जैसे ही दोपहर के खाने की घंटी बजी, सारे बच्चे दौड़ते हुए खाने की तरफ भागे. दीपक सर, जो गणित के टीचर थे और हाल ही में इस स्कूल में आए थे, स्कूल के इन तौरतरीकों को देख कर हैरान थे.
आज बच्चों का खाना देख कर तो और भी हैरान हो गए. दाल बिलकुल पानी जैसी, भात और सब्जी के नाम पर उबले हुए चने. कैसे किसी के गले से उतरेंगे?
स्टाफ रूम में सारे टीचर अपनेअपने खाने का डब्बा खोल कर खाने बैठ गए थे. दीपक सर ने जैसे ही अपने खाने का डब्बा खोला, मिश्रा सर, जो हिंदी के टीचर थे, कहने लगे, ‘‘दीपक सर, क्या बात है... आज तो आप के खाने के डब्बे से बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है?’’
‘‘जी,’’ मुसकराते हुए दीपक सर ने कहा और अपने खाने का डब्बा उन के आगे बढ़ा दिया.
थोडी़ देर बाद दीपक ने वहां बैठे दूसरे टीचरों से पूछा, ‘‘चलिए, मैं तो चलता हूं, अगली क्लास लेने. आप सब को नहीं चलना है?’’
‘‘अरे भैया, क्यों इतने उतावले हो रहे हो? बैठो जरा. बच्चे कहां भागे जा रहे हैं,’’ संस्कृत के पांडे सर ने कहा.
विज्ञान की टीचर वंदना मैडम बोल पड़ीं, ‘‘बच्चे अगर 1-2 सब्जैक्ट नहीं भी पढ़ेंगे, तो कौन सा आईएएस बनना है उन्हें, जो नहीं बन पाएंगे?’’
‘‘वंदना मैडम, बच्चों को पढ़ाना हमारी ड्यूटी है और अगर हम ईमानदारी से बच्चों पढ़ाएंगे न, तो बच्चे एक दिन जरूर आईएएस बनेंगे. हम यहां इसलिए तो आए हैं. तनख्वाह भी तो हमें बच्चों को पढ़ाने की ही मिलती है,’’ दीपक सर ने कहा.
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