अपने औफिस में बैठा मैं एक सबइंसपेक्टर से किसी मामले पर बात कर रहा था, तभी 2 आदमी यह सूचना ले कर आए कि गंदे नाले में एक लाश पड़ी है. सुबहसवेरे लाश की सूचना पर मैं हैरान रह गया. मैं ने एक एएसआई और 2 सिपाहियों को उन लोगों के साथ भेज दिया. कुछ देर बाद एक सिपाही हांफता हुआ मेरे पास आ कर बोला, ‘‘सर, वह लाश तो धुर्रे शाह की है.’’
‘‘तुम्हें पूरा यकीन है कि वह लाश धुर्रे शाह की ही है?’’ मैं ने उसे घूरते हुए पूछा.
धुर्रे शाह इलाके का ऐसा हिस्ट्रीशीटर बदमाश था, जिस के नाम से बड़ेबड़े गुंडेबदमाश कांपते थे.
‘‘बिलकुल सर, उस पर धारदार हथियार से वार किए गए हैं.’’ सिपाही ने कहा.
मैं भी उस स्थान पर पहुंचा, जहां धुर्रे शाह की लाश पड़ी थी. मेरे पहुंचने से पहले एएसआई गफ्फार ने लाश नाले से बाहर निकलवा ली थी. मैं ने लाश देखी तो वह सचमुच धुर्रे शाह की थी. उस ने रेशमी कुर्ता पहना हुआ था. एक गहरा घाव उस की गरदन पर था, दूसरा घाव उस की कालर बोन पर था, तीसरा घाव उस की पसलियों पर था.
उस की जेब की तलाशी ली गई तो उन में से कुछ छोटे भीगे नोट निकले. जरूरी काररवाई कर के मैं ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मैं सोच में पड़ गया कि धुर्रे शाह जैसे हिस्ट्रीशीटर बदमाश की हत्या किस ने की होगी?
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धुर्रे शाह रहीमपुर का रहने वाला था. उस का असली नाम पता नहीं था, सब उसे धुर्रे शाह कहते थे. वह मेलों में जाने का बड़ा शौकीन था. अपने लंबे बालों में वह एक पटटी बांधता था और कंधे पर रेशमी पटका रखता था. ढोल की थाप पर वह मेले तक नाचता हुआ जाता था. रात में उस के इलाके में उस का राज्य होता था. लोग डर की वजह से उस के इलाके से गुजरते नहीं थे. कोई घोड़ातांगा उधर से गुजरता तो चालक घोड़े को भगाता था. धुर्रे शाह दौड़ कर पीछे से घोड़े की बाग पकड़ लेता था, इसलिए लोग उसे घोड़े शाह भी कहते थे.
धुर्रे शाह की हत्या से लोगों ने राहत की सांस ली थी. लेकिन हमारी कोशिश उस के हत्यारों तक पहुंचने की थी. मेरा विचार था कि उसे अपराधी किस्म के लोगों ने ही मारा होगा, इसलिए मैं ने तफ्तीश ऐसे ही लोगों से शुरू की. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उस की मौत अधिक खून बह जाने से हुई थी.
यह भी पता चला था कि उस ने देशी शराब पी रखी थी. मौत का समय आधी रात के लगभग बताया गया था. उस का कोई वारिस नहीं आया, इसलिए उस की लाश को लावारिस मान कर अंतिम संस्कार कर दिया गया था.
मैं ने अपने मुखबिरों से पता कराया कि हत्या से पहले उस का किसी से झगड़ा तो नहीं हुआ था. मेरा एक मुखबिर था, जो छोटामोटा अपराधी भी था, लेकिन वह जबान का पक्का था. वह अंदर तक की खबरें निकाल कर ले आता था. उस ने मुझे जो बातें बताई थीं, उस से मुझे लगा कि हत्यारा जल्द ही गिरफ्तार हो जाएगा.
उस ने बताया था कि धुर्रे शाह में बहुत सी बुराइयां भी थीं. वह देशी शराब बहुत पीता था और वेश्याओं के पास भी जाता था. उस समय एक कोठे पर नईनवेली वैश्या दिलरुबा आई थी, जो उसे बहुत पसंद थी. वह उस पर दिल खोल कर पैसे लुटाता था. वह जब भी उस के कोठे पर जाता था, किसी की हिम्मत उस के सामने ठहरने की नहीं होती थी.
अगर वहां पहले से महफिल जमी होती थी तो धुर्रे शाह के पहुंचते ही सब से माफी मांग कर महफिल खत्म कर दी जाती थी. हत्या से 10-12 दिन पहले धुर्रे शाह अपने कुछ साथियों के साथ दिलरुबा के कोठे पर गया था. उस समय एक और अपराधी रंगू वहां पहले से बैठा था.
मैं रंगू को जानता था. वह धुर्रे शाह की टक्कर का बदमाश था. लेकिन ताकत और दिलेरी में धुर्रे शाह से कम था. रंगू और धुर्रे शाह की आपस में कोल्ड वार चल रही थी. लेकिन दोनों में से कोई भी खुल कर सामने नहीं आता था, जबकि रंगू उस से दबने वाला आदमी नहीं था.
धुर्रे शाह के आने पर दिलरुबा ने महफिल खत्म होने की बात कही तो रंगू ने कहा कि वह नाचगाना जारी रखे और किसी की परवाह न करे. इस पर दिलरुबा ने बड़े अदब से कहा, ‘‘माफ कीजिए सरकार, आप फिर कभी तशरीफ लाइए, शाहजी के आने पर महफिल खत्म कर दी जाती है.’’
‘‘यह वैश्या का कोठा है, किसी शाह का डेरा नहीं.’’ रंगू ने गुस्से से कहा, ‘‘यहां कोई भी आ सकता है. हम यहां पहले से बैठे हैं, इसलिए हमारा पहला हक बनता है. आप शाहजी को फिर कभी बुला लेना.’’
रंगू की इन बातों पर धुर्रे शाह को गुस्सा आ गया. उस ने फुरती से लंबा सा चाकू निकाल कर रंगू की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘चुपचाप यहां से निकल जा, नहीं तो गरदन काट कर रख दूंगा.’’
रंगू भी डरने वाला नहीं था. लेकिन मौत को गरदन पर देख कर वह उठा और चुपचाप चला गया. साथियों के सामने रंगू की बेइज्जती हो गई थी, इसलिए उस ने उसी समय कसम खाई थी कि वह इस अपमान का बदला ले कर रहेगा.
मुखबिर के जाने के बाद मैं ने एएसआई गफ्फार को बुला कर पूरी बात बताई. उस का भी मानना था कि धुर्रे शाह की हत्या रंगू ही ने की है. मैं ने एएसआई से कह दिया कि वह 3-4 सिपाहियों को ले कर रंगू के यहां जाए और उसे थाने ले आए. करीब 2 घंटे बाद वे रंगू को थाने ले आए. आते ही उस ने झुक कर सलाम कर के कहा, ‘‘क्या हुक्म आगा साहब, सेवक को कैसे याद किया?’’
‘‘मुझे चक्कर देने की कोशिश मत करना रंगू.’’ मैं ने कहा, ‘‘जो कुछ भी पूछूं, सीधी तरह से बता देना, तभी फायदे में रहोगे.’’
‘‘आप पूछिए सरकार, गलत बोलूं तो बेशक मेरी खाल उतार कर भूसा भरवा देना.’’ रंगू ने कहा.
‘‘तुम्हें पता है कि धुर्रे शाह मारा गया है?’’ मैं ने पूछा.
‘‘जी सरकार, उड़तीउड़ती खबर मैं ने भी सुनी है कि उस की हत्या हो गई है.’’ रंगू ने कहा.
मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम्हारी भी तो उस से दुश्मनी थी?’’
मेरे इतना कहते ही वह एकदम घबरा गया और नजरें चुराते हुए बोला, ‘‘मेरी भला उस से क्या दुश्मनी हो सकती थी? उस से तो सब डरते थे, मैं भी उस से बचता था.’’
मुझे उस पर गुस्सा आ गया, क्योंकि वह घुमाफिरा कर बात कर रहा था. वह मुझे चक्कर देने की कोशिश कर रहा था. मैं ने डांट कर पूछा, ‘‘तुम्हारी उस के साथ दुश्मनी थी या नहीं?’’
‘‘नहीं सरकार, मेरी उस से कोई दुश्मनी नहीं थी.’’ रंगू ने हकला कर कहा.
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मैं ने मेज पर पड़ा डंडा उठा कर जोर से मेज पर पटक कर कहा, ‘‘खड़ा हो जा.’’
रंगू उछल कर एकदम से खड़ा हो गया.
‘‘दीवार से लग कर खडे़े हो जाओ. मैं ने तुम्हारी इज्जत की थी, कुरसी पर बिठाया था.’’ मैं ने उस के पास जा कर कहा, ‘‘मैं ने तुम से कहा था कि झूठ मत बोलना, लेकिन तुम बराबर झूठ बोल रहे हो. अब देखता हूं कैसे झूठ बोलते हो.’’
पीछे हटतेहटते वह दीवार से जा लगा. वह पक्का बदमाश था, फिर भी वह घबरा रहा था.
मैं ने डंडा उस की गरदन पर रख कर कहा, ‘‘दिलरुबा के कोठे पर क्या हुआ था?’’
रंगू का रंग पीला पड़ गया था, वह मुझे ऐसे देख रहा था, जैसे मैं कोई जादूगर हूं और अंदर की बात जानता हूं. मैं ने कहा, ‘‘वैसे तुम जबान के बहुत पक्के हो. तुम ने धुर्रे शाह से बदला लेने की कसम खाई थी. तुम ने उस की हत्या कर के अपनी कसम पूरी कर ली.’’
‘‘यह गलत है… बिलकुल गलत… मैं ने उस की हत्या नहीं की. आप को किसी ने गलत खबर दी है.’’ रंगू चीखचीख कर अपने बेकसूर होने की कसमें खाने लगा. मौत सामने हो तो बड़ेबड़े अपराधी भीगी बिल्ली बन जाते हैं.
‘‘सचसच बता दोगे तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं.’’ मैं ने उसे फुसलाने की कोशिश की, ‘‘वैसे उस से सभी परेशान थे. तुम ने उस की हत्या कर के अच्छा काम किया है. मैं केस इतना ढीला कर दूंगा कि जज तुम्हें शक का फायदा दे कर बरी कर देगा.’’
रंगू ने रोते हुए हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘बेशक मेरी दिलरुबा के कोठे पर धुर्रे से कहासुनी हुई थी, पर उस की हत्या मैं ने नहीं की है.’’
मैं ने उसे बहुत डराया, घुमाफिरा कर पूछा, लेकिन वह कच्चा खिलाड़ी नहीं था. वह आसानी से बकने वाला नहीं था. मैं ने एएसआई से उसे ले जा कर सच उगलवाने को कहा. अगले दिन मैं ने एएसआई से पूछा कि रंगू ने सच्चाई उगली तो उस ने कहा, ‘‘सर, वह तो पत्थर बन गया है. इतनी पिटाई पर भी कुछ नहीं बोल रहा है.’’
मैं ने उसे अपने पास लाने को कहा, वह आया तो मैं ने कहा, ‘‘रंगू, तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो, नहीं तो खाल उधेड़ दूंगा.’’
‘‘आप मालिक हैं सरकार, कुछ भी करें. किसी और का अपराध मैं अपने गले क्यों डाल लूं?’’ उस की आवाज बहुत कमजोर थी. मुझे लगा कि वह सच बोल रहा है. लेकिन मैं उसे इसलिए नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि जितनी भी बातें सामने आई थीं, उन में रंगू ही संदिग्ध लग रहा था. मैं ने उसे हवालात में भेज दिया और केस के बारे में सोचने लगा.
कुछ देर बाद मुझे ध्यान आया कि मैं ने दिलरुबा को तो छोड़ ही रखा है, मुझे उस से भी पूछताछ करनी चाहिए. मैं 2 कांस्टेबलों को ले कर उस के कोठे पर पहुंच गया. उस समय दिन के 12 बजे थे. ये लोग रात को जागती हैं और दिन में सोती हैं. जब मैं वहां पहुंचा तो वह नाश्ता कर रही थी.
मेरे पहुंचते ही कोठे वालों के हाथपैर फूल गए. उन्होंने मुझे ड्राइंगरूम में बिठाया. दिलरुबा की मां ने आ कर मुझे नमस्ते कर के कहा, ‘‘मेरे भाग जाग गए सरकार, कहां राजा भोज कहां गंगू तेली. हुक्म करें सरकार, क्या सेवा है?’’
उस से दिलरुबा को बुलाने को कहा तो वह बोली, ‘‘बेबी अभी सो कर उठी है. वह तैयार हो जाएगी तो आ जाएगी. वैसे हुजूर हम से क्या गुस्ताखी हो गई है, जो आप यहां पधारे हैं.’’
मैं ने गुस्से से कहा, ‘‘मेरी बात कान खोल कर सुन लो बाईजी, मैं यहां मुजरा सुनने नहीं आया हूं. मैं यहां सरकारी ड्यूटी पर आया हूं. मेरे पास समय नहीं है. तुम्हारी बेटी जैसी भी है, उसे यहां ले आओ नहीं तो मैं थाने बुलवा कर तफ्तीश करूंगा.’’
वह मेरा चेहरा देख कर डर गई और अंदर जा कर दिलरुबा को बुला लाई. उस की आंखों में अभी भी नींद दिखाई दे रही थी. वह बहुत ही सुंदर थी, उस के चेहरे पर भोलापन साफ दिखाई दे रहा था, जोकि इस तरह की औरतों में नहीं दिखाई देता. वह देहव्यापार में लिप्त नहीं थी, वह केवल नाचती और गाना गाती थी. इसीलिए उस के चेहरे पर भोलापन था और धुर्रे बदमाश उस पर आशिक हो गया था.
दिलरुबा ने खास लखनवी अंदाज में आदाब किया. मैं ने उस की मां से कहा, ‘‘तुम सब दूसरे कमरे में जाओ.’’
सभी चले गए तो मैं ने उस से पूछना शुरू किया. पहले मैं ने इधरउधर की बातें कीं तो उस ने कहा, ‘‘मैं जानती हूं, आप क्यों आए हैं.’’
‘‘क्या जानती हो?’’ मैं ने पूछा.
‘‘आप शाहजी के बारे में पूछने आए हैं. आप उन की हत्या की तफ्तीश कर रहे हैं.’’ उस ने कहा.
धुर्रे शाह ऐसा नामी बदमाश था कि उस की हत्या की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. दिलरुबा के चेहरे की उदासी बता रही थी कि उसे उस से प्रेम था. मैं ने उस की इसी कमजोरी का फायदा उठाने का फैसला किया. मैं ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि वह यहां रोज आता था.’’
‘‘हां, वह बहुत अच्छा आदमी था,’’ उस ने आह भर कर कहा, ‘‘मेरे कहने से उस ने बदमाशी छोड़ ने का फैसला कर लिया था. अगर उस की हत्या नहीं हुई होती तो मैं ने उस से शादी करने की ठान ली थी.’’
इतना कहतेकहते उसे हिचकी सी आई और वह अपना दुपट्टा मुंह पर रख कर रोने लगी.
‘‘मैं तुम्हारे शाहजी के हत्यारे को पकड़ना चाहता हूं, जिस के लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है. वह तुम से अपने दिल की हर बात कहता रहा होगा. जरा सोच कर बताओ कि क्या कभी उस ने कहा था कि उस की किसी से दुश्मनी थी या झगड़ा हुआ था?’’
‘‘रंगू के साथ यहीं झगड़ा हुआ था.’’ उस ने कहा. उस के बाद उस ने मुझे वह पूरी बात बताई, जो मुझे मुखबिर ने बताई थी.
मैं ने कहा, ‘‘और सोचो, शायद कोई बात मेरे मतलब की निकल ही आए.’’
‘‘वह मुझ से सारी बातें शेयर करता था. एक दिन उस ने बातोंबातों में कहा था कि एक बारात जा रही थी तो उस ने दुलहन को रोक लिया था. वह उसे ले जाने लगा था. उस के रोनेपीटने से उस ने उसे छोड़ दिया था.’’
यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह ऐसा मामला था, जिसे कोई भी इज्जतदार आदमी सहन नहीं कर सकता था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘यह कितने दिनों पुरानी बात है?’’
‘‘लगभग एक हफ्ता पहले की बात है.’’
‘‘उस ने यह तो बताया होगा कि दूल्हा कौन था, बारात कहां से आई थी, दुलहन कौन थी?’’ मैं ने पूछा.
‘‘बारात रहीमपुर वापस जा रही थी.’’
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बाकी दुलहन वगैरह के बारे में उस ने मुझे कुछ नहीं बताया. मेरे लिए इतना ही काफी था. मुझे दूल्हे के गांव का पता चल गया था. मैं ने दिलरुबा से कुरेदकुरेद कर बहुत सारी बातें पूछीं, लेकिन और कोई काम की बात पता नहीं लग सकी. मैं ने कहा कि उस के शाहजी के हत्यारे बहुत जल्द पकड़े जाएंगे.
मैं ने एक महिला मुखबिर को बुलाया, जिस का नाम जकिया था. वह बहुत चालाक औरत थी. घर के पूरे भेद निकाल लाती थी. मैं ने उसे पूरी बात समझा कर रहीमपुर गांव भेज दिया. उस ने मुझे जो नई बात बताई, उस में मुझे दम नजर आया.
उस ने बताया था कि रहीमपुर गांव के खिजर की शादी भलवाल गांव की सलमा से हुई थी. रहीमपुर से गांव भलवाल अधिक दूर नहीं था, गरमियों के दिन थे, इसलिए लड़की वालों ने लड़की को शाम को विदा किया था. दुलहन के साथ लगभग 15-16 आदमी थे. उन दिनों दुलहनें डोली में जाया करती थीं.
4 कहार उस डोली को उठाते थे. सलमा भी डोली में विदा हुई थी. डोली के आगे खिजर घोड़ी पर सवार हो कर चल रहा था. जब सभी रहीमपुर के निकट पहुंचे तो दूल्हा यह कह कर घोड़ी दौड़ा कर रहीमपुर चला गया कि वह दुलहन के स्वागत के लिए सब को इकट्ठा करने जा रहा है.
दुलहन की डोली जब धुर्रे शाह के इलाके में पहुंची तो उस ने डोली रोक ली. उस समय उस के हाथ में लाठी थी. बारात के लोग उसे देख कर डर गए. बाराती यह सोच रहे थे कि यह सब की जेबें खाली करा लेगा, लेकिन उस ने दुलहन को ले जाने का इरादा किया. उन्होंने धुर्रे शाह को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना. उस ने दुलहन को डोली से बाहर निकाल लिया.
दुलहन सलमा बहुत समझदार और हिम्मत वाली लड़की थी. उस ने धुर्रे शाह से कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम सैयद हो और मैं भी सैयद हूं. तुम्हें एक सैयदजादी की इज्जत का ख्याल रखना चाहिए और दोनों परिवारों का मानसम्मान करना चाहिए. इस के बाद भी अगर तुम ताकत के नशे में चूर हो तो मेरी एक शर्त है.’’
‘‘क्या शर्त है बताओ? अगर मानने लायक हुई तो जरूर मान लूंगा.’’ धुर्रे शाह ने कहा.
‘‘ऐसा है, मुझे हाथ भी न लगाना और इस समय मुझे घर जाने दो. घर जा कर मैं अपने पति को यह घटना सुनाऊंगी. अगर उस के अंदर जरा भी हिम्मत और ताकत हुई तो वह आ कर तुम से निपट लेगा और अगर उस में हिम्मत नहीं हुई तो मैं उसे छोड़ कर तुम्हारे पास आ जाऊंगी. फिर तुम मुझ से निकाह कर लेना.’’ सलमा ने कहा.
धुर्रे शाह ने उस का यह चैलेंज स्वीकार कर लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं 2 सप्ताह का समय देता हूं. अगर इस बीच तेरे पति ने आ कर मेरी हत्या नहीं की तो मैं तेरे घर आ कर उस की हत्या कर के तुझे उठा लाऊंगा और बिना निकाह के घर में पत्नी बना कर रखूंगा.’’
इस के बाद सलमा की डोली घर आ गई. सलमा ने पति खिजर से पूरी बात बता दी. उस के पति ने कहा, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. मैं धुर्रे शाह से निपट लूंगा और तुम्हारी इज्जत की पूरी रक्षा करूंगा.’’
उस के बाद खिजर ने मौके पर मौजूद गवाह रिश्तेदारों से यह बात कह दी, साथ ही यह भी कहा कि यह बात किसी को भी न बताएं. लेकिन सलमा पेट की हल्की थी, उस ने अपनी सहेली से सब बता दिया. उसी सहेली के द्वारा यह बात पुलिस की मुखबिर जकिया तक पहुंच गई थी.
जकिया ने मेरा काम आसान कर दिया. मुझे पूरा यकीन था कि धुर्रे शाह की हत्या खिजर ने ही की थी. मैं ने पुलिस टीम खिजर को गिरफ्तार करने के लिए भेज दी. पर वह घर पर नहीं मिला. घर वालों से पूछा गया तो उन्होंने भी अनभिज्ञता जाहिर की. तब मैं ने एक मुखबिर की ड्यूटी उस के घर पर लगा दी. 3 दिनों बाद मुझे उस मुखबिर ने सूचना दी तो मैं रात 11 बजे एएसआई और 4 सिपाहियों को ले कर खिजर के घर पहुंच गया.
मैं ने खिजर के घर दस्तक दी तो कुछ देर बाद एक बूढ़े आदमी ने दरवाजा खोला. पुलिस को देख कर वह घबरा गया. वह उस का बाप था. मैं ने उस से खिजर के बारे में पूछा तो उस ने मेरी ओर बेबसी से देखा और अंदर गया और एक जवान आदमी को ले कर बाहर आया. मुखबिर ने कहा कि यही खिजर है.
खिजर ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया. मैं ने उस से धुर्रे की हत्या के बारे में पूछा तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने उस की हत्या की थी. इस के बाद अपने घर से वह कुल्हाड़ी भी ले आया, जिस से उस ने धुर्रे की हत्या की थी.
थाने में खिजर से विस्तार से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘जब सलमा ने मुझे पूरी बात बताई तो मेरा खून खौल उठा. मैं ने उसी समय धुर्रे शाह की हत्या करने का इरादा बना लिया. लेकिन धुर्रे शाह इतना बड़ा बदमाश था कि उस की आसानी से हत्या नहीं की जा सकती थी. इसलिए मैं मौके की तलाश में था. मुझे पता था कि अगर मैं ने धुर्रे शाह की हत्या नहीं की तो वह मेरी हत्या कर के सलमा को उठा ले जाएगा. मैं ने बहुत ही अच्छी कुल्हाड़ी बनवा रखी थी और उसे हमेशा अपने साथ रखता था.’’
घटना वाले दिन रात 8-9 बजे वह अपने घर जा रहा था. अंधेरे में अचानक उसे गंदे नाले के पास धुर्रे शाह दिखाई दिया. वह गाना गा रहा था और नशे के कारण डगमगा कर चल रहा था. उस ने इस मौके को उचित समझा और उस के पास जा कर कुल्हाड़ी का एक जोरदार वार उस की गरदन पर कर दिया.
धुर्रे शाह के मुंह से हाय की आवाज निकली और वह गिर पड़ा. खिजर ने 2 वार और किए, ढलान होने के कारण वह नाले में गिर गया. उस ने इधरउधर देखा कोई दिखाई नहीं दिया. घर आया और कुल्हाड़ी धो कर घर में दीवार पर टांग दी. उस ने अपनी पत्नी और पिता को सब कुछ बता दिया.
जो मारा गया था, वह समाज के लिए एक तकलीफ देने वाले फोड़े की तरह था. उस ने शरीफ लोगों का जीना हराम कर रखा था. मुझे खिजर पर दया आ रही थी, उस की अभीअभी शादी हुई थी. मैं नहीं चाहता था कि वह किसी मुसीबत में फंसे. मैं ने जो केस तैयार किया, उस में 2 कमियां छोड़ दीं, जो खिजर को मुकदमे में मदद कर सकती थीं.
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मुकदमा चला, खिजर का वकील कमजोर था, मेरी छोड़ी हुई 2 कमियों का वह लाभ नहीं उठा सका. उसे जज ने 7 साल की सजा सुनाई. मैं ने खिजर के बाप को समझाया कि वह सेशन में अपील करे और कोई दूसरा समझदार वकील करे. उस ने यही किया. सेशन कोर्ट में मुकदमा चला तो उस काबिल वकील ने मेरी छोड़ी हुई कमियों का पूरा फायदा उठाया, जिस के बाद कोर्ट ने उसे दोषमुक्त कर दिया.