वे अब के चुनाव के बहाव में किसी भी तरह अपनी सीट निकालने की फिराक में थे, ताकि इज्जत के साथ देश को खापचा सकें. बिना चुनाव जीते देश को खाने की हिम्मत और हिमाकत करने पर कब्ज होने का कभीकभार डर सा बना रहता है.

रात को जब वे सोए हुए भी जागे से थे तो अचानक सपना आया और उन्हें सुनाई दिया, ‘जो अब के चुनावी तरणी पार करना चाहते हो तो गाय की शरण में जाओ. उस का गोबर अपने बदन पर मलो. उस के मूत्र से नहाओ. अब के चुनाव में जनता का नहीं, गाय का सिक्का जम कर चलेगा. गाय का जिस पर आशीर्वाद होगा, वही सत्ता की लंगड़ी घोड़ी चढ़ेगा. इस बार जो गाय को रिझाने में कामयाब रहेगा, वही देश का भार अपने कंधों पर सहेगा.’

सपने की उस आवाज को सुनते ही वे कच्छेबनियान में ही उठे और निकल पड़े शहर के किसी कूड़े के ढेर के पास गाय ढूंढ़ने. अंधेरे में भी अपना मुंह छिपाते… पता नहीं, किस से. ओह, उन्होंने अभी भी अपने मुंह को छिपाने का रिवाज कायम रखा था.

मजे की बात तो यह रही कि उन को अपने घर के बाहर ही रात को फेंके गए कूड़े के पास गाय मिल गई, पर दिक्कत यह थी कि उस के साथ देश का एक नागरिक भी था, उन के फेंके कूड़े में रोटी ढूंढ़ता हुआ. गाय उसे अपने सींग से हटा रही थी तो वह उसे अपनी जबान से डरा रहा था. अब तो आम आदमी के पास जबान ही बची है डराने के लिए, जिसे कानों से बहरी सत्ता ने कभी का सुनना बंद कर दिया है.

पहले तो वे थोड़ा सहमे कि देश के तथाकथित अव्वल दर्जे के नेता होने के चलते एक उंगली भर के नागरिक ने उन्हें उन के द्वारा रात को खापी कर फेंके गए उन्हीं के कूड़े के पास देख लिया तो…?

पर जब जीत का खयाल आया तो वे हुंकार उठे. एकाएक उन्हें गाय में तैंतीस करोड़ वोटर दिखने लगे… अपने चुनाव क्षेत्र के वोटरों से कई गुना ज्यादा.

वे कूड़े के ढेर के पास चंदन की खुशबू लेते खड़ेखड़े सोचने लगे, ‘इतने वोटरों से तो मैं अकेला ही सरकार भी बना सकता हूं.’

कुछ देर और सोचने के बाद उन्होंने कूड़े के ढेर के पास से उस रोटी ढूंढ़ने वाले को हड़काया, धमकाया, भगाया. जब वह उन के डर से सिर पर पैर रख दूर भाग गया तो उन्होंने बिना इधरउधर देखे, कूड़े की परवाह किए बिना गाय की पूंछ के बदले उस के गंदे खुर पकड़े और हो गए आदतन चरणम् शरणम् गच्छामि.

गाय भी उन से जितना अपने खुर छुड़वाने की कोशिश करती, वे उतनी ही जोर से गाय के खुर पकड़ लेते.

कुछ देर कूड़े के ढेर में ही उन के खुर पकड़ने और गाय के खुर छुड़वाने के बीच काफी जद्दोजेहद हुई. आखिरकार जीत उन की हुई तो उन्हें चुनाव में भी अपनी जीत तय लगी.

वे पूरे बदन पर कूड़ा लगा होने के बाद भी खुश हो उठे. उन का जोश अब दोगुना हो गया था. अब बाजी उन के हाथ में थी.

जब गाय ने जनता की तरह उन के आगे लंगर डाल दिए तो गाय ने उन पर अपनी पूंछ घुमाते हुए पूछा, ‘‘क्या चाहते हो तुम चुनाव के दिनों में मुझ से?’’

‘‘हे गऊ मैया, अब के चुनाव में मैं बस आप का साथ चाहता हूं.’’

‘‘मेरा साथ, बोले तो…?’’

‘‘अगर तुम मुझ से खुश हो जाओ गऊ मैया, तो पार लग जाए मेरी

चुनावी नैया.’’

‘‘मतलब, मैं तुम्हारी नाव को चुनाव के दलदल से पार लगाऊं? न बाबा न. यह हम से न होगा. गांवदेश से ‘छोड़ी गईं’ भला कैसे किसी की नैया पार लगा सकती हैं? हम तो खुद ही अपना आसरा ढूंढ़ने के लिए मजबूर हैं.’’

‘‘हे गऊ मैया, मैं अब के तुम्हारे खुर पकड़ कर चुनावी तरणी पार करना चाहता हूं बस. मैं पिछले 20 सालों से चुनावी तरणी के भंवर में फंसा हूं. मत पूछो, देश सेवा करने को उतावले इस मन के क्या हाल हैं.’’

‘‘पर, आज तक तो मेरी पूंछ मरने

के बाद ही वैतरणी पार कराने में ही मददगार होती रही है. ऐसे में… मुझे शक है कि…’’

‘‘मां, कुछ भी करो. वोटरों के सिर पर बहुत चुनाव लड़ लिया. अब के चुनाव तुम्हारे सिर पर लड़ा जा रहा है, सो…’’ कह कर वे घोर मतलबी गाय के चरणों में लोटपोट हुए.

‘‘कल जो सूअर के सिर पर चुनाव लड़ा गया तो क्या तुम उस के भी खुर पकड़ लोगे? हद है तुम लोगों की भी. जब चुनाव के लिए मुद्दे न बचे तो मुझ लावारिस गाय को ही चुनावी मुद्दा बना लिया. कम से कम हम ढोरों को तो छोड़ देते देश के कर्णधारो.’’

‘‘हे गऊ मैया, यह वक्त बहस करने का नहीं है. जैसेतैसे चुनावी तरणी पार लगाने का है. अब के जो तुम मुझे जिता दोगी तो मैं तुम्हें वचन देता

हूं कि तुम्हारे लिए एक फाइवस्टार तबेला बनवाऊंगा.

‘‘हे गऊ, मैया, अगर तुम मुझे जीत का आशीर्वाद दोगी तो मैं हर गलीमहल्ले से वहां के लोगों को बेदखल कर तुम्हारे लिए आलीशान गौशाला बनवाऊंगा.

‘‘जो तुम मुझे जीत का आशीर्वाद दोगी तो मैं तुम्हें सड़क से उठा कर संसद में ले जाऊंगा.

‘‘तुम मुझे जीत का आशीर्वाद दोगी तो मैं तुम्हें राष्ट्रमाता घोषित करवाऊंगा. तुम मुझे जीत का आशीर्वाद दोगी तो…’’ कहतेकहते उन का गला सूख गया.

यह देख कर अपने मुंह में देश का कचरा जुगालती गाय ने अपने मुंह में की गई जुगाली में से कुछ हिस्सा उन के मुंह में डाला तो वे उस से अपना मुंह गीला कर आगे कहने लायक हुए, ‘‘हे गऊ मैया, जो तुम मुझे अपना आशीर्वाद दोगी तो मैं…’’

तभी गाय ने उन्हें जोर से लात मारी और उन की नींद की खुमारी झट से गायब हो गई. वे इधरउधर ताकते हुए घर के अंदर भागे.

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