उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अयोध्या और नैमिशारण्य के बाद मथुरा में होली खेलने का प्लान तैयार किया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में दीवाली के अवसर पर भव्य दीवाली पूजन का आयोजन किया था. अपने धार्मिक एजेंडे के तहत अयोध्या के बाद सीतापुर जिले के नैमिशारण्य जाकर मुख्यमंत्री योगी ने दो दिन का कार्यक्रम भनैमिषेय शंखनाद्य कार्यक्रम का समापन किया.

सरकार ने नैमिशारण्य के परिक्रमा स्थल का विकास करने के लिये 100 करोड़ का बजट भी पास कर दिया. योगी ने कहा कि अयोध्या में सरयू आरती की तरह की नैमिशारण्य में भी गोमती आरती शुरू हो. सरकार इसमें हर संभव मदद करेगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि नदियों का प्रदूषण रोकने के लिये भीतर से इनके प्रति श्रद्वा का भाव आना चाहिये. नदियां न बचेंगी तो न हम बचेंगे और न हमारी संस्कृति. मुख्यमंत्री ने कहा कि बिना भेदभाव के सभी तीर्थस्थलों का विकास हमारा लक्ष्य है.

सवाल उठता है कि जिस देश में गंगा को सबसे पवित्र नदी का दर्जा हासिल हो वह नदी इतना प्रदूर्षित क्यों है? कई शहरों में गंगा आरती होती है. हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी इनमें सबसे प्रमुख हैं. इसके बाद भी गंगा इन शहरों में ही सबसे अधिक प्रदूषित है. राजधानी लखनऊ में गोमती नदी की आरती होती है. आरती जहां होती है, उससे कुछ ही दूरी पर गोमती नदी की गंदगी को देखा जा सकता है.

नदियों की आरती के जरिये कैसे नदियां प्रदूषण मुक्त हो सकेंगी, यह समझा जा सकता है. उत्तर प्रदेश की सरकार केवल धर्म के एजेंडे पर काम कर रही है. मंदिर, नदियां और धार्मिक त्योहार के बहाने सरकार किसी न किसी तरह से चर्चा में रहना चाहती है. दीवाली और कांवड यात्रा के बाद अब योगी सरकार धूमधाम से होली मनाने जा रही है.

मथुरा से सरकार के जुड़ने की दो खास वजहे हैं. सबसे पहली वजह अयोध्या और वाराणसी की ही तरह से मथुरा में मंदिर मस्जिद का विवाद है. यहां होली मनाकर सरकार जनमानस को यह संकेत देना चाहती है कि वह मथुरा को भी अपने एजेंडे में रखे हुये है. उत्तर प्रदेश में धार्मिक पर्यटन जिन शहरों में होता है उनमें मथुरा प्रमुख है. होली एक ऐसा त्योहार है जिससे जनमानस जुड़ा है. इससे सरकार को लोगों को खुद से जोड़ना सरल हो जायेगा.

अयोध्या में दीवाली मनाने और राम की भव्य मूर्ति लगवाने के एलान के बाद समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कृष्ण की मूर्ति लगवाने की बात कही थी. योगी सरकार धर्म को लेकर किसी और पार्टी के हाथ में कोई मुद्दा नहीं देना चाहती. गुजरात चुनावों में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी मंदिर गये तो उनको नकली हिन्दू साबित किया जाने लगा. समाजवादी पार्टी कृष्ण को लेकर कोई कदम उठाये उससे पहले भाजपा इस पर अपना हक साबित कर देना चाहती है.

उत्तर प्रदेश में सरकार जिस तरह से धर्मिक प्रपंच का सहारा ले रही है, उससे बुनियादी मुद्दे पूरी तरह से हाशिये पर हैं. अयोध्या में दीपावली पूजन, चित्रकूट में मंदाकिनी नदी की आरती, आगरा में ताज महल का विवाद, कांवर यात्रा पर फूल वर्षा, धार्मिक शहरों को प्रमुख पर्यटन क्षेत्र के रूप में प्रचार करना और मुख्यमंत्री के सरकारी आवास को गंगा जल से पवित्र कराना कुछ ऐसे प्रपंच हैं जिनका प्रचार ज्यादा हो रहा है. सरकार इन मुद्दों पर भी केवल बातें ही कर रही है. वहां विकास की कोई योजना को लेकर मूलभूत काम नहीं कर रही.

किसी भी शहर में सड़क, बिजली, पानी का इंतजाम करना ही वहां का विकास करना नहीं होता है. लोगों को रोजगार मिले, बेरोजगारी कम हो, लोग काम धंधे में लगें, इससे ही समाज में अमनचैन आता है. सड़कें कितनी ही अच्छी बन जाये, अगर रोजगार नहीं होगा तो लोग अपराध करेंगे. अयोध्या का सच दीवाली के दिन नहीं दिखा. आयोजन की भव्य चकाचौंध में वह सच कहीं खो गया था.

भाजपा संस्थापक रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय की अंतोदय की परिकल्पना में भी समाज का वही अंतिम आदमी था. वह उसको ही खुशहाल बनाने का काम कर रहे थे. आजादी के बाद से हर सरकार हर बात में गरीबों के उद्वार की ही बात करती है. 70 साल के बाद भी भारत का गरीब दीयों से तेल एकत्र करता दिखता है. गरीब इस लिये गरीब हैं क्योंकि उसके पास काम नहीं है. देश में भीख मांगने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हर जगह ऐसे लोग रोटी के एक एक टुकड़े के लिये संघर्ष करते देखे जा सकते हैं.

अगर धार्मिक प्रपंच को छोड़ कर सरकारों ने बुनियादी सुविधाओं ओर रोजगार की दिशा में काम किया होता तो गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती नहीं. सरकारी नीतियों से गरीबी रेखा के ऊपर और नीचे के लोग ही नहीं मध्यमवर्गीय परिवार भी गरीबी रेखा के करीब पहुंच गये हैं. बच्चे पढ़ रहे हैं, उनके पास कोई काम नहीं है. सरकारें दिखाने के लिये उनको ट्रेनिंग देने का काम करती है. इससे कितने युवाओं को रोजगार मिला यह देखने वाली बात है?

कौशल विकास को लेकर पूरे देश में बड़े जोरशोर से काम हो रहा है. कौशल विकास प्रशिक्षण पाये लोगों में से कितनों को रोजगार से जोड़ा जा सका इसका सच सामने रखना चाहिये. सरकारी आंकड़े पूरा सच नहीं दिखाते. ऐसे में सरकार को सामाजिक आंकड़ों को भी देखना चाहिये.

जिस अयोध्या के विकास के लिये पूरी सरकार एकजुट है, कम से कम वहां तो रामराज कायम दिखना चाहिये. राम को आदर्श मानने वाले नेता क्या कभी रात में अपनी पहचान बदल कर अयोध्या की गलियो का सच देखने गये है? मंत्री के लिये अफसर रेड कारपेट बिछा कर सबकुछ ठीक होने का दावा हमेशा करते हैं. नेता की जिम्मेदारी होती है कि रेड कारपेट को हटा कर नीचे छिपे सच को देखे.

संविधान ने इसी लिये उसे पढ़े लिखे अफसर से ऊपर का दर्जा दिया है. कागज में धर्म की नगरी को पर्यटन का दर्जा देने से वहां का भला नहीं होने वाली. अखिलेश सरकार के समय भी नैमिष और मिश्रिख को पर्यटन का दर्जा दिया गया था. सडके बनी, बसे चलीं, विज्ञापन छपे, इसके बाद भी यहां के हालात नहीं बदले. आज भी यहां के लोगों के पास कोई रोजगार नहीं है.

कांवर यात्रा के दौरान सरकार की तमाम सुविधाओं के बाद भी कांवर यात्रा करने वाले रास्ते भर परेशान और लोगों से मदद मांगते दिखे. सरकार ने कांवर मार्ग पर पुष्प वर्षा का वादा किया पर यह पुष्प कावंर यात्रा करने वालों के सफर को सुखद नहीं बना पाये. अगर पुष्प वर्षा से कांवर यात्रियों को सुविधा मिल जाती तो वह मदद क्यों मांगते दिखते?

धर्म के नाम पर जनता को बहुत समय तक मुद्दों से दूर नहीं रखा जा सकता है. जरूरत इस बात की है कि बेरोजगारों के लिये काम के अवसर बढ़ाये जाये. जब तक लोगों के लिये रोजगार नहीं होगा, भुखमरी बनी रहेगी. न मजदूर खुश होगा न किसान. वह ऐसे ही दीयों के बचे तेल से अपने घर की सब्जी बनाने के इंतजाम करता रहेगा. सरकार कितने भी किसानों के लोग माफ कर दे, कुछ ही दिनों में फिर से वहीं हालात बन जायेंगे.

धार्मिक प्रपंच में जुटे लोग इस तथ्य को समझ लें कि इसी देश में कहा गया है कि ‘भूखे भजन न होय गोपाला’ इसका अर्थ है कि अगर कोई भूखा है तो वह किसी भी तरह से धार्मिक प्रवचन न कर सकता है और न सुन सकता है. जिसे समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दीप जला कर अयोध्या में खुशियों की दीवाली मना रहे थे, भूखे पेट रहने वालों की नजर उन दीयों पर रही होंगी, वह सोच रहे होंगे कि दीयें कितनी जल्दी बुझ जायें जिससे दीयों का तेल बचा रह सके. उनकी असल खुशी दीयों के जलने से नहीं दियों के बुझने से थी. उनकी भूख जलने वाले दीयों से नहीं बुझे दीयों से बुझी जिनसे उनको सब्जी बनाने के लिये तेल मिल सका. अयोध्या की ऐसी दीवाली के सच को समझ कर समाज के अंतिम आदमी की खुशहाली से समाज में बदलाव होगा. भूखे पेट तो धर्म की चर्चा भी नहीं होती.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...