सैयद फैज़ान मुसन्ना (लखनऊ)
मायावती उत्तर प्रदेश की राजनीति में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी से दोस्ताना उनकी मजबूरी है. उनका फौरी राजनैतिक लक्ष्य यूपी में नंबर दो यानी प्रमुख विपक्षी दल बनना है. ये काम समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस को कमजोर करके ही हो सकता है. यानी मौजूदा समय में बीएसपी के राजनीतिक हमलों की धार सपा और कांग्रेस के खिलाफ ही रहने वाली है.
मायवती ऐसा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दबाव में भी करने को मजबूर हैं. उन्हे भाजपा का विरोध करने का अंजाम भी खूब मालूम है. इसीलिए वह केंद्र सरकार की अर्थिक और कश्मीर नीति तथा अनुच्छेद 370 के हटाये जाने का भी समर्थन कर रहीं है. ऐसे तमाम उदाहरण है जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि वे कहीं न कहीं दबाव में हैं.
लोकसभा चुनाव से पहले हुए तीन राज्यों छतीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में मायावती की भूमिका को लेकर सवाल उठे थे. उस वक्त ये आरोप लगा था कि बीएसपी इन राज्यों में भाजपा को जिताने के काम कर रही है. बसपा ने जिस तरह से टिकट बांटे, उससे कांग्रेस को नुकसान और भाजपा को लाभ मिलना तय था. दरअसल मायावती पर केंद्र का साफ-साफ दबाव है. उनके भाई की आर्थिक मामलों में घेरेबंदी हो चुकी है. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट उनके पीछे है. मायावती अगर भाजपा से ज्यादा विरोध करने लगीं तो सरकार सख्ती कर सकती हैं. भाजपा के धुर विरोधी लालू यादव के बाद चिदम्बरम उनके सामने दूसरा उदाहरण हैं.
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अखिलेश और मायावती की जुगल बंदी का परिणाम…
भाजपा ने यह 2019 में आम चुनावों में उत्तर प्रदेश में अखिलेश और मायवती के गठबंधन से लगे झटकों के बाद मायावती को खासतौर से अपने टारगेट पर ले लिया है. उत्तर प्रदेश ही है, जहां बीजेपी को 9 सीटों का नुकसान हुआ. 2014 में यूपी में बीजेपी को 71 सीटें मिली थीं. इस बार उसकी जीती हुई सीटों की संख्या घटकर 62 रह गईं. वह भी तब जबकि 2017 में यूपी में बीजेपी की सरकार बन चुकी थी. ऐसा सिर्फ इसलिए संभव हुआ क्योंकि सपा-बसपा का गठबंधन था.
इसके बावजूद बसपा की मुखिया मायावती ने न सिर्फ समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ा बल्कि कई मुद्दों पर वे भाजपा के समर्थन में दिखी. ताजा मामला कश्मीर में विपक्षी दलों के दौरे का है, जिसे लेकर मायावती खुलकर भाजपा के साथ खड़ी हो गई हैं. कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन करते हुए उन्होंने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का भी हवाला दे दिया. वे यहीं तक नहीं रुकीं बल्कि भाजपा से ज्यादा कड़ा हमला विपक्षी नेताओं पर किया. मायावती ने कश्मीर की उस जनता के पक्ष में कुछ नहीं कहा जो पिछले कई हफ्ते से घाटी में कैद है.
मायावती पर बीजेपी का दबाव
इसी वजह से मायावती बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं. लोकसभा चुनाव में उनके मूल वोट बैंक का बड़ा हिस्सा भाजपा की तरफ जा चुका है. मुस्लिम उनके साथ पूरी ताकत से इसलिए भी था क्योंकि वे सपा के साथ गठबंधन में थी. अब गठबंधन टूटने के बाद मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी की तरफ गया तो बसपा के लिए अस्तित्व का संकट पैदा हो जाएगा. इसलिए उनके सामने बड़ी चुनौती आने वाले उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को किसी भी तरह शिकस्त देना है.
दरअसल उत्तर प्रदेश में लड़ाई नंबर दो की ज्यादा है. उत्तर प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव में राजनैतिक-सामाजिक समीकरण कौन बेहतर ढंग से बना सकता है. इस पर भी बहुत कुछ निर्भर होगा. बसपा को भाजपा से समर्थन लेने में कोई दिक्कत भी नहीं आनी है. जबकि समाजवादी पार्टी के सामने यह विकल्प नहीं है. उत्तर प्रदेश में बड़ी राजनैतिक लड़ाई फिलहाल सपा और बसपा के ही बीच होनी है.
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अगर मायावती विधानसभा के उप-चुनाव में पूरी ताकत झोंकने जा रही हैं तो हैरान नहीं होना चाहिए. उत्तर प्रदेश में राज्य सरकार कई मोर्चों पर घिरी हुई है. ऐसे में ये उपचुनाव उसके लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बन गए हैं. अगर भाजपा किसी विधानसभा क्षेत्र में खुद को कमजोर स्थिति में पायेगी तो बसपा को जरूर फायदा पहुंचाने का प्रयास कर सकती है. इसलिए मायावती ने अगर कश्मीर पर केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन किया है तो यह अनायास नहीं है. मायावती इस समय भाजपा की मदद कर कांग्रेस पर हमला बोल रही हैं, इसलिए भाजपा भी उनका ध्यान रख रही है.