लेखक- सुलक्षणा अरोड़ा

पिछले साल जब मीरा ने समाचारपत्र में एक विदेश भ्रमण टूर के बारे में पढ़ा था तब से ही उस ने एक सपना देखना शुरू कर दिया था कि इस टूर में वह अपने परिवार के साथ वृद्ध मातापिता को भी ले कर जाए. चूंकि खर्चा अधिक था इसलिए वह पति राम और बेटे संजू से किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं लेना चाहती थी. उसे पता था कि जब इस बात का पता पति राम को लगेगा तो वह कितना हंसेंगे और संजू कितना मजाक उड़ाएगा. पर उसे इस मामले में किसी की परवा नहीं थी. बस, एक ही उमंग उस के मन में थी कि वह अपने कमाए पैसे से मम्मीपापा को सैर कराएगी.

वह 11 बजने का इंतजार कर रही थी क्योंकि हर रोज 11 बजे वह मम्मी से फोन पर बात करती थी. आज फोन मिलाते ही बोली, ‘‘मम्मी, सुनो, जरा पापा को फोन देना.’’

पापा जैसे ही फोन पर आए मीरा चहकी, ‘‘पापा, आज ही अपना और मम्मी का पासपोर्ट बनने को दे दीजिए. हम सब अगस्त में सिंगापुर, बैंकाक और मलयेशिया के टूर पर जा रहे हैं.’’

‘‘तुम शौक से जाओ बेटी, इस के लिए तुम्हारे पास तो अपना पासपोर्ट है, हमें पासपोर्ट बनवाने की क्या जरूरत है?’’

‘‘पापा, मैं ने कहा न कि हम जा रहे हैं. इस का मतलब है कि आप और मम्मी भी हमारे साथ टूर पर रहेंगे.’’

‘‘हम कैसे चल सकते हैं? दोनों ही तो दिल के मरीज हैं. तुम तो डाक्टर हो फिर भी ऐसी बात कह रही हो जोकि संभव नहीं है.’’

‘‘पापा, आप अपने शब्दकोश से असंभव शब्द को निकाल दीजिए. बस, आप पासपोर्ट बनने को दे दीजिए. बाकी की सारी जिम्मेदारी मेरी.’’

बेटी की बातों से आत्मविश्वास की खनक आ रही थी. फिर भी उन्हें अपनी विदेश यात्रा पर शक ही था क्योंकि वह 80 साल के हो चुके थे और 2 बार बाईपास सर्जरी करवा चुके थे. उन की पत्नी पुष्पा 76 वर्ष की हो गई थीं और एक बार वह भी बाईपास सर्जरी करवा चुकी थीं. दोनों के लिए पैदल घूमना कठिन था. कार में तो वे सारे शहर का चक्कर मार आते थे और 10-15 मिनट पैदल भी चल लेते थे पर विदेश घूमने की बात उन्हें असंभव ही नजर आ रही थी.

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वह बोले, ‘‘देखो बेटी, मैं मानता हूं कि तुम तीनों डाक्टर हो पर मेरे या अपनी मां के बदले तुम पैदल तो नहीं चल सकतीं.’’

‘‘पापा, आप पासपोर्ट तो बनने को दे दीजिए और बाकी बातें मुझ पर छोड़ दीजिए.’’

‘‘ठीक है, मैं पासपोर्ट बनने को दे देता हूं. हम तो अब अगले लोक का पासपोर्ट बनवाने की तैयारी में हैं.’’

‘‘पापा, ऐसी निराशावादी बातें आप मेरे साथ तो करें नहीं,’’ मीरा बोली, ‘‘आप आज ही भाई को कह कर पासपोर्ट बनाने की प्रक्रिया शुरू करवा दें. डेढ़ महीने में पासपोर्ट बन जाएगा. उस के बाद मैं आप को बताऊंगी कि हम कब घूमने निकलेंगे.’’

फोन पर बातें करने के बाद हरिजी अपनी पत्नी से बोले, ‘‘चल भई, तैयारी कर ले. तेरी बेटी तुझे विदेश घुमाने ले जाने वाली है.’’

‘‘आप भी कैसी बातें कर रहे हैं. मीरा का भी दिमाग खराब हो गया है. घर की सीढि़यां तो चढ़ी नहीं जातीं और वह हमें विदेश घुमाएगी.’’

‘‘मैं राजा को भेज कर आज ही पासपोर्ट के फार्म मंगवा लेता हूं. पासपोर्ट बनवाने में क्या हर्ज है. बेटी की बात का मान भी रह जाएगा. विदेश जा पाते हैं या नहीं यह तो बाद की बात है.’’

‘‘जैसा आप ठीक समझें, कर लें. अब तो कहीं घूमने की ही इच्छा नहीं है. बस, अपना काम स्वयं करते रहें और चलतेफिरते इस दुनिया से चले जाएं, यही इच्छा है.’’

उसी दिन मीरा ने रात को खाने पर पति राम और संजू से कहा, ‘‘आप लोग इतने दिनों से विदेश भ्रमण की योजना बना रहे थे. चलो, अब की बार अगस्त में 1 हफ्ते वाले टूर पर हम भी निकलते हैं.’’

‘‘अरे, मम्मी, जरा फिर से तो बोलो, मैं आज ही बुकिंग करवाता हूं,’’ बेटा संजू बोला.

राम बोले, ‘‘आज तुम इतनी मेहरबान कैसे हो गईं. तुम तो हमेशा ही मना करती थीं.’’

‘‘उस के पीछे एक कारण था. मैं अपने मम्मीपापा को भी साथ ले कर जाना चाहती थी और इस के लिए मेरे पास रुपए नहीं थे. 1 साल में मैं ने पूरे 1 लाख रुपए जोड़ लिए हैं. अब मम्मीपापा के लिए भी मैं टिकट खरीद सकती हूं.’’

‘‘यह मेरे और तेरे रुपए की बात कब से तुम्हारे मन में आई. तुम अगर अपने मम्मीपापा को साथ ले जाने की बात बोलतीं तो क्या मैं मना करता. 30 साल साथ रहने के बाद क्या तुम मुझे इतना ही जान पाई हो.’’

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‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है पर मेरे मन में था कि मैं खुद कमा कर अपने पैसे से उन्हें घुमाऊं. बचपन में हम जब भी घूमने जाते थे तब पापा कहा करते थे कि जब मेरी बेटी डाक्टर बन जाएगी तब वह हमें विदेश घुमाएगी. उन की वह बात मैं कभी नहीं भूली. इसीलिए 1 साल में एक्स्ट्रा समय काम कर के मैं ने रुपए जोड़े और आज ही उन्हें फोन पर पासपोर्ट बनवाने को कहा है.’’

‘‘वाह भई, तुम 1 साल से योजना बनाए बैठी हो और हम दोनों को खबर ही न होने दी. बड़ी छिपीरुस्तम निकलीं तुम.’’

‘‘जो मरजी कह लो पर अगर हम लोग विदेश भ्रमण पर जाएंगे तो मम्मीपापा साथ जाएंगे.’’

‘‘तुम ने उन की तबीयत के बारे में भी कुछ सोचा है या नहीं या केवल भावुक हो कर सारी योजना बना ली?’’

‘‘अरे, हम 3 डाक्टर हैं और फिर वे दोनों वैसे तो ठीक ही हैं, केवल ज्यादा पैदल नहीं चल पाते हैं. उस के लिए हम टैक्सी कर लेंगे और जहां अंदर घूमने की बात होगी तो व्हीलचेयर में बैठा कर घुमा देंगे.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम चाहो. तुम खुश तो हम सब भी खुश.’’

पासपोर्ट बन कर तैयार हो गए. 8 अगस्त की टिकटें खरीद ली गईं. थामस नामक टूरिस्ट एजेंसी के सिंगापुर, बैंकाक और मलयेशिया वाले ट्रिप में वे शामिल हो गए. उन की हवाई यात्रा चेन्नई से शुरू होनी थी.

मीरा, राम और संजू मम्मीपापा के पास चेन्नई पहुंच गए थे. मीरा ने दोनों के सूटकेस पैक किए. उस का उत्साह देखते ही बनता था. मम्मी बोलीं, ‘‘तुम तो छोटे बच्चों की तरह उत्साहित हो और मेरा दिल डूबा जा रहा है. हमें व्हीलचेयर पर बैठे देख लोग क्या कहेंगे कि बूढ़ेबुढि़या से जब चला नहीं जाता तो फिर बाहर घूमने की क्या जरूरत थी.’’

‘‘मम्मी, आप दूसरों की बातों को ले कर सोचना छोड़ दो. आप बस, इतना सोचिए कि आप की बेटी कितनी खुश है.’’

सुबह 9 बजे की फ्लाइट थी. सारे टूरिस्ट समय पर पहुंच चुके थे. पूरे ग्रुप में 60 लोग थे और सभी जवान और मध्यम आयु वर्ग वाले थे. केवल वे दोनों ही बूढे़ थे. चेन्नई एअरपोर्ट पर वे दोनों धीरेधीरे चल कर सिक्योरिटी चेक करवा कर लाज में आ कर बैठ गए थे. वहां बैठ कर आधा घंटा आराम किया और फिर धीरेधीरे चलते हुए वे हवाई जहाज में भी बैठ गए थे. दोनों के चेहरे पर एक विशेष खुशी थी और मीरा के चेहरे पर उन की खुशी से भी दोगुनी खुशी थी. आज उस का सपना पूरा होने जा रहा था.

3 घंटे की हवाई यात्रा के बाद वे सिंगापुर पहुंच गए थे. जहाज से उतर कर वे सीधे बस में बैठ गए जो उन्हें सीधे होटल तक ले गई. विशेष निवेदन पर उन्हें नीचे ही कमरे मिल गए थे.

यहां तक पहुंचने में किसी को भी कोई परेशानी नहीं हुई थी. होटल के कमरे में पहुंच कर मीरा बोली, ‘‘हां, तो मम्मी बताना, अभी आप कहां बैठी हैं?’’

‘‘सिंगापुर में. सच, मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है. तू ने तो अपने पापा का सपना सच कर दिया.’’

इस पर पापा ने गर्व से बेटी की ओर देखा और मुसकरा दिए. शाम से घूमना शुरू हुआ. सब से पहले वे सिंगापुर के सब से बड़े मौल में पहुंचे. वहां बुजुर्गों और विकलांगों के लिए व्हीलचेयर का इंतजाम था. एक व्हील चेयर पर मम्मी और दूसरी पर पापा को बिठा कर मीरा और संजू ने सारा मौल घुमा दिया. फिर उन्हें एक कौफी रेस्तरां में बिठा कर मीरा ने अपने पति व बेटे के साथ जा कर थोड़ी शापिंग भी कर ली. रात में नाइट क्लब घूमने का प्रोग्राम था. वहां जाने से दोनों बुजुर्गों ने मना कर दिया अत: उन्हें होटल में छोड़ कर उन तीनों ने नाइट क्लब देखने का भी आनंद उठाया.

दूसरे दिन वे सैंटोजा अंडर वाटर वर्ल्ड और बर्डपार्क घूमने गए. शाम को ‘लिटिल इंडिया’ मार्केट का भी वे चक्कर लगा आए. तीसरे दिन सुबह वे सिंगापुर से बैंकाक के लिए रवाना हुए. बैंकाक में भी बड़ेबड़े शापिंग मौल हैं पर ‘गोल्डन बुद्धा’ की मूर्ति वहां का मुख्य आकर्षण है.

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5 टन सोने की बनी बुद्ध की मूर्ति के दर्शन मम्मीपापा ने व्हीलचेयर पर बैठ कर ही किए. उस मूर्ति को देख कर सभी आश्चर्यचकित थे. वहां से उन का ग्रुप ‘पटाया’ गया. पटाया का बीच प्रसिद्ध है. यहां तक पहुंचने में भी दोनों बुजुर्गों को कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई. वहां रेत में बैठ कर वे दूसरों द्वारा खेले गए ‘वाटर गेम्स’ का लुत्फ उठाते रहे. बीच के आसपास ही बहुत से मसाज पार्लर हैं. वहां का ‘फुट मसाज’ बहुत प्रसिद्ध है. पापा ने तो वहां के फुट मसाज का भी आनंद उठाया.

रात को वहां एक ‘डांस शो’ था जहां लोकनृत्यों का आयोजन था. डेढ़ घंटे का यह शो भी सब को आनंदित कर गया. 2 दिन बैंकाक में बीते फिर वहां से कुआलालम्पुर पहुंचे. वहां पैटरौना टावर्स, जेनटिंग आइलैंड घूमे. दोनों ‘केबल कार’ में तो नहीं चढ़े, पर साधारण कार में चक्कर अवश्य लगाए. वहां के स्नोवर्ल्ड वाटर गेम्स और थीम पार्क में भी वे नहीं गए. उस दिन उन्होंने होटल में ही आराम किया.

देखते ही देखते 6 दिन बीत गए. 7वें दिन फिर से चेन्नई के एअरपोर्ट पर उतरे और घर की ओर रवाना हुए. उस के बाद मम्मीपापा का पसंदीदा वाक्य एक ही था, ‘‘मीरा और राम तो हमारे श्रवण कुमार हैं जिन्होंने हमें विदेश की सैर व्हीलचेयर पर करवा दी.’’

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