने लगते हैं.

-जब हमारे माता-पिता व परिजन और अन्य लोग हमसे इम्तहान में बहुत अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद जताते हैं.

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तनाव के लक्षण

-रह रहकर हताश होना.

-सिरदर्द होना.

-दिल की धड़कन को महसूस करना.

-नींद उड़ जाना और पूरी रात न सो पाना.

-ऐसा महसूस करना कि मैं कहीं भाग जाऊं या मुझे कुछ हो जाए.

-छात्र का परीक्षा देने से पूर्णत: इनकार कर देना.

उपर्युक्त लक्षणों के अलावा स्वाभाविक व सहज रूप से परीक्षार्थी का मन अत्यधिक सकारात्मक व नकारात्मक भावनाओं के मध्य झूलता है. पढ़ाई करते वक्त अचानक छात्र को यह महसूस होता है कि उसे सब आता है और उसकी तैयारी सतोषजनक है. इस कारण वह अतिउत्साहित हो जाता है, लेकिन वहीं दूसरे पल उसे नकारात्मक सोच घेर लेती है. इस मनोदशा में उसे लगता है कि मानो उसे कुछ भी याद नहीं है और दूसरे उससे अच्छा कर रहे हैं, लेकिन अब उसके पास समय बहुत कम है. ऐसी मनोदशा में परीक्षार्थी का दिल तेजी से धड़कने लगता और उसे लगता है कि वह फेल हो जाएगा.

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तनाव का समाधान

कुछ सुझावों पर अमल कर परीक्षा से सबधित तनाव को काफी हद तक नियत्रित कर सकते हैं .

दैनिक चक्र को न बिगाड़ें: मस्तिष्क की एकाग्रता व क्षमता किसी भी परीक्षार्थी के दैनिक चक्र पर निर्भर करती है. यदि परीक्षा की तैयारी के कारण हम वक्त-बेवक्त खाते-पीते हैं और वेवक्त सोते -जागते हैं, तब हमारा दैनिक चक्र बिगड़ जाता है. इस कारण परीक्षा की तैयारी के वक्त या फिर परीक्षा के दौरान छात्र-छात्राओं की एकाग्रता व क्षमता बिगड़ जाती है. इसलिए जहा तक सभव हो .

-नाश्ता, दोपहर व रात का भोजन समय पर ही करें.

-रात में 5 से 6 घटे अवश्य सोएं.

-पूरी रात पढ़ाई करने से बचें, क्योंकि इस स्थिति में परीक्षा के दौरान एकाग्रता व याददाश्त पर विपरीत असर पड़ता है.

-इस बात को समझें कि मानव -मस्तिष्क एक बार की पढ़ी हुई विषय वस्तु को पूर्ण रूप से याद नहीं रख पाता. इसलिए परीक्षा की तैयारी के आखिरी दिनों या महीने में अपना सर्वाधिक समय पहले से पढ़े हुए विषयों को बार-बार पढ़कर- दोहराकर याद करें. ऐसा करने से आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा.

-पढ़ाई के दौरान 10 से 20 मिनट का विश्राम अवश्य करें. ऐसा कर के एकाग्रता बढ़ती है.

अन्य सुझाव

-अपनी पढ़ाई व तैयारी की तुलना दूसरों से न करें.

-हमारे नबर कितने आयेंगे व हमारा लक्ष्य कहा तक है, यह बात अपनी क्षमता के अनुसार तय करें. यह बात भी सुनिश्चित करें कि दूसरे हमसे क्या अपेक्षा करते हैं?

-जब तनाव महसूस करें या किसी प्रश्न या विषय को लेकर हताशा पैदा हो, तब अपनों की सहायता लेने से न कतराएं.

-जब अत्यधिक हताश महसूस करें या ऐसा लगे कि फेल हो जाएंगे, तो यही बात इन्हीं शब्दों में माता-पिता या शिक्षक को बताएं.

मनोचिकित्सक से तब जरूर मिलें

-यदि बच्चे में तनाव के अत्यधिक लक्षण प्रकट हों और वह सोना बद कर दे.

-यदि बच्चा परीक्षा देने से इनकार कर दे या कतराने लगे.

-यदि हर वर्ष परीक्षा के दौरान भावनात्मक अस्थिरता पैदा होती हो.

इन बातो का अभिभावक रखे ख्याल !

-बच्चे को नियमित समय से खाने-पीने व सोने के लिए प्रेरित करें.

-खाने में सब्जी, रोटी, दाल और चावल आदि जल्दी पचते हैं. इसके विपरीत तेल व चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ देर से पचते हैं और सुस्ती पैदा करते हैं.

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-पढ़ाई के दौरान बच्चा यदि थोड़ी देर के लिये दोस्तों को फोन करता है या गेम्स खेलता है, तो उसे कुछ वक्त के लिए ऐसा करने दें. इससे दिमाग में ताजगी आती है और दोबारा पढ़ने के लिए बैठने में एकाग्रता बेहतर होती है. बच्चे की पढ़ाई व तैयारी को लेकर सतोष जताएं व उसे बताएं कि सब ठीक चल रहा है .

-बच्चे की पढ़ाई व तैयारी की तुलना उसके बडे भाई, पड़ोसियों के बच्चों या उसके मित्रों से न करें .

-यदि बच्चा हताशा में आपसे कहता है कि उसकी तैयारी बेकार है और वह फेल होने वाला है तो आप उसकी बातें सुनें और अपनी ओर से उसकी तैयारी को लेकर सतोष व विश्वास जताएं और उसे बताएं कि हर अच्छी व बुरी स्थिति में हम उसके साथ हैं .

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