यह सुझाव देने की हिम्मत देश में अगर कोई शख्स कर कर सकता है तो ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं कि उसका नाम मार्कन्डेय काटजू है, जो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस और प्रेस काउंसिल के मुखिया रहे हैं. उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने अपने हिंदूवादी एजेंडे को बढ़ाते हुए इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किया तो उनकी आलोचना का धर्म भी सपा और कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने निभाते हुए तरह तरह की दलीलें दीं. लेकिन बड़बोले कहे जाने बाले काटजू ने तो उनका मजाक बनाते हुए उन्हें उत्तरप्रदेश के 20 शहरों की लिस्ट ही थमा दी कि अब किस शहर का नाम क्या होना चाहिए.
इसमें कोई शक नहीं कि मार्कन्डेय काटजू कभी कभी अतिरेक उत्साह में बोलने की हदें पार कर जाते हैं, लेकिन उनकी साफगोई में एक पीड़ा भी होती है कि देश में धर्म और जाति के नाम पर यह क्या हो क्या रहा है. कट्टरवाद के खिलाफ काटजू खुद को बोलने से रोक नहीं पाते तो यह खास एतराज की बात नहीं क्योकि गलत कुछ होता दिखे तो उसके खिलाफ बोलना जरूर चाहिए. जिससे बेलगाम होते कट्टरवादियों को यह इल्म रहे कि देश में ऐसे बुद्धिजीवी और जानकार मौजूद हैं जो उनके गलत फैसलों का विरोध करेंगे ही और वे जस्टिस काटजू जैसे लोग हों तो हर कोई जानता है कि उन पर खुद उनका भी जोर नहीं चलता.
इलाहाबाद का भी नाम बदलना बिलाशक एक बेतुकी और गैर जरूरी बात थी. जिसका मकसद हिंदूवादियों को खुश करना था क्योंकि मोदी योगी सरकारें कुछ और हिंदुओं तो क्या किसी और के लिए भी नहीं कर पा रहीं. ऐसे में हिन्दुत्व का एहसास कराने से उनकी नाकामियों पर कुछ दिनों के लिए पर्दा डल जाता है. योगी सरकार के इस ताजे फैसले की चर्चा विदेशी मीडिया भी चिंताजनक तरीके से कर रही है. जिससे देश की बिगड़ती छवि देख काटजू इतने खिन्न हो उठे कि उन्होने आने वाले कल की तस्वीर ही खींच कर रख दी कि अब किस शहर का नाम क्या होगा.
बकौल मार्कन्डेय काटजू अब अलीगढ़ का नाम अश्वत्थामा नगर, आगरा का अगस्त्य नगर, गाजीपुर का गणेशपुर, शाहजहांपुर का सुग्रीवनगर, मुजफ्फरनगर का मुरलीमनोहर नगर, आजमगढ़ का अलकनंदापुर, हमीरपुर का हस्तिनापुर, लखनऊ का लक्ष्मणपुर, बुलंदशहर का बजरंगबलीपुर, फैजाबाद का नरेंद्र मोदी नगर, फ़तेहपुर का अमितशाह नगर, गाजियाबाद का गजेंद्र नगर, फिरोजाबाद का द्रोणाचार्य नगर, फर्रुखाबाद का अंगदपुर, गाजियाबाद का घटोत्कच नगर, सुल्तानपुर का सरस्वती नगर, मिर्जापुर का मीराबाई नगर और मुरादाबाद का नाम मन की बात नगर रख देना चाहिए.
इससे होगा यह कि मुगलकाल के नाम खत्म हो जाएंगे और त्रेता और द्वापर सतयुग की गंध महकने लगेगी. कलयुग के मौजूदा प्रमुख देवी देवताओं के नाम भी उन्होने सुझाए हैं. आगे दूसरे राज्यों के शहरों के नाम भी इसी तर्ज पर बदले जा सकते हैं.
दरअसल में मार्कन्डेय काटजू हमेशा से ही धार्मिक कट्टरवाद के विरोधी रहे हैं, उनकी नजर में इससे किसी को कुछ हासिल नहीं होता. अब से कोई छह साल पहले दिल्ली के एक कार्यक्रम में उन्होने 90 फीसदी भारतीयों को बेवकूफ करार देते हुए कहा था कि इन्हें धर्म के नाम पर लड़ाना बड़ा आसान काम है. धार्मिक मसलों पर भारतीय विवेक और तर्क का इस्तेमाल नहीं करते.
ऐसे कोई दर्जन भर से भी ज्यादा मसले हैं जिन पर काटजू खुल कर बिना किसी डर या हिचक के इतना बोले हैं कि उसे अगर संग्रहीत किया जाये तो एक गैर धार्मिक मार्कन्डेय पुराण पार्ट – 2 तैयार हो सकता है. कुछ मे वे गलत भी रहे तो कहा जा सकता है कि परफेक्टनेस की उम्मीद उनसे ही क्यों योगी मोदी से क्यों नहीं जो सत्ता का इस्तेमाल धर्म के लिए कर रहे हैं.
अपने नए सुझाव में उन्होने बड़े सलीके से आदित्यनाथ का मखौल उड़ाया है जिस पर किसी के मुंह से बोल नहीं फूट रहे और फूटेंगे भी नहीं क्योंकि उनकी मंशा काटजू जैसे बुद्धिजीवियों को अलगथलग कर देने की है. लेकिन इससे भगवा खेमा कामयाब हो पाएगा ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि अब खुद हिन्दू दबी आवाज में कहने लगे हैं कि शहरों के नामों के हिंदुकरण के एवज में हम सौ रु प्रति लीटर का पेट्रोल नहीं खरीद सकते, फिर मंहगाई भ्रष्टाचार और बेरोजगारी तो और भी विस्फोटक कगार पर हैं सरकार को इन पर ध्यान देना चाहिए.