Hindi Story: रबी की फसल तैयार होने के बाद काशी वाले पंडाजी का इलाके में आना हुआ. लेकिन इस बार पंडाजी के साथ एक पहलवान चेला भी था, जिस की उम्र तकरीबन 35 साल के आसपास थी. पर देखने में वह 21-22 साल का ही लगता था. हाथ में कई अंगूठियां, छोटेछोटे काले बाल, प्रैस की हुई खादी की धोती और पैर में कोल्हापुरी चप्पल उस पर खूब फबती थी. पंडाजी बांस की बनी एक छोटी डोलची ले कर चलते थे. डोलची के हैंडिल के सहारे 2 छोटीछोटी गोल रंगीन शीशियां बंधी रहती थीं.

पंडाजी बड़ी सावधानी से शीशी खोलते और बहुत ही थोड़ा जल निकाल कर यजमान के बरतन में डालते. इस के बाद पहलवान चेला शुरू हो जाता, ‘‘यह प्रयाग का गंगाजल है. पंडाजी ने नवरात्र के समय मंदिर में इसे कठिन साधना के साथ मंत्रों से पढ़ा है. ‘‘इस गंगाजल में शुद्ध जल मिला कर घर के चारों तरफ छिड़क दें. इस के बाद सारा उपद्रव शांत हो जाएगा. बालबच्चे खुश रहेंगे और यजमान का कल्याण होगा.’’

उस पहलवान चेले की बात खत्म होते ही लाल और पीले धागे वाले 2 तावीज वह पंडाजी की ओर बढ़ा देता और कुछ क्षण बाद तावीजों को ले कर यजमान के हाथों में रखते हुए कहता, ‘‘पंडाजी बता रहे हैं कि लाल धागे वाला तावीज यजमान बाएं हाथ में मंगलवार को पहनें और पीले धागे वाला तावीज बुधवार को यजमान दाहिने हाथ में पहनें. इस के बाद सब तरह की बाधा दूर हो जाएगी और हर काम में तरक्की होगी.’’

यजमान दोनों हथेलियों पर 2 रंगों वाले तावीजों को इस तरह देखने लगता, मानो वह तावीज नहीं, कुबेर के खजाने की कुंजी और दवा हो. चेला दक्षिणा उठा कर गिनता. अगर वह 51 रुपए होती, तो चुपचाप पंडाजी की दाहिनी जेब से पर्स निकाल कर उस में रख देता और अगर पैसा इस से कम होता, तो कहता, ‘‘यह तो नवरात्र का खर्च भी नहीं है. लौट कर भी तो अनुष्ठान करना होगा.’’

तब यजमान कुछ रुपए निकाल कर चेले को बढ़ा देता. चेला नोटों की गिनती किए बिना पर्स के हवाले कर देता. पंडाजी यजमानों द्वारा दी गई दक्षिणा के हिसाब से ही अपना कीमती समय देते थे. पर वे माई के घर पर घंटों आसन जमाते. माई बहुत दिनों तक परदेश में रही थीं और उन की तीनों कुंआरी बेटियां भी देखने में खूबसूरत थीं.

पंडाजी के गांव में पधारते ही माई के दरवाजे पर उन के आसन का इंतजाम हो गया था. तीनों बेटियां भी अच्छी तरह सजसंवर कर तैयार हो चुकी थीं. पंडाजी के पहुंचते ही माई ने उन की आवभगत की. पंडाजी आसन पर बैठने ही वाले थे कि एक लड़की ने आ कर उन के पैर छुए. उन्होंने पूछा, ‘‘हां, क्या नाम है?’’

‘‘जी… संजू.’’ ‘‘कुंभ राशि. कन्या के लक्षण तो अति विलक्षण हैं. यह तो पिछले जन्म में राजकन्या थी. कुछ चूक हो जाने के चलते इसे इस कुल में आना पड़ा, तभी तो यह इतनी सुंदर और चंचला है.’’

सुंदर और चंचला शब्द सुनते ही संजू के गाल और भी लाल हो उठे और वह रोमांचित हो कर पंडाजी के और करीब होने लगी. तभी दूसरी लड़की रंजू ने कहा, ‘‘पंडाजी, इस को घरवर कैसा मिलेगा? इस की शादी कब तक होगी? हम तो इसी चिंता में परेशान रहते हैं. इस साल ही इस के हाथ पीले होने का कोई जतन बताइए न.’’

रंजू की बातें सुन कर पंडाजी चेले की ओर देखने लगे. संजू के यौवन में भटकता चेला अचकचा कर पंडाजी की ओर देखता हुआ कुछ पल चुप रहने के बाद बोला, ‘‘बीते सावन में इस के हाथ से जो सांप मर गया, वह कुलदेवता था. कुलदेवता इस पर बहुत गुस्सा हैं. इस के लिए मंत्र और तंत्र दोनों की साधनाएं करनी होंगी. ‘‘अच्छा है कि आज मंगलवार है. आज रात यह अनुष्ठान हो जाए, तो सब बिगड़ा काम बन सकता है.’’

चेले का यह सुझाव माई को डूबते को तिनके का सहारा जैसा लगा. सभी समस्याओं का समाधान निकल आने से माई की जान में जान आई. ठीक 5 बजे अनुष्ठान शुरू करने की बात कह कर पंडाजी चेले के साथ कैथीटोला गांव की ओर चल पड़े.

रात 9 बजे से माई के आंगन में अनुष्ठान का काम पंडाजी और चेले ने शुरू किया. हर तरह से सजीसंवरी तीनों बहनें भी आ कर लाइन से बैठ गईं. कुछ देर तक मंत्र पढ़ने के बाद आग जला कर उन्होंने माई के साथसाथ संजू, रंजू और मंजू को भभूत मिला प्रसाद खाने को दिया. इस के बाद चेले ने वहां मौजूद पासपड़ोस के लोगों को बाहर जाने का इशारा किया.

इशारा पाते ही सभी वहां से चले गए. फिर उस के बाद रात में क्या हुआ, गांव वालों को इस का क्या पता… अगली सुबह माई के घर में हाहाकार मचा हुआ था. माई और उस की छोटी बेटी मंजू छाती पीटपीट कर चिल्ला रही थीं, ‘‘कोई हमारी संजू… रंजू को वापस ला दो. वह पंडा पुरोहित नहीं, ठग था.

‘‘हम दोनों को बेहोश कर के पंडा और चेला मेरी दोनों बेटियों को उठा कर कहां ले गए… कुछ मालूम नहीं. हमारी बेटियों को वापस ला दो. उन्हें बचा लो.’’

गांव वालों को माजरा समझते देर नहीं लगी. राजमणि काका ने तुरंत रेलवे स्टेशन और बसस्टैंड के लिए कुछ लोगों को भेजा, लेकिन वे सभी खाली हाथ निराश लौट आए. तब पुलिस में मामले को ले जाया गया. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात.

माई के पास कलेजे पर पत्थर रख कर संजू और रंजू को भूलने के अलावा कोई चारा नहीं था. इधर उन दोनों बहनों ने समझदारी से काम लिया. पंडा और चेले की गलत मंसा भांपते हुए चालाकी से संजू ने पंडाजी से और रंजू ने चेले से ब्याह कर मौजमस्ती से जिंदगी बिताने का प्रस्ताव रखा.

पंडा और चेला इस प्रस्ताव को सुन कर बहुत खुश हुए. रंजू ने कहा, ‘‘लेकिन, इस के लिए जरूरी है कि हमारे घरपरिवार, गांव के लोग आगे आएं. कोई कानूनी दांवपेंच नहीं लगाएं और हमें पुलिस के चक्कर में नहीं पड़ना पड़े, सो हम लोग बिना समय गंवाए कोर्ट मैरिज कर लें.’’ संजू और रंजू के रूपजाल में फंसे पंडा और चेला कोर्ट मैरिज के कागजात के साथ अदालत में जज के सामने हाजिर हुए.

जब जज ने संजू और रंजू से उन की रजामंदी के बारे में पूछा, तो संजू कहने लगी, ‘‘जज साहब, ये दोनों हमारे गांव में पंडापुजारी बन कर आए थे. भोलेभाले गांव वालों के सामने तंत्रमंत्र का मायाजाल फैला कर इन ढोंगियों ने उन्हें खूब लूटा. ‘‘हम तीनों बहनों पर तो ये लट्टू बने थे. माई को घरपरिवार पर देवी का प्रकोप बता कर तांत्रिक अनुष्ठान कराने के लिए इन दोनों ने इसलिए मजबूर किया, ताकि उस की आड़ में हमें भोग सकें.

‘‘इन की खराब नीयत को भांप कर हम दोनों बहनों ने आपस में विचार किया और इन दोनों को कानून के हवाले करने के लिए यह नाटक खेला है, ताकि कानून इन ढोंगियों को ऐसी सजा दे, ताकि फिर कभी इस तरह की घटना न होने पाए.’’ संजू और रंजू के बयान को दर्ज करते हुए अदालत ने पंडा और चेले को जेल भेजने का आदेश दिया.

संजू और रंजू ने जब गांव वालों को यह दास्तान सुनाई, तो सभी कहने लगे, ‘सचमुच, तुम्हारी दोनों बेटियां बड़ी बहादुर हैं माई. इन दोनों ने वह कर दिखाया है, जो बहुत कम लोग ही कर पाते हैं. पूरे गांव को इन पर नाज है.’ माई की आंखों में भी खुशी और संतोष के आंसू छलछला रहे थे.

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