Editorial: नेपाल में जवानों की जान मोबाइल और उस के एप्स छीनने की सजा इस बुरी तरह वहां की किशोरों और युवाओं की भीड़ ने सरकार को दी, इस को कोई सोच भी नहीं सकता था. अब तक सब यही समजते थे कि मोबाइल पर फालतू के मैसेज देने वाले और रील बनाने या देखने वाले युवा लड़केलड़कियां निकम्मे हैं, बेकार हैं, बेवकूफ हैं और लाचार है. उन्हें नहीं मालूम कि वे क्याकर रहे हैं.

बड़ी व बूढ़ी पीढ़ी को यह अहसास ही नहीं था कि युवाओं के लिए उन का साथी बन चुका मोबाइल तो उन की जान से भी बढ़ कर है. जब नेपाल के कम्यूनिस्ट प्रधानमंत्री ब्राह्मणवादी केपी शर्मा ओली ने इस में कुछ एप्स पर बैन लगाया तो सोचा था कि कमजोर युवा इसे चुपचाप आंख झुका कर मान लेंगे. पर वे इतने गुस्से में भर जाएंगे कि उन्होंने संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, सरकारी कार्यालयों, अखबारों के दफ्तरों को जला डाला और काठमांडू लाचार हो गया.

सेना भी कुछ ज्यादा नहीं कर पाई. यह साफ नहीं है कि यह गुस्सा सरकार पर था जो बेहद करप्ट है और जहां भाईभतीजावाद जम कर चल रहा है और कल के कम्यूनिस्टों के बच्चे आज महलों में रह रहे हैं, दूसरे देशों में जान खपा कर कमाई नेपाल भेज कर आए पैसे पर मौज उड़ा रहे हैं या सिर्फ मोबाइल प्रेम इस भयंकर आगजनी की वजह है.

मोबाइल आज के जवानों के हाथ में अकेला तरीका है जिस से वे दुनिया से जुड़े हैं. अखबारों को तो दूसरे देशों की तरह नेपाली युवाओं ने पढ़ना बंद कर दिया है क्योंकि वे सिर्फ सरकारी प्रचार कर रहे हैं.

नेपाल की आमदनी में तीसरा हिस्सा आज उन नेपालियों का है जो नेपाल से बाहर जा कर बेगाने देशों में गरमी, सर्दी या बारिश में रह कर काम कर रहे हैं और पेट काट कर पैसा अपने घरों में भेजते हैं. अपने मांबाप, भाईबहनों, प्रेमीप्रेमिकाओं से बात करने के लिए उन के पास यूट्यूब, व्हाट्सएप जैसे टूल ही हैं और वे भी उन से कोई छीन ले, यह उन्हे मंजूर नहीं है.

कम्यूनिस्ट होते हुए भी केपी शर्मा ओली यह नहीं समझ पाए जैसे वे ब्राह्मणवादी धर्म को नेपाल पर थोपते रहे हैं वैसे ही मोबाइल एक धर्म बन गया है. ये एप अब मंदिर बन गए हैं. अगर किसी मंदिर को ढहा दिया जाए तो बड़ीबूढ़ी पीढ़ी क्या करेगी? सब का सत्यानाश न? यही जेन जी ने किया है. उन्होंने बचपन से ही ओली वाले नकली देवीदेवताओं को नहीं देखा, उन्होंने तो कार्टून फिल्मों को देखा, टीवी के हीरोहीरोइनों को देखा, ठुमके लगाती लड़कियों को देखा.

जेन जी से न सिर्फ मांबाप छीनना, दोस्त छीनना, प्रेमीप्रेमिका छीनना चाहा, उन की सैक्सी भूख को भी छीनने की कोशिश की गई तो यह सब से बड़ा गुनाह है. आज दुनियाभर में टैक्नोलौजी ने सैक्स का छिपा बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है और उस के बलबूते पर एलोन मस्क या सुंदर पिचाई अपना एंपायर खड़ा कर चुके हैं. मार्क जुकरबर्ग जैसों की ताकत को नेपाल के शासक पंडे नहीं सम?ा पाए और अब फटेहाल दुबके पड़े हैं.

जेन जी ऐसी पीढ़ी है जिसे मांबाप ने जीना सिखाया ही नहीं. उन्हें पैदा होते ही मोबाइल, टीवी के हाथों में सौंप दिया. सरकार भूल गई कि यह पीढ़ी अपने असली मांबाप, असली सगेसंबंधी मोबाइल और उस के एप्स को छीनने भी नहीं देगी.

॥॥॥

पिछले सालों में अमीर दुनियाभर में ज्यादा अमीर हो रहे हैं और गरीब या तो जहां के तहां हैं या कहींकहीं थोड़े घटेबढ़े हैं. अमीरों और गरीबों में एक बड़ा भारी फर्क अमेरिका और यूरोप तक में दिख रहा है. चीन, जो वैसे कम्यूनिस्ट है यानी बराबरी की बात करता है, भी अमीरों से भरा पड़ा है.

सभी देशों में जहां एक तरफ शानदार मौल बन रहे हैं, 5 सितारे वाले होटल बन रहे हैं, चमचम करते एयरपोर्ट बन रहे हैं, बड़े मकान बन रहे हैं, बड़ी गाडि़यां बन रही हैं, वहीं दूसरी और लगातार हर शहर में एक गंदा, बदबूदार इलाका फैल रहा है, कच्ची झोपड़ियां बन रही हैं, सड़कोंगलियों पर बिना घरों के लोग बढ़ रहे हैं.

जब साइंस इतनी तरक्की कर रहा है तो यह कैसे हो रहा है कि हर आदमी के लिए छत मुहैया नहीं कराई जा पा रही, हर गरीब को बीमारी में दवा नहीं मिल पा रही, हर बच्चे को अच्छी पढ़ाई और खेलने को जगह नहीं मिल पा रही? क्यों साइंस की तरक्की का आधा नहीं 90 फीसदी फायदा 10 फीसदी लोगों को मिल रहा है?

यह इसलिए हो रहा है कि आज गरीबों ने पढ़नालिखना और सम?ाना छोड़ दिया है. गरीब भी पढ़ालिखा हो सकता है कम से कम इतना पढ़ा कि वह सम?ा सके कि उस की सरकार जो कर रही है वह किस के फायदे के लिए है. लेकिन न पढ़ने वाले गरीबों ने सोच लिया है कि कहीं कभी कोई नेता उभरेगा जो उन्हें गंदगी से भरी बदबूदार जिंदगी से निकालेगा और हाथ पर हाथ धरे उन्हें सबकुछ मिल जाएगा. ऐसा न पहले कभी हुआ है, न आज होगा. आज गरीबों के पास वोटका हक है तो वोट लेने के लिए कुत्तों को 2-4 रोटी टुकड़े फेंक कर लुभा लिया जाता है और एक बार सत्ता में आने के बाद अमीर नेता खुल कर अमीरों को गरीबों की मेहनत का पैसा लूटलूट कर देते रहते हैं.

वजह साफ है कि गरीब को अब पता ही नहीं चलता कि उसे लूटा कैसे जा रहा है. साइंस और तकनीक का फायदा हुआ है कि गरीबों को बहकाना बहुत आसान हो गया है. गरीबों के हाथ में जबरन मोबाइल पकड़ा दिए गए हैं जिन में नाचने वाली लड़कियों के वीडियो भी होते हैं और साथ ही देश के शासक नेता के ‘महान’ कामों का बखान भी. आधीअधूरी जानकारी रखने वाला 2 बालटी पानी, 4 नालियों, 5 किलो राशन और मोबाइल पर भरपूर मिलने वाली चहकती लड़कियों को देख कर खुश हो जाता है.

सरकारें तरहतरह के टैक्स लागाती हैं. जबरन लगाए जीएसटी में कुछ कटौती को इस तरह ढोल के साथ पेश किया गया है कि लगता है कि अदानीअंबानी का खजाना छीन कर जनता में बांट दिया गया है. आधी समझ वाला इसे वरदान समझता है जिस के लिए उसे पहले ही मंदिरों, चर्चों, मसजिदों में बोला जाता रहा है.

गरीबों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी. चतुराई किसी को पेट से नहीं मिलती. यह सीखी जाती है और हर कोई सीख सकता है. मूर्खता बीमारी है, जन्मजात मिली कमजोरी नहीं. गरीब कमजोर नहीं रहें, लूटे न जाएं, बहकाए न जाएं यह उन्हें समझना होगा और उन की समझदारी किसी कागज पर छपे अक्षरों में है, मोबाइल में भी नहीं और पौवे की बोतल में भी नहीं. Editorial

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...