एफ ई नोरोन्हा पणजी के जानेमाने वकील हैं जिन का एक लेख अगस्त में एक पत्रिका रेनीवाकाओ  में छपा था. रेनीवाकाओ का प्रकाशन गोवा और दमन के आर्कबिशप करते हैं. अपने लेख में एफ ई नोरोन्हा ने बड़ी बेबाकी से 23 अगस्त को पणजी में होने वाले उपचुनाव के बाबत मतदाताओं से अपील की थी कि वे सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ वोट दें ताकि फासिस्टवादी ताकतों को देश में बढ़ने से रोका जा सके.

पणजी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को उम्मीदवार बनाया था. उन पर और भगवा खेमे पर निशाना साधते नोरोन्हा ने यह भी लिखा था कि साल 2012 में गोवा को सभी भ्रष्टाचार से मुक्त कराने की बात कर रहे थे, 2014 तक इस दिशा में कोशिशें भी हुईं लेकिन इस के बाद से हम भारत में हर दिन जिस तेजी से जिस चीज को बढ़ता हुआ देख रहे हैं, वह कुछ और नहीं, बल्कि संवैधानिक प्रलय है और हम इस के गवाह हैं.

बकौल नोरोन्हा, भ्रष्टाचार बेहद खराब चीज है, सांप्रदायिकता उस से भी खराब है लेकिन नाजीवाद इन से भी खराब है. भारत में अब सब से बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि आजादी, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता हैं.

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देश में संवैधानिक प्रलय की स्थिति है इस से सहमत हुआ जा सकता है, लेकिन मोदीराज की तुलना सीधे नाजीवाद से करना फिलहाल एक अतिशयोक्ति वाली बात लगती है. हिटलर के राज में 1939 में तकरीबन 60 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतार दिया गया था जिन में 15 लाख बच्चे भी थे.

मोदीराज में अब तक घोषित तौर पर 60 अल्पसंख्यक भी नहीं मारे गए हैं, लेकिन दिनोदिन बढ़ते धार्मिक उन्माद के चलते इस संख्या के साथ धार्मिक और जातिगत बैर में इजाफा ही हो रहा है, जो हर लिहाज से चिंता की बात है. इसे हालिया निवृतमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भी अपने अंदाज में उठाया था.

अंसारी का असर

हत्याओं के मामले में भले ही मोदीराज और नाजीवाद में कोई कनैक्शन न दिखता हो पर नोरोन्हा ने जो लिखा था उसे बीती 10 अगस्त को उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी अपने कार्यकाल के आखिरी दिन यह कहते दोहरा चुके थे कि देश के मुसलमानों में बेचैनी का एहसास और असुरक्षा की भावना है. अंसारी ने बेहद तल्ख लहजे में कहा कि भीड़ द्वारा लोगों को पीटपीट कर मार डालना और तर्कवादियों की हत्याएं होना भारतीय मूल्यों का कमजोर होना है. सामान्यतौर पर कानून लागू करा पाने में विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों की योग्यता का चरमरा जाना है.

यह कोई गोलमोल बात नहीं थी, बल्कि हामिद अंसारी सीधेसीधे देश के बिगड़ते माहौल का जिम्मेदार उन लोगों को ठहरा रहे थे जो वंदेमातरम के हिमायती हैं, भारत माता की जय बोलने के लिए मुसलमानों के साथ दूसरे अल्पसंख्यकों को भी मजबूर करते हैं और राष्ट्रगान को आरती का दरजा देने व दिलवाने पर तुले हैं.

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ऐसे लोगों की तादाद में बेहताशा इजाफा हुआ है. हर दिन कोई न कोई विवाद इन मुद्दों पर देश में कहीं न कहीं हो रहा होता है. लगता ऐसा है मानो राष्ट्रवाद जबरन थोपा जा रहा है. जाहिर है ऐसा कहने में कई स्तरों पर संविधान की अनदेखी करने में हिंदूवादी डरते नहीं. नाजीवाद की बात इस लिहाज में मौजू है कि देश धीरेधीरे ही सही, उस की तरफ बढ़ तो रहा है.

हामिद अंसारी चूंकि एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक पद पर 10 साल रहे थे, इसलिए उन के कहने पर बवंडर मचा. भाजपा खेमे से पहली प्रतिक्रिया उन की जगह उपराष्ट्रपति बनने जा रहे वेंकैया नायडू ने यह कहते दी थी कि कुछ लोग कह रहे हैं कि अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं, यह एक राजनीतिक प्रचार है, पूरी दुनिया के मुकाबले अल्पसंख्यक भारत में ज्यादा सुरक्षित हैं, यहां उन्हें उन का हक मिलता है.

हामिद अंसारी के बयान को राजनीतिक मानने की कई वजह हैं लेकिन वेंकैया नायडू का बयान वाकई पूरी तरह राजनीतिक था जिस में एक संदेश हिंदूवादियों के लिए यह छिपा हुआ था कि वे ऐसे किसी बयान की परवा न करते हुए अपने हिंदूवादी एजेंडे की दिशा में काम करते रहेंगे. मौब लिंचिंग के दर्जनों उदाहरण मिथ्या हैं, उन पर ध्यान न दें.

भाजपा के तेजतर्रार प्रवक्ता कट्टरवादी हिंदू नेता कैलाश विजयवर्गीय ने भी अंसारी के बयान को राजनीतिक करार देते यह जाहिर किया कि अगर उन के मन में किसी प्रकार की दहशत थी तो उन्हें अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले इस प्रकार का बयान देना चाहिए था.

शायद ही कैलाश विजयवर्गीय बता पाएं कि उपराष्ट्रपति रहते ही हामिद अंसारी यह बयान देते तो क्या उस के माने या मंशा बदल जाते. क्या भाजपा यह मान लेती कि क्या सचमुच देश का माहौल बदला है, मुसलमानों में असुरक्षा की भावना आ रही है और देश में डर का माहौल बन रहा है.

यानी, भाजपा को छोड़ हर किसी ने अंसारी की पीड़ा को जायज बताया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हामिद अंसारी का यह हमला बरदाश्त नहीं कर पाए. आमतौर पर असहिष्णुता और बढ़ते नवहिंदूवाद पर खामोश रहने वाले नरेंद्र मोदी ने अंसारी पर दार्शनिकों सा प्रहार करते हुए कहा कि पिछले 10 वर्षों में उन्होंने अपना दायित्व बखूबी निभाया है हो सकता है कि उन के भीतर कोई छटपटाहट रही होगी, आज के बाद उन के सामने वह संकट नहीं रहेगा. मुक्ति का आनंद मिलेगा. उन्हें अपनी मूल सोच के अनुसार कार्य करने के, सोचने के और बात कहने के मौके भी मिलेंगे.

किसे मिल रहे मौके

एक सधे हुए शतरंज के खिलाड़ी की तरह हामिद अंसारी अपनी बात कह कर चलते बने जिस पर नरेंद्र मोदी की तिलमिलाहट काबिलेगौर थी. उन्होंने अंसारी के बयान को फुजूल बताते संवैधानिक संयम से काम लिया, लेकिन बाजी तो अंसारी एक ही चाल में ही मार ले गए थे.

मुंहजबानी बातें राजनीति में आम हैं. इन पर अब कोई ज्यादा ध्यान भी नहीं देता, लेकिन अंसारी की बात में असर था जो उन्होंने नरेंद्र मोदी तक को प्रधानमंत्री पद की गरिमा की सीमाएं लांघने को मजबूर कर दिया. नरेंद्र मोदी वैसे भी मान्यताओं के बहुत कायल नहीं हैं और समय पर बात को घुमा देने में माहिर हैं.

अपने मुखिया की खीझ को समझते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो यह फरमान जारी कर दिया कि स्वतंत्रता दिवस पर राज्य के सभी मदरसों में राष्ट्रगान गाया जाना अनिवार्य होगा. इस बाबत सभी मदरसों को आजादी के जलसे की वीडियो रिकौर्डिंग भेजने का हुक्म देते यह धौंस भी दी गई कि राष्ट्रगान न गाने वाले मदरसों के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी.

आदित्यनाथ का यह फैसला जरूर कुछकुछ नाजीवाद सरीखा था, क्योंकि संविधान में कहीं नहीं लिखा कि राष्ट्रगान गाया जाना अनिवार्य है, और इसे न गाए जाने पर न गाने वाले के खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही की जा सकती है. पर अब तो मोदी और योगी संविधान से कहीं ऊपर हैं. वे जो कह देते हैं, वही संविधान मान लिया जाता है, माहौल कुछ ऐसा ही बना दिया गया है.

मुसलमानों की छवि बिगाड़ने के लिए अव्वल तो यही हुक्म काफी था, पर आदित्यनाथ की भड़ास यहां रुकी नहीं. जेलों में जन्माष्टमी मनाए जाने पर आपत्ति कर वे भड़क कर बोले कि जब सड़क पर नमाज पढ़ना बंद नहीं किया जा सकता तो जेलों में जन्माष्टमी मनाना और कांवड़ यात्रा कैसे बंद कर दूं.

3 सालों से हिंदूवाद की यह ड्रामेबाजी तरहतरह से पेश किए जाने के अपने अलग माने हैं जिस से सरकार की नाकामियां और चुनावी वादे ढके रहें और आम लोग धार्मिक नारों व विवादों में उलझते यह भूल जाएं कि सरकार का असल काम क्या होता है. ये काम हैं जनता की बुनियादी जरूरतें पूरी करना, भूख मिटाना, भ्रष्टाचार खत्म करना, जातिगत और धार्मिक भेदभाव मिटाना और आम लोगों की शिक्षा व सेहत के लिए सटीक व सस्ती योजनाएं बनाना.

मुद्दों से भटकाव

खुलेतौर पर भाजपाराज का यह साइड इफैक्ट है कि आम लोगों का ध्यान उन के भले से जुड़े मुद्दों से भटकाया जा रहा है. बढ़ती महंगाई पर अब कोई बात नहीं करता. 3 वर्षों में कई रोजमर्राई चीजों के दाम बेतहाशा बढ़े हैं जिन में रसोई गैस, पैट्रोल, डीजल, चीनी, दाल और प्लेटफौर्म टिकट जैसी कई चीजें शामिल हैं.

लोग इस बाबत सवाल न करने लगें, इसलिए नमाज, कब्रिस्तान, राष्ट्रगान, भारत माता, कश्मीर समस्या और वंदेमातरम जैसे भावनात्मक रूप से भड़काऊ मुद्दों को कोई न कोई भाजपा नेता या आरएसएस का पदाधिकारी हवा दे देता है.

देशभर में लगातार धार्मिक स्टंट और शोबाजी बढ़ रही है. भोपाल शहर के न्यू मार्केट इलाके में गणेश की सोने की प्रतिमा की झांकी लगाई जा रही है. चंदे से भंडारों का आयोजन हो रहा है. क्विंटलों वजनी लड्डुओं का प्रसाद चढ़ा कर लोगों का ध्यान बंटाया जा रहा है. साथ ही, कई किलोमीटर लंबी चुनरी यात्राएं निकाली जा रही हैं.

यह प्रचार आस्था नहीं है, बल्कि धर्म से जुड़े मुद्दों को अब राष्ट्रवाद के नाम पर हवा दी जा रही है जिस से गोरखपुर के सरकारी अस्पताल में हुई 60 नवजातों की औक्सीजन की कमी से हुई मौतों को लोग भगवान की नाराजगी समझ स्वीकार लें. सड़क पर नमाज और जन्माष्टमी व कांवड़ यात्रा पर आदित्यनाथ भड़कते हैं तो आम गरीब, भूखानंगा हिंदू उन की फेकी अफीम चाट कर सो जाता है कि देश उस का ही है और उसी के धर्म की रक्षा कर रहा है और इस के लिए अभावों में रहना पड़े तो बात हर्ज की नहीं.

कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के सर्वे वक्तवक्त पर स्पष्ट करते रहते हैं कि देश में गरीबी और बेरोजगारी बढ़ रही है, भ्रष्टाचार और घूसखोरी चरम पर है. पर ये बातें झांकियों और मंदिरों की जगमगाती लाइटों के बीच धुंधला कर दम तोड़ देती हैं. ‘आरती गाओ, भजनकीर्तन करो, भगवान की जय बोलो और भोले जैसे मस्त रहो, का पाठ पढ़ाया जा रहा है जिस का नतीजा यह निकल रहा है कि मुसलमान और दूसरे अल्पसंख्यक वाकई में खुद को दोयम दरजे का समझने लगे हैं.

धर्म को राष्ट्र का पर्याय बना देने पर उतारू हो आई भाजपा कहां ले जा कर देश को छोड़ेगी, इस का अंदाजा किसी को नहीं. इसलिए भी लोगों का भरोसा भगवान और धार्मिक पाखंडों में बढ़ रहा है यानी अल्पसंख्यक ही नहीं बल्कि दलित व पिछड़े भी खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं. फर्क इतना है कि उन का डर अलग किस्म का है जो सदियों से चला आ रहा है.

इस की एक मिसाल बीती 22 अगस्त को मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के एक स्कूल में देखने को मिली जब 6 साल की एक दलित बच्ची ने जल्दबाजी में स्कूल के बाहर ही शौच कर दिया. एक दबंग ने उस से हाथ से अपना मैला उठाने को मजबूर कर दिया था. ऐसे भेदभाव और प्रताड़ना भरे माहौल में कोई अपनी मरजी या खुशी से रहना चाहेगा, यह सोचना एक नादानी वाली बात है.

यह सब करने के लिए एक पूरी लौबी सक्रिय है जो एक नियमित अंतराल से दलितों को प्रताडि़त करती है और मुसलमानों को पीटपीट कर मारती है, क्योंकि वे दोनों कथित रूप से गाय का मांस खाते हैं या फिर उस की तस्करी करते हैं. छत्तीसगढ़ में कोई भाजपा नेता अपनी ही गौशाला में सैकड़ों गायों को भूखा मार कर उन्हें दफना डाले तो वह धर्म या गाय का गुनाहगार नहीं माना जाता क्योंकि वह मुसलमान नहीं है, वह तो हिंदू ही है.

इस भेदभाव से हामिद अंसारी की बात पर तिलमिलाहट का गहरा संबंध है. हामिद अंसारी जैसे लोग यह संदेश देने में कामयाब रहते हैं कि दरअसल, मुसलमानों की आड़ में हिंदुओं को बरगला कर भाजपा अपना हिंदू राष्ट्रवाद का एजेंडा थोप रही है. यह दरअसल, उस की प्रस्तावना है. इस निबंध के उपसंहार तक आतेआते तो नाजीवाद खुदबखुद आ जाएगा.

भूख, भय और भ्रष्टाचार के बाबत कोई सवाल न हो, इस के लिए नरेंद्र मोदी को भाजपा नेता भगवान कहते रहते हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भोपाल में उन की चमत्कारिक छवि गढ़ते नजर आए तो एक पूर्व भाजपा सांसद कैलाश सारंग ने बाकायदा एक किताब ‘नरेंद्र से नरेंद्र तक’ का विमोचन अमित शाह से करवा कर साबित करने की कोशिश की कि ये नरेंद्र मोदी दरअसल, विवेकानंद के अवतार हैं जो 2024 तक भारत को विश्वगुरु बनवा देंगे.

तब तक लोगों को, बस, भाजपा को चुनते रहना है और इस बाबत कि त्याग तो उन्हें करना ही पड़ेगा. गरीब, दलित, आदिवासी और मुसलमान बच्चे न पढ़ पाएं, यह चिंता की बात नहीं. अस्पतालों में प्रसूताएं दम तोड़ें, यह भी हर्ज की बात नहीं. बातबात पर सरकारी दफ्तरों में घूस का बढ़ता चलन भगवान की मरजी है. दलित आदिवासी अपने कर्मों व जाति के चलते बेइज्जत किए जा रहे हैं. ये और ऐसी तमाम बातों का जिक्र प्रसंगवश हो जाता है वरना समस्या कुछ खास नहीं है. लोग राष्ट्रगान गाएं या आरती गाएं, तिरंगा फहराए या भगवा, वंदेमातरम बोलें या बमबम भोले बोलें, यह हिंदूवादी तय कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें सच छिपाने की जिम्मेदारी दी गई है.

रही बात असुरक्षा की, तो वह कहीं है ही नहीं. चारों तरफ भगवान हैं उन के रहते असुरक्षा की बात करना उन के अस्तित्व पर संदेह करना है जो कम से कम सवर्ण हिंदू तो नहीं कर सकता. सारे फसादों की जड़ मुसलमानों को बता कर उन्हें सलीके से रहने की हिदायत और धौंस दे दी जाती है. इस से सवर्ण हिंदुओं का पेट भर जाता है, उन के घरों में दूध की नदियां बहने लगती हैं, घर में बिजली मुफ्त में जगमगाने लगती है, गाडि़यों में डीजल, पैट्रोल मुफ्त के भाव भरा जाता है, खेत लहलहा उठते हैं, गैस का सिलैंडर महीनों चलता है और गरीबी गधे के सिर से सींग जैसे गायब हो जाती है.

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2017 इसी तरह उत्तरायण हो रहा है और अभी और उम्मीद है कि धार्मिक नारों के शोर के बीच असल मुद्दे यों ही दबे रहेंगे. धार्मिक भेदभाव छोटीमोटी कंपनियों और रिहायशी कालोनियों तक में जा पहुंचा है. कुछ लोगों के लिए सुकून से जीने का बड़ा सहारा हालफिलहाल तो शायद है, लेकिन जब ये समस्याएं कैंसर की शक्ल में देश के शरीर पर मवाद बन कर फैलेंगी तब क्या होगा, यह कोई नहीं सोच पा रहा.

भाजपा ने किस विकास और अच्छे दिनों की बात की थी, यह सवाल अब कोई नहीं करता. बिहार विधानसभा में एक मुसलिम मंत्री खुर्शीद अहमद ने जेडीयूभाजपा गठबंधन के विश्वासमत हासिल करने के बाद जय श्रीराम का नारा लगाया था. इस पर फतवा जारी हो जाने पर उन्होंने माफी मांग ली थी, पर यह भी कहा था कि अगर जय श्रीराम बोलने से बिहार का विकास होता है तो मैं सुबह शाम जय श्रीराम बोलूंगा. ये मंत्रीजी चाहें तो विकास और तेज हो सकता है लेकिन इस के लिए उन्हें सुबहशाम नहीं, बल्कि पूरे चौबीसों घंटे रामराम रटना होगा.

अब सैपरेट लिविंग

क्या वाकई देश का मुसलमान उतना भयभीत और असुरक्षित हो चला है जितना कि हामिद अंसारी और कुछ बुद्धिजीवी हिंदू भी गागा कर या रोरो कर बताते रहते हैं. इस सच को नापने के लिए भले ही कोई तयशुदा पैमाना न हो, पर गौरक्षकों की हिंसा जैसे कई मसले किसी सुबूत के मुहताज नहीं.

आजादी के बाद देश गांवों में बसता था, जहां की बसाहट की अपनी अलग धार्मिक व जातिगत व्यवस्था थी और जो पूरी तरह अभी भी नहीं टूटी है. दलितों और मुसलमानों के महल्ले अलग हुआ करते थे. बात अगर नदी में नहाने या पानी भरने की भी हो, तो उन का नंबर सवर्णों के बाद आता था. शहरीकरण से बात कुछ संभलती दिखी. पर अब वह भी बिगड़ रही है और बिगाड़ने वाले धर्म के वही ठेकेदार व पैरोकार हैं जो 50-60 के दशक में हुआ करते थे. पर अब ये चूंकि सत्ता में हैं, इसलिए घोषित तौर पर फिर सनातनी व्यवस्था थोपने को आमादा हैं.

गुजरात के लिंबायत विधानसभा क्षेत्र की खूबसूरत नैननक्श वाली भाजपा विधायक संगीता पाटिल ने 22 अगस्त को एक बदसूरत बात यह कही कि उन के विधानसभा क्षेत्र में ‘डिस्टर्ब्ड एरिया ऐक्ट’ लागू किया जाए ताकि कोई भी मुसलमान, हिंदुओं के पड़ोस में घर न खरीद पाए. बकौल संगीता, मुसलमान लोग हिंदू सोसायटियों में जबरन घर खरीदते हैं और हिंदू अगर उन्हें घर न बेचें तो तरहतरह से उन्हें तंग करते हैं.

बात बहुत सीधी है कि यह विधायक हिंदू और मुसलमानों की अलगअलग बस्तियों की मांग कर रही है, जिस का मूल आधार धर्म ही है. हिंदू व मुसलमान अगर घुलमिल कर रहेंगे तो जरूर हिंदुत्व को खतरा है, इसलिए इन में वैमनस्य फैलाने की भाजपा हर मुमकिन कोशिश कर रही है. वह लोकतंत्र का गला बहुमत से घोंटना चाह रही है.

भोपाल का अशोका गार्डन इलाका भी मुसलिम बाहुल्य है जिस की एक नई पौश कालोनी में हिंदू और मुसलमानों के घर लगभग बराबर हैं.

2-3 वर्ष पहले तक हिंदुओं को खुद के हिंदू और मुसलमानों को अपने को मुसलमान होने का एहसास नहीं होता था, पर अब होने लगा है और यहां तक होने लगा है कि इन दोनों समुदायों के बच्चे पहले की तरह साथसाथ खेलते नजर नहीं आते.

यहां के रेलवे से रिटायर्ड एक मुसलिम बुजुर्ग की मानें तो अब अधिकतर मुसलमान अपने मकान बेच कर किसी मुसलिम बस्ती में जा कर बसने का मन बना रहे हैं. इस बुजुर्ग का दोटूक कहना है कि ऐसा नहीं है कि हम पर कोई बम फोड़ रहा हो या फिर जबरदस्ती झगड़ रहा हो, पर जाने क्यों, मन में एक डर सा समा गया है. हिंदुओं की नजरें और व्यवहार अब पहले जैसे नहीं रह गए हैं. बातबात में खासतौर से नरेंद्र मोदी और भाजपा को ले कर बहस छिड़ जाती है जिस पर हमें चुप रहने का एहसास करा दिया जाता है कि तुम तो मुसलमान हो उन का विरोध करोगे ही.

इस बुजुर्ग के मुताबिक, जिस महल्ले, पड़ोस, सोसायटी या शहर में हमारा सामाजिक बहिष्कार शुरू हो जाएगा वहां हमारा दम तो घुटेगा ही. क्या हमें बोलने की आजादी नहीं? क्या भाजपा दूध की धुली है या आसमान से उतरी कोई दैवीय पार्टी है जो हम उस के फैसलों व उसूलों पर एतराज नहीं जता सकते बावजूद इस के कि हम ने पिछले 2 चुनावों में भाजपा को ही वोट दिया था.

मौब लिंचिंग के बाद सैप्रेट लिविंग की यह नई व्यवस्था पनप रही है. संगीता पाटिल ने तो खुलेआम इस पर मुहर लगा कर यह जता दिया है कि अब आगेआगे देखिए, होता है क्या.

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