Hindi Story: खन्नाजी खुद में जीने वाले आदमी थे. दुनिया से उन का कोई ज्यादा वास्ता न था. न उन्हें दुनिया से ज्यादा मतलब था और न ही दुनिया को उन से. सब उन्हें ‘खन्नाजी’ के नाम से ही जानते थे. उन का असली नाम क्या था, महल्ले के ‘काने कौए’ को भी नहीं पता था.
असल में उन का असली नाम जानने की कभी किसी को जरूरत ही नहीं पड़ी. न खन्नाजी कभी किसी को अपने घर बुलाते थे, न कोई खन्नाजी को.
खन्नाजी की खासीयत यह थी कि वे सरकारी सेवा में थे, वह भी केंद्र सरकार की. हां जी, वे रेलवे के डाक महकमे में थे. इस महकमे को बोलचाल की भाषा में ‘आरएमएस’ के नाम से जाना जाता है.
खन्नाजी की एक और खासीयत यह थी कि वे जरूरत से ज्यादा अंधविश्वासी और टोनेटोटकों में यकीन करने वाले थे.
खन्नाजी जब इस शहर में आए थे, तब वे शादीशुदा और बालबच्चेदार थे. मतलब उन की एक सगी पत्नी और एक बेटी थी. उन की पत्नी का नाम जानना जरूरी नहीं है, क्योंकि वे बहुत जल्दी हम से विदा लेने वाली हैं. हां, बेटी का नाम उर्मिला है और उस का नाम जानना जरूरी है, क्योंकि वह आखिर तक हमारे साथ रहने वाली है.
हां जी, जैसे बताया जा चुका है, खन्नाजी की पत्नी एक दिन बाकायदा चली गईं यानी अपने प्रेमी के साथ फुर्र हो गईं. आप सोच रहे होंगे कि खन्नाजी इस से खासे परेशान हुए होंगे, तो जनाब आप को बता दूं कि इस से खन्नाजी की सेहत पर रत्तीभर फर्क नहीं पड़ा. उन्होंने अपनी पत्नी को ढूंढ़ने तक की भी जहमत न उठाई.
खन्नाजी सुबह उठ कर उर्मिला को स्कूल छोड़ कर खुद औफिस चले गए. वैसे, उन की पत्नी जेवर और रुपयापैसा ले कर भागी थीं, तो भी उन्होंने इस की रिपोर्ट थाने में दर्ज नहीं कराई, मानो सबकुछ आपसी रजामंदी से हुआ हो.
महल्ले वालों को तो कई दिनों के बाद खन्नाजी की पत्नी के भागने का पता चला. महल्ले वालों से संबंध न रखने का यह भी खास फायदा है कि मतलब न रखो तो उन्हें ऐसी खास बातों का पता ही नहीं चलता, जिन पर चटकारे लिए जा सकें. सामने अफसोस और पीछे हंसा जा सके.
खन्नाजी का कोई सगा रिश्तेदार भी हमदर्दी जताने नहीं आया. किसी को कोई जानकारी भी नहीं थी कि खन्नाजी का कोई रिश्तेदार है भी कि नहीं.
किसी को यह उम्मीद भी नहीं थी कि खन्नाजी जैसे आदमी का कोई रिश्तेदार होता भी होगा.
खैर, खन्नाजी को किसी की हमदर्दी की जरूरत थी भी नहीं. इस बात को आप अब तक समझ ही गए होंगे. खन्नाजी को इज्जत और बेइज्जती की कोई फिक्र नहीं थी. वे इन दोनों बातों से बहुत पहले ही बहुत ऊपर उठ चुके थे. कोई उन के बारे में क्या कहता है, उन की बला से.
खन्नाजी अपने सुखदुख के खुद साथी थे, इसलिए आप उन को हरदम बड़बड़ाते हुए और बेवजह मुसकराते हुए देख सकते थे. यह उन का पागलपन नहीं, बल्कि अपने दुखसुख बांटने के अजबगजब तरीके थे.
सचमुच ऐसे लोग धरती पर बहुत कम हैं, जो अपने दुखों को किसी के संग बांट कर बेवजह किसी को पीड़ा नहीं देते. नहीं तो आज की तारीख में किसी से बात करो, कुछ ही देर में वह अपना दुखड़ा रोने लगता है.
वैसे, आप यह कतई मत सोचिए कि खन्नाजी की पत्नी भाग गईं, तो दूसरी आईं नहीं. सरकारी नौकरी के यही तो फायदे हैं. आमदनी का पक्का जरीया.
खन्नाजी को अच्छीखासी मासिक तनख्वाह मिलती थी, फिर उन्हें बीवियों का अकाल कैसे सता सकता था? कुछ ही दिनों में खन्नाजी फिर शादीशुदा हो गए. दूसरी बीवी आईं बाद में, भाग पहले गईं. मतलब जितनी जल्दी आई थीं, उतनी ही जल्दी वे चली भी गईं, मानो कोई मेहमानदारी निभाने आई हों.
लेकिन कमाल देखिए, खन्नाजी के चेहरे पर इस बार भी जरा सी शिकन नहीं. उन्हें अपनी सरकारी नौकरी पर पूरा भरोसा था कि जब तक उन के पास यह ‘पारस पत्थर’ है तब तक पत्नियां आती रहेंगी. एक ढूंढ़ेंगे, चार मिलेंगीं.
तीसरी पत्नी हाजिर. लेकिन जैसे खन्नाजी की सरकारी नौकरी पक्की थी वैसे ही यह घरवाली भी पक्की निकली. चट्टान की तरह अचल. खन्नाजी हैरान. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि उन्हें इतनी टिकाऊ पत्नी भी मिल सकती है.
लेकिन टिकाऊ पत्नी के साइड इफैक्ट भी टिकाऊ थे. खन्नाजी की पूरी तनख्वाह उन की तीसरी पत्नी राजबाला के हाथों में पहली तारीख को ही आ जाती थी.
राजबाला ने घर को अच्छे से संभाल लिया. घर क्या संभाल लिया, पूरा राजपाट ही अपने हाथ में ले लिया. खन्नाजी अब 2 जगह नौकरी बजाने लगे, एक औफिस में और दूसरी घर पर. घर के हिसाबकिताब से उन्हें कोई लेनादेना नहीं था. हां, कभी पैसे दे कर उन से कोई सामान मंगवाया जाता, तो उस का पाईपाई का हिसाब उन्हें राजबाला को देना होता था. उन की पासबुक, चैकबुक और एटीएम कार्ड पर राजबाला का कब्जा था.
खन्नाजी कीपैड वाला मोबाइल इस्तेमाल करते थे और राजबाला स्मार्ट फोन. औनलाइन शौपिंग में भी राजबाला माहिर हो गई थीं.
धीरेधीरे राजबाला खन्नाजी के कान उमेठना भी सीख गईं. कभीकभी वे उन की पिटाई भी कर देती थीं, तो वे उसे ‘पत्नी का प्रसाद’ समझ कर खा लिया करते थे.
राजबाला हमेशा सोचती थीं कि खन्नाजी की पहली वाली दोनों पत्नियां कितनी बेवकूफ थीं, जो इतने आज्ञाकारी पति को छोड़ कर चली गईं. आखिर सोने का अंडा देने वाली मुरगी को भी कोई छोड़ कर जाता है क्या?
आखिरकार राजबाला को संतान सुख हुआ और उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया. उस का नाम रखा गया दिवाकर. वैसे वे उर्मिला को भी बेटी की तरह ही प्यार करती थीं. मांबेटी में बहुत अच्छे से पटती थी, क्योंकि दोनों ही खन्नाजी को बेवकूफ समझती थीं.
खन्नाजी को इन बातों से कोई मतलब नहीं था, कोई उन को क्या समझाता था. उन की जिंदगी उन के हिसाब से बढि़या चल रही थी. बच्चे बड़े होने लगे तो खन्नाजी बुढ़ाने लगे.
बुढ़ाने का मतलब केवल इतना सा है कि उन के कुछ बालों पर सफेदी आ गई, लेकिन उन की कदकाठी को देख कर यही लगता था ‘अभी तो मैं जवान हूं’.
खन्नाजी ने अपनी सारी जिंदगी किराए के मकान में निकाल दी थी, क्योंकि उन की पत्नियों को उन से ज्यादा लगाव उन की तनख्वाह से रहा था, इसलिए वे कभी मकान खरीदने या बनाने का सपना नहीं देख पाए थे.
तभी कोरोना की दूसरी लहर आ गई. वैसे तो खन्नाजी हमेशा मास्क लगा कर रखते थे, पर नाक के नीचे. फिर कोरोनाजी खन्नाजी को कहां छोड़ने वाले थे. उस ने एक दिन खन्नाजी को धरदबोचा और अजगर की तरह बढि़या से लपेट लिया.
खन्नाजी ने ‘खोंखों’ करना शुरू किया, तो राजबाला ने उन्हें अलग कमरे में डाल दिया. खन्नाजी के रिटायरमैंट में अभी 4 साल बाकी थे.
राजबाला के दिमाग में एक बढि़या विचार आया. उन्होंने फर्रुखाबाद से अपने भाई को बुला कर उस से सलाहमशवरा किया. सलाहमशवरा अव्वल दर्जे का था जैसे साहित्य में अव्वल दर्जे की ‘क्लासिकल रचनाएं’ होती हैं.
तो भाई, सलाहमशवरे का असर यह हुआ कि खन्नाजी को अस्पताल तब ले जाया गया, जब उन में कुछ ही सांसें ही बची थीं. अस्पताल वालों ने उन की बचीखुची सांसें ले कर उन की डैड बौडी को बढि़या से पैक कर के वापस कर दिया.
जब राजबाला और उन का भाई खन्नाजी की डैड बौडी को वापस ला रहे थे, तो वे अंदर से मुसकरा और बाहर से बेतरतीब रो रहे थे.
आप सोच रहे होंगे बेचारे खन्नाजी दुनिया से यों ही चले गए. नहीं भाई नहीं, कोरोना में खन्नाजी की शहादत बहुत काम आई.
श्रीमती खन्नाजी यानी राजबाला की पैंशन बन गई और रेलवे ने दिवाकर को बालिग होने पर कोटे से खन्नाजी की जगह नौकरी देने का वचन दिया. बहनभाई का सलाहमशवरा सौ फीसदी कामयाब रहा.
इस का मतलब यह नहीं कि राजबाला ने खन्नाजी के गुजर जाने पर उन की शहादत पर कुछ किया ही न हो. उन की तेरहवीं धूमधाम से मनाई गई. सब को बढि़या पकवान खिलाए गए. हम भी मेवे वाली खीर और रसगुल्ले डकोस कर आए. खन्नाजी की शहादत सच में शानदार रही. Hindi Story