पंजाब में पिछले लंबे अरसे से नशा भारी परेशानी का सबब बना हुआ है. इस बार सूबे में कांग्रेस की सरकार बनने के पीछे का मुख्य कारण भी यही था. क्योंकि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में पंजाब से नशे को समूल खत्म करने का वादा किया था.

17 मार्च, 2017 को पंजाब राजभवन में प्रदेश के 26वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते समय कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की इस घोषणा को एक बार फिर से दोहराया था कि आने वाले एक महीने में उन की सरकार पंजाब से नशे का नामोनिशान मिटा देगी.

इस के बाद जल्दी ही एडीजीपी हरप्रीत सिंह सिद्धू की अगुवाई में एक स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया गया, जिस में करीब 2 दर्जन आईपीएस और पीपीएस अधिकारियों के अलावा अन्य अफसरों को शामिल किया गया. इन का काम युद्धस्तर पर काररवाई कर के नशा कारोबारियों को काबू कर के पंजाब से ड्रग्स के धंधे को पूरी तरह मिटाना था.

एसटीएफ को मुखबिरों से इस तरह की जानकारी मिलती रहती थी कि पंजाब में ड्रग्स के धंधे के पीछे न केवल एक बड़ा माफिया काम कर रहा है, बल्कि कई बड़े कारोबारी और पुलिसकर्मी भी इस काम में लगे हैं. बीते 3 सालों में पंजाब पुलिस के ही 61 कर्मचारी नशे का धंधा करने के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इन में इंटेलीजेंस के कर्मचारियों के अलावा होमगार्ड के जवान, सिपाही, हवलदार और डीएसपी जैसे अधिकारी तक शामिल थे.

लेकिन मुख्यमंत्री के आदेश पर बनी हाईप्रोफाइल एसटीएफ के हत्थे अभी तक कोई भी नशा कारोबारी नहीं चढ़ा. थाना पुलिस द्वारा नशे के छोटेमोटे धंधेबाजों को नशे की थोड़ीबहुत खेप के साथ अलगअलग जगहों से धरपकड़ जरूर चल रही थी. पर एसटीएफ का कोई कारनामा अभी सामने नहीं आया.

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शायद ये लोग छोटी मछलियों के बजाय किसी बड़े मगरमच्छ पर जाल फेंकने की फिराक में थे. जो भी हो, आम लोग इस बुरी लत से परेशान थे. पुलिस पर से भी लोगों का विश्वास उठता जा रहा था. बड़ेबड़े कथित ड्रग स्मगलर अदालत से बाइज्जत बरी हो रहे थे. इस समस्या का कोई सीधा समाधान नजर नहीं आ रहा था. जबकि नशे की चपेट में आ कर घर के घर बरबाद हो रहे थे.

बरसों पहले पंजाब में पनपे आतंकवाद पर जब काबू पाना मुश्किल हो गया था तो लोगों ने अपने दम पर आतंकियों से लोहा ले कर उन्हें धराशाई करना शुरू कर दिया था. इस का बहुत ही अच्छा परिणाम भी सामने आया था. जागरूक एवं दिलेर किस्म के लोगों द्वारा उठाए गए इस कदम ने आतंकवाद के ताबूत में आखिरी कील का काम किया था.

अब नशे के मुद्दे पर भी तमाम लोगों की सोच इसी तरह की बनने लगी थी. यहां हम जिस युवक का जिक्र कर रहे हैं, उस का नाम विनोद कुमार उर्फ सोनू अरोड़ा था. उस पर नशे का कारोबार करने का आरोप था.

बताया जाता है कि बठिंडा के कस्बा तलवंडी साबो और आसपास के इलाकों में नशा सप्लाई कर के उस ने तमाम युवकों को नशे की लत लगा दी थी. इन इलाकों के लोग उस से बहुत परेशान थे और उसे समझासमझा कर थक चुके थे. उस पर किसी के कहने का कोई असर नहीं हो रहा था. धमकाने पर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.

पास ही के गांव भागीवांदर के लोग तो उस से बेहद खफा थे. वहां के कई आदमी उस के खिलाफ शिकायतें ले कर पुलिस के पास गए थे. पुलिस उस के खिलाफ केस दर्ज कर भी लेती थी, लेकिन वह अदालत से जमानत पर छूट जाता था. नशा तस्करी के 5 केस उस पर दर्ज थे.

विनोद कई बार जेल जा चुका था, लेकिन जमानत पर छूटते ही फिर से इस गलीज धंधे में लग जाता था. 22 मई, 2017 को पुलिस ने उस के पिता विजय कुमार पर भी स्मैक का केस दर्ज किया था, जिस के बाद से वह मौडर्न जेल, गोबिंदपुरा में बंद था.

8 जून, 2017 की बात है. सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. विनोद अपनी मोटरसाइकिल पर तलवंडी साबो से अपने गांव लेलेवाल जा रहा था. इस गांव में जाने के लिए मुख्य सड़क से लिंक रोड मुड़ती है. विनोद उसी लिंक रोड पर पहुंचा था कि स्कौर्पियो गाड़ी व टै्रक्टर ट्रौली पर सवार दर्जनों लोगों ने पास आ कर उसे चारों तरफ से घेर लिया. उन के पास पिस्तौलें, लोहे की मोटीमोटी छड़ें, हैंडपंप के हत्थे और गंडासे वगैरह थे.

अनहोनी को भांप कर विनोद फिल्मी अंदाज से बचताबचाता लेलेवाल की ओर भागा. पीछा कर रहे लोग उधर भी उस का पीछा करते रहे. उस समय उस की मोटरसाइकिल की रफ्तार बहुत तेज थी, जिस की वजह से वह अपने घर पहुंच गया. लेकिन मोटरसाइकिल से उतर कर विनोद घर के भीतर घुस पाता, उस के पहले ही लोगों ने उसे पकड़ कर पीटना शुरू कर दिया. इस के बाद उसे स्कौर्पियो में डाल कर गांव भागीवांदर ले गए.

वहां खुले रास्ते पर लिटा कर पहले तो उन्होंने उस की जम कर बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी. उस के बाद गंडासे से उस का एक हाथ और दोनों पैर काट दिए. यह सब करते समय कई लोगों ने इस घटना की वीडियो बना कर इस चेतावनी के साथ सोशल मीडिया पर डाल दिया कि आगे से जो भी नशे के धंधे में लिप्त पाया जाएगा, उस का ऐसा ही हश्र होगा. क्योंकि पंजाब से नशा मिटाने का अब और कोई रास्ता नहीं बचा है.

इस बीच जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद उन लोगों से दया की भीख मांगता रहा, लेकिन किसी को उस पर दया नहीं आई. लोग उस पर फब्तियां कस रहे थे कि अब वह अपने उन आकाओं को क्यों नहीं बुलाता, जिन के साथ मिल कर ड्रग्स का धंधा कर के उन की नौजवान पीढ़ी को नशे के अग्निकुंड में झोंक रहा था.

विनोद पर तरस खाना तो दूर की बात, पूरा गांव यही चाह रहा था कि वह तिलतिल कर के मौत के आगोश में समाए और उस के इस लोमहर्षक अंत का नजारा वे लोग भी देखें, जो नशे के हक में हैं. जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद शायद कुछ देर बाद वहीं दम तोड़ भी देता, लेकिन किसी तरह बात पुलिस तक पहुंच गई.

पुलिस की एक टीम ने मौके पर पहुंच कर बिना देर किए एंबुलेंस बुला कर जल्दी से जल्दी विनोद को अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की. लेकिन लोगों के भारी विरोध के चलते पुलिस को इस काम में एक घंटे का समय लग गया. इस बीच विनोद के शरीर से लगातार खून बहता रहा. हालांकि उस हालत में भी वह पुलिस वालों को घटना के बारे में बताता रहा, जिसे एएसआई गुरमेज सिंह दर्ज करते रहे.

ठीक एक घंटे बाद एंबुलेंस विनोद को ले कर तलवंडी साबो के सरकारी अस्पताल के लिए रवाना हुई तो लोगों का समूह उस के पहुंचने से पहले ही वहां पहुंच कर अस्पताल के मुख्य गेट को घेर कर खड़ा हो गया. यहां भी एंबुलेंस का घेराव कर के विनोद को अस्पताल के भीतर नहीं जाने दिया गया. लोगों ने एंबुलेंस को लगातार 3 घंटे तक घेरे रखा.

काफी मशक्कत के बाद पुलिस किसी तरह विनोद को फरीदकोट के सरकारी मैडिकल कालेज एवं अस्पताल ले जाने में सफल हो पाई. लेकिन तब तक विनोद ने दम तोड़ दिया था. एएसआई गुरमेज सिंह के पास उस का बयान दर्ज था. उसी बयान को तहरीर के रूप में ले कर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल का मुकदमा दर्ज कर लिया.

अगली सुबह पुलिस मामले की जांच के लिए गांव भागीवांदर पहुंची तो वहां अजीब नजारा सामने आया. 4 हजार की आबादी वाले इस गांव के तमाम लोग इस अपराध की स्वीकृति के साथ आत्मसमर्पण को तैयार थे कि ड्रग सप्लायर विनोद का कत्ल उन सब ने मिल कर किया था.

उन लोगों में बुजुर्ग, जवान, पुरुषमहिलाओं के अलावा किशोर और छोटेछोटे बच्चे तक शामिल थे. सभी अपनी गिरफ्तारी देने को तो तैयार थे. उन का कहना था कि एक ड्रग सप्लायर को इस तरह मारने का उन्हें कोई अफसोस नहीं है. आगे भी इस इलाके में नशा बेचने वाले का यही हश्र होगा.

स्थिति को देखते हुए पुलिस के लिए गांव के किसी शख्स से पूछताछ करना तो दूर की बात, मामले की जांच तक करना मुश्किल हो गया. इस के बाद पुलिस ने गांव लेलेवाल पहुंच कर विनोद के परिवार वालों से संपर्क किया. वे सभी अपने घर में दुबके बैठे थे. हालांकि पुलिस वालों पर उन्होंने अपनी भड़ास खूब निकाली. उन लोगों को डर था कि कहीं उन पर भी जानलेवा हमला न हो जाए.

उन लोगों की आशंका जायज थी. लिहाजा उन के घर पर पुलिस का सशस्त्र दस्ता तैनात कर दिया गया. उसी दिन फरीदकोट मैडिकल कालेज में डाक्टरों के एक पैनल ने विनोद की लाश का पोस्टमार्टम कर के उसे पुलिस वालों को सौंप दिया.

पुलिस ने लाश लेने का संदेश विनोद के घर वालों तक पहुंचा दिया, लेकिन उन लोगों ने यह कह कर शव लेने से इनकार कर दिया कि पुलिस उन्हें न्याय दिलाने की जरा भी कोशिश नहीं कर रही है.

एएसआई गुरमेज सिंह को दिए अपने बयान में विनोद ने उस पर हमला करने वालों के नाम स्पष्ट बताए थे. वे अच्छीखासी संख्या में इकट्ठा हो कर आए थे. उन के पास मारक हथियार भी थे. जबकि पुलिस ने केवल धारा 302 (हत्या) का मुकदमा अज्ञात हमलावरों के खिलाफ दर्ज किया था और अब इस लोमहर्षक हत्याकांड के असली मुजरिमों को बचाने की पूरी कोशिश कर रही है.

पुलिस ने इस बारे में समझाने की कोशिश की तो वे भड़क उठे थे. बाद में उन का कहना था कि समुद्र में रह कर मगरमच्छों से बैर न रखने वाले मुहावरे का हवाला दे कर पुलिस ने उन्हें कथित आरोपियों से समझौता कर लेने की सलाह दी थी. विनोद की 3 बहनों बबली, वीरपाल और अमनदीप कौर ने पहले तो रोरो कर आसमान सिर पर उठाया, उस के बाद पंखों से लटक कर आत्महत्या करने की कोशिश भी की.

पुलिस ने तत्काल एक्शन लेते हुए उन की यह कोशिश नाकाम कर दी. पर यह मामला घर वालों की ओर से कुछ ज्यादा ही गंभीर होने लगा था. अब तक तमाम लोग उन की हिमायत में भी आ गए थे और पुलिस के खिलाफ आवाज बुलंद करने लगे थे.

उन का कहना था कि किसी को इस तरह सरेआम मार दिया गया तो पुलिस को हत्यारों के दबाव में न आ कर अपनी काररवाई करनी चाहिए. कायदे से मुकदमा दर्ज कर के वांछित अभियुक्तों को नामजद कर उन्हें गिरफ्तार करना चाहिए. इस तरह तो दबंग लोग कानून को धता दिखा कर कुछ भी मनमानी करने लगेंगे.

मामला बढ़ता देख आखिर बठिंडा के एसपी (हैडक्वार्टर) भूपेंद्र सिंह और ड्यूटी मजिस्ट्रैट के रूप में रामपुराफुल के एसडीएम-1 सुभाष चंदर खटके विनोद के घर वालों से मिले. बातचीत करने के साथसाथ इन अधिकारियों ने उन के बयान भी दर्ज किए, साथ ही भरोसा भी दिया कि इस मामले में दूसरी एफआईआर दर्ज कर घटना के जिम्मेदार लोगों को नामजद करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर के उन पर बाकायदा मुकदमा चलाया जाएगा.

इस भरोसे के बाद शांत हो कर उन लोगों ने विनोद का शव ले तो लिया, लेकिन एक शर्त भी रख दी. शर्त यह थी कि नई एफआईआर दर्ज करने के बाद जब तक पुलिस उन्हें उस की अधिकृत प्रति नहीं दे देगी, तब तक वे विनोद का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे.

यह शर्त भी मान ली गई. उसी दिन विनोद के भाई कुलदीप अरोड़ा के बयान के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धाराओं 364/341/186/120बी/148 एवं 149 के तहत नई एफआईआर दर्ज कर के उस में 13 लोगों को नामजद किया.

वे 13 लोग थे, गांव की सरपंच चरणजीत कौर, अमरिंदर सिंह राजू, भिंदर सिंह, पूर्ण सिंह, बड़ा सिंह, दर्शन सिंह, मनदीप कौर, गुरप्रीत सिंह, जगदेव सिंह, निम्मा सिंह, हरपाल सिंह, सीरा सिंह और गुरसेवक सिंह. ये सभी लोग गांव भागीवांदर के रहने वाले थे. इन के अलावा पुलिस ने दर्जन भर अज्ञात लोगों के इस कांड में शामिल होने का जिक्र किया था.

मामला दर्ज होने के बाद एफआईआर की प्रति शिकायतकर्ता कुलदीप अरोड़ा को दे दी गई. इस के बाद 10 जून की शाम तलवंडी साबो की लेलेवाल रोड पर स्थित श्मशान घाट में भारी पुलिस सुरक्षा के बीच विनोद का अंतिम संस्कार कर दिया गया. बेटे के अंतिम दर्शन के लिए विनोद के पिता विजय अरोड़ा को भी पुलिस सुरक्षा में गोबिंदपुरा मौडर्न जेल से वहां लाया गया था.

इलाके में पुलिस की गश्त लगातार जारी थी. दरअसल, इस घटनाक्रम का वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से यह मामला पूरी दुनिया में फैल गया था. कोई इस कदम को सराह रहा था तो कोई इसे पंजाब में कानूनव्यवस्था की नाकामी बता रहा था.

केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस हत्याकांड के लिए पंजाब की मौजूदा कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया. मीडिया में अपना बयान जारी करते हुए उन्होंने खुलासा किया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री बनने पर शपथ लेते समय पंजाब से एक महीने के भीतर नशे को पूरी तरह खत्म करने का वादा किया था, लेकिन ऐसा कर पाने में वह पूरी तरह नाकाम रहे हैं.

यही वजह थी कि भागीवांदर में नशा बेचने वाले 25 साल के युवक का लोगों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया. पुलिस ने गांव वालों की शिकायत पर ड्रग तस्करों के खिलाफ समय रहते सख्त एवं व्यापक काररवाई की होती तो नशे से बरबाद हो रहे युवकों के घर वालों को इस तरह कानून अपने हाथों में लेने की नौबत न आती. राजनेताओं को उतने ही वादे करने चाहिए, जो व्यावहारिक रूप से निभाए जा सकें.

यहां यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि इस घटना के बाद पंजाब की एसटीएफ की टीम ने तेजी से नशा तस्करों को पकड़ने में अपनी अहम भूमिका निभानी शुरू कर दी है. इन में पुरुष, महिलाएं सभी तरह के लोग हैं. इन से करोड़ों का नशीला पदार्थ भी बरामद किया गया है.

यों तो यह एक लंबी सूची बनती जा रही है, लेकिन इस समय सब से चर्चित मामला पुलिस इंसपेक्टर इंदरजीत सिंह का है. उन पर आरोप है कि नशा तस्करों को पकड़तेपकड़ते वह खुद ही ड्रग्स डौन बन गए.

खाकी वर्दी पहन कर और सीने पर गैलेंट्री अवार्ड का तमगा लगा कर वह समानांतर ड्रग्स किंग बन गए. लंबे पुलिस रिमांड पर ले कर एसटीएफ उन से सघन एवं व्यापक पूछताछ कर रही है. एसटीएफ प्रमुख का दावा है कि वर्दी वाले इस गुंडे से गहन पूछताछ के बाद पंजाब के ड्रग तस्करी में एक नया अविश्वसनीय, लेकिन बौलीवुड की फिल्मों सरीखा रोचक अध्याय जुड़ने वाला है.

आगे खतरा यह भी है कि स्ट्रीट जस्टिस के नाम पर लोग खाकी कौलर वाले इस कथित अपराधी को अदालत में ही घेर कर मार न दें. नशा तस्करों को घेर कर लोगों द्वारा मार डालने के कुछ अन्य अपुष्ट समाचार भी प्रकाश में आए हैं. इन में 18 जून, 2017 को पटियाला के कस्बा समाना में शराब तस्कर सतनाम सिंह को पीटपीट कर मौत के घाट उतारने व उस के साथी को बुरी तरह घायल करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हो चुकी है.

थाना सदर समाना के थानाप्रभारी हरमनप्रीत सिंह चीमा के बताए अनुसार, 17 जून, 2017 की रात 10 बजे 2 व्यक्ति अपनी स्विफ्ट कार से देशी शराब की 30 पेटियां ले कर पंजाब की सीमा में दाखिल हुए थे. गांव रामनगर के पास पहले से खड़े कुछ लोगों ने उन्हें रुकने का इशारा किया. न रुकने पर उन लोगों ने अपनी स्कौर्पियो से पीछा कर कार को टक्कर मार कर खाईं में पलट दी.

शराब की तमाम पेटियां इधरउधर बिखर गईं. कार में सवार दोनों लोग घायल हो कर बाहर आ गिरे तो उन लोगों ने लोहे की छड़ों और लाठियों से उन की जम कर पिटाई कर दी और भाग गए. सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची. बुरी तरह घायल काका सिंह के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल एवं कत्ल के इरादे वगैरह की धाराओं पर एफआईआर दर्ज की गई. काका सिंह का साथी सतनाम सिंह इस मामले में मारा गया, जिस के घर वालों ने अस्पताल में हंगामा किया तो मामले में 5 लोगों हरदीप सिंह, सरबजीत सिंह, परगट सिंह, मंगतराम और अशोक सिंगला को नामजद किया गया.

बहरहाल, विनोद उर्फ सोनू अरोड़ा के मामले में जहां उस के घर वाले अभियुक्तों की गिरफ्तारी को ले कर धरना दिए बैठे हैं, वहीं भागीवांदर गांव के लोगों का कहना है कि गिरफ्तारी होगी तो पूरे गांव की होगी, वरना 13 लोगों को गिरफ्तार करने पुलिस भूल कर भी गांव में न आए.

सरपंच चरणजीत कौर के बताए अनुसार, गांव की 3 पीढि़यों को नशे की दलदल में धकेलने वाले विनोद उर्फ सोनू और उस के साथियों ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा था. गांव के नौजवानों को नशा सप्लाई करने के साथ उन्हें इस धंधे में शामिल कर उन का जीवन तबाह कर रहा था. पुलिस भी इस मामले में कुछ खास नहीं कर रही थी.

समय रहते अगर गांव वालों की शिकायत पर पुलिस ने ठीक से कारवाई की होती तो शायद ऐसा कदम उठाने की नौबत न आती. दोनों पक्षों की ओर से रोजरोज मिलने वाली चेतावनियों के बीच पुलिस वाले खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं. ऐसे में अभी तक नामजद अभियुक्तों में से किसी एक की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई है.

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