अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बिगडै़ल देश उत्तर कोरिया को मेज पर बुला व बैठा कर उस से परमाणु नियंत्रण समझौता कर के सिद्ध कर दिया है कि आज भी अमेरिका की चल रही है और उस के जैसे सिरफिरे, बचकाने व्यवहार वाले राष्ट्रपति भी कई बार अनूठे काम कर जाते हैं. किम इल सुंग के पोते किम जोंग उन ने सिंगापुर आ कर न केवल समझौतों पर हस्ताक्षर किए, बल्कि अपने देश उत्तर कोरिया को दूसरों का खतरा न बनने देने का वादा भी किया.

उत्तर कोरिया कई दशकों से परमाणु बम बना रहा था और पाकिस्तान, ईरान आदि की सहायता से दुनियाभर में हर समय एक खतरा बना हुआ था कि कहीं उस का खब्ती, जिद्दी शासक न जाने कब इन बमों का दुरुपयोग कर डाले. अमेरिका उस का दुश्मन बना हुआ था क्योंकि 1953 में उसी ने कोरिया का विभाजन किया था जब अमेरिकी सेनाओं ने उत्तर कोरिया को दक्षिण कोरिया को जबरन कम्युनिस्ट बनाने से रोका था.

उत्तर कोरिया के शासक तभी से दक्षिण कोरिया समेत अमेरिका और पश्चिमी देशों को अपना दुश्मन मानते आ रहे हैं पर चीन से उन की लगातार बनती रही. पिछले साल तक बयानों के बमों से उत्तर कोरिया और अमेरिका सारी दुनिया को परमाणु युद्ध के खतरे से डराते रहे थे. पर इस साल के शुरू में न जाने क्यों और कैसे किम जोंग उन का हृदयपरिवर्तन हुआ और उन्होंने अमेरिकी बंदियों को छोड़ा, चीन की यात्रा की, बेहद सौहार्दपूर्ण तरीके से सीमा के निकट दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति से मुलाकात की और सिंगापुर में अमेरिकी राष्ट्रपति से बातचीत कर अहम फैसला लिया.

ट्रंप व किम की सिंगापुर में 12 जून को हुई मुलाकात दुनियाभर में फुटबौल मैचों से ज्यादा रुचि से देखी गई. अब दुनिया राहत की सांस ले सकती है. तानाशाह सद्दाम हुसैन, कर्नल गद्दाफी, ओसामा बिन लादेन की मौतों के बाद कठोर व कट्टर शासक किम का दोस्ताना हाथ बढ़ाना एक सुखद आश्चर्य की बात है. यह दिन बहुत सालों तक याद रहेगा.

उत्तर कोरिया के लिए यह समझौता वरदान साबित हो सकता है. उत्तर कोरिया के निवासी दक्षिण कोरिया में रह रहे अपने सगेसंबंधियों की तरह विकास की दौड़ में शामिल हो सकते हैं. वे हालांकि हमेशा ही पीछे रहेंगे पर फिर भी जिस 19वीं सदी में वे रह रहे हैं, वह स्थिति अब ज्यादा समय तक नहीं रहेगी.

डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते से अपने पर लगे बहुत से धब्बों को धो लिया है और शायद वे अमेरिका में अब और ज्यादा स्वीकारे जाने लगेंगे.

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