आखिर महाराष्ट्र हाईकोर्ट और मीडिया के सक्रिय होते ही 18 महीने बाद महाराष्ट्र के नवी मुंबई, कलंबोली पुलिस थाने के अफसरों ने 7 दिसंबर, 2017 की शाम को करीब 8 बजे अपने विभाग के शातिर और ऊंची पहुंच वाले अफसर अभय कुरुंदकर को उस के मीरा रोड स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया.
अभय कुरुंदकर जिला ठाणे, पालघर के नवघर पुलिस थाने में बतौर इंचार्ज तैनात था. उस पर अपने ही विभाग की एक महिला अधिकारी अश्विनी बेंद्रे के अपहरण और हत्या जैसे गंभीर आरोप थे. अश्विनी बेंद्रे नवी मुंबई कोमोठे स्थित ह्यूमन राइट्स कमीशन औफिस में असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर के रूप में तैनात थी.
25 वर्षीय अश्विनी राजू बेंद्रे मूलरूप से कोल्हापुर, तालुका आंधले, गांव हातकणगे की रहने वाली थी. वह 2007 के बैच की पुलिस अधिकारी थी. उस के पिता 1988 में आर्मी से रिटायर होने के बाद काश्तकारी में व्यस्त हो गए थे. परिवार में उन की पत्नी के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. शिक्षा के साथ अश्विनी बेंद्रे हर काम में अपने छोटे भाई आनंद बेंद्रे और छोटी बहन से होशियार थी. चूंकि पिता आर्मी से थे, इसलिए वह बेटी की रुचि को देखते हुए उसे आर्मी या पुलिस सेवा में भेजना चाहते थे.
10वीं तक की शिक्षा अपने गांव के स्कूल से पूरी करने के बाद अश्विनी आगे की पढ़ाई के लिए अपने मामा के घर कोल्हापुर आ गई थी. उस के मामा कोल्हापुर में पुलिस अधिकारी थे. बीकौम करने के बाद वह एमपीएससी की तैयारी में जुट गई थी, लेकिन परीक्षा में शामिल होने से पहले ही उस के मातापिता ने राजकुमार उर्फ राजू गोरे से उस की शादी तय कर दी. 2005 में अश्विनी बेंद्रे विदा हो कर अपनी ससुराल चली गई.
सीधे और सरल स्वभाव का राजू गोरे अश्विनी बेंद्रे जैसी सुंदर पत्नी को पा कर बहुत खुश था. उसे जब यह मालूम हुआ कि अश्विनी बेंद्रे के मातापिता की इच्छा और अश्विनी की इच्छा पुलिस सेवा जाने की थी तो राजू गोरे ने पत्नी की इस इच्छा को पूरा करने के लिए हरसंभव सहयोग करने को कहा. पति के सहयोग से अश्विनी बेंद्रे ने एमपीएससी की परीक्षा में भाग लिया. यह परीक्षा उस ने अच्छे अंकों से पास की. इसी दौरान वह एक बेटी की मां भी बन गई.
नासिक में 6 माह की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद अश्विनी बेंद्रे की पहली नियुक्ति पुणे में सबइंसपेक्टर के पद पर हुई थी. उस के बाद उसे सांगली के पुलिस मुख्यालय में तैनात कर दिया गया था. सांगली मुख्यालय में अश्विनी बेंद्रे को अभी कुछ महीने ही हुए थे कि उस का ट्रांसफर सांगली की लोकल क्राइम ब्रांच में कर दिया गया, जहां उस की मुलाकात पीआई अभय कुरुंदकर से हुई. अभय कुरुंदकर एक शातिरदिमाग अफसर था.
भले ही अफसर हो, अकेली औरत कई बार शातिर लोगों के जाल में फंस जाती है
अश्विनी बेंद्रे उस वक्त अपनी भावनाओं को दबाए पति से दूर अकेले ही जिंदगी का सफर तय कर रही थी. वैसे तो अश्विनी बेंद्रे एक सशक्त महिला थी. लेकिन पीआई अभय कुरुंदकर के फेंके गए जाल में वह बड़ी आसानी से फंस गई.
पीआई अभय कुरुंदकर मूलरूप से कोल्हापुर जिले के कराड़ गांव का रहने वाला था. उस का बचपन गरीबी और संघर्षों में बीता था. उस के बचपन में ही पिता का निधन हो गया था. परिवार में मां के अलावा 2 भाई और एक बहन थी. पिता के निधन के बाद जब परिवार वालों ने गांव से निकाल दिया तो मां अपने तीनों बच्चों को ले कर आजरा गांव में अपनी बहन के यहां रहने लगी थी. मेहनतमजदूरी कर के उन्होंने अपने तीनों बच्चों की परवरिश की.
दोनों भाई पढ़ाईलिखाई में जितने होशियार थे, उतने ही मेहनती भी थे. वे पूरा मन लगा कर पढ़ाई करते थे और बाकी समय में मां का हाथ बंटाते थे. उन के गांव के सारे दोस्त शराब, जुआ और राहजनी जैसे अपराधों में लिप्त रहते थे लेकिन ये दोनों भाई इन चीजों से दूर रहते थे. आखिरकार दोनों की मेहनत और पढ़ाई रंग लाई और दोनों भाइयों को पुलिस विभाग में नौकरी मिल गई.
पुलिस में नौकरी लग जाने के बाद अभय कुरुंदकर जब अपने पुश्तैनी घर और गांव गया तो पता चला कि उस के चचेरे भाइयों ने उस की पुश्तैनी जमीन पर कब्जा कर लिया है. इतना ही नहीं, उन्होंने उस के पिता की सारी संपत्ति भी अपने नाम करवा ली थी.
यह जान कर अभय कुरुंदकर काफी आहत हुआ, लेकिन उस ने अपने मन ही मन तय कर लिया था कि खूब पैसा कमा कर वह अपना घर अपने पुश्तैनी गांव में ही बनवाएगा. और उस ने ऐसा ही किया भी. उस ने पुलिस विभाग में अपना कद बढ़ाना शुरू किया. इस काम में उसे कामयाबी भी मिली. शीघ्र ही उस की पैठ कुछ बड़े अधिकारियों और राजनीतिज्ञों तक हो गई थी
तत्कालीन मंत्री एकनाथ खड़से के भांजे ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजेश पाटिल से अभय कुरुंदकर की गहरी दोस्ती हो गई थी. कानून और राजनीति के बीच दोस्ती होने के कारण अभय कुरुंदकर ने गैरकानूनी काम करने शुरू कर दिए. वह दोनों हाथों से पैसे कमाने लगा. वह अपनी पहुंच का फायदा उठा कर अपना ट्रांसफर उन थानों में कराता रहा, जहां अच्छी कमाई होती थी.
अभय कुरुंदकर ने थोड़े ही दिनों में इतना पैसा कमा लिया कि उस ने अपने गांव में 6 बिस्वा जमीन खरीद कर एक आलीशान घर बनवाया. उस मकान में उस का परिवार रहने लगा. इस के अलावा उस ने आजरा के आंबोली गांव में 7 एकड़ जमीन ले कर अपना फार्महाउस बनवाया. इस बीच उस का प्रमोशन और ट्रांसफर होते रहे.
29 मई, 2006 को उस का प्रमोशन कर के उसे कुछ दिनों के लिए कमिश्नर औफिस के नियंत्रण कक्ष भेज दिया गया. लेकिन अपनी पहुंच के कारण उस ने एक महीने के अंदर ही अपना ट्रांसफर कुपवाड़ा में करवा लिया. यहां पर वह लगभग ढाई साल रहा. यहीं से प्रमोशन पा कर वह मिर्ज के ट्रैफिक विभाग में चला गया.
2 जून, 2010 में अभय कुरुंदकर की बदली स्थानीय आर्थिक अपराध शाखा में पीआई के पद पर कर दी गई. यहीं पर अभय कुरुंदकर की मुलाकात एपीआई अश्विनी बेंद्रे से हुई और वह उस का पहली ही नजर में उस का दीवाना हो गया. कुछ ही दिनों में उसे अश्विनी बेंद्रे की कमजोरी पता लग गई.
वह उन दिनों जिस वियोग की ज्वाला में जल रही थी, उस पर अभय कुरुंदकर ने धीरेधीरे मरहम लगाना शुरू किया. उस का मरहम काम कर गया. दोनों को जब मालूम हुआ कि वह एक ही जिले के रहने वाले हैं तो नजदीकियां और बढ़ गईं. धीरेधीरे उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई थी.
भ्रष्ट अफसर की सोच हमेशा गलत ही चलती है
उन दिनों अश्विनी बेंद्रे सांगली से रोजाना अपनी ड्यूटी के लिए अपडाउन किया करती थी, जिस के कारण उन्हें काफी परेशानी होती थी. अभय कुरुंदकर ने सहानुभूति दिखाते हुए क्राइम ब्रांच औफिस के करीब ही यशवंतनगर में अपनी पहचान के एक राजनैतिक कार्यकर्ता की मदद से अश्विनी बेंद्रे को एक मकान किराए पर दिलवा दिया और खुद भी पास के विश्राम बाग में रहने लगा. कुरुंदकर को सरकारी गाड़ी मिली हुई थी, लेकिन वह सरकारी गाड़ी का उपयोग न कर के अपनी खुद की कार से औफिस आताजाता था. वह अश्विनी को भी अपने साथ कार में बिठा कर औफिस ले आता था.
अपने से 14 साल छोटी अश्विनी बेंद्रे को 55 वर्षीय पीआई अभय कुरुंदकर ने बड़ी ही चतुराई से अपने प्रेमजाल में उलझा लिया था. शादी का वादा कर वह उस की भावनाओं से खेलने लगा. जबकि वह स्वयं एक शादीशुदा और 2 बेटोंबेटियों का पिता था. उधर अश्विनी बेंद्रे एक बच्ची की मां होते हुए भी परकटे परिंदे की तरह पीआई अभय कुरुंदकर की बांहों में गिर गई.
धीरेधीरे वह अपने पति राजू गोरे से विमुख होने लगी. कह सकते हैं कि वह अभय कुरुंदकर के साथ जिंदगी के नए ख्वाब देखने लगी थी. इस बात की जानकारी जब राजू गोरे को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. पहले तो राजू गोरे को इस बात का यकीन ही नहीं हुआ, क्योंकि वह अपनी पत्नी को काफी समझदार और सुलझी हुई मानता था, लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो राजू गोरे और परिवार वालों के होश उड़ गए थे.
पहले तो राजू गोरे और अश्विनी बेंद्रे के परिवार वालों ने अश्विनी को काफी समझाया, लेकिन वह पीआई अभय कुरुंदकर के प्यार में डूबी हुई थी. इसलिए उस पर ससुराल वालों की बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. वह अभय कुरुंदकर से लवमैरिज करने के लिए तैयार थीं. बेटी पर मां के भटकने का कोई प्रभाव न पड़े, इसलिए राजू गोरे उस के पास से अपनी बेटी को ले गया. बेटी के जाने के बाद अश्विनी पूरी तरह आजाद हो गई.
वह अपने प्रेमी अभय कुरुंदकर के साथ ही रहने लगी. उस के साथ वह खुश थी लेकिन उस की यह खुशी अधिक दिनों तक कायम नहीं रही. उसे शीघ्र ही इस बात का पता चल गया कि वह चालाक और मक्कार किस्म का व्यक्ति है. उस का प्यार और शादी का वादा केवल एक छलावा था. शादी के नाम से वह चिढ़ जाता था. कभीकभी तो वह अश्विनी बेंद्रे से मारपीट तक कर बैठता था. अश्विनी के विरोध करने पर वह उसे और उस के पति को गायब करवा देने की धमकियां देता था.
अभय कुरुंदकर टौर्चर करता था अश्विनी बेंद्रे को
सन 2013 में अश्विनी बेंद्रे को अभय कुरुंदकर के टौर्चर से थोड़ी राहत तब मिली, जब अश्विनी का ट्रांसफर रत्नागिरि हो गया. अभय कुरुंदकर भी ठाणे जिले के पालघर स्थित नवघर पुलिस थाने में चला गया. इस के बावजूद अभय कुरुंदकर ने अश्विनी का पीछा नहीं छोड़ा. उसे जब भी मौका मिलता, वह उस के पास पहुंच जाता था और उसे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था.
अपने रसूख के दम पर वह अश्विनी और उस के परिवार के साथ कुछ भी कर सकता था. उस के डर से अश्विनी ने उस के खिलाफ सारे सबूत इकट्ठे करने शुरू कर दिए. अपने घर सीसीटीवी कैमरा भी लगवा लिया, जिस का सारा रिकौर्ड वह अपने लैपटाप में रखने लगी थी.
पालघर के नवधर पुलिस थाने में डेढ़ साल तक रहने के बाद अभय कुरुंदकर ने अपनी बदली क्राइम ब्रांच में करा ली थी. अब वह फिर से अश्विनी बेंद्रे के करीब आ गया था. अश्विनी उस के व्यवहार से तंग थी. वह उस से दूर रहने की कोशिश करने लगी. प्रमोशन होने के बाद वह भी एपीआई बन चुकी थी.
सन 2016 में अश्विनी बेंद्रे ने अपना ट्रांसफर ठाणे के नवी मुंबई कलंबोली स्थित कामोठे के ह्यूमन राइट्स कमीशन में करा लिया था. वह अपने परिवार वालों के बीच लौट आई थी. यह बात पीआई अभय कुरुंदकर को हजम नहीं हुई. वह अश्विनी से चिढ़ गया. इस का नतीजा यह हुआ कि एक दिन अचानक अश्विनी गायब हो गई.
18 अप्रैल, 2016 को अश्विनी बेंद्रे ने अपने परिवार वालों के साथ बाहर खाना खाने का प्रोग्राम बनाया. परिवार वाले उस का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं आई. इस बीच उस का फोन भी बंद हो गया. लेकिन परिवार वालों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उन का मानना था कि वह किसी इमरजेंसी काम में फंस गई होगी. लेकिन 15 दिनों के बाद घर वालों के पास ह्यूमन राइट्स कमीशन के औफिस से फोन आया. उन्होंने बताया कि अश्विनी बेंद्रे अपनी ड्यूटी पर नहीं आ रही है.
औफिस से अश्विनी के गायब होने की जानकारी मिलते ही पूरे परिवार में हड़कंप मच गया. अश्विनी बेंद्रे के पिता ने तुरंत नवी मुंबई कलंबोली पुलिस थाने में फोन कर के अश्विनी बेंद्रे की गुमशुदगी की सूचना दे दी.
उन्होंने कहा कि उन की पत्नी अस्पताल में भरती है और वह खुद थाने आने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए उन की बेटी की गुमशुदगी दर्ज कर के जरूरी काररवाई की जाए. यह जानकारी उन्होंने अपने बेटे आनंद बेंद्रे को भी दे दी. आनंद तुरंत अपनी गुमशुदा बहन की तलाश में जुट गया.
आनंद को उस की बहन अभय कुरुंदकर की ज्यादती के बारे में बताती रहती थी, इसलिए उस ने सीधेसीधे पीआई अभय कुरुंदकर पर बहन का अपहरण कर के उस की हत्या करने की आशंका जाहिर की. वह उस के खिलाफ सबूत भी इकट्ठा करने लगा. उस ने लैपटाप में रिकौर्डिंग और अन्य सबूत पुलिस को मुहैया करा दिए. चूंकि अभय कुरुंदकर पीआई था, इसलिए उस ने अपने प्रभाव से डेढ़ साल तक मामले को लटकवाए रखा.
ऊंची राजनीतिक पहुंच की वजह से अभय कुरुंदकर अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को भी नहीं मानता था. वह अपने मन की करता था. 2010 से 2013 के बीच पीआई अभय कुरुंदकर आर्थिक अपराध शाखा में रहा था, तब उस ने कई मामलों की गोपनीय जानकारी लीक कर दी थी. इस बात की जानकारी जब तत्कालीन डीसीपी दिलीप सावंत को हुई तो उन्होंने 9 मई, 2013 को अभय के खिलाफ कोल्हापुर के स्पैशल डीजीपी और डीजीपी को जांच के लिए एक रिपोर्ट भेजी. लेकिन उस का कोई असर नहीं हुआ था.
पीआई अभय कुरुंदकर की जांच होने के बजाय उस का ट्रांसफर सांगली के तांसगांव थाने में कर दिया गया. लेकिन वह वहां नहीं गया बल्कि तत्कालीन गृहमंत्री आर.आर. पाटील से मिल कर अपना ट्रांसफर रद्द करवा लिया. डीसीपी दिलीप सावंत के बारबार यह रिपोर्ट देने के बावजूद पीआई अभय कुरुंदकर द्वारा विभाग की महत्त्वपूर्ण जानकारी बाहर जाती रही. उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं हुई.
मामला एक सीनियर पुलिस अफसर का था, अत: कलंबोली के थानाप्रभारी पोकरे ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने उस की जांच शुरू कर दी. उन्होंने काफी हद तक इस मामले को हल भी कर लिया था, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के सहयोग के बिना मामला आगे नहीं बढ़ सका. 3 महीने का समय निकल जाने के बाद जब केस की जांच आगे नहीं बढ़ी तो अश्विनी बेंद्रे के घर वाले परेशान हो गए.
16 सितंबर, 2016 को आनंद बेंद्रे ने बहनोई राजू गोरे के साथ नवी मुंबई के कमिश्नर हेमंत नगराले से मुलाकात की. जरूरी काररवाई करने का आश्वासन देने के बजाय कमिश्नर हेमंत नगराले ने उन्हें यह कह कर डराया कि उन की जान को खतरा है, वे संभल कर रहें.
पुलिस कमिश्नर से उन्हें इस तरह की उम्मीद नहीं थी. उन की बातों से साफ जाहिर हो रहा था कि इस मामले को ले कर पुलिस गंभीर नहीं है. उन के इस रवैए से निराश हो कर अश्विनी बेंद्रे के घर वालों ने 8 अक्तूबर, 2016 को अदालत का दरवाजा खटखटाया.
अदालत का आदेश भी नहीं माना पुलिस ने
28 अक्तूबर, 2016 को अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि मामला काफी संगीन है, इस की जांच डीसीपी रैंक के अधिकारी से करवाई जाए. अदालत की पहल पर मामला डीसीपी पोखरे को सौंप दिया गया. डीसीपी पोखरे ने एसीपी राजकुमार चाफेकर के साथ मामले की जांच तो की, लेकिन उस पर कोई काररवाई नहीं हुई और देखतेदेखते 2 महीने गुजर गए. मामला ज्यों का त्यों रहा.
पहली जनवरी, 2017 को अदालत ने पुलिस प्रशासन को फटकार लगाते हुए मामले की जांच के लिए एसीपी प्रकाश निलेवाड़ की देखरेख में एक स्पैशल टीम गठित करने को कहा और पूछा कि मामले से संबंधित औडियो वीडियो का रिकौर्ड होने के बाद भी काररवाई क्यों नहीं की गई.
अदालत के आदेश पर एसीपी प्रकाश निलेवाड़ ने मामले को गंभीरता से लिया और जांच की जिम्मेदारी पीआई संगीता अलफांसो को सौंप दी. पीआई संगीता अलफांसो ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया. उन्होंने एक महीने की जांच के बाद 31 जनवरी, 2017 को अश्विनी बेंद्रे के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.
इस के पहले कि पीआई संगीता अलफांसो अश्विनी बेंद्रे के अपहर्त्ताओं पर कोई काररवाई करतीं, पीआई अभय कुरुंदकर को अपनी गिरफ्तारी का अहसास हो गया और फरवरी, 2017 में वह अदालत चला गया, जिस की वजह से मामले में रुकावट आ गई. जब तक अदालत का कोई आदेश आता, तब तक पीआई संगीता अलफांसो का ट्रांसफर हो गया. उन के जाने के बाद इस मामले की जांच 9 महीने के लिए फिर अटक गई. अभय कुरुंदकर ने अदालत में यह अरजी लगाई कि उस के ऊपर लगाए गए सारे आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं. उसे साजिश के तहत फंसाया जा रहा है.
पीआई संगीता अलफांसो के ट्रांसफर के बाद एक बार फिर अश्विनी बेंद्रे के परिवार वालों का धैर्य टूट गया. 9 महीने के इंतजार के बाद इस बार उन्होंने मीडिया से संपर्क किया. पहले तो 15 दिनों तक मीडिया में कोई हलचल नहीं हुई.
मीडिया ने बदला केस का रुख
16 जनवरी, 2017 को इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने अश्विनी बेंद्रे के साथ पीआई अभय कुरुंदकर द्वारा मारपीट का एक वीडियो वायरल कर पूरे देश में सनसनी फैला दी. दूसरे दिन प्रिंट मीडिया ने भी इसे सुर्खियों में छापा. इस के बाद तो यह मामला हाईप्रोफाइल हो गया और प्रशासन में हड़कंप मच गया.
सवालों के जवाबों में नवी मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत नगराले को झूठ बोलना पड़ा. उन्होंने एक प्रैस नोट जारी कर मामले को झूठा और बेबुनियाद बता दिया. पुलिस कमिश्नर के इस बयान पर अदालत नाराज हो गई, जिस के चलते एसीपी प्रकाश निलेवाड़ ने पीआई संगीता अलफांसो द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट के आधार पर पीआई अभय कुरुंदकर को औन ड्यूटी और उस के साथ ज्ञानेश्वर पाटिल को 8 दिसंबर, 2017 को हिरासत में ले लिया.
पीआई संगीता अलफांसो ने अपनी रिपोर्ट में ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजेश पाटिल उर्फ राजू पाटिल को पीआई अभय कुरुंदकर का सहयोगी बताया था. राजू पाटिल अभय कुरुंदकर के हर अच्छेबुरे काम में उस के साथ रहता था. ज्ञानेश्वर पाटिल तत्कालीन मंत्री एकनाथ खड़से का भांजा था. वह जिला जलगांव, तालुका भुसावल के गांव तलवेल का रहने वाला था. एक बिजनैसमैन के अलावा वह वहां के भाजपा युवामोर्चा का नेता था.
हकीकत आ ही गई सामने
जिस दिन अश्विनी बेंद्रे गायब हुई थी, उस दिन अश्विनी और राजू पाटिल के मोबाइल फोन की लोकेशन साथसाथ मीरा रोड की थी. अभय कुरुंदकर का मकान भी मीरा रोड पर ही था. इस से मामला स्पष्ट था कि घटना मीरा रोड पर अभय के मकान में घटी थी और सबूत भायंदर खाड़ी में ले जा कर नष्ट किया गया था.
पीआई संगीता अलफांसो ने जब थाने में उस से पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह तो स्वीकार नहीं किया, लेकिन उस का बयान भी विश्वसनीय नहीं था. उस ने बताया कि जिस दिन अश्विनी गायब हुई थी, उस दिन वह मुंबई के अंधेरी स्थित एक होटल में अपने दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पी रहा था.
इस के बाद वह खाना खाने के लिए बाहर निकला था. लेकिन कोई अच्छा होटल न मिलने के कारण वह अपने दोस्त पीआई अभय कुरुंदकर के घर चला गया था. अभय कुरुंदकर के विषय में पीआई संगीता अलफांसो को जो बात मालूम पड़ी थी, वह सीधे पीआई के खिलाफ जा कर अश्विनी बेंद्रे की हत्या की तरफ इशारा कर रही थी.
भायंदर खाड़ी के मछलीमारों ने पीआई संगीता अलफांसो को बताया था कि पीआई अभय कुरुंदकर लगभग एकडेढ़ साल पहले अकसर सुबहसुबह इधर आते थे. उन से वह किसी महिला के शव के बारे में पूछताछ किया करते थे. उन का कहना था कि वह एक महिला की गुमशुदगी की जांच कर रहे हैं. यदि उस महिला की उन्हें डेडबौडी मिले तो पहले उन से संपर्क करें.
एक बात और यह पता चली कि अश्विनी बेंद्रे के गायब होने के दूसरे दिन ही अभय कुरुंदकर ने अपने मकान की पुताई करवाई थी. अपनी फोक्सवैगन कार को भी उन्होंने अपने मकान से हटवा दिया था. अदालत के आदेश पर जब पीआई संगीता अलफांसो ने अभय कुरुंदकर के मकान की जांच की तो उन्हें दीवारों पर काले रंग के कुछ धब्बे नजर आए, जो पुताई के बाद भी पूरी तरह से दबे नहीं थे. उन्हें खुरचवा कर डीएनए टेस्ट के लिए सांताकु्रज की लैब में भेज दिया गया. उस की रिपोर्ट आने के बाद ही पता लगेगा कि वे खून के छींटे किस के हैं.
पीआई अभय कुरुंदकर की गिरफ्तारी के बाद जांच अधिकारी ने अश्विनी बेंद्रे के मामले से जुड़ी संदिग्ध लाल रंग की फोक्सवैगन कार नंबर एमएच10ए एन5500 भी खोज निकाली. यह कार सांगली घामड़ी रोड के जिम्नेश्वर कालोनी में रहने वाले रमेश चारुदत्त जोशी के नाम रजिस्टर थी. पुलिस टीम को अश्विनी बेंद्रे द्वारा लिखा गया एक नोट भी मिला, जिस में लिखा था, ‘मेरे हाथपैर तोड़ने और मुझे मार कर तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी.’
ऐसे कई सबूत थे, जो अभय कुरुंदकर को अश्विनी बेंद्रे के मामले में दोषी ठहरा रहे थे. लेकिन इस के बाद भी अभय कुरुंदकर अपना अपराध स्वीकार नहीं कर रहा था. उस का कहना था कि वह इस मामले में निर्दोष है. जांच टीम ने परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर उस के और ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजू पाटिल के खिलाफ भादंवि की धारा 323, 364, 497, 506(2), 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. धारा 302 डीएनए रिपोर्ट आने के बाद जोड़ दी जाएगी.
लेकिन इस के पहले पीआई अभय कुरुंदकर और ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजू पाटिल का इकबालिया बयान जरूरी है. इस के लिए पुलिस टीम ने अदालत से उन के नारको टेस्ट की इजाजत मांगी है, जिस पर उन के वकीलों ने ऐतराज किया है. बहरहाल, मामला अदालत में विचाराधीन है. दोनों आरोपी कथा लिखने तक सलाखों के पीछे थे.
पीआई अभय कुरुंदकर की गिरफ्तारी से एपीआई अश्विनी बेंद्रे के घर वालों को इंसाफ की आशा जागी है लेकिन मामला इतना लंबा खिंचा, इस बात का जिम्मेदार उन्होंने नवी मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत नगराले को ठहराया है. उन्होंने प्रैस वार्ता कर के उन पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें भी सहअभियुक्त बनाने की मांग की है.
उन का कहना है कि पीआई अभय कुरुंदकर ने अपने पद का दुरुपयोग किया और तफ्तीश में सहयोग नहीं किया. इतना ही नहीं, उन्होंने जांच अधिकारी का ट्रांसफर कर अभियुक्त को बचाने की कोशिश की. यह एक ऐसा प्रश्न है जिस का जवाब उन्हें आने वाले समय में देना पड़ सकता है.
– कथा जनचर्चा और समाचार पर आधारित है
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