हर इंसान सपने देखता है, मगर कुछ लोग अकेले ही अपने सपनों को पूरा करने के लिए, दिन रात मेहनत करते रहते हैं. जबकि कुछ भाग्यशाली लोग ऐसे होते हैं जिनके सपने दूसरों के सपने बन जाते हैं.

ऐसी ही शख्सियत हैं- नृत्य निर्देशक व अभिनेता पुनीत जे पाठक. लोग शायद यकीन न करें न करें मगर हकीकत यही है कि पुनीत पाठक के सपने को उनके छोटे भाई ने भी अपना सपना बना लिया और पुनीत के सपने को पूरा करने में अपनी तरफ से योगदान देने के लिए, बहुत बड़ा त्याग भी किया.

वास्तव में पुनीत जे पाठक बौलीवुड में बतौर नृत्य निर्देशक कुछ उत्कृष्ट काम करना चाहते थे. यह उनका सपना था. मगर उनके इस सपने के खिलाफ उनके पिता जी थे. पुनीत के पिता का मानना था कि यदि पुनीत नृत्य के क्षेत्र में करियर बना लेंगे तो उनके पैतृक व्यवसाय को कौन संभालेगा? पर पुनीत हर हाल में अपने सपने को पूरा करना चाहते थे.

पुनीत के इस सपने व लगन को देखकर नृत्य के क्षेत्र में कार्यरत उनके छोटे भाई ने अपने बडे भाई के सपने को ही अपना सपना बनाकर त्याग करने का फैसला लिया. जिसके चलते पुनीत जे पाठक ने टीवी रियलिटी शो ‘‘डांस इंडिया डांस – सीजन 2’’ से नृत्य के क्षेत्र में अपना करियर शुरू किया.

उसके बाद उन्होने ‘झलक दिखला जा’ ‘आज की रात है जिंदगी’ सहित कई टीवी शो में बतौर नृत्य निर्देशक काम किया. इतना ही नहीं पुनीत जे पाठक ने बतौर अभिनेता ‘एबीसीडी’, ‘एबीसीडी 2’ और 27 जुलाई को प्रदर्शित फिल्म ‘‘नवाबजादे’’ में अभिनय किया.

अब बहुत जल्द वह ‘स्टार प्लस’’ पर प्रसारित होने वाले नृत्य के रियलिटी शो ‘‘डॉंस प्लस-सीजन 4’’ में जज के रूप में नजर आने वाले हैं. इस बार ‘डॉंस प्लस- सीजन’ की टैग लाइन है – ‘‘सपने सिर्फ अपने नहीं होते’. इसी शो के सिलसिले में जब मुलाकात हुई तो हमने उनसे सीधा सवाल किया कि इस शो का संदेश है कि ‘सपने सिर्फ अपने नहीं होते’. तो उनका सपना अपना नहीं तो किसका सपना था? इस पर पुनीत जे पाठक काफी भावुक हो गये, और फिर उन्होने कहा- ‘‘देखिए हककीत यही है कि मेरे सपने सिर्फ अपने नहीं थे. यदि मेरे सपने सिर्फ अपने होते तो शायद आज मैं यहां तक न पहूंच पाता. क्योंकि मेरे पिता जी चाहते थे कि मैं नृत्य का सपना छोड कर उनके व्यवसाय को संभालूं. मगर उस वक्त मेरे सपने को मेरे छोटे भाई ने अपना सपना बना लिया. जबकि वह स्वयं अच्छा डांसर है और नृत्य के क्षेत्र में काम भी कर रहा था. मगर मेरे छोटे भाई ने मेरे सपने को अपना सपना बनाकर मेरे सपने को पूरा करने में न सिर्फ पूरा योगदान दिया बल्कि उसने मेरे सपने को पूरा करने के लिए, अपने सपने का त्याग भी किया. उसने नृत्य को अलविदा कह पिता जी के व्यवसाय को संभाला. जिससे मैं निर्बाध रूप से अपने सपने को पूरा करने के लिए मेहनत कर सका’’

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