Healthcare Awareness: योगेंद्र को कुछ दिनों से लगातार सिर में दर्द बना रहता था. उस ने 1-2 दिन दर्द निवारक दवाएं लीं, लेकिन उन का कोई असर नहीं हुआ. इस वजह से योगेंद्र के मन खयाल आया कि कहीं किसी गंभीर समस्या के चलते तो उस के सिर में दर्द नहीं बना रहता है?

एक दिन योगेंद्र ने लगातार सिर में दर्द बनने की वजहों को गूगल पर सर्च किया, तो उसे अलगअलग लेख और वीडियो देखने को मिल गए. उस ने कुछ लेख पढ़े और वीडियो देखे, तो उन में सिर में लगातार दर्द बने रहने की कई वजहें बताई गई थीं. लेकिन उन लेखों और वीडियो में सिर में ब्रेन ट्यूमर या कैंसर होने की वजह से भी सिरदर्द बताया गया था, जिस के लिए उस में सिरदर्द की पहचान और उस का इलाज भी बताया गया था.

अगले दिन योगेंद्र ने अपने औफिस में 5 दिनों की छुट्टी के लिए अर्जी लगाई और एक वीडियो में बताए मुताबिक अपने सिर का सीटी स्कैन कराया. उसे सीटी स्कैन में बीमारियों की पहचान की जानकारी तो थी नहीं, फिर मजबूरन उसे डाक्टर को दिखाना पड़ा.

डाक्टर ने रिपोर्ट देख कर योगेंद्र को बताया कि उसे कोई बीमारी नहीं है. उस ने सिर्फ वहम पाल रखा है. उस डाक्टर ने योगेंद्र की नौकरी के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि वह एक कंपनी में अकाउंट का काम देखता है, जिस के चलते उसे दिनभर कंप्यूटर पर काम करना पड़ता है.

डाक्टर ने योगेंद्र को बताया कि ज्यादा समय तक कंयूटर पर काम करने से सिरदर्द की समस्या होना आम बात है, फिर उस के मन में यह बात कहां से आई कि उसे कैंसर है?

योगेंद्र ने बताया कि उस ने गूगल पर सर्च किया था, जिस में सिरदर्द होने की एक वजह कैंसर होना भी बताई गई थी.

डाक्टर ने योगेंद्र को कुछ एहतियात बताईं और कुछ दवाएं लिख कर दीं, जिन के सेवन से योगेंद्र का सिरदर्द कुछ ही दिनों में एकदम ठीक हो गया.

गूगल नहीं, डाक्टर की मानें

अगर आप भी हलकी सी छींक आने, कान में दर्द होने से ले कर गंभीर से गंभीर बीमारी जैसे हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक का इलाज गूगल पर ढूंढ़ते हैं, तो इसे कंट्रोल कर लें, क्योंकि अगर आप अपनी बीमारियों के इलाज के लिए गूगल की मदद ले कर सैल्फ मैडिकेशन करते हैं, तो यह आप के लिए खतरनाक हो सकता है.

अगर आप भी योगेंद्र जैसे लोगों में शामिल हैं, जो डाक्टर की सलाह से पहले और बाद में गूगल पर सर्च करते हैं या गूगल पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं, तो यह सम?ा लीजिए कि आप को गूगल सिंड्रोम है, जिस के चलते मरीज अपनी बीमारी से संबंधित हर छोटी से छोटी जानकारी गूगल से जानने की कोशिश में लगे रहते हैं.

इस वजह से कई बार ऐसे लोग ऐक्सपर्ट डाक्टर की सलाह और उस के ट्रीटमैंट को गलत ठहराने में भी देरी नहीं करते हैं, जिस से उन्हें सही इलाज नहीं मिल पाता है और कई बार वे डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं.

गूगल महज सर्च इंजन

इंटरनैट और सोशल मीडिया के ऐक्सपर्ट गिरजेश शुक्ल ‘गगन’ का कहना है कि इंटरनैट, गूगल, यूट्यूब या सोशल मीडिया पर जो भी कंटैंट पढ़ने या देखने को मिलते हैं, वे हम आप जैसे लोग ही मुहैया कराते हैं.

गूगल और यूट्यूब पर बीमारियों और इलाज से जुड़ी सूचनाएं या वीडियो डालने वाले 2 तरह के लोग होते हैं. एक तो वे जो गूगल या यूट्यूब के जरीए पैसा कमाते हैं. ऐसे लोग बिना जांचपरख किए भ्रामक और जानलेवा सु?ाव भी डालते रहते हैं, जबकि दूसरे लोग वे हैं जो किसी बड़े संस्थान, रिसर्च इंस्टीट्यूट या हौस्पिटल से जुड़े माहिर डाक्टर या दूसरे ऐक्सपर्ट लोग होते हैं, जो सही जानकारियां देते हैं. लेकिन इन के वीडियो और लेख में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं होता है कि जांच या इलाज खुद से शुरू करना है.

उत्तर प्रदेश में बस्ती जिले के मनोरोग के माहिर डाक्टर मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन ने बातचीत के दौरान बताया कि उन के पास एक ऐसा मरीज आया था, जो मानसिक बीमारी को दिल की बीमारी समझ कर लाखों रुपए अपने इलाज और जांच पर खर्च कर चुका था.

उसे समस्या यह थी कि कभीकभार उस का दिल तेजी से धड़कने लगता था और धड़कनें तेज हो जाती थीं.

इस से उसे सांस लेने में भी कठिनाई या घुटन महसूस होती थी. इस दौरान उसे चक्कर आता, हलकापन महसूस होता और बेहोशी की हालत हो जाती. पूरे शरीर में कंपकंपी या थरथराहट महसूस होती थी. ज्यादा पसीना आता था, डर लगता था जैसे कि कुछ बुरा होने वाला है.

उस मरीज ने अपने लक्षणों को गूगल पर डाल कर सर्च किया, तो ये सारे लक्षण हार्ट अटैक जैसे बताए गए थे. इस के बाद वह इतना डर गया कि उस ने एक साल के भीतर हार्ट से जुड़ी सैकड़ों जांच कराईं और कई डाक्टरों के पास गया, लेकिन उस की रिपोर्ट नौर्मल ही आती.

उस मरीज ने बताया कि उस ने आखिरी बार जिस हार्ट स्पैश्लिस्ट को दिखाया, वहां डाक्टर ने कहा कि यह दिल से जुड़ा मामला नहीं, बल्कि दिमाग से जुड़ा मामला है.

उस मरीज को तब लगा कि उस ने गूगल के चक्कर में तकरीबन 5 लाख रुपए जांच और इलाज के नाम पर खर्च कर दिए.

इस के बाद वह डाक्टर मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन के पास गया, तो डाक्टर ने उस के रहनसहन, नौकरी, पारिवारिक हालात की हिस्ट्री ली. जिस के आधार उन्होंने इस समस्या को पैनिक अटैक या एंजाइटी नाम की एक दिमाग से जुड़ी बीमारी बताया, जिस के लक्षण हार्ट अटैक जैसे ही होते हैं.

डाक्टर मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि ऐसे लक्षण वाले मरीजों को हार्ट अटैक से ज्यादा डर लगता है. उन्हें लगता है कि वह अभी मरने वाला है. उन्होंने उस मरीज का इलाज शुरू किया और
अब उस मरीज की हालत में काफी सुधार आ गया है.

पैनिक अटैक या एंग्जाइटी का इलाज लंबा चलता है, जिस में तकरीबन 3 से 4 साल लग जाते हैं. इस की दवाएं बहुत सस्ती होती हैं और इन लंबे समय तक खाने से दवाओं की लत भी नहीं लगती है. अगर मरीज पूरा इलाज कर ले तो, फिर इस बीमारी के दोबारा होने की संभावना कम होती है.

डाक्टर का ट्रीटमैंट गलत न ठहराएं

जिला चिकित्सालय, बस्ती के डाक्टर वीके वर्मा का कहना है कि गूगल से जानकारी जरूर लें, पर उसे आजमाएं नहीं. इस के लिए केवल डाक्टर की सलाह लें. डाक्टर को इस जानकारी के आधार पर अपना नजरिया बताएं. सर्च कर के जो इलाज ढूंढ़ा है, उस के आधार पर डाक्टर का ट्रीटमैंट गलत मानना सही नहीं है.

आप भरोसे के साथ डाक्टर के पास जाएं. जब आप डाक्टर पर भरोसा दिखाएंगे, तभी इलाज भी हो पाएगा. आप दूसरे डाक्टर की सलाह भी ले लीजिए, लेकिन इंटरनैट के आधार पर फैसला न लें.

बच्चों के मामले में रहें सावधान

जिला चिकित्सालय, बस्ती में बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर सरफराज खान का कहना है कि कई लोग अपनी बीमारियों का इलाज गूगल से ढूंढ़ते हैं. वे नवजात और बच्चों का इलाज भी गूगल द्वारा बताई गई विधियों और दवाओं से करने की कोशिश करते हैं.

चूंकि बीमारी का इलाज उस के लक्षण, जांच रिपोर्ट और बीमारी के आधार पर किया जाता है, जिस में डाक्टर यह तय करता है कि बच्चे को उस की उम्र और वजन के मुताबिक दवा की कितनी डोज देनी है.

डाक्टर सरफराज खान का कहना है कि जागरूकता के लिए इंटरनैट सही है, लेकिन इस के ज्यादा इस्तेमाल से नुकसान भी हो रहा है. वे बताते हैं कि उन के सामने कई ऐसे मामले आते रहते हैं, जिन में परिजन पहले गूगल का सहारा ले कर बच्चे का इलाज करने की कोशिश कर रहे थे और बाद में हालत नाजुक होने के बाद बच्चे को मेरे पास लाना पड़ा.

बढ़ानी होगी जागरूकता

टीचर मंगला मौर्य का कहना है कि स्कूल में भी बच्चों को इस मामले में जागरूक करने की जरूरत है कि वे बीमारी के इलाज के लिए खुद और परिवार वालों को जागरूक करें कि खुद से दवा लेने से बीमारी का गलत इलाज, दवा के शरीर पर होने वाले गंभीर नतीजे, डाक्टर की सलाह से वंचित हो जाना, फर्जी दवाओं के इस्तेमाल का डर रहता है. ऐसे में इस से बचने की जरूरत है.

जानकारी लें, आजमाएं नहीं

डाक्टर नवीन सिंह का कहना है कि कई लोग ऐसे हैं जो हर चीज का हल गूगल या यूट्यूब के जरीए निकालना चाहते हैं, चाहे वह किसी खाने की रैसिपी हो, खेतीबारी से जुड़ी जानकारी हो या कोई भी मुद्दा. लेकिन सेहत का मुद्दा इन सब से अलग होता है. अगर आप गूगल और यूट्यूब से टिप्स ले कर खुद ही अपना इलाज करना चाहते हैं, तो यह जानलेवा भी हो सकता है.

इसी तरह की एक घटना उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में घटी जहां 11 मार्च, 2019 को एक ऐसा मामला सामने आया, जिस में एक महिला ने प्रसव के लिए गूगल और यूट्यूब का सहारा लिया था. इस मामले में एक महिला यूट्यूब देख कर अपना प्रसव करा रही थी. वह किराए के मकान में रहती थी. जब कमरे से खून का रिसाव होने लगा, तो यह देख कर मकान मालिक ने पुलिस को सूचना दी. कमरे के अंदर जाने पर महिला और नवजात बच्चा तड़पते हुए पाए गए. वहीं जमीन पर पड़े मोबाइल में यूट्यूब पर प्रसव कराने का वीडियो चल रहा था. प्रसव के बाद जच्चाबच्चा दोनों की मौत हो गई थी.

पुलिस की जांच में पता चला कि मरने वाली औरत की शादी नहीं हुई थी, जिस से वह बहराइच जिले से गोरखपुर में आ कर रह रही थी. कुंआरी मां बनने की बात किसी को पता न चल जाए, इसलिए उस ने खुद ही यूट्यूब से प्रसव कराने का फैसला लिया, जिस की वजह से उस की और उस के नवजात बच्चे की जान चली गई.

भ्रामक जानकारी साझा करने की इजाजत नहीं

इंटरनैट के माहिर आनंद कुमार का कहना है कि यूट्यूब पर किसी बीमारी, उस के इलाज या दवा के बारे में गलत जानकारी देना वाला कोई कंटैंट अपलोड करने की इजाजत नहीं है. इस का मतलब है कि कंटैंट में ऐसी जानकारी न हो जो स्थानीय स्वास्थ्य विभाग के दिशानिर्देशों से मेल न खाती हो और इस से लोगों की सेहत को बहुत गंभीर नुकसान या फिर चोट का खतरा हो. इस नीति के दायरे में यह कैटेगिरी आती है.

अगर किसी यूजर द्वारा गूगल या यूट्यूब कंटैंट नीति का उल्लंघन किया जाता है, तो उस का सिस्टम आटोमैटिक रूप से या तो हटा देता है या ईमेल कर आगाह करता है.

गूगल के कम्यूनिटी दिशानिर्देशों या सेवा की शर्तों का बारबार उल्लंघन करने पर यूजर के चैनल या खाते को बंद कर दिया जाता है. Healthcare Awareness

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