पूरी दुनिया में सब से बड़ी बहस इस बात को ले कर होती रही है कि धर्म का मतलब क्या है और यह हमारी तरक्की में कितना जरूरी है? वैसे तो धर्म का साधारण सा मतलब है गुण. जैसे सूरज का धर्म है हमेशा जलते रहना, क्योंकि जिस दिन उस की आग शांत हो जाएगी, उस का वजूद ही नहीं रहेगा. वैसे ही धरती का गुण है सूरज के चारों ओर चक्कर काटना. धरती थमी और खेल खत्म.

इसी तरह किसी इनसान का धर्म है इनसानियत. चूंकि धरती पर फिलहाल वह सब से ज्यादा दिमाग वाला प्राणी माना जाता है और अपने अच्छेबुरे के साथसाथ दूसरे प्राणियों की भलाईबुराई को समझने की ताकत रखता है, इसलिए उस से उम्मीद की जाती है कि वह धरती पर इस तरह बैलेंस बनाए कि तरक्की के साथसाथ आबोहवा के साथ कोई खिलवाड़ न हो.

यह धर्म का स्वीकार रूप है. लेकिन इनसान ने खासकर तथाकथित धर्मगुरुओं अपने मतलब को साधने के लिए और आम लोगों में ‘अनदेखे ईश्वरीय भय’ के चलते धर्म को उन की जाति, समाज, रीतिरिवाजों से जोड़ कर इतना विकृत कर दिया है कि दुनिया में इसी धार्मिक दबदबे के लिए सब से ज्यादा खूनखराबा हुआ है. अब तो दुनियाभर की सरकारें भी इन धर्मगुरुओं की दासी जैसी बन गई हैं.

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भारत में जब से मोदी सरकार बनी है, तब से यहां ‘हिंदू देश’ के नाम पर यह भरम फैलाया जा रहा है कि अगर आज हिंदू नहीं जागे तो कट्टर मुसलिम कल को उन्हें खदेड़ कर देश पर कब्जा कर लेंगे.

इसी के चलते अब लोग कर्मजीवी, दयाजीवी, परोपकारजीवी बनने के बजाय हिंदूजीवी, मुसलिमजीवी, मंदिरजीवी, मसजिदजीवी यहां तक कि नफरतजीवी बन रहे हैं. दुख की बात है कि इस धार्मिक उन्माद में देश का भविष्य कहे जाने वाले नौजवान भी थोक के भाव में भागीदार बन रहे हैं.

हालिया रिंकू शर्मा हत्याकांड से इस बात की गहराई को समझते हैं. दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में 11 फरवरी, 2021 को 25 साल के रिंकू शर्मा की कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी, जिस के बाद वहां तनाव का माहौल बन गया. वजह, रिंकू शर्मा एक हिंदू धार्मिक दल का कार्यकर्ता था और उस की हत्या में जिन 5 लड़कों को पुलिस ने पकड़ा वे मुसलिम समुदाय से थे. हालांकि वे सब एकदूसरे को पहले से जानते थे, पर एक झगड़े के बाद यह कांड हो गया.

इस के बाद धर्मजीवियों की ऐंट्री हुई. विश्व हिंदू परिषद के नेताओं ने दावा किया कि रिंकू शर्मा की इसलिए चाकू मार कर हत्या कर दी गई, क्योंकि वह अयोध्या में बन राम मंदिर के लिए चंदा इकट्ठा कर रहा था, जबकि डिप्टी पुलिस कमिश्नर, आउटर दिल्ली ने बताया कि इस मामले की जांच में अब तक पता चला है कि हत्या एक कारोबारी विवाद के चलते हुई थी.

नफरती बयानबाजी

रिंकू शर्मा के साथ जो हुआ वह एक जघन्य अपराध है और कुसूरवारों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए, पर इस पूरे मामले में जिस तरह धार्मिक उन्माद को भड़काने की कोशिश की गई, वह चिंता की बात है.

इसी का नतीजा था कि इस हत्याकांड के अगले दिन आरोपी लड़कों के घर पर तोड़फोड़ की गई, पथराव हुआ. हालांकि, इलाके का बिगड़ता माहौल देख कर आरोपियों के परिवार वाले पहले ही घर छोड़ कर जा चुके थे.

इतना ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी की भोपाल से सांसद साध्वी प्रज्ञा और दिल्ली भाजपा के नेता कपिल मिश्रा ने रिंकू शर्मा के परिवार वालों से मुलाकात की. साध्वी प्रज्ञा ने कहा कि घर में घुस कर वारदात को अंजाम देने से साफ हो जाता है कि हमलावरों के हौसले कितने बुलंद थे.

भाजपाई कपिल मिश्रा ने कहा कि इस मामले की जांच आतंकी हमले के तौर पर होनी चाहिए, क्योंकि घर में घुस कर मारा गया है. अपराधियों को तो फांसी होनी चाहिए. उन लोगों को भी सजा मिलनी चाहिए जिन्होंने अपराधियों के दिमाग में इतना जहर भरा है कि जो राम मंदिर के नाम पर चंदा मांगे उस की घर में घुस कर हत्या कर दो.

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भारतीय जनता पार्टी और तमाम हिंदू दलों की बात तो छोड़िए, खुद को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली आम आदमी पार्टी, जिस की सरकार दिल्ली में है, के प्रवक्ता राघव चड्ढा ने कहा कि दिल्ली में रिंकू शर्मा के मांभाई कह रहे हैं कि ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने पर रिंकू शर्मा की हत्या की गई. इस की जांच होनी चाहिए. इस से यह नजर आ रहा है कि क्या ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने वाले अब सुरक्षित नहीं हैं? क्या दिल्ली और भारत में ‘जय श्रीराम’ का नारा नहीं लगा सकते? क्या उन की हत्या की जाएगी?

सवाल उठता है कि देश को धार्मिक नारों की जरूरत ही क्यों है? सार्वजनिक जगह पर ‘जय श्री राम’ या ‘अल्लाह हू अकबर’ या फिर दूसरे धर्मों के नारे लगाने से किस का भला होगा? एक परिवार ने अपना 25 साल का जवान लड़का खोया है. अब उस के कितने ही करोड़ का चंदा जमा कर लो, दुख तो कम नहीं होगा. इसी तरह जिन 5 लड़कों को पुलिस ने पकड़ा है, वे भी जेल में कोई शानदार जिंदगी नहीं जिएंगे और उन का परिवार बाहर कोर्टकचहरी के चक्कर काटेगा.

हासिल क्या

इस सब से किसे और क्या हासिल होगा? अगर इस हत्याकांड को धार्मिक रंग न दिया जाता तो यह एक आम अपराध बन कर रह जाता, जो धर्म के ठेकेदारों को रास नहीं आता. यह पहला मामला नहीं, बल्कि पहले भी ऐसे हत्याकांडों को धार्मिक रंग दिया गया है, जिस से माहौल को टैंशन से भरा बना दिया जा सके, फिर अपने फायदे की रोटियां इस की आंच में सेंकी जा सकें.

पर आज की जरूरतें क्या हैं? क्या मंदिर, मसजिद और उन पर पलने वाले परजीवियों की ताकत बढ़ाने से देशदुनिया का भला होगा? बिलकुल नहीं, क्योंकि जिस देश ने धर्म की कट्टरता को अपनी जनता पर थोपा है, वे आज की तारीख में खंडहरजीवी बने हुए हैं. हमें रिंकू शर्मा जैसे नौजवानों को देश की तरक्की के कामों में आगे देखना है न कि किसी धार्मिक स्थल को बनाने के लिए परची काटने का मोहरा बना कर उन का भविष्य ही अंधकार में डाल दिया जाए. यह बात हर धर्म के लोगों पर लागू होती है.

याद रखिए, सियासत करने वालों ने अपने फायदे के लिए धर्म को हमेशा मजबूत ढाल बनाया है, ताकि उन की दालरोटी चलती रहे. अब हमें दिमाग लगाना है कि हमारा धर्म क्या है? सूरज की तरह जलते रह कर इस कायनात को बचाए रखना या फिर समय से पहले बुझ कर दुनिया को अंधेरे में धकेलना? धर्मजीवी तो यही चाहते हैं कि आम लोगों के दिलोदिमाग पर यह अंधेरा छाया रहे, ताकि उन के घरों में उजाला रहे.

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