भगवा राजनीति का पूरापूरा लाभ देशभर के धर्म के दुकानदारों को मिल रहा है. हिंदूमुसलिम विवाद, आरक्षण, पद्मावती, पाकिस्तान, गौसेवा, गौवध, तीन तलाक, योग, वंदेमातरम, राष्ट्रभक्ति के नाम पर पूजापाखंड, भक्ति आदि का लाभ मिल रहा है नेताओं को और पंडेपुजारियों को भी. इस वर्ष मकर सक्रांति के मौके पर इलाहाबाद के माघ मेले में रिकौर्ड संख्या में अंधभक्तों ने गंगायमुना में डुबकी लगाई.
यह सेवा ईश्वर की या जनता की नहीं, यह भक्तों ने खुद की सेवा भी नहीं की, बल्कि यह सेवा की गई निठल्ले हजारों साधुओं, पुजारियों, पंडों, हस्तरेखा पाखंडियों की, फूलपत्ते बेचने वाले दुकानदारों की, खाना परोसने वाले दुकानदारों की और बस मालिकों की. हर अंधभक्त ने दिल खोल कर अपनी जेब ढीली की ताकि उस के खाते में पुण्य जमा हो जाए व मरने के बाद उसे स्वर्ग मिले और जीतेजी धनधान्य ऊपर से टपक कर उस की झोली में आ गिरे.
इस बार 1.55 करोड़ अंधभक्तों ने 2 दिनों में पानी में डुबकी लगा कर इस बहकावे पर मुहर लगाई कि इसी से, और केवल इसी से, उन का कल्याण होगा. ये 1.55 करोड़ लोग जहां भी जो भी काम करते हैं, उस के प्रति उन की निष्ठा उतनी नहीं होती जितनी इस पांखड के प्रति कि डुबकी लगाने से ही वे कुछ पा सकेंगे.
सरकार इसे सफल बनाने के लिए वर्षों से करोड़ों रुपए हर साल खर्च करती है. सरकार करों से एकत्र पैसा अंधभक्तों पर इस तरह से खर्च करती है मानो विकास की कुंजी यही है. भगवा राजनीति का उद्देश्य इसी तरह का पर्यटन बढ़ाना है ताकि लोग घूमने के बहाने दानदक्षिणा दें और एक संकुचित विचारधारा के गुलाम बने रहें.
धर्म के नाम पर कितनी ही सभ्यताओं ने बड़े विशाल निर्माण किए हैं तो साथ ही, लाखों नहीं, अरबों को मारा भी है. धर्म ने सुरक्षा देने का ऐसा छद्म जाल बुन रखा है कि हर व्यक्ति का दिमाग तर्क के प्रति सुन्न हो जाता है. विज्ञान व तकनीक की उन्नति के बावजूद अच्छेअच्छे अस्पतालों और आधुनिक कारखानों में मूर्तियों की बरात लगी रहती है मानो मानव अपनेआप में सक्षम नहीं है. मानव द्वारा ही निर्मित पर अब उस का लाभ उठा रहे बिचौलिए अंधभक्तों को यही बताते हैं कि धर्म ही अकेला स्वस्थ, सार्थक, साधनसंपन्न और संपूर्ण जीवन दे सकता है.
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