अब तक पंडेपुजारी शादी की तारीख निकालने से ले कर शादी कराने तक का काम करते थे पर अब उत्तर प्रदेश सरकार यह काम कर रही है. शादी की तारीख सरकार के हिसाब से निकलेगी. अगर आप ने अपने पंडित द्वारा निकाले गए मुहूर्त के मुताबिक शादी कर ली तो ‘मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना’ का लाभ आप को नहीं मिलेगा. आप की अर्जी रद्द कर दी जाएगी.

उत्तर प्रदेश सरकार ने हर जिले में तकरीबन 10 हजार शादियां कराने का टारगेट रखा है. पूरे प्रदेश में 75 हजार शादियों के हिसाब से बजट बनाया गया है. ये शादियां नगरनिगम और ब्लौक लैवल पर होंगी.

सामूहिक शादी में सब से पहले आप को समाज कल्याण अधिकारी कार्यालय में जा कर अपने आधारकार्ड और आय प्रमाणपत्र के जरीए अर्जी देनी होगी. अर्जी के बाद अनुदान की प्रक्रिया शुरू होगी.

लखनऊ नगरनिगम के पास 28 जोड़ों ने सामूहिक विवाह के लिए अर्जी दी थी. पहले जनवरी महीने में सामूहिक विवाह की तारीख तय हुई. शादी में भी सरकारी लेटलतीफी चलने लगी. सरकार ने बाद में 9 मार्च को सामूहिक विवाह की तरीख तय की. शादी के लिए अर्जी देने वाले 11 जोड़ों ने 9 मार्च का इंतजार नहीं किया. उन सब ने पहले ही शादी कर ली. इन लोगों ने शादी के सरकारी मुहूर्त का इंतजार नहीं किया.

नगरनिगम ने ऐसे जोड़ों का नाम ‘मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना’ से बाहर कर दिया. ऐसे में ये लोग सरकारी विवाह योजना का लाभ नहीं ले पाए.

सरकारी मुहूर्त

‘मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना’ में लाभ लेने के लिए शादी करने वाले को अपने पंडित के बताए मुहूर्त पर नहीं सरकारी मुहूर्त के हिसाब से शादी करनी होगी. इस योजना में उन लोगों को ही शामिल किया जा सकेगा, जिस के शहरी परिवार की सालाना आमदनी 54,460 रुपए और गांवदेहात के परिवारों की आमदनी 46,080 रुपए सालाना होगी. आवेदक का खाता नैशनल लैवल के बैंक में होना चाहिए.

‘सामूहिक विवाह योजना’ में रिश्ता घर वालों को खुद तय करना होता है. उस के बाद शादी के लिए अर्जी देनी होगी. सरकार एक तय तारीख पर शादी की योजना तैयार करती है.

‘सामूहिक विवाह योजना’ में सरकार 35 हजार रुपए खर्च करेगी. इस में से 20 हजार रुपए लड़की के खाते में जाते हैं. 10 हजार रुपए का घरेलू सामान और 5 हजार रुपए का टैंट व भोजन में हुए खर्च के लिए दिया जाता है. इस का भुगतान शादी कराने वाली संस्था को किया जाता है. एक बार में जब 10 जोड़ों की एकसाथ शादी होगी, तब उस को ही ‘सामूहिक विवाह योजना’ ही माना जाएगा.

उत्तर प्रदेश समाज कल्याण विभाग के डायरैक्टर जगदीश प्रसाद ने कहा, ‘‘हर जिले में 10,000 शादियां कराने का टारगेट रखा गया है. इस की तादाद ज्यादा होने पर भी सरकार मदद करेगी. इस सामूहिक विवाह योजना का मकसद माली तौर से कमजोर परिवारों की लड़कियों की शादी कराना है.’’

इस योजना में सभी धर्मों के लोगों को शामिल किया गया है. लखनऊ में 9 मार्च को ‘सामूहिक विवाह योजना’ के तहत 8 मुसलिम जोड़ों ने भी अपने जीवनसाथी को चुना था.

पूरे उत्तर प्रदेश में चली ‘सामूहिक विवाह योजना’ में भ्रष्टाचार की शिकायतें भी आईं. शादी में दिए जाने वाले गहनों और बरतनों में क्वालिटी का खयाल नहीं रखा गया. ऐसे में घटिया किस्म के बरतन और जेवर दिए गए.

विधवा विवाह में…

विवाह की इस योजना में जहां 35 हजार रुपए खर्च करने हैं, वहीं विधवा और तलाकशुदा मामले में यह खर्च 25 हजार खर्च का ही बजट रखा गया है. विवाह संस्कार के लिए पहली बार वाली शादी में 10,000 रुपए का जरूरी सामान, जिस में कपड़े, बिछिया, चांदी की पायल और 7 बरतन दिए जाते हैं. विधवा और तलाकशुदा में यह सामान 5 हजार का रखा गया है.

इस योजना में शामिल हुए लोगों के लिए जरूरी है कि वे गरीब हों. कन्या के मातापिता उत्तर प्रदेश के मूल निवासी हों. अभिभावक निराश्रित, निर्धन और जरूरतमंद हों.  विवाह का पंजीकरण और विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का काम सहायक महानिबंधक स्टांप को करना है.

सरकार की योजना में सब से बड़ी खामी यह है कि जहां तलाकशुदा और विधवा विवाह को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है वहीं दूसरी ओर इन को कम मदद दी जा रही है.

शादी में मुहूर्त की अपनी अलग अहमियत होती है. ‘सामूहिक विवाह योजना’ में सरकार एक दिन शादी के लिए तय करती है. ऐसे में कम लोग ही सरकारी मुहूर्त पर शादी करने को तैयार होते हैं. सरकारी सहायता लेने के लिए लोग अपने मुहूर्त के हिसाब से पहले शादी कर लेते हैं. इस के बाद सरकारी सामूहिक शादी योजना में शादी करने चले जाते हैं.

बिचौलियों की चांदी

सरकार का काम शादी कराना नहीं होना चाहिए. शादी योजना के जरीए सरकार पंडों वाला काम कर रही है. सरकार अब अपना दखल परिवारों के अंदर तक बढ़ाना चाहती है जिस से शादी, बच्चे, जन्म, मृत्यु सब पर सरकार का दखल रहे. परोक्ष रूप से पैसा पंडों को मिलता रहे.

इस योजना के जरीए शादी में बिचौलियों का रोल बढ़ रहा है जिस से सरकारी अमले और बिचौलियों की आमदनी शुरू हो रही है.

‘सामूहिक विवाह योजना’ में नाम शामिल कराने के लिए आय प्रमाणपत्र बनवाने से ही सरकारी अमले का शोषण शुरू हो जाता है. आय प्रमाणपत्र बनवाने के लिए तहसील जाना पड़ता है. वहां लेखपाल की रिपोर्ट के बाद आय प्रमाणपत्र मिलता है. इस के लिए पैसा देना पड़ता है.

हर जिले में एक सीमित तादाद में शादी के लिए जोड़ों का चयन किया जाता है. ऐसे में अर्जी देने के बाद अपना नाम लिस्ट में शामिल कराना मुश्किल काम होता है. सरकारी अमले के दखल में एक भी काम बिना किसी चढ़ावे के नहीं होता है.

‘सामूहिक विवाह योजना’ में धार्मिक रीतिरिवाजों के मुताबिक शादी होती है. ऐसे में बिना दहेज के होने वाली कोर्ट मैरिज को दरकिनार किया जा रहा है.

बेहतर होता कि बिना दहेज और आडंबर के शादी करने वालों को मदद दी जाती. वैसे, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ‘मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना’ के जरीए पंडावाद को बढ़ावा दे रही है.

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