4 विधानसभाओं और कितने ही उपचुनावों की हार ही नहीं देशभर में बढ़ती बेकारी, धौंसबाजी के मामले, नोटबंदी के असर के बाद लग रहा था कि नरेंद्र मोदी जैसेतैसे चुनावों में जगह बना पाएंगे. उन्होंने कांग्रेस को ही नहीं, नवीन पटनायक और ममता बनर्जी को भी पटकनी दे कर साबित कर दिया कि भाजपा का रथ जगन्नाथ पुरी के रथों की तरह सब को एक बार फिर रौंदने की ताकत रखता?है.
नरेंद्र मोदी के पिछले 5 साल कोई बहुत खास नहीं थे, पर इतना जरूर खास रहा कि उन्होंने अपने को लगातार आम जनता से जोड़े रखा. वे लगातार अपने वोटरों व भक्तों से ही नहीं दूसरों से भी बहुत ही ढंग से बोलते रहे, बात करते रहे. लोगों को शायद लगा कि वे उन के आसपास ही कहीं हैं. दूसरी ओर कांग्रेस के राहुल गांधी हों या ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव, वे उस तरह अपने लोगों से बात न कर सके जैसे नरेंद्र मोदी माहिर हैं.
यही नहीं, भारतीय जनता पार्टी की एक बड़ी फौज है जो कंप्यूटरों पर बैठ कर मोदी की बातों को जनता तक पहुंचाती है तो दूसरों की जम कर खिंचाई भी कर लेती है. राहुल गांधी को तो लगातार निशाने पर रखा और जवाब में कांग्रेस ने तुर्कीबतुर्की जवाब देना सही नहीं समझा. जहां मोदी के चाहने वाले हर तरह की भाषा इस्तेमाल कर सकते थे, वहीं दूसरे दलों के लिए काम करने वाले या तो मोदी की शिकायतें करते नजर आए या अपने 2-4 कामों का गुणगान. उन्हें लोगों से बात करने की कला ही नहीं आती है. यही वह कला है जिस के सहारे गांवों, छोटे शहरों, कसबों के चौराहों पर बोलने वाले इलाके के चौधरी बात करते हैं, फिर नेता बनते हैं.
नरेंद्र मोदी की सरकार इस बार भारी बहुमत से जीती यह थोड़े अचरज की बात है क्योंकि इस बार कम से कम उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने एकसाथ चुनाव लड़ा था. इसी तरह बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस वाले साथ थे. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस विधानसभाओं में जीत कर आई थी पर इन सब जगह एक पार्टी के वोटरों ने अपनी पार्टी के साथ आई नई पार्टी को वोट देने की जगह भाजपा को वोट देना ठीक समझा, क्योंकि यह पक्का लग रहा था कि उन के वोटों से जीता सांसद उन के काम करा पाएगा, यह पक्का नहीं है.
हमारे देश में वोट काम पर कम चेहरों पर ज्यादा पड़ते रहे हैं. पहले जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के चेहरों पर पड़े, फिर एक बार अटल बिहारी वाजपेयी के चेहरे पर. पर जब 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के सामने सोनिया गांधी का चेहरा आया तो वह हावी हो गया. इस बार और 2014 में नरेंद्र मोदी के सामने राहुल गांधी जैसों का चेहरा फीका था.
रही बात नीतियों की तो उन की कौन परवाह करता है? इस देश की जनता को अपने वोट से ज्यादा अपने भाग्य की फिक्र होती है. सरकार ने कब कौन से लड्डू दिए हैं? फसल अच्छी हुई तो अनाज ज्यादा, जेब में 4 पैसे आ गए. खराब हुई तो थोड़ा हाहाकार. सरकार का भला क्या दोष? वह भगवान के ऊपर थोड़े ही है? नीतियां चाहे कोई भी हों, नाम तो हो.
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यही वजह है कि नवीन पटनायक को ओडिशा में विधानसभा में अच्छी सीटें मिल गईं पर लोकसभा में चोट पहुंची.
भारतीय जनता पार्टी की जीत के चाहे कुछ भी माने हों, इस का असर देश के रोजमर्रा के काम पर भी पड़ेगा. अब चूंकि देश में 1947 से 1977 तक जैसे एक पार्टी का राज बन गया है, देश के लोगों की सुध लेने वाला अपने ही कामों में फंसा रहेगा. नरेंद्र मोदी को सलाह देने वालों में से कोई भी अब उन्हें कह नहीं सकेगा कि उन का कोई कदम किस तरह पूरा सही नहीं है. सब हां में हां मिलाएंगे.
उन के अपने मंत्री ही नहीं, टीवी, अखबार, सोशल मीडिया हर कोई अलग बात कहने से कतराएगा क्योंकि जनता ने कह दिया है कि सही हैं तो नरेंद्र मोदी. नरेंद्र मोदी की अपनी पार्टी भारतीय जनता पार्टी वैसे ही भारीभरकम है. इस में दिग्गज नेता नहीं हैं, पर रसूखदार लोग हैं. वे अपना वजन कब कहां डालेंगे कहा नहीं जा सकता.
नरेंद्र मोदी को पहले 5 सालों में कई नई बातें सीखनी पड़ीं, बहुतों की सुनी होगी. अब उन्हें कोई सलाह देने की हिम्मत न करेगा. अब उन्हें अपनी बात पर ही, अपने फैसले पर ही देश चलाना होगा. यह काम आसान नहीं होता.
देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को एक मजबूत नेता मान कर चुना है और उन्हें वह मजबूती हर कदम पर दिखानी होगी. देश की जो समस्याएं मुंह खोले खड़ी हैं, उन के जवाब उन्हें अकेले ढूंढ़ने होंगे. भारतीय जनता पार्टी इस जीत को अहंकार न समझ ले, तानाशाही न समझ ले, इस पर रोक लगाने का काम नरेंद्र मोदी को ही करना होगा.
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अब तक नरेंद्र मोदी के सामने संसद में कई मजबूत अच्छे नेता थे, कई मुख्यमंत्री अपनी खास पहचान रखते थे. अब उन्होंने सब का मुंह बंद करा दिया है. वे अगर कहीं संसद में लोकसभा में जीत कर या पहले से राज्यसभा में हैं भी तो उन की आवाज में वह तेजी नहीं रहेगी. वे खिसियाए से रस्म अदा करते नजर ही आएंगे.
नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा काम किया है. अखिलेश यादव, मायावती, अरविंद केजरीवाल, लालू प्रसाद यादव के बेटे को पूरा सबक सिखा दिया. पार्टियों की यह मेढकीय भीड़ देश को खराब कर रही थी. पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी, हरियाणा का चौटाला परिवार शायद अब राजनीति की धूल में खो जाएं. यह जरूरी है. देश में सामने वाली पार्टी मजबूत होनी चाहिए, बंटी हुई नहीं. द्य