आजकल अंतर्जातीय शादियां खूब हो रही हैं. इन में से कई मामलों में परिवार वालों द्वारा इंटरनैट से रिश्ते तय किए जाते हैं और कई मामले प्रेमविवाह के होते हैं.

90 फीसदी भारतीय परिवार तो अंतर्जातीय शादी के लिए तैयार नहीं होते हैं और तब तो और भी समस्या पैदा होती है, जब वर या वधू में से कोई एक पिछड़े तबके का हो.

ये पिछड़े तबके के बच्चे पढ़ेलिखे, अच्छे परिवार से हों, तो अगड़े तबके के मांबाप हां तो कह देते हैं, पर हंगामा शादी की विधि से शुरू होता है.

हिंदुओं की शादियों की रस्में पंडितों के मंत्रों, फेरों और पैसे मांगने से शुरू होती हैं और पैसे ऐंठने की रस्म से ही खत्म होती हैं. पिछड़ी जाति में जो हिंदू हैं, वहां रीतिरिवाजों की उतनी परेशानी नहीं है. रस्में मिलतीजुलती ही हैं.

सवाल वहां खड़ा होता है, जहां पिछड़े तबके ने बौद्ध धर्म स्वीकारा है, क्योंकि दोनों धर्मों की शादी प्रथा में काफी फर्क है. वहां न कोई पंडित होता है, न ही थोड़ीथोड़ी देर में वधू पक्ष से पैसे ऐंठे जाते हैं और न ही वहां आधी रात तक की जाने वाली लंबी व थका देने वाली रस्में होती हैं, बल्कि अग्नि को साक्षी नहीं माना जाता, वहां सारे समाज के सामने सब को साक्षी मान कर शादी होती है. छोटी सी रीति से शादी होती है, आडंबर और ढकोसलों से परे.

जब ऐसे जोड़ों में एक सामान्य जाति और दूसरा बौद्ध जाति से होता है, तो सामान्य तबका अपनी ही रीतियों से शादी कराने के लिए दूसरे पक्ष को मजबूर करता है.

इन में से कई परिवार अपनी ही रीति से शादी कराने के लिए अड़ जाते हैं या फिर अलगअलग मंडप में शादी कराने के लिए दूसरे पक्ष को मजबूर करते हैं.

शायद कहीं न कहीं उन्हें पिछड़े तबके से रिश्तेदारी जोड़ने में शर्म महसूस होती है और वे अपने समाज को यह बात बताना नहीं चाहते हैं. ऐसे भी परिवार होते हैं, जो दोनों रीतियों से शादी के लिए खुशीखुशी तैयार होते हैं.

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वर और वधू को चाहिए कि जब उन्होंने अपना जीवनसाथी अपनी पसंद से चुना है, तो उस की सचाई समाज के सामने लाने में कैसी शर्म? ऐसा न कर के आप यह साबित करते हैं कि हमें अपने दामाद या बहू से लेनादेना है, उन के परिवार या उन के समाज से नहीं. और यहीं आप सब से बड़ी गलती करते हैं. वजह, शादी 2 परिवारों का मिलन है, यह बात भूलनी नहीं चाहिए.

एक मराठा परिवार, जो अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं, के बेटे को एक बौद्ध लड़की से प्रेमविवाह करना था. वर के मातापिता हिंदू रीति से शादी कराने पर अड़े हुए थे. उन का कहना था कि बौद्ध रीति से शादी हुई, तो उन के समाज को पता चल जाएगा कि बहू निचली जाति की है और समाज उन्हें जाति से बाहर कर देगा. उन्होंने आखिर तक बौद्ध रीति से शादी कराने की रजामंदी नहीं दी.

मजे की बात यह है कि उन की बेटी ने भी बौद्ध लड़के से शादी की थी. शादी को 5-6 साल हो गए हैं, सासससुर (दोनों पक्षों के) अपने दामादबहू से खुश हैं. पर लड़की वालों के रिश्तेदारों को वे दर्दनाक शूल तो चुभा गए, जिस का दर्द हमेशा उन के अंदर उन की इस गिरी हुई सोच की याद दिलाता रहेगा.

अगर वे तभी दोनों रीतियों से शादी करने के लिए मान जाते, तो रिश्तेदारों की इस टीस को खत्म कर देते और दोनों के बीच बराबरी के संबंध होते.

दूसरा उदाहरण एक और परिवार का है, जो बौद्ध है. लड़के की शादी एक मराठा लड़की से तय हुई. लड़के की मां को बौद्ध रीति से शादी करने में शर्म महसूस हुई और उन्होंने कट्टर हिंदू रीति से शादी कर के अपनेआप को बहुत बड़ा समझने का दंभ भरा.

इस के उलट एक और उदाहरण बताते हैं. एक ईसाई लड़के की शादी पिछड़े तबके की लड़की से तय हुई. लड़के के घर वालों ने चर्च में शादी नहीं कराई, क्योंकि ऐसा करने से लड़की को पहल ईसाई बनाना पड़ता.

उन्होंने लड़की के रीतिरिवाजों से शादी की और छोटा सा रिसैप्शन दे डाला. हमारे समाज में ऐसी खुली सोच वाले लोग भी हैं, पर उन की तादाद गिनती में है.

जिस पिछड़े तबके ने बौद्ध पद्धति को स्वीकारा है, वे तो सोच में हिंदुओं की सोच से कई गुना ऊपर हैं. शादी में वहां न कोई मुहूर्त होता है, न खोखली विधियां हैं, न समय की पाबंदी है और न आधी रात को नींद हराम करने वाली रस्में हैं. दानदहेज का तनाव भी नहीं है.

यहां लोग बेटियों के जन्म पर दुख नहीं मनाते, न ही बेटों के जन्म पर खुशी मनाते हैं. दोनों का जन्म मातापिता को एक सी खुशियां देता है. दोनों की एक सी परवरिश और पढ़ाईलिखाई होती है. दोनों की ही शादियों में बराबरबराबर सा खर्च होता है.

बेटियों के ससुराल वालों के साथ कोई लेनदेन नहीं होता है. दहेज मांगने वालों की समाज में कोई जगह नहीं होती. न ही बेटियों के जन्म से ही उस के ब्याह के लिए पैसे जोड़ने की प्रक्रिया शुरू होती है. न तो वे दहेज देते हैं, न दहेज लेते हैं.

न यहां कोई पंडित होता है, जो कन्या पक्ष से पैसों की मांग करता है. ऐसा पिछड़ा वर्ग, जो अब बौद्ध बन चुका है, से सवर्ण क्यों अपना संबंध बनाने से कतराते या शरमाते हैं?

असल में पिछड़ा कौन है? सारी कुरीतियों से अलगथलग निडर पिछड़ा वर्ग या कुरीतियों के दलदल में फंसा  उच्च वर्ग?

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