Legendary Singers, लेखक – विवेक रंजन श्रीवास्तव

हिंदी फिल्मों के प्लेबैक सिंगर मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर, 1924 को अमृतसर जिले के कोटला गांव में हुआ था. उन्होंने गुरुदत्त, दिलीप कुमार, देव आनंद, भारत भूषण, जौनी वौकर, जौय मुखर्जी, शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धमेंद्र, जितेंद्र और ऋषि कपूर जैसे नामचीन फिल्म कलाकारों के अलावा गायक और कलाकार किशोर कुमार के लिए भी फिल्मी परदे पर अपनी शानदार आवाज में गाने गाए थे.

जब मोहम्मद रफी महज 7 साल के थे, तब अपने बड़े भाई की नाई की दुकान में बैठा करते थे. उधर से रोज गुजरने वाला एक फकीर अपनी मीठी आवाज में गाता हुआ निकलता था. नन्हे रफी उस फकीर का पीछा किया करते और उस के जैसा ही गाने की कोशिश करते थे. शायद वह अनाम फकीर ही उन का पहला संगीत गुरु था.

मोहम्मद रफी के बड़े भाई मोहम्मद हमीद ने संगीत के प्रति उन की यह दिलचस्पी देख कर उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के पास संगीत की तालीम लेने के लिए भेजा.

एक बार आल इंडिया रेडियो लाहौर में उस समय के मशहूर गायक और फिल्म कलाकार कुंदन लाल सहगल कार्यक्रम पेश करने आए थे. सुनने वालों में मोहम्मद रफी और उन के बड़े भाई भी शामिल थे.

अचानक बिजली गुल हो गई, जिस से सुनने वाले बेचैन होने लगे.

मोहम्मद रफी के बड़े भाई ने आयोजकों से अर्ज किया कि भीड़ को शांत करने के लिए मोहम्मद रफी को गाने का मौका दिया जाए. उन को इजाजत मिल गई और बिना बिजली और बिना माइक के 13 साल की
उम्र में मोहम्मद रफी का यह पहला सार्वजनिक गायन था.

उस समय के मशहूर संगीतकार श्याम सुंदर भी वहां मौजूद थे. उन्होंने जब नन्हे रफी को सुना, तो उस की आवाज के हुनर को पहचाना फिर मोहम्मद रफी को गाने का न्योता दिया.

इस तरह मोहम्मद रफी का पहला गीत एक पंजाबी फिल्म ‘गुल बलोच’ के लिए रिकौर्ड हुआ था, जिसे उन्होंने श्याम सुंदर के डायरैक्शन में साल 1944 में गाया था.

मुंबई तब भी फिल्म नगरी थी. ऐसे समय में नौजवान मोहम्मद रफी ने फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग को रोजीरोटी के रूप में अपनाने का फैसला लिया और साल 1946 में वे मुंबई आ गए.

संगीतकार नौशाद ने ‘पहले आप’ नाम की फिल्म में मोहम्मद रफी को गाने का मौका दिया और इस के बाद उन का फिल्मों में गायन का सफर चल निकला.

नौशाद द्वारा संगीतबद्ध गीत ‘तेरा खिलौना टूटा…’, फिल्म ‘अनमोल घड़ी’, साल 1946 से मोहम्मद रफी को हिंदी फिल्म जगत में नाम मिला. इस के बाद ‘शहीद’, ‘मेला’ और ‘दुलारी’ जैसी फिल्मों में भी मोहम्मद रफी ने गाने गाए जो बहुत पसंद किए गए.

साल 1951 में जब नौशाद फिल्म ‘बैजू बावरा’ के लिए गाने बना रहे थे, तब उन्होंने तलत महमूद की आवाज में रिकौर्डिंग करने की सोची, पर कहा जाता है कि नौशाद ने एक बार तलत महमूद को धूम्रपान करते देख कर अपना मन बदल लिया और मोहम्मद रफी से ही गाने को कहा.

‘बैजू बावरा’ के गानों ने मोहम्मद रफी को बड़ा गायक बना दिया. इस के बाद नौशाद ने उन्हें लगातार कई
गीत गाने को दिए. संगीतकार शंकरजयकिशन की जोड़ी को भी उन की आवाज पसंद आई और उन्होंने भी मोहम्मद रफी से गाने गवाना शुरू कर दिया.

शंकरजयकिशन उस समय राज कपूर के पसंदीदा संगीतकार थे, पर राज कपूर अपने लिए सिर्फ मुकेश की आवाज पसंद करते थे, लेकिन शंकरजयकिशन की सिफारिश पर मोहम्मद रफी ने राज कपूर को कई फिल्मों के गानों में अपनी आवाज दी.

अपनी आवाज के बल पर मोहम्मद रफी जल्दी ही एसडी बर्मन, ओपी नैय्यर, रवि, मदन मोहन, गुलाम हैदर, जयदेव, सलिल चौधरी जैसे बड़े संगीतकारों की पहली पसंद बन गए.

मोहम्मद रफी की असाधारण संगीत साधना के लिए उन्हें भारत सरकार से ‘पद्मश्री’ अवार्ड मिला. उन्हें अनेक बार फिल्मफेयर अवार्ड और दूसरे सम्मान भी मिले.

कमाल के किशोर दा

किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त, 1929 को खंडवा, मध्य प्रदेश में हुआ था. आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार एक मस्ती भरे इनसान थे. जहां एक तरफ मोहम्मद रफी की गायकी लोगों के दिलों पर मरहम का काम करती थी, वहीं किशोर कुमार की आवाज दिलों को मस्ती में ?ामने पर मजबूर कर देती थी. उन की गायकी में जिंदगी की उमंग का संगीत था. उन की आवाज में एक अटूट ऊर्जा थी. ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना…’, ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू…’, ‘पलपल दिल के पास…’, ये सिर्फ गाने नहीं, बल्कि कई पीढि़यों की धड़कनें हैं.

किशोर कुमार की एक खास बात यह भी थी वे कभी भी किसी एक शैली तक सीमित नहीं रहे. वे गाते नहीं थे, गानों को जीते थे. उन की आवाज में नटखटपन, प्यार, दर्द, और बेफिक्री का एक अनोखा मिश्रण था.

उन की आवाज राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, देव आनंद जैसे हर सुपरस्टारों की पहचान बन गई थी.

मोहम्मद रफी और किशोर कुमार की कोई तुलना नहीं है, बल्कि वे दोनों संगीत का संगम हैं. सच तो यह है कि मोहम्मद रफी और किशोर कुमार की तुलना करना वैसा ही है जैसे पूछ लेना कि चांद बेहतर है या सूरज? दोनों की अपनी रोशनी है, अपनी छटा है.

संगीतकार लक्ष्मीकांतप्यारेलाल, आरडी बर्मन और एसडी बर्मन सभी ने दोनों महान गायकों के हुनर का भरपूर इस्तेमाल किया. एक ही गायक से हर गाने का हर भाव गवाना आसान नहीं होता, लेकिन इन दोनों ने इसे मुमकिन बना दिया था.

इन दोनों अमर गायकों में एकदूसरे के प्रति आपसी इज्जत की भावना दिलचस्प थी. मोहम्मद रफी और किशोर कुमार के बीच कभी कोई ईष्या नहीं थी. वे एकदूसरे की गायकी की बेहद इज्जत करते थे. जब किशोर कुमार की जद्दोजेहद के दिन थे, तब मोहम्मद रफी ने उन्हें बढ़ावा किया और जब किशोर कुमार को कामयाबी मिली, तब उन्होंने कभी मोहम्मद रफी को पीछे नहीं बताया.

13 अक्तूबर, 1987 को किशोर कुमार भी इस दुनिया को अलविदा कह गए. पर क्या वे सचमुच चले गए? जब भी रेडियो पर उन का गाया कोई गाना बजता है, तो लगता है कि जैसे वे यहीं कहीं हैं. हमारी सांसों में, हमारी यादों में.

मोहम्मद रफी और किशोर कुमार न सिर्फ गायक थे, वे संगीत का एक युग थे, एक एहसास थे. वे ऐसे सितारे थे, जो दिनरात कभी भी ढलते नहीं, लगातार चमकते रहते हैं. Legendary Singers

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...