Domestic Violence: ‘डबल इंजन’ की सरकार वाले उत्तर प्रदेश में औरतों की क्या गत बन चुकी है, इस पर एक नजर डालते हैं. मामला नेपाल से सटे सिद्धार्थनगर जिले का है, जहां के लोटन कोतवाली क्षेत्र में एक पति ने हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए लाठीडंडे से बुरी तरह पिटाई कर अपनी पत्नी को अधमरा कर दिया.
उस औरत को इतना मारा गया कि उस का चेहरा काला पड़ गया और एक हाथ टूट गया है. औरत के प्राइवेट पार्ट को भी डंडे से गहरी चोट पहुंचाई गई.
उस औरत को गंभीर हालत में मैडिकल कालेज, गोरखपुर में भरती कराया गया. पीडि़ता के भाई की शिकायत पर पुलिस ने पति के खिलाफ केस दर्ज किया.
पूरा मामला कुछ इस तरह है कि उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के कोल्हुई थाना क्षेत्र के एक गांव की इस औरत की शादी सिद्धार्थनगर जिले के लोटन कोतवाली क्षेत्र के एक गांव में हुई थी.
बताया जा रहा है कि पति आएदिन मारनेपीटने के साथसाथ अपनी पत्नी पर तमाम तरह के जुल्म करता था. इस हैवानियत से तंग आ कर वह औरत अपने मायके चली गई थी, पर 16 नवंबर, 2025 को आपसी सुलहसमझौते के बाद वह अपनी ससुराल वापस आ गई थी, लेकिन आरोप है कि 17 नवंबर, 2025 की रात पति ने उस की लाठीडंडों, जूतों से पिटाई की और थप्पड़ बरसाए.
इसी साल सितंबर महीने की एक घटना है. आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में एक शख्स ने अपनी पत्नी को खंभे से बांध कर न केवल बैल्ट से बुरी तरह पीटा, बल्कि बारबार लातों से भी हमला किया. इस दौरान वह औरत चीखतीचिल्लाती रही, दया की भीख मांगती रही, लेकिन पति उस पर लगातार वार करता रहा.
पुलिस के मुताबिक, आरोपी पति बलराजू तारलुपाडु मंडल में अपनी पहली पत्नी भाग्यम्मा के साथ रहता था, जबकि उस की दूसरी पत्नी भी है. हाल ही में वह अपनी दूसरी पत्नी के साथ रहने के बाद गांव लौटा था.
बताया गया कि बलराजू किसी बीमरी से जूझ रहा है और उस ने अपनी पहली पत्नी भाग्यमा से इलाज के लिए पैसे लाने को कहा था.
भाग्यम्मा ने पैसे देने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह 4 बच्चों की अकेली जिम्मेदारी उठा रही थी. इसी बात से नाराज हो कर बलराजू ने उसे खंभे से बांध दिया और बैल्ट से बुरी तरह पीटा.
पुलिस ने यह भी बताया कि बलराजू को अपनी पत्नी पर किसी गैरमर्द के साथ नाजायज रिश्ता होने का शक था और इसी शक ने उस के गुस्से को और ज्यादा भड़का दिया था.
इस तरह की घटनाएं रोजाना की आम बात हैं. कुछ घटनाओं की खबरें बन जाती हैं, बाकी के बारे चुप्पी साध ली जाती है. यहां सिर्फ पति द्वारा अपनी पत्नी को पीटने की बात नहीं हो रही है, बल्कि औरतों का यह पिटना इतना ज्यादा आम हो गया कि कोई भी ऐरागैरा उन पर हाथ साफ करना अपना बुनियादी हक समझता है.
इसी साल जनवरी महीने का एक वाकिआ है. महाराष्ट्र के नवी मुंबई की एक हाउसिंग सोसाइटी में चल रही एक बैठक के दौरान 5 लोगों ने 44 साल एक औरत को कथिततौर पर पीट कर घायल कर दिया था.
पुलिस ने बताया कि पीडि़ता ने मीटिंग के दौरान कुछ सवाल उठाए, जो आरोपियों को पसंद नहीं आए. फिर उन्होंने कथिततौर पर उस औरत के साथ गालीगलौज की, उसे जमीन पर धकेल दिया और कई मुक्के मारे.
सवाल उठता है कि औरतों के साथ यह मारपिटाई होती ही क्यों है? इस का सीधा सा जवाब है कि मर्द द्वारा औरत में डर बिठाना और उस पर काबू रखना. ज्यादातर मर्दों के लिए मर्दानगी की यही परिभाषा है.
लेकिन क्या कोई मर्द इतना ज्यादा गुस्सैल हो सकता है कि उस की पत्नी नाश्ते में परोसी गई साबूदाना की खिचड़ी में नमक कम डाल दे, तो वह अपना आपा खो कर उस की हत्या ही कर दे?
जी हां, साल 2022 में मुंबई के निकट ठाणे में एक बैंक क्लर्क निकेश घाघ ने गुस्से में अपनी 40 साल की पत्नी की गला घोंट कर हत्या कर दी, क्योंकि उस ने जो साबूदाना खिचड़ी परोसी थी, वह बहुत नमकीन थी.
एक अदना से बैंक क्लर्क ने अपनी पत्नी को चुटकीभर नमक की कीमत समझा दी. बेहद शर्मनाक. इस से भी ज्यादा शर्म की बात तो यह है कि भारतीय समाज में आज भी गांवदेहात हो या बड़े शहर, औरतों को मर्दों की पिछलग्गू समझा जाता है.
यह छोटी सोच समाज में गहरे तक पैठी हुई है कि औरत को हमेशा मर्द की गुलाम बन कर रहना चाहिए, वह किसी भी तरह का फैसला लेने के काबिल नहीं होती है, उसे अपने मर्द की सेवा करनी चाहिए और उसे उस से कम कमाना चाहिए, और भी न जाने क्याक्या.
अगर गलती से किसी औरत ने इस सोच को चुनौती दी या खुद को मर्द से बेहतर समझा तो पति को पूरा हक है कि वह उसे ‘उस की सही जगह’ दिखा दे, फिर इस के लिए औरत की खाल ही क्यों न उधेड़ दी जाए.
अपना भाग्य मानती औरतें
भारत में औरतों को धर्म के जंजाल में इस कदर उलझा दिया गया है कि उन्हें लगता है कि मर्द से पिटना भी उन के पिछले जन्मों की सजा है. बहुत सी औरतें अपने मायके में इस तरह से पाली जाती हैं कि वे पितृसत्तात्मक नियमों को गांठ बांध लेती हैं, जैसे ससुराल में लड़की की डोली जाती है और अर्थी ही बाहर निकलती है. यहां यह छिपी सोच है कि ससुराल में कुछ भी भूचाल आ जाए, तुम्हें चूं तक नहीं करनी है.
‘घर में जो हो रहा है, उसे घर तक ही रखना है’, ‘अपने बड़ों के सामने जबान नहीं चलानी है’, ‘पति परमेश्वर होता है’, ‘पति अगर पीट दे तो बात का बतंगड़ नहीं बनाना है’, ‘शर्म औरत का गहना है’, और भी न जाने किस तरह की सीख दी जाती हैं कि अनपढ़ से ले कर एक पढ़ीलिखी औरत भी मर्द के ‘पिटाई पुराण’ का हिस्सा बन जाती है, बेवजह.
जब से भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में सरकार आई है, तब से धर्म के नाम पर औरतों के सिर पर अंधविश्वास के इतने घड़े लाद दिए गए हैं कि उन्हें अपने पर हुई घरेलू हिंसा का बोझ महसूस ही नहीं होता है.
बहुत सी औरतों को लगता है कि मर्द की सत्ता के बगैर वे इस समाज में नहीं रह सकतीं और तथाकथित धर्मकर्म के बिना इस दुनिया में, फिर मर्द चाहे उन की इसी दुनिया में चमड़ी न उधेड़ दें.
गरीब घरों की वंचित समाज की औरतों की हालत तो और ज्यादा बुरी है. वे शरीर की मजबूत होती हैं, मर्दों जितनी शरीरिक मेहनत करती हैं, बच्चों को अपने दम पर पालती हैं, फिर भी उन के साथ खूब मारपीट की जाती है.
यहां पर उन की और पति की अनपढ़ता, पति का बेरोजगार होना, पति की नशाखोरी, दूसरी औरत का चक्कर जैसी बहुत सी वजहें होती हैं, जो घर में क्लेश लाती हैं.
ऐसी औरतों के पास न तो पैसा होता है और न ही कहीं जाने की हिम्मत. बच्चों को पालपोस कर बड़ा करने की जिम्मेदारी भी इन पर होती है. अगर कहीं पति ने सिर से छत छीन ली, तो पूरा परिवार ही बिखर जाएगा. फिर इन की समाज में कहीं कोई सिक्योरिटी भी नहीं होती है. घर पर जैसा भी है, मर्द का साया तो साथ है न, इस की एवज में उस ने 2-4 लात जमा भी दी तो क्या हुआ, यह सोच भी औरतों को पिटने पर मजबूर करती है.
‘कास्ट मैटर्स’ के लेखक और दलित ऐक्टिविस्ट डाक्टर सूरज येंगडे बीबीसी के माध्यम से कहते हैं, ‘‘दलित औरतें दुनिया में सब से ज्यादा शोषित हैं. वे घर के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर संस्कृति, सामाजिक संरचना और सामाजिक संस्थाओं की भुक्तभोगी हैं. दलित महिलाओं के खिलाफ लगातार होने वाली हिंसा में ये बातें नजर आती हैं.’’
बीबीसी की एक खबर के मुताबिक, ‘इंटरनैशनल दलित सौलिडैरिटी नैटवर्क’ ने दलित औरतों को झेलनी पड़ रही हिंसा को 9 हिस्सों में बांटा था, जिन में से 6 उन की जाति पर आधारित पहचान के चलते होती हैं और 3 जैंडर की पहचान के चलते.
जाति के नाम पर उन्हें यौन हिंसा, गालीगलौज, मारपीट, हमलों का शिकार होना पड़ता है, तो जैंडर के चलते उन्हें कन्या भ्रूण हत्या, जल्दी शादी के चलते बाल यौन अत्याचार और घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है.
मर्दों की ओछी सोच
साल 2019 की ‘औक्सफैम इक्ववैलिटी और इनइक्वैलिटी’ की एक रिपोर्ट पर नजर डालते हैं. इस रिपोर्ट में बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तर प्रदेश के तकरीबन 1,000 परिवारों का सर्वे किया गया था, जिस में यह बात सामने आई थी कि कई घरों के लोगों का ऐसा मानना था कि छोटीछोटी बातों पर औरतों पर हाथ उठाना गलत नहीं है.
यह हाल तो तब था जब रिपोर्ट के मुताबिक यह बात सामने आई थी कि जितनी गृहणियां घर संभालती हैं, अगर उन के कामकाज का हिसाब लगाया जाए, तो ये देश की जीडीपी यानी ग्रोस डोमैस्टिक प्रोडक्ट के 3.1 फीसदी के बराबर होगा.
इस के बावजूद इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि कराए गए सर्वे में शामिल परिवारों में से तकरीबन 53 फीसदी लोगों ने इस बात को माना कि अगर औरतें बच्चों की देखभाल में कोताही करती हैं, तो उन्हें फटकारना जायज है.
औरतों द्वारा खाना न पकाने पर 41 फीसदी लोगों ने उन्हें मारनेपीटने की वकालत की वहीं 42 फीसदी लोगों ने पीने का पानी न भरने और ईंधन न जमा करने पर भी उन की पिटाई करने की बात स्वीकारी.
54 फीसदी लोगों ने माना कि अगर औरत बिना बताए घर से बाहर घूमने जाती है, तो उसे डांटनाफटकारना गलत नहीं है. वहीं कुछ लोगों ने इस के लिए औरतों पर हाथ उठाने की बात को भी स्वीकार किया.
मर्द समाज की यह सोच उसे परिवार से मिली है. अगर कोई नकारा और उद्दंड लड़का है, तो परिवार वाले यह सोच कर उस की शादी करा देते हैं कि बहू अपनेआप संभाल लेगी, पर जरा सोचिए कि जो लड़का अपने गुस्सैल स्वभाव के चलते मांबाप को कुछ नहीं समझता है, गालीगलौज करता है, वह कल की आई लड़की की सुन लेगा?
उधर, लड़की के कान में बचपन से ही फूंक दिया जाता है कि पति जो कहे, तुम सिर झुका कर मान लेना. बैंक क्लर्क निकेश घाघ ने नमक की कमी में अपनी पत्नी का गला घोंट दिया. यह कोई एक पल में घटी घटना नहीं थी. ऐसा पहले भी हुआ होगा. उस ने अपनी पत्नी पर पहले भी खाने की थाली उछाल दी होगी या फिर किसी और बात पर उसे लतिया दिया होगा, पर आसपड़ोस वालों ने इसे ज्यादा सीरियसली नहीं लिया. अगर पत्नी ने यह बात अपने मायके वालों को बताई होगी, तो भी उन्होंने चुप रहने की सलाह दी होगी.
जब लड़की को हर जगह से हताशा हाथ लगती है, तो वह इसे अपनी किस्मत मान लेती है. जिन मांबाप ने उसे इतने लाड़प्यार से पाला हो, वे ही उस की पिटाई पर चुप्पी साध लें, तो फिर वह कहां जाएगी?
इधर, मर्द समाज को यह गुमान होता है कि और मारूंगा, बोल क्या कर लेगी? मेरी गुलाम है, तो नजरें नीची कर के चल. समय पर भोजन और शरीर मेरे सामने परोस दे. बस, यही तेरा काम है, तो फिर औरत के लिए जिंदगी नरक बनने में ज्यादा समय नहीं लगता है.
हरियाणा के जींद जिले के गांव बीबीपुर के पूर्व सरपंच, समाजसेवी और ‘सैल्फी विद डौटर’ मुहिम के संस्थापक सुनील जागलान ने इस मुद्दे पर कहा, ‘‘आज हमें स्वीकार करना पड़ेगा कि समाज में पुरुष सत्ता का प्रकोप अभी भी है और इस का सीधा असर यह होता है कि घरों में घरेलू हिंसा होती है.
‘‘इस में महिलाओं के साथ शारीरिक मारपिटाई के लाखों केस दर्ज होते हैं, लेकिन इस के 30 गुना केस ऐसे होते हैं, जो पुलिस में दर्ज ही नहीं हो पाते हैं. इस के लिए लगातार संवेदनशीलता के साथ लोगों को जागरूक करने की, कानूनी नियमों को आम घरों तक पहुंचाने की बहुत ज्यादा जरूरत है.’’
‘‘हम ने ‘अहसास का सौफ्टवेयर’ नाम का एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिस का मकसद पितृसत्ता के वायरस को खत्म करना है. हम इस मुहिम में शहर और गांवदेहात के क्षेत्रों में पंचायतों के माध्यम से काम कर रहे हैं ‘‘इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है, जब हम सब यह समझ लें कि महिलाओं के साथ मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न से समाज पतन की ओर जाता है.’’ Domestic Violence




