चुनाव में जीत के लिये प्रबंधन और वाक पटुता का सबसे अहम रोल हो गया है. अब यह पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं के बस की बात नहीं रह गई है. इसके लिये प्रोफेशनल टीम बेहतर काम करती है. यह टीम पूरी तरह से अपने काम पर फोकस करती है. जिससे पार्टी हर जगह सबसे आगे दिखती है. प्रोफेशनल टीम के चुनाव प्रबंधन और नेताओं की वाकपटुता के मामले में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा अपने विरोधी बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन पर हावी है.

मीडिया के साथ बेहतर तालमेल सबसे अधिक भाजपा की टीम कर रही है. बसपा में सारा तालमेल पार्टी प्रमुख मायावती के आसपास घूमता है. कांग्रेस में काफी अच्छी तरह से तालमेल रखा जाता है. कांग्रेस की परेशानी यह है कि हाईकमान के आदेश नीचे के कार्यकर्ताओं को सीधे नहीं मिल रहे जिससे ग्राउंड पर काम करने वाले को ऊपर की नीतियों का पता ही नहीं होता है.

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार होने के कारण समाजवादी पार्टी से यह उम्मीद थी कि वहां पर चुनाव प्रबंधन बेहतर होगा. खासकर मीडिया को हर जानकारी समय पर सटीक तरह से मिल सकती है. सपा में मीडिया की भीड़ तो बड़े स्तर पर दिखती है पर बिना किसी भेदभाव के सटीक जानकारी नहीं मिलती. पार्टी प्रवक्ताओं का बड़ा फोकस केवल अखिलेश यादव के करीब रहता है. जिसकी वजह से भाजपा के हमलों का सही जवाब वहां तैयार नहीं किया जाता. आज के दौर में मीडिया का मतलब केवल अखबार या टीवी चैनल नहीं रह गये हैं. वेब मीडिया सबसे बडे हथियार के रूप में काम कर रही है. वेब मीडिया को लेकर सपा और बसपा में कोई नीति नहीं है. जबकि भाजपा में यह बडी प्रमुखता के साथ देखा जा रहा है.

यह सच है कि जमीनी जनाधार और वोटबैंक के स्तर पर बात करे तो उत्तर प्रदेश में जो प्रभाव मायावती का है या अखिलेश यादव का है वह भाजपा और कांग्रेस दोनो का नहीं है. दोनो ही दलों में प्रदेश स्तर पर एक भी ऐसा नेता नहीं है जो मायावती और अखिलेश यादव की लोकप्रियता का मुकाबला कर सके. सबसे बड़ा वोटबैंक भी इन दोनो दलों के पास ही है. इसके बाद भी यह लड़ाई में पीछे दिखते हैं. इसका यही कारण है कि वाक पटुता और चुनाव प्रबंधन में अखिलेश और मायावती दोनो ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से बहुत पीछे हैं. अखिलेश और मायावती दोनो के ही पास बोल पाने की वह कला नहीं है जो नरेंद्र मोदी के पास है.

अखिलेश और मायावती कोई अकुशल नेता नहीं हैं. दोनों की जमीनी पकड़ है. चुनाव में पैसा दोनों दल भी खर्च कर रहे हैं. अंतर केवल यह है कि भाजपा से चुनाव प्रबंधन और वाकपटुता के मामलें में दोनों ही दल पिछड़ रहे हैं. जिस प्रभावी ढंग से भाजपा अपनी बात को रख रही है चुटीले संवादों से सुनने वालों को प्रभावित कर रही है उस तरह से मायावती और अखिलेश नहीं कर पा रहे हैं. इंटरनेट से लेकर प्रचार के सभी साधनों में सबसे आगे भाजपा है. अब सपा बसपा अगर यह समझ रहे हैं कि उनके कार्यकर्ता गांव में रहते हैं उनको इंटरनेट देखने, अखबार और पत्रिकायें पढ़ने से कोई मतलब नहीं तो वह गलत सोच रहे हैं.

लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार का सबसे प्रमुख कारण यही था कि वहां चुनाव प्रबंधन और वाकपटुता का अभाव था. यही हालत उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में सपा-बसपा के सामने है. 2 फेस के विधानसभा चुनाव होने के बाद अभी 5 फेस के चुनाव बाकी हैं. अगर इस स्तर पर भी सपा-बसपा कुछ बदलाव कर सके तो बेहतर है. चुनावी बाजी को जीतने के लिये चुनाव प्रबंधन और वाक पटुता का होना भी जरूरी है. केवल कुशल नेता होने भर से चुनाव नहीं जीते जा सकते.

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