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हुआ यों कि एक बार मैं एक ढाबे में काम कर रहा था कि अचानक एक औरत मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई. मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम हो कौन?’’

उस ने जवाब दिया, ‘‘मैं बाहर की रहने वाली हूं? और इस शहर में रहने के लिए आई हूं.’’

मैं ने कहा, ‘‘यह जगह अच्छी नहीं है. तुम जहां से आई हो, वहीं चली जाओ. हम अच्छे आदमी नहीं हैं. तुम यहां रह कर बरबाद हो जाओगी.’’

‘‘जी नहीं, मैं एक भटकी हुई औरत हूं. क्या तुम मुझे पनाह दे सकते हो?’’

‘‘हां, दे सकता हूं. तुम रात यहीं रुक जाओ,’’ मैंने कुछ सोचते हुए जवाब दिया.

रात के 9 बज रहे थे. मैं बरतन साफ कर रहा था. उस ने भोजन मांगा. मैं ने भोजन दिया. उस ने खा कर अपना मुंह साफ किया.

मैंने उस के बारे में जानना चाहा. उस ने बताया, ‘‘मेरा नाम सायना है.’’

मैं उसे ध्यान से देख रहा था. वह बड़ी खूबसूरत और जवान लग रही थी. उस ने मुझसे पूछा, ‘‘क्या तुम मुझसे शादी करोगे?’’

मैंने हां में अपना सिर हिलाया. कुछ समय और बीत गया. रात के साढ़े 10 बज रहे थे. ढाबे पर मौजूद लोग अपने घर चले गए. मैंने अपना बिस्तर संभाला. वह मेरे पास आ कर बैठ गई.

वह दूधिया रंग की गोरीचिट्टी थी. मैं भी एकाकी जिंदगी जीतेजीते तंग आ गया था, इसलिए मुझे औरत की जरूरत सता रही थी.

ढाबे का शटर बंद हो चुका था. इक्कादुक्का वाहन ही सड़क पर गुजर रहे थे. मैंने उसे पास खींचा. उसने कोई विरोध नहीं जताया, बल्कि वह खुद मुझ से लिपट गई.

इतनी जल्दी ही सबकुछ हो जाएगा, यह सोचा तक नहीं था. मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया. रात के ठीक 12 बज रहे थे. सबकुछ होने के बाद मैं उससे अलग हुआ और अपने बिस्तर पर आ गया. वह अपने कपड़े पहन रही थी.

वह मुझे देख कर मुसकरा रही थी. मुझे जिंदगी में पहली बार औरत के सुख का अहसास हुआ.

दूसरे दिन मैंने उसे चायनाश्ता कराया और किराए का मकान तलाश करने चल पड़ा, लेकिन कहीं पर भी किराए का मकान नहीं मिल सका. शाम के 6 बज रहे थे. मैं किसी फैक्टरी के पास से निकल रहा था कि अचानक एक आदमी ने आवाज दी, ‘‘भाई, क्या तुम मेरे यहां चौकीदारी करोगे?’’

मैं तैयार हो गया और रात की चौकीदारी के लिए वहीं रुक गया. रातभर चौकीदारी करता रहा. उस की याद आती रही और अगले दिन सुबह मैं वहां से चला आया.

सुबह जब मैं ढाबे पर पहुंचा, तब क्या देखता हूं कि वह मुंह फुलाए बैठी है और मुझसे शिकायत करने लगी, ‘‘ऐ जनाब, तुम कहां गायब हो गए थे. नहीं करनी शादी तो वैसे ही चलने दें.’’

‘‘देखो, मैं तुम्हारे लिए मकान तलाश करने गया था, लेकिन मकान नहीं मिल सका. मुझे अफसोस है.’’

वह मेरी बात मानने को तैयार नहीं हुई और मुझे भलाबुरा कहने लगी. मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गया. घंटेभर बाद वह खुद मेरे पास आ गई और कहने लगी, ‘‘मकान और मिल जाएगा, लेकिन तुम मुझे इस तरह छोड़ कर मत जाया करो. जमाना बड़ा खराब है.’’

‘‘ठीक है, अब आगे से ऐसा नहीं होगा.’’

1-2 दिन बड़े आराम से कटे. वह सैक्स में मेरा सहयोग देने लगी.

मैं रात को ढाबा छोड़ कर चौकीदारी के लिए निकल जाता था. एक दिन वह मेरा हाथ पकड़ कर कहने लगी कि आज रात को आओगे न? मैं जल्दी लौटने का वादा कर के निकल गया. फिर रात को आ कर उस के पास सो गया.

एक दिन ऐसा हुआ कि मैं ढाबे पर काम कर रहा था, अचानक हरीश नाम के एक आदमी ने मुझसे कहा, ‘‘अरे सुशील, वह औरत बेहोश हो कर गिर गई है.’’

मैं हक्काबक्का रह गया और काम छोड़ कर भागा, जहां वह बेहोश पड़ी थी.

मैंने उसे उठाया और बोला, ‘‘क्या सायना, तुम बेहोश हो कर क्यों गिर पड़ी हो?’’

‘‘जी, मुझे चक्कर आ गए थे. कभीकभी मुझे मिरगी के दौरे आते रहते हैं. क्या तुम मेरा इलाज कराओगे?’’

मैंने हां में अपना सिर हिलाया और आटोरिकशा किया. उस में बैठ कर हम अस्पताल गए. ठीक 11 बजे हम वहां पहुंचे. डाक्टर से मिले और सारी जानकारी दी.

डाक्टर ने कहा, ‘‘भाई, मिरगी की बीमारी का कोई इलाज नहीं है. किसी दूसरे अस्पताल चले जाओ…’’ वहां भी मामला नहीं जमा. निराश हो कर वापस आ गए.

एक बार मैं बैठाबैठा चायनाश्ता कर रहा था. एक आदमी मेरे पास आया और बोला, ‘‘अरे, सुशील.’’

मैं ने कहा, ‘‘क्या है?’’

‘‘इस औरत को तुम छोड़ दो.’’

‘‘अरे भाई, मैं इस औरत को कैसे छोड़ दूं,’’ मैंने एतराज जताया. वह बोलने लगा, ‘‘मैं इस के साथ घर बसाना चाहता हूं.’’

यह सुन कर मुझे हैरानी हुई, फिर सोचा, ‘इस को घर मिल जाएगा और घर भी बस जाएगा.’

पर, मैं यह नहीं जानता था कि किसी साजिश का शिकार हो रहा हूं. मैंने उसे सोते से उठाया और टैक्सी में वह अपने साथ ले गया. खैर, मैंने समझा कि कोई मुसीबत मुझसे छूट गई है.

पर, मेरा दिनभर काम में मन नहीं लगा, फिर भी मन मार कर काम करता रहा.

रात के 10 बज रहे थे. मैं बिस्तर पर चला गया, लेकिन नींद नहीं आ रही थी. रातभर बेचैनी रही. सुबह उठ कर नहाया और ढाबे पर चला आया. लापरवाही के चलते फैक्टरी की चौकीदारी छूट चुकी थी.

सुबह के 10 बज रहे थे कि सायना रोतीबिलखती आई. मैंने पूछा, ‘‘तुम रो क्यों रही हो?’’

‘‘तुम भी किसी के साथ भेज देते हो. उसने और 2 आदमियों ने मिल कर मेरे साथ बलात्कार किया और सुबह गाड़ी में बैठा दिया.’’

मैंने अपना सिर धुन लिया और बोला, ‘‘वह तो बोल रहा था कि घर बसाना चाहता है.’’

‘‘क्या घर बसाएगा, उस के पास तो रहने के लिए किराए का कमरा भी नहीं है. उसे मैं जान से मार डालूंगी.’’

‘‘खैर, तुम वापस आ गई हो, बाद में देख लेंगे.’’

हमारा दिनभर आपस में मनमुटाव रहा. वह खाना खा कर सो गई. मुझे थोड़ा संतोष मिला. फिर उसे अपने दोस्त की लकड़ी की टाल पर छोड़ कर मैं काम पर वापस आ गया. दिनभर काम करता और सोचता रहा कि इसको वापस उसी शहर में भेज दूं, जहां से वह आई है.

इसी उधेड़बुन से शाम हो गई. वह वापस ढाबे पर आई.

मैं बोला, ‘‘सायना, तुम जहां से आई हो, वहीं वापस चली जाओ. यहां के लोग ऐसे ही हैं.’’

‘‘जी नहीं, मुझे वापस मत भेजिए. मैं तुम्हारे साथ ही रह लूंगी, रूखासूखा खा कर.’’

आखिरकार हार कर मैं ने हालात से समझौता कर लिया. 2-4 दिन अच्छे से निकले. एक बार फिर हम को किराए का मकान मिल गया. हम खुशीखुशी वहां रहने के लिए चले गए, लेकिन यह मेरा भरम निकला. एक दिन तो हमने उस मकान में गुजारा, पर दूसरे दिन वह गायब हो गई.

मैं दिनभर उसे तलाशता रहा, लेकिन वह नजर नहीं आई. दूसरे दिन जब मैं ढाबे पर काम कर रहा था कि अचानक वह मेरे सामने आ गई.

मैं ने पूछा, ‘‘कहां थी तुम रातभर.’’

‘‘मैं एक आदमी के साथ थी. वह आदमी तुमसे बात करेगा. मैं उस के साथ रहने के लिए तैयार हूं.’’

मैंने अपना सिर पीट लिया. फिर भी अपनेआप को संभाला और बोला, ‘‘ठीक है, तुम उसके साथ चली जाओ अपना सामान लेकर, फिर मेरे पास कभी मत आना.’’

मैं और वह दिनभर उस आदमी का इंतजार करते रहे, लेकिन वह नहीं आया.

मेरे अंदर कटु भावना आ गई थी. मैंने उस से बात करना बंद कर दिया. लेकिन फिर अंदर एक दया भाव आ गया था कि बेचारी जाएगी कहां?

उस के पास जा कर मैंने प्यार का इजहार किया. वह राजी हो गई. फिर हमारे दिन अच्छे से गुजरने लगे.

एक बार वह रात को उठ कर रोने लगी. मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ सायना, तुम रो क्यों रही हो?’’

‘‘जी, मुझे मेरे बच्चे याद आ रहे हैं, जो ससुराल वालों ने छीन लिए हैं,’’ इतना कह कर वह फिर होने लगी.

देखते ही देखते वहां लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई. मैंने उस का हाथ पकड़ा और तुरंत वहां से निकल पड़े. रात को ढाबे पर आ गए और वहीं सो गए.

एक बार सायना फिर गायब हो गई. दिनभर तलाशता रहा, लेकिन नजर नहीं आई. थकहार कर ढाबे पर आ गया और काम करने लगा.

किसी तरह वह रात गुजारी. सुबह हाथमुंह धो कर ढाबे पर काम करने लगा. अचानक वह फिर मेरे सामने आ गई.

‘‘तुम कहां गायब हो गई थी?’’

‘‘मैं एक आदमी के साथ उस के घर गई थी. रातभर उस के साथ थी, फिर मुझे बस में बिठा कर वह चला गया.

तुम अपना सामान ले कर चली जाओ. यहां मत आना.’’

‘‘जी, मुझे माफ कर दीजिए,’’ उस ने मेरे पैर पकड़ते हुए कहा.

‘‘क्या अगर मैं ऐसी गलती कर देता, तो तुम मुझे माफ कर देती?’’

‘‘जी हां, मैं माफ कर देती,’’ उस ने कहा.

मैंने एक बार फिर कोशिश कर के किराए का मकान ले लिया. हम उस मकान में चले गए. लेकिन यह मेरा भरम था. दूसरे दिन मकान मालिक ने मकान खाली करने को कहा.

मुझे ऐसा लगा कि मेरे ऊपर गाज गिरने वाली है. हुआ यों कि वह मकान मालिक की बीवी से झगड़ा करने लगी. मैंने उसी दिन मकान खाली कर के ढाबे में अपना सामान रख लिया और वहीं पर डेरा जमा लिया.

एक दिन सुबह उसे घूमने के लिए किसी पार्क में ले गया. कुछ देर बाद वह रोने लगी. धीरेधीरे भीड़ इकट्ठा हो गई.

मैंने रोने की वजह पूछी, तो वह बताने लगी, ‘‘मुझे बच्चे याद आ रहे हैं. मैंने उस का हाथ पकड़ा और पार्क से निकल गया. मैंने तय कर लिया कि अब इस को अपने पास नहीं रखूंगा. आखिर थकहार कर ढाबे के मालिक से 500 रुपए लिए और कोटा जाने वाली बस में बिठा दिया. उसने कई बार कहा कि तुम भी मेरे साथ चलो, लेकिन मैंने मना कर दिया.

अचानक कंडक्टर ने सीटी बजा दी. मन मार कर मैं बस से नीचे उतर गया. बस वहां से चली गई. जब तक वह मेरे सामने से ओझल नहीं हुई, तब तक मैं उसे देखता रहा.

निराश हो कर मैं एक चाय के होटल पर आ गया. तब रेडियो में यह गाना बज रहा था, ‘तकदीर का फसाना जा कर किसे सुनाएं, इस दिल में जल रही हैं अरमान की चिताएं.’

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