बलराम ने जल्दीजल्दी इंटरव्यू लैटर, नोट बुक, पैन आदि बैग में रख कर सोनिया को आवाज दी, ‘‘दीदी, जल्दी से मेरा नाश्ता लगा दीजिए, मुझे देर हो रही है.’’
‘‘आ कर नाश्ता कर लो, मैं ने तुम्हारा नाश्ता तैयार कर दिया है.’’ सोनिया ने रसोईघर से ही कहा.
बलराम ने जल्दीजल्दी नाश्ता किया और अपना बैग ले कर मां के पास पहुंचा. शकुंतला देवी चारपाई पर लेटी थीं. बेटे को देख कर उन्होंने कहा, ‘‘जाओ बेटा, सफल हो कर लौटो. लेकिन तुम ने यह तो बताया ही नहीं कि इंटरव्यू देने कहां जा रहे हो?’’
‘‘मां चंडीगढ़ जा रहा हूं, एक बहुत बड़ी कंपनी में. अगर यह नौकरी मिल गई तो जिंदगी सुधर जाएगी.’’
‘‘जैसी प्रभु की इच्छा.’’ शकुंतला देवी ने कहा.
मां के पैर छू कर बलराम घर से निकल गया. यह 5 जून, 2015 की बात है. इंटरव्यू देने के बाद वह शाम के 7, साढ़े 7 बजे घर लौटा तो सोनिया रात का खाना बना रही थी. बैग रख कर बलराम मां के कमरे में पहुंचा तो वहां मां नहीं थी. बाहर आ कर उस ने बहन से मां के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘शाम को कीर्तन करने की बात कह कर गई थीं, पर अभी तक लौटी नहीं हैं.’’
बलराम को पता था कि मां अकसर कीर्तन पर जाती थीं तो देर रात को लौटती थीं. पिताजी के घर छोड़ कर जाने के बाद मां ने खुद को भजनकीर्तन में लगा लिया था. मां की चिंता छोड़ कर उस ने हाथमुंह धोया तो बहन ने उस के लिए खाना परोस दिया.
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