संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष और अंतर्राष्ट्रीय हैल्प पेज ने संयुक्तरूप से 2012 में जो रिपोर्ट जारी की थी उस में अनुमान लगाया था कि 2050 तक भारत व चीन में दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या बुजुर्गों की होगी. वर्तमान में भारत की लगभग 12.7 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 60 वर्ष से अधिक है.
स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में जो सुधार आ रहे हैं उस से मानव के जीवनकाल में वृद्धि हुई है लेकिन साथ ही, सेवानिवृत्ति और अपने जीवनसाथी को खोने के बाद या जवानी में एकल रहने के बाद बुजुर्ग अवस्था में स्त्रीपुरुष के पास समय की तो अधिकता हो जाती है, लेकिन मिलनेजुलने वाले व आपसी दुखदर्द बांटने वालों की कमी रहती है. इस उम्र में यौन संबंधों पर बात करना तो अपराध जैसा है.
अब समय बदल रहा है. 60 साल के बुजुर्ग भी यौन संबंधों में रुचि दिखा रहे हैं. लंदन स्थित कालेज औफ नर्सिंग में बुजुर्गों के स्वास्थ्य सलाहकार डौनी गैरट का कहना है कि शारीरिक स्पर्श और सैक्स मनुष्य की बुनियादी जरूरतें हैं.
लंदन की जानीमानी कलाकार लुई वीबर अपनी कला के माध्यम से बढ़ती उम्र और सैक्स के मसले को उठाती हैं. उन का कहना है, ‘‘31 प्रतिशत उम्रदराज पुरुष और 20 प्रतिशत उम्रदराज महिलाएं अपने साथी को बारबार चूमती हैं या प्यार जताती हैं.’’ वे आगे कहती हैं, ‘‘हो सकता है कि कोई बुजुर्ग लंबे समय से सैक्स से दूर रहा हो, लेकिन वह अभी मरा तो नहीं. उस की कल्पनाएं बची हुई हैं, हास्यबांध बचा हुआ है.’’
लिवइन का चलन
यही कारण है कि अब भारत के बुजुर्गों में भी लिवइन रिलेशनशिप का क्रेज बढ़ता जा रहा है. इस का श्रेय हमारे स्वास्थ्य में हुए तमाम गुणात्मक सुधारों तथा बेहतर हुई आर्थिक स्थितियों को जाता है. शिक्षा और सोच का दायरा भी बढ़ा और उदार हुआ है. अब 60 साल के स्त्रीपुरुष भी अपनी इच्छाओं व आकांक्षाओं के अनुकूल जीवन जीने लगे हैं. इन सीनियर सिटिजनों की इच्छाओं और आकांक्षाओं का सम्मान करते हुए मैचमैकिंग सर्विस नामक संस्था द्वारा सीनियर सिटिजन लिवइन रिलेशनशिप सम्मेलन की शुरुआत की गई. पहला सम्मेलन वर्ष 2011 में किया गया था, जिस में आधा दर्जन जोड़ों ने एकदूसरे का साथ चुना था. दूसरा सम्मेलन 22 नवंबर 2015 को हुआ था जिस में एकदूसरे का साथ चुनने वालों की संख्या 2 दर्जन से अधिक थी.
इसी प्रकार ग्लासगो कैलेडोनियाई यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान में पीएचडी करने वाले टेलरजेन पिलन और उस के सहयोगी एलन जेग्रो का बुजुर्गों पर किया गया एक अध्ययन एज ऐंड एजिंग जर्नल में वर्ष 2015 के अंत में प्रकाशित हुआ था. इस के अनुसार यह प्रमाणित हुआ था कि जो बुजुर्ग यौन गतिविधियों को महत्त्व देते हैं उन का सामाजिक जीवन और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है. उन के यौन व्यवहार से जुड़ी बातों का उन के बेहतर जीवन स्तर से भी गहरा और सकारात्मक रिश्ता पाया गया.
एम राजेश्वरी, दामोदर राव के लिए पिछले 2 वर्ष से एक उपयुक्त साथी की तलाश कर रही थीं. एम राजेश्वरी ने अध्यापिका के पद से सेवानिवृत्त होेने
के बाद बतौर समाजसेवा एकल या जीवनसाथी खो चुके बुजुर्गों के लिए साथी खोजने के लिए थोडूनीडा नामक एक एजेंसी की शुरुआत की थी. 64 वर्षीय दामोदर राव साथी की तलाश में राजेश्वरी की एजेंसी से मदद ले रहे थे. जब इस सिलसिले में राजेश्वरी ने उन से पूछा कि आप को कैसी साथी चाहिए, तो राव ने उन्हें बताया कि वे स्वतंत्र व उत्साही पार्टनर की तलाश में हैं, जिस की शिक्षा में दिलचस्पी हो.
बातचीत के दौरान एम राजेश्वरी व दामोदर राव की आंखें मिलीं और दोनों को उसी पल एहसास हो गया कि वे दोनों एक ही चीज की तलाश में हैं. दामोदर राव को एम राजेश्वरी जैसी साथी की ही तलाश थी. राजेश्वरी का कहना है, ‘‘दिसंबर 2010 में जब मैं ने यह एजेंसी शुरू की थी तब मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि मैं अपने लिए ही साथी तलाश कर बैठूंगी. मैं 50 वर्ष से ऊपर के लगभग 250 लोगों के लिए साथी की तलाश कर चुकी हूं और इन में से लगभग 95 प्रतिशत लोग मेरी तरह लिवइन रिलेशनशिप को प्राथमिकता देते हैं बजाय औपचारिक विवाह के.’’
अकेलेपन का एहसास
एम राजेश्वरी अपनेआप में एक उदाहरण हैं. जब वे 13 वर्ष की थीं तो उन का विवाह 21 वर्षीय युवा के साथ परंपरागत ढंग से कर दिया गया था. लेकिन विवाह के 17 साल बाद उन दोनों का तलाक हो गया था. राजेश्वरी अपने 3 बच्चों के साथ अपने मातापिता के पास लौट आईं. उन्होंने फिर से अपनी शिक्षा आरंभ की और अंत में अध्यापिका की नौकरी हासिल कर ली.
सेवानिवृत्ति के बाद वे अपने बड़े बेटे के साथ रहने लगीं, लेकिन उन्हें अकेलेपन का एहसास होने लगा. इसी कारण वे उन लोगों के बारे में भी सोचने लगीं जिन्हें जीवन के आखिरी पड़ाव पर एक साथी की जरूरत महसूस होती है. वे हैदराबाद लौट आईं और बुजुर्ग लोगों की मुलाकात कराने के लिए थोडूनीडा नामक एजेंसी की शुरुआत की.
एजेंसी के कार्यालय के लिए उन्होंने एक हौल किराए पर लिया. लेकिन उस का किराया चुकाने के लिए उन के पास पैसा नहीं था. उन्होंने किराया चुकाने हेतु प्रत्येक व्यक्ति से 300 रुपए लेने शुरू कर दिए. एक स्थानीय समाचारपत्र ने उन की एजेंसी द्वारा बुजुर्गों की मुलाकात के संदर्भ में खबर प्रकाशित की तो राजेश्वरी आश्चर्यचकित रह गईं. एजेंसी की पहली ही मीटिंग में 80 बुजुर्गों ने भाग लिया. कुछ बुजुर्ग तो 400 किलोमीटर तक का फासला तय कर के आए थे.
पहली मीटिंग में 35 महिलाएं थीं जो लज्जा व शर्म की गठरी बनी हुई थीं, क्योंकि वे इस उम्र में नए सिरे से एक साथी की तलाश कर रही थीं. राजेश्वरी को उन्हें समझाना पड़ा कि साथी का मतलब सिर्फ सैक्स से नहीं है बल्कि भावनात्मक जरूरतों को पूरा करने से भी है. इस मीटिंग में मजदूर से ले कर उद्योगपति तथा चपरासी से ले कर डाक्टर तक मौजूद थे. उन में से कइयों को तो अपनी पसंद का साथी मिल भी गया. जिन्होंने शादी के बजाय साथसाथ रहने का फैसला किया.
इस संबंध में दामोदर राव का कहना था कि बुजुर्गों को भी साथी की जरूरत होती है. इस नए संबंध में खुद को तय करना होता है कि आप के भोजन की प्राथमिकताएं क्या हैं, सोने की आदत कैसी है. एकदूसरे की प्राइवेसी में हस्तक्षेप न किया जाए. वैसे हर जोड़ा साथ रहने के लिए अपने नियम खुद तय कर लेता है.
तालमेल है जरूरी
इस उम्र में जोड़ा बनाते समय भी शारीरिक आकर्षण की अपनी भूमिका होती है, लेकिन अधिकतर लोग मानसिक तालमेल और हमदर्दी को प्राथमिकता देते हैं. इसी प्रकार एक सीनियर सिटिजन हैं, मराठी फिल्मों की नायिका सुहासिनी मुले. इन्होंने अपनी जिंदगी का अधिकतर समय अपने पैशन और कैरियर को समर्पित कर दिया. लेकिन 60 साल की उम्र में ये शादी के बंधन में बंध गईं. इस उम्र में इन्हें एक ऐसा शख्स मिला जिस के साथ अपनी बाकी जिंदगी बिताना सही लगा. इन्होंने 2011 में भौतिक विज्ञान के जानकार
प्रो. अतुल गुरतु से शादी की. इन का कहना है कि इस के पूर्व मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि कोई ऐसा इंसान है जिस के साथ पूरी जिंदगी गुजारी जा सके, लेकिन प्रोफैसर साहब से मिलने के बाद मुझे एहसास हुआ कि इस व्यक्ति के साथ जिंदगी गुजारी जा सकती है और मैं ने शादी का फैसला कर लिया. सुहासिनी को अतुल गुरतु का एक आर्टिकल पढ़ कर उन से लगाव हुआ था. इस के बाद दोस्ती हुई और आखिर में बात शादी तक पहुंच गई.
सुहासिनी मुले एक सशक्त अभिनेत्री तो हैं ही, साथ ही वे एक डौक्यूमैंट्री फिल्म निर्माता भी हैं. वे 4 बार अपनी डौक्यूमैंट्री फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त कर चुकी हैं. सुहासिनी का यह फैसला इस उम्र में एकल जीवन जी रही कवयित्री महिलाओं को प्रेरणा प्रदान करेगा.
मुंबई निवासी कवयित्री जाने भंडारी का कहना है, ‘‘मेरे जीवन के छठे दशक में जब मेरे पति की मृत्यु हुई तो सामाजिक विचाराधारा के अनुसार मुझे अपनी बाकी जिंदगी विधवा बन कर ही गुजारनी थी, लेकिन जब मेरे जीवन में दोबारा जीवनसाथी का प्रवेश हुआ तो वह क्षण मेरे लिए अविश्वसनीय था. हमारे 5 साल के प्रेम संबंधों का अंत आखिरकार भव्य शादी में हुआ जिस में मेरे बच्चे व पोतेपोतियां भी शामिल थे. उस समय मेरी उम्र 68 साल तथा मेरे नए जीवनसाथी कमलेशपुरी की उम्र 69 वर्ष थी.
भारत के प्रसिद्ध यौनरोग व प्रेम संबंधों के सलाहकार डा. महेंद्र वत्स, जोकि 60 के बाद भी जीवनसाथी खोजने का पूरा समर्थन करते हैं, का विचार है कि मानव साहचर्य और यौन अंतरंगता का उम्र से कोई संबंध नहीं है. यह एक इच्छा है जिसे जिंदा रखने की आवश्यकता है या फिर हमें हालात को कुदरत पर छोड़ देना चाहिए जैसा कि विधवा बहू या अन्य गृहिणी को कुदरत के भरोसे छोड़ दिया जाता है और परिवार उन की ओर से आंखें मूंद लेता है.
डा. वत्स एक रोचक तथ्य प्रस्तुत करते हुए कहते हैं, ‘‘उम्र बढ़ने पर यौन इच्छा में भले ही कमी आ सकती है लेकिन यौन कुशलता बेहतर हो जाती है.’’ पुरुष व स्त्री दोनों को दीर्घ अवधि तक मर्दन की आवश्यकता होती है, जोकि यौन संबंधों में अधिक घनिष्ठता व आनंद लाता है. वे ब्रिटिश सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहे हैं कि उम्रदराज व्यक्ति संभोग के कारक होते हैं क्योंकि उन का शीघ्र शृंखलन नहीं होता. इसी कारण वे जवान व्यक्ति की अपेक्षा स्त्री को अधिक यौन संतुष्ट रखते हैं.
दकियानूसी सोच
अफसोसजनक बात यह है कि हमारे समाज की दकियानूसी विचारधारा बुढ़ापे में यौन संबंधों को पूरी तरह दुत्कार देती है. संयुक्त परिवार में अगर कोई विधवा दादीमां औनलाइन जा कर जीवनसाथी की तलाश करे तो उसे बहुत ही गिरी नजरों से देखा जाता है.
बदलती मानसिकता व नई विचारधारा के साथ डिग्निटी फाउंडेशन भारत के सब से पुराने वरिष्ठ नागरिक सहायता समूहों में से एक है. यह समूह अपने सदस्यों का एकाकीपन दूर करने तथा जीवनसाथी खोजने हेतु हर तरह की सहायता करता है. समूह द्वारा एकदूसरे को जानने व खुली चर्चा हेतु हर वर्ष जीवनसाथी परिचय सम्मेलन का आयोजन भी किया जाता है.
डिग्निटी की सक्रिय कार्यकर्ता भौलु श्रीनिवासन का कहना है कि हमारी संस्था नियमित रूप से वरिष्ठ नागरिकों के जीवनसाथी हेतु विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में वैवाहिक विज्ञापन जारी करती रहती है. हाल ही में हम ने एक कहानी प्रकाशित कराई है जिस में 70 वर्ष की महिला ने 78 वर्ष के सेवानिवृत्त एक वायुसेना अफसर से शादी की है. इस शादी में महत्त्वपूर्ण भूमिका उन के बच्चों ने निभाई है. अगर बच्चे ही खिलाफ हो जाएं तो मातापिता अपनी भावना व मित्रता दोनों ही छिपाने लगते हैं. इसलिए नौजवानों को भी प्रगतिशील मानसिकता अपनाने की जरूरत है.
जहां तक अधिक उम्र में विवाह से लाभहानि का सवाल है, तो निश्चित ही इस के लाभ अधिक और हानि कम है. विवाह से स्त्रीपुरुष दोनों की ही सक्रियता बढ़ जाती है, वे अपने स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देने लगते हैं तथा उन का एकाकीपन दूर हो जाता है. लेकिन ज्यादा बुजुर्ग जोड़े शादी के बजाय लिवइन रिलेशनशिप को प्रमुखता दे रहे हैं. कुछ जोड़े तो आर्थिक जिम्मेदारी को भी आधाआधा बांट रहे हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में आर्थिक जिम्मेदारी को पुरुष ही निभा रहे हैं. कुछ बुजुर्ग पुरुष परिजनों के साथ समझौता कर लेते हैं जिस से उन की मृत्यु के बाद महिला साथी को काफी हद तक आर्थिक सहयोग मिल जाता है. अधिकतर बच्चे भी अब अपने बुजुर्गों के फैसले का स्वागत करने लगे हैं.