सबल सिंह ने घर से मोटरसाइकिल बाहर निकाली और अपनी पत्नी को आवाज दी, ‘‘जल्दी चलो.’’
उन्हें पड़ोसी को देखने अस्पताल जाना था. वे पड़ोसी जिन से उन के संबंध बहुत अच्छे नहीं थे. कई बार बच्चों को ले कर, कूड़ाकरकट फेंकने को ले कर उन का आपस में झगड़ा हो चुका था.
सबल सिंह अपने नियम से चलते थे. कचरा अपने घर के सामने फेंकते थे. पड़ोसी रामफल का कहना था, ‘या तो कचरा जलाइए या कचरा गाड़ी आती है नगरपालिका की, उस में डालिए.’
‘मैं कचरा गाड़ी का रास्ता देखता रहूं. कभी भी आ जाते हैं. फिर एक मिनट के लिए भी नहीं रुकते,’ सबल सिंह ने कहा था.
ये भी पढ़ें- रीते हाथ : सपनों के पीछे भागती उमा
‘तो कचरा पेटी में डालिए,’ रामफल ने कहा था.
‘कचरा पेटी घर से एक किलोमीटर दूर है. क्या वहां तक कचरा ले कर जाऊं? यह क्या बात हुई...’
‘तो जला दीजिए.’
‘आप को क्या तकलीफ है? आप मुझ से जलते हैं.’
‘मैं क्यों जलूंगा?’
‘पिछली बार बच्चों के झगड़ने पर
मैं ने आप के बच्चे को डांट दिया था इसलिए...’
‘बच्चे हैं... साथ खेलेंगे तो लड़ेंगे भी और फिर साथ खेलेंगे. आप ने मेरे बच्चे को डांटा, मैं ने तो कुछ नहीं कहा. लेकिन आप के बच्चे को मैं ने डांटा तो आप लड़ने आ गए थे.’
‘मेरे बच्चे को डांटने का हक किसी को नहीं है. उस के मातापिता हैं अभी.’
‘फिर आप ने मेरे बच्चे को क्यों डांटा? उस के मातापिता भी जिंदा हैं.’
‘उसी बात का तो आप बदला लेते रहते हैं. कभी कचरे की आड़ में तो कभी नाली सफाई के नाम पर.’