Superstitious Crime: मध्य प्रदेश में जबलपुर जिले के कुम्ही सतधारा के पास ददरा टोला सहदरा गांव में 9 मई, 2025 की सुबह के तकरीबन 7 बजे कसा नदी से नहा कर घर लौट रही 57 साल की एक औरत तितरी बाई बरकड़े ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उस का सगा भतीजा ही उस की जान ले लेगा.
आदिवासी अंचल में रहने वाली तितरी बाई की गलती केवल इतनी थी कि नदी से नहाने के बाद वह खाली लोटा ले कर घर जा रही थी. वह एक हाथ में गीले कपड़े और एक हाथ में लोटा ले कर नदी का घाट चढ़ रही थी, तभी उस का 47 साल का भतीजा मत्तू सिंह बरकड़े मिल गया. चाची के हाथ में खाली लोटा देख कर वह गालीगलौज करने लगा. विरोध जताने पर वह चाची के साथ मारपीट पर उतर आया.
तितरी बाई ने उस से बचने के लिए भागने की कोशिश की तो वह गिर गई, तभी मत्तू ने एक बड़ा सा पत्थर उठाया और उस के सिर पर मार दिया, जिस के चलते उस की मौत हो गई.
इस वारदात की खबर छोटे से गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने तेजी से कार्रवाई करते हुए कुछ ही घंटों में हत्यारे मत्तू सिंह बरकड़े को गिरफ्तार कर लिया.
पुलिस की पूछताछ में मत्तू ने चाची को मारने की जो वजह बताई, उसे सुन कर पुलिस के भी होश उड़ गए.
मत्तू ने बताया कि रास्ता काटना और खाली बरतन दिखना अपशकुन होता है. इसी अंधविश्वास के चलते उस ने चाची की जान ले ली.
पुलिस ने मत्तू के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 103(1) के तहत हत्या का मामला दर्ज कर लिया.
अंधविश्वास के चलते घटी यह वारदात साबित करती है कि आज भी गांवदेहात के इलाकों में अंधविश्वास किस कदर फैला हुआ है.
दिसंबर, 2021 की एक वारदात मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले की है, जब एक पिता पर अंधविश्वास इस कदर हावी हो गया कि उस ने अपने 5 साल के मासूम बेटे की कुल्हाड़ी से काट कर उस की बेरहमी से हत्या कर दी.
पिता के मुताबिक, उसे गुरुमाता ने कहा था कि बेटा उस के घर के लिए अपशकुन है. फिर अंधविश्वास पर भरोसा कर पिता ने ऐसा कदम उठाया जिस की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. हत्या के बाद बाप ने बच्चे को कई टुकड़ों में काटा और खेत में दफना दिया.
अलीराजपुर जिले के खरखादी गांव में एक पिता दिनेश दावर ने अपने ही 5 साल के मासूम बेटे की अंधविश्वास के चलते कुल्हाड़ी से काट कर हत्या कर दी. पिता को इस बात का शक था उस के बेटे पर भूतप्रेत का साया है.
पिता को लगता था कि उस के बेटे में कोई बुरी आत्मा का वास है, जिस के चलते उस के घर में परेशानियां और अशांति रहती है. परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपने ही जिगर के टुकड़े को मार डाला.
अंधविश्वास के चलते हुई ये घटनाएं यह साबित करती हैं कि अंधविश्वास हमारे आसपास चारों ओर बिखरा पड़ा है. इन में बिल्ली का रास्ता काटना, रास्ते में खाली घड़ा दिखाई देना, शुभ काम के दौरान विधवा या बांझ का दिख जाना, पूजापाठ के दौरान दीपक का बुझ जाना, घाव में कीड़े पड़ना, कुत्ते का रोना,
दरवाजे पर नीबूमिर्च, काला कंगन, लाल रिबन या काला पुतला टांगना, दूल्हे को लोहा पकड़ाना, खाट या चप्पलों का उलटा पड़ा होना, बरतनों का टकराना, दूध का फटना, टूटे हुए आईने में शक्ल देखना, कछुआ या कछुए की मूर्ति घर में रखना भी अंधविश्वास की श्रेणी में आते हैं. इन का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
देश में सरकारी तंत्र अंधविश्वास को रोकने की बजाय फैलाने में अहम भूमिका निभा रहा है. पांढुरना का गोटमार मेला हो या हिंगोट युद्ध सभी में पुलिस प्रशासन मूक दर्शक बन कर इन दकियानूसी रिवाजों को खादपानी देने का काम कर रहा है. कोविड 19 वायरस को भगाने के लिए जब दीपक जला कर, ताली और घंटेघडि़याल बजाने का टोटका देश के प्रधानमंत्री खुद ही जनता को बताते हों, उस देश में वैज्ञानिक सोच भला कैसे विकसित होगी.
देश के नागरिकों की बुनियादी जरूरत शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजलीपानी और सड़क की है. इस के लिए सरकार को इंजीनियरिंग और मैडिकल कालेज खोलने के साथसाथ साफ पानी और भरपूर बिजली के साथ कहीं भी आनेजाने के लिए अच्छी सड़कें मुहैया कराने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए, मगर सरकार इन सब को छोड़ कर बड़ीबड़ी मूर्तियां और मंदिर बनाने पर तुली हुई है.
धार्मिक रंग में पूरी तरह रंगी सरकार की सोच यह है कि देश के पढ़ेलिखे नौजवानों को नौकरी की बजाय धार्मिक रैली, जुलूस, कांवड़ यात्रा, भंडारे और आरती में उलझ कर उन्हें तार्किक न बनने दिया जाए. यही वजह है कि आज भी देश में अंधविश्वास और दकियानूसी रिवाजों का बोलबाला है. Superstitious Crime




