Best Hindi Story, लेखक – डा. राजेंद्र यादव आजाद
राधा पेट से थी. इस खबर से घर में खुशियां छा गईं, क्योंकि सालों बाद भवानी देवी की हवेली में किसी बच्चे की किलकारियां गूंजने वाली थीं.
भवानी देवी ने अपने बेटे विजय की शादी बड़ी धूमधाम से की थी. विजय वैसे तो पढ़ाई के साथसाथ खेलकूद में भी अव्वल आता था और अगर वह चाहता तो सिविल सेवा की नौकरी भी कर सकता था, लेकिन भवानी देवी की इच्छा थी कि उन का बेटा सेना का अफसर बने, क्योंकि भवानी देवी के पति कर्नल सूबे सिंह भी भारतीय सेना के जांबाज थे, जो 1971 के युद्ध में शहीद हो गए थे.
कर्नल सूबे सिंह के शहीद होने के समय भवानी देवी 6 महीने के पेट से थीं. पति के शहीद होने के 3 महीने बाद हवेली में किलकारियां गूंजी थीं. गमगीन परिवार में खुशियां छा गई थीं. भवानी देवी ने बड़े चाव से अपने बेटे का नाम विजय रखा था.
विजय धीरेधीरे बड़ा होता गया और भवानी देवी की उम्र ढलती गई. शहर से ग्रेजुएशन करने के बाद विजय भारतीय थल सेना में भरती हो गया था. इस के बाद उस की शादी एक अमीर परिवार की लड़की राधा से कर दी गई.
आज पोते के जन्म की खुशी में भवानी देवी फूली नहीं समा रही थीं. महल्ले में मिठाई बांटी गई.
समय का पहिया अपनी रफ्तार से आगे बढ़ता जा रहा था तो भवानी देवी की हवेली में भी समय अपना रूप दिखा रहा था.
आज एक बार फिर हवेली में संकट के बादल मंडरा रहे हैं. भवानी देवी के पोते संदीप को भयंकर बुखार हो जाने के चलते शहर के बड़े अस्पताल में भरती कराया गया, लेकिन दाएं अंग को हवा लग जाने के चलते वह अपाहिज हो गया. घर का माहौल गमगीन हो गया.
संदीप जब अपाहिज हुआ था, तब उस की उम्र थी 4 साल थी. इसी दौरान राधा ने एक बेटी को भी जन्म दे दिया था.
विजय सेना में था, इसलिए वह अपनी बेटी और पत्नी राधा को शहर ले गया, लेकिन संदीप को दादी भवानी देवी ने उन के साथ शहर नहीं भेजा.
बड़ा बेटा संदीप अपाहिज होने के चलते विजय को अपने घर के वारिस की चिंता सताने लगी, तो उस ने तीसरी औलाद करने की सोची और बेटा पैदा हुआ.
इधर गांव में संदीप अपनी दादी के साथ ही रहता था. वह हवेली जो कभी लोगों से भरी रहती थी, अब सुनसान थी.
भवानी देवी ने संदीप का दाखिला गांव के ही सरकारी स्कूल में करा दिया. संदीप पढ़ाई में होशियार था.
उस ने कभी अपनी विकलांगता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. वह अपाहिज होते हुए भी अपने सभी काम कर लेता था.
दादी भवानी देवी संदीप को स्कूल छोड़ती और लाती थीं, लेकिन गांव के कुछ दबंग छात्र संदीप की विकलांगता के चलते उस का मजाक उड़ाते थे. संदीप खून का घूंट पी कर रह जाता था.
संदीप ने अपनी 12वीं जमात बहुत अच्छे नंबरों से पास की और आगे की पढ़ाई के लिए शहर में जाने इच्छा जाहिर की, तो विजय ने मना कर दिया, ‘‘आगे पढ़ कर क्या करोगे? तुम अपाहिज हो तो कौन तुम्हारा खयाल रखेगा?’’
लेकिन संदीप की जिद के चलते विजय को ?ाकना पड़ा, क्योंकि दादी भवानी देवी जो उस के साथ खड़ी थीं. उन्होंने विजय से कहा, ‘‘संदीप को आगे पढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. मैं इस के साथ रहूंगी.’’
संदीप ने शहर के कालेज में दाखिला ले लिया, लेकिन यहां भी उस की विकलांगता के चलते उस के सहपाठी उस का मजाक उड़ाने लगे, तो उसे निराशा ने घेर लिया.
आज जब संदीप कालेज से आया, तो वह अपनी दादी से कुछ नहीं बोला और अपने कमरे में जा कर बंद हो गया.
भवानी देवी ने सोचा कि दिनभर का थकाहारा होगा, इसलिए आराम कर रहा है, लेकिन जब रात को खाने के समय दादी ने संदीप का दरवाजा खटखटाया, तो भी उस ने कमरा नहीं खोला, तो वे चिंतित हो कर बोलीं, ‘‘संदीप, कमरा खोलो अपनी दादी के लिए.’’
थोड़ी देर के बाद जब संदीप ने दरवाजा खोला, तो वह अपनी दादी से लिपट कर रोने लगा.
‘‘क्या बात है बेटा? मुझे बताओ,’’ दादी बोलीं.
‘‘दादी, आप अभी गांव चलो. मैं अब नहीं पढ़ूंगा. पापा सही कहते थे कि तुम विकलांग हो, अब आगे नहीं पढ़ना चाहिए. मैं पढ़ाई छोड़ रहा हूं,’’ संदीप ने कहा.
‘‘यह क्या बेटा, अभी से हार मान ली… तुम्हें तो मेरा सपना पूरा करना है. तुम्हें पढ़ाई कर के आईएएस जो बनना है. तुम्हारी विकलांगता तुम्हारी पढ़ाई में बाधा नहीं बननी चाहिए. मैं हर पल तुम्हारे साथ खड़ी हूं. मैं जब तक तुम्हें आईएएस नहीं देख लूंगी, तब तक मरूंगी नहीं.
‘‘तुम्हें अपनी दादी के लिए पढ़ना होगा. तुम ऐसे लोगों के लिए मिसाल बनोगे, जो अपनी विकलांगता को बोझ समझ कर अपना रास्ता बदल लेते हैं.’’
‘‘ठीक है दादी, मैं आज के बाद कभी आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगा.’’
अगली सुबह जब संदीप सो कर उठा तो उस में एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा था. वह फैसला कर चुका था कि अब चाहे उस की विकलांगता का कितना भी मजाक उड़ाया जाए, वह दुखी नहीं होगा. उसे तो केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना है.
कालेज में संदीप अपनी जगह बैठ कर क्लास लेने लगा. राजनीति विज्ञान के प्रोफैसर उम्मेद सिंह आए और अपना विषय पढ़ाने लगे.
इस के बाद संदीप दिनभर गुमसुम बैठा रहा था. लंच में नेहा ने उस के पास आ कर पूछा, ‘‘क्या बात है संदीप, आप कल उन आवारा लोगों की बातें दिल से क्यों लगा बैठे? चलो, चाय पी कर आते हैं. मुझे उम्मीद है आप उन की बातों को जरूर भूल जाओगे.
‘‘एक बात कहूं संदीप, जब मदमस्त हाथी चलता है तो उस के पीछे न जाने कितने कुत्ते भौंकते हैं. तुम हाथी हो मेरे दोस्त.’’
फिर वे दोनों कालेज की कैंटीन की तरफ चल दिए. थोड़ी देर के बाद वे कैंटीन में चाय पी कर वापस क्लास रूम में आ गए.
नेहा भी गांव से शहर पढ़ने आई थी. वह भी संदीप की ही क्लास में थी. वह मन ही मन संदीप को चाहने लगी थी, लेकिन उस ने कभी अपने प्यार का इजहार नहीं किया था. वे दोनों अब अच्छे दोस्त बन चुके थे.
संदीप हर बाधा को पार करता हुआ अपनी पढ़ाई कर रहा था. उस ने बीए भी अच्छे अंकों से पास की थी.
नेहा और संदीप ने राजनीति विज्ञान से एमए करने का विचार बनाया और दोनों का दाखिला जेएनयू में हो गया.
संदीप का केवल एक ही मकसद था कि उसे आईएएस बनने है, क्योंकि यह सपना संदीप का नहीं, बल्कि उस की दादी का भी था. वह अब होस्टल में रहते हुए अपनी एमए की पढ़ाई के साथसाथ आईएएस की तैयारी भी करने लगा था.
एक दिन नेहा ने कहा, ‘‘संदीप, आज गंगा ढाबे पर खाना खाने चलते हैं.’’
‘‘अरे नेहा, मैस में ही खा लेंगे न,’’ संदीप बोला.
‘‘नहीं, आज तो आप को मेरी बात माननी ही पड़ेगी,’’ नेहा बोली.
‘‘अरे बाबा, आप बड़ी जिद्दी हो,’’ संदीप ने कहा और दोनों हंस पड़े. जेएनयू में घूमते हुए वे गंगा ढाबा की तरफ चल पड़े.
‘‘संदीप, एक बात बोलूं… अगर आप सुनो तो,’’ नेहा बोली.
‘‘बोलो नेहा, क्या कहना चाह रही हो?’’ संदीप ने कहा.
‘‘संदीप, आई लव यू. मैं आप से बहुत प्यार करती हूं,’’ नेहा ने कहा, तो संदीप बोला, ‘‘नेहा, मुझ विकलांग के लिए यह आप की हमदर्दी है प्यार नहीं.’’
‘‘नहीं संदीप, मैं सच में आप से प्यार करती हूं. आप दुनिया के एक बेहतरीन इनसान हैं,’’ नेहा ने कहा.
‘‘तो क्या आज यह कहने के लिए ही आप ने मुझे बुलाया था?’’ संदीप ने पूछा.
‘‘कुछ ऐसा ही समझ लो,’’ नेहा ने कहा.
इस के बाद उन दोनों ने गंगा ढाबे पर खाना खाया. वैसे, संदीप भी मन ही मन नेहा को बहुत चाहता था, लेकिन कभी अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाया था. आज जब नेहा ने संदीप को आई लव यू कहा तो संदीप की भावनाओं का ज्वार टूट पड़ा और उस ने भी नेहा को आई लव यू बोल दिया.
संदीप और नेहा ने आईएएस का फार्म भर दिया था. अपनी एमए की पढ़ाई के साथसाथ वे दोनों आईएएस की भी कोचिंग ले रहे थे.
यूपीएससी ने प्रीलिमिनरी ऐग्जाम की तारीख तय कर दी, तो संदीप और नेहा के दिल की धड़कन बढ़ने लगी. तय समय पर प्रीलिमनरी का ऐग्जाम हो गया और नेहा और संदीप का रिजल्ट भी अच्छा रहा. वे दोनों प्रीलिमनरी पास कर चुके थे और अब मेन ऐग्जाम की तैयारी में जुट गए थे.
कहते हैं कि मेहनत रंग लाती है और संदीप व नेहा की मेहनत भी रंग ला रही थी. दोनों ने ही पहले चांस में ही मेन ऐग्जाम भी क्लियर कर लिया. अब बारी थी इंटरव्यू की. उन दोनों को यकीन था कि उन का इंटरव्यू भी अच्छा ही हो जाएगा.
नेहा बोली, ‘‘सुनो संदीप, मुझे उम्मीद है कि हमारा इंटरव्यू भी अच्छा हो जाएगा. मैं चाहती हूं कि आप अपने मम्मीपापा से हमारी शादी की बात कर लें.’’
नेहा की बातें सुनकर संदीप एकदम से चौंक गया और बोला, ‘‘क्या हम अभी शादी की बात करें? देखो नेहा, हम अच्छे दोस्त तो हैं लेकिन क्या आप के मम्मीपापा एक अपाहिज से अपनी आईएएस बेटी की शादी करा देंगे? शायद नहीं.
‘‘नेहा, आप का भविष्य बहुत उज्ज्वल है. आप ऐसा करो कि किसी अच्छे से लड़के से शादी कर लो. मैं अपाहिज हूं. मैं आप के लायक नहीं हूं.’’
‘‘क्या बात कर रहे हो संदीप… मैं ने आप से प्यार किया है. मैं आप के सिवा किसी की भी पत्नी नहीं हो सकती. अगर मेरी शादी आप से नहीं हुई, तो मैं जिंदगीभर शादी नहीं करूंगी.’’
संदीप बोला, ‘‘ठीक है तो फिर आप अपने मम्मीपापा से बात करो और मैं भी घर में बात करता हूं. लेकिन हम यह बात इस इंटरव्यू के बाद ही करेंगे.’’
‘‘ठीक है,’’ नेहा ने कहा.
इंटरव्यू में नेहा और संदीप पास हो गए. वे अब आईएएस बन चुके थे. दोनों को ही ट्रेनिंग के लिए मसूरी भेज दिया गया. ट्रेनिंग के बाद दोनों को ही राजस्थान कैडर मिला, तो वे बहुत खुश हुए.
नेहा ने तो अपने मम्मीपापा को इस शादी के लिए तैयार कर लिया, लेकिन संदीप के पापा और मम्मी इस शादी के लिए तैयार नहीं हुए, क्योंकि नेहा अनुसूचित जाति की लड़की थी और संदीप राजपूत था.
संदीप एक बार फिर टूट गया. उस ने नेहा को अपने मांबाप का फैसला सुना दिया.
नेहा बोली, ‘‘संदीप, मैं आप को अपना पति मान चुकी हूं और मैं आप के सिवा किसी दूसरे की पत्नी नहीं बन सकती. हम अच्छे दोस्त थे, हैं और आगे भी रहेंगे.’’
जब भवानी देवी की पता चला कि नेहा और संदीप शादी करना चाहते हैं, लेकिन विजय और राधा इस शादी से खुश नहीं हैं तो उन्होंने तय किया कि वे अपने पोते को उस का सच्चा प्यार दिला कर ही रहेंगी.
भवानी देवी तत्काल गांव से जयपुर आईं और संदीप व नेहा से बात की और कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे यह शादी करा कर ही रहेंगी.
संदीप बोला, ‘‘दादी, पापा चाहते हैं कि मेरी शादी अपनी जाति में ही हो.’’
यह सुन कर भवानी देवी ने विजय को फोन किया और कहा, ‘‘तुम किस जमाने में जी रहे हो… आज 21वीं सदी में भी तुम जातिवाद की बातें कर रहे हो. क्या हो गया है तुम्हारी सोच को. देखो, मैं इन दोनों बच्चों की कोर्ट मैरिज करा रही हूं. तुम्हें आना है तो आ जाना.’’
अपनी मां की बातें सुन कर विजय गुस्से में आ गया और बोला, ‘‘मां, तुम जैसा चाहे वैसा करो. हमारा तुम से कोई वास्ता नहीं है और फोन काट दिया.’’
भवानी देवी ने संदीप और नेहा की कोर्ट मैरिज करवा दी. वे दोनों जयपुर में अपनी दादी के साथ रहने लगे. उन की जिंदगी की नैया हंसीखुशी चल रही थी.
नेहा ने एक बेटे को जन्म दे दिया था, लेकिन संदीप को दुख था कि वह अपने मांबाप का प्यार नहीं पा सका. लेकिन आज जब अखबारों में देश के टौप 10 आईएएस की लिस्ट में पहले व दूसरे नंबर पर संदीप और नेहा का नाम छपा तो विजय का सीना गर्व से चौड़ा हो गया.
विजय राधा से बोला, ‘‘देखो राधा, हमारा बेटा और बहू देश के टौप 10 आईएएस की लिस्ट में हैं. चलो, हम उन से मिलने जयपुर चलते हैं.’’
राधा और विजय जयपुर संदीप के घर आए और सारे गिलेशिकवे भूल कर बेटे और बहू को गले लगा लिया.
आज एक बार फिर भवानी देवी की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन ये आंसू गम के नहीं, बल्कि खुशी के थे. Best Hindi Story