Hindi Family Story: ‘कुछ सुना तुम ने?’
‘क्या हुआ है?’
‘कामिनी ने अपने किराएदार विवेक से शादी कर ली.’
‘यह तो एक दिन होना ही था.’
‘यह सब उस की मां की सोचीसमझी चाल है.’
‘अरे, किराएदार होने के नाते उस ने इतनी छूट दे रखी थी.’
‘यों कहो कि दहेज बचा लिया.’
‘हां, दहेज तो बचा लिया, सो बचा लिया. मगर एक मां को इतनी खुली छूट नहीं देनी चाहिए थी.’
‘अरे, जवान बेटी के होते उस ने किसी कुंआरे को मकान किराए पर दिया ही क्यों?’
‘फिर उस ने किराए की कीमत ब्याज समेत वसूल कर ली.’
पूरे महल्ले में यही सब चर्चा चल रही थी.
रमा देवी विधवा थीं. उन के पति ज्वालाप्रसाद सेल्स टैक्स अफसर थे. जब वे जिंदा थे, तभी से उन्होंने रहने के लिए बड़ा मकान बना लिया था. रिटायरमैंट के एक साल के बाद उन की मौत हो गई. उन के 2 बेटे प्रदीप और नवीन सरकारी नौकरी में अच्छे पदों पर थे.
बड़ा बेटा प्रदीप जबलपुर में असिस्टैंट इंजीनियर था, तो छोटा बेटा नवीन सैंट्रल बैंक औफ इंडिया गुना में मैनेजर था. दोनों की शादी कर उन की गृहस्थी बसा दी गई. वे अपने बीवीबच्चों के साथ मजे में थे. बड़ी बेटी करुणा की शादी कर के वे निश्चिंत हो गए थे.
कामिनी सब से छोटी बेटी थी. वह अभी तक कुंआरी थी, जो कालेज में पढ़ रही थी. मकान का कुछ हिस्सा रमा देवी ने किराए पर दे रखा था. एक कमरा ऊपर वाला अभी 2 महीने पहले ही खाली हुआ था, इसलिए उस के लिए कोई किराएदार चाहिए था, जिस की खोजबीन जारी थी. आखिरकार किराएदार की खोज पूरी हुई.
उस दिन भरी दोपहर में ऐसे ही कामिनी ने दरवाजा खोला, तो सामने एक नौजवान को खड़ा पाया. दोनों की नजरें मिलीं. नौजवान कामिनी को एकटक देखता जा रहा था.
तब कामिनी संकोच से शरमा गई. वह बोली, ‘‘कहिए?’’
वह नौजवान बोला, ‘‘सुना है, आप के यहां कोई कमरा खाली है और उसे किराए पर देना है?’’
‘‘आप ने सही सुना है. क्या आप किराएदार बन कर आए हैं?’’
‘‘हां,’’ उस नौजवान ने कहा.
‘‘भीतर आइए,’’ कामिनी ने जब यह कहा, तब उस ने नौजवान के चेहरे को गौर से देखा, तो पाया कि वे तो उसी के कालेज के नए असिस्टैंट प्रोफैसर विवेक शर्मा हैं.
कामिनी उन्हें सोफे पर बैठा कर अंदर चली गई. थोड़ी देर बाद रमा देवी आ कर बोलीं, ‘‘कहिए मिस्टर, कमरा देखने आए हो?’’
‘‘जी हां अम्मांजी,’’ उस नौजवान ने हाथ जोड़ कर उठते हुए कहा.
‘‘फिलहाल तो एक कमरा खाली है, उसे किराए पर देना है. मगर किराए पर देने से पहले मैं आप की जानकारी लेना चाहती हूं,’’ रमा देवी ने कहा.
‘‘ले लीजिए अम्मांजी, मैं देने को तैयार हूं.’’
‘‘नाम क्या है? करते क्या हो? कहां के रहने वाले हो?’’ जब रमा देवी ने एकसाथ कई सवाल पूछ लिए, तब वह नौजवान बोला, ‘‘अम्माजी, मेरा नाम विवेक शर्मा है. मैं कालेज में असिस्टैंट प्रोफैसर हूं और उज्जैन का रहने वाला हूं.
‘‘जाति से ब्राह्मण हो. मगर यह बताओ, तुम शादीशुदा हो या कुंआरे?’’ रमादेवी का अगला सवाल सुन कर विवेक शर्मा कुछ पल तक नहीं बोला.
तब रमा देवी ने फिर पूछा, ‘‘तुम ने बताया नहीं.’’
‘‘जी अम्मांजी, अभी कुंआरा हूं.’’
‘‘तब तो कमरा नहीं मिलेगा,’’ रमा देवी इनकार करते हुए बोलीं.
‘‘मेरे साथ मेरी अम्मां भी रहेंगी.’’
‘‘ठीक है, तब तो चलेगा. आइए, चल कर कमरा देख लीजिए,’’ कह कर रमा देवी विवेक को कमरा दिखाने ऊपर ले गईं.
थोड़ी देर बाद वे दोनों लौटे, तब तक कामिनी चाय ला चुकी थी.
चाय पीते हुए विवेक ने कहा, ‘‘मुझे कमरा पसंद है. किराया बता दीजिए.’’
‘‘मगर मैं अनजान पर कैसे भरोसा कर लूं. किसी की गवाही चाहिए,’’ रमा देवी की यह बात सुन कर विवेक कोई जवाब नहीं दे पाया. अभी 2 महीने पहले ही वह ट्रांसफर हो कर यहां आया है. गवाही किस से दिलवाए, यह समस्या थी.
तभी रमा देवी उसे चुप देख कर बोलीं, ‘‘जवाब नहीं दिया.’’
‘‘अभी मैं इस शहर में नयानया आया हूं…’’ विवेक ने कहा, ‘‘मगर आप मुझ पर विश्वास रखिए, मैं आप को किराया हर महीने दूंगा. आप किराया बता दीजिए.’’
‘‘किराया 1,500 रुपए लगेगा,’’ रमा देवी बोलीं, ‘‘लाइट और पानी का खर्च अलग से देना होगा. मंजूर हो तो आ कर रह सकते हो.’’
‘‘आप एक छोटे से कमरे का किराया ज्यादा बता रही हैं,’’ विवेक बोला.
‘‘किराया तो यही लगेगा. इस से एक पैसा भी कम नहीं होगा…’’ रमा देवी अपना फैसला सुनाते हुए बोलीं, ‘‘रहना है तो रहो. हां, एक महीने का किराया एडवांस देना होगा.’’
‘‘ठीक है, मुझे मंजूर है,’’ कह कर विवेक ने कामिनी की तरफ देख कर अपने हथियार डाल दिए. फिर रमा देवी के हाथों में एडवांस थमाते हुए वह बोला, ‘‘लीजिए यह एडवांस किराया. मकान में सब तरह की सुविधाएं हैं, इसलिए महंगा किराया भी चलेगा.’’
इतना कह कर विवेक हाथ जोड़ कर बाहर निकल गया. एक बार उस ने कामिनी की ओर देखा, फिर कामिनी अपनी मां से बोली, ‘‘मम्मी, ये तो वही सर हैं, जो हमारे कालेज में आए हैं.’’
‘‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया?’’ रमा देवी जरा डांटते हुए बोलीं, ‘‘मगर है बड़ा समझदार. मैं ने उसे ब्राह्मण समझ कर किराए पर रखा है.’’
विवेक पहली तारीख को रमा देवी के मकान में किराएदार बन कर आ गया और थोड़े दिनों में ही उस ने रमा देवी का विश्वास जीत लिया. अब उस का ज्यादातर समय रमा देवी के यहां बीतने लगा. वह खुल कर बातें करने लगा. अगर कोई बाहरी आ जाए तो विवेक को किराएदार नहीं, बल्कि परिवार का एक जिम्मेदार सदस्य ही समझता था.
जब उन के बीच पारिवारिक संबंध बन गए, तब विवेक और कामिनी के बीच संकोच की दीवार भी टूट गई. दोनों के बीच खुल कर बातें होने लगीं. विवेक से पढ़ने के बहाने कामिनी बिना किसी रोकटोक के उस के कमरे में घंटों बैठी रहती थी.
कभीकभार विवेक कामिनी को घुमाने ले जाने लगा, जबकि रमा देवी ने कभी इस का विरोध नहीं किया. मगर धीरेधीरे यह बात महल्ले और रिश्तेदारों में फैलने लगी. विवेक किराएदार बन कर जरूर आया है, मगर अपने घर जमाई बनने का देख रहा है. अगर कोई अपरिचित उन्हें साथसाथ देख लेते थे, तब वे विवेक को कामिनी का पति समझते थे.
‘रमा देवी ने इन दोनों को इतनी छूट दे रखी है कि दोनों बेशर्मी से घूमते है.’
‘कामिनी तो पढ़ने के बहाने प्रोफैसर के कमरे में बैठ कर प्रेम गीत लिख रही है.’
‘देखो, रमा देवी इतनी अंधी हैं कि उसी के घर में प्रोफैसर रंगरेलियां मना रहा है. देखना एक दिन कामिनी को बरबाद कर के भाग जाएगा. तब रमा देवी की आंखें खुलेंगी.’
ये सारी बातें रमा देवी के कानों में जरूर पड़ती थीं, मगर उन्होंने इन बातों पर कभी ध्यान नहीं दिया.
जब चर्चा ज्यादा होने लगी तब रमा देवी की खास सहेली कमला देवी आ कर बोलीं, ‘‘ऐ रमा, मैं क्या सुन रही हूं…’’
‘‘क्या सुन रही है कमला?’’ रमा देवी नाराजगी से बोलीं.
‘‘अरे वह प्रोफैसर, कामिनी के साथ ज्यादा ही दिख रहा है और तू अंधी बनी हुई है.’’
‘‘कमला, यह तू महल्ले वालों की भाषा बोल रही है.’’
‘‘क्या मतलब है तेरा?’’
‘‘मेरा मतलब यह है कि तू भी वही कह रही है, जो पूरा महल्ला कह रहा है.’’
‘‘अरे, महल्ले ने जो देखा है, वही मैं ने भी देखा है.’’
‘‘और तू महल्ले वालों की हां में हां मिला रही है.’’
‘‘महल्ले वालों की हां में हां नहीं मिला रही हूं, बल्कि इन आंखों से देखा है, इसलिए कह रही हूं…’’ कमला देवी बोलीं, ‘‘मेरा कहना मान, उस प्रोफैसर को निकाल दे. एक दिन वह कामिनी को बरबाद कर के भाग जाएगा.’’
‘‘मगर तुम लोगों में से किसी ने भी प्रोफैसर को नहीं समझा,’’ रमा देवी बचाव करते हुए बोलीं.
‘‘अच्छा तो तू उसे पूरी तरह समझ चुकी है. बता क्या समझी तू? जवाब दे? चुप क्यों है? इस प्रोफैसर पर तू घमंड कर रही है, देखना एक दिन कामिनी को ले कर भाग जाएगा. तब तेरी यह अंधी आंखें खुलेंगी… इसलिए कहती हूं कि तू प्रोफैसर से कमरा खाली करा कर निकाल दे.’’
‘‘मगर कमला, कामिनी मेरी बेटी है और उस की मुझे भी चिंता है.’’
‘‘क्या खाक चिंता है तुझे. चिंता होती तो जवान बेटी के होते उस प्रोफैसर को कमरा नहीं देती.’’
‘‘अरे, मैं ने कमरा दे दिया तब तेरे पेट में क्या मरोड़ उठ रही है?’’
‘‘मैं तेरी सहेली हूं, इस नाते कह रही हूं…’’ एक बार फिर कमला देवी समझाते हुए बोलीं, ‘‘अगर तेरी समझ में नहीं आता है. तो तू जान तेरा काम जाने. अब मैं कभी नहीं कहूंगी. और दे अपनी बेटी को मनचाही छूट.
‘‘अभी मेरी बात तेरी समझ में नहीं आ रही है. जब पानी सिर से गुजर जाएगा, तब मेरी बात तेरे समझ में आएगी. मगर तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. अच्छा चलती हूं,’’ इतना कह कर कमला देवी नाराज हो कर वहां से चली गईं.
कामिनी और विवेक का प्यार अब तक पूरी तरह परवान चढ़ चुका था, मगर रमा देवी की तब भी आंखें नहीं खुलीं. लोगों में अब चर्चा बहुत गरम चलने लगी कि रमा देवी ने खुली छूट दे रखी है, तभी तो वे दोनों साथसाथ दिखाई देते हैं. कालेज में गुरुशिष्य का नाता घर आ कर बदल जाता है.
कामिनी विवेक के स्कूटर पर ही बैठ कर कालेज आती जाती है. महल्ले वाले अपनी निगाह से देख रहे थे और तरहतरह की बातें कर रहे थे.
यह बात रिश्तेदारों में भी पहुंच गई. वे भी मौका आने पर टिप्पणी करने से नहीं छूटते थे, सारा कुसूर रमा देवी को दे रहे थे. मगर रमा देवी की हालत यह थी कि जब भी वे अपने बेटों से कामिनी के लिए लड़का देखने की बातें करतीं, तब वे उन्हें उलटा कहते कि अम्मां तुम ही ढूंढ़ लो. हमें नौकरी के चलते फुरसत नहीं है.
इस तरह दोनों बेटे हाथ झटक लेते थे. विधवा रमा देवी ने कई जगह बात चलाई, मगर कुछ जगह दहेज ज्यादा मांगने के चलते बात टूट जाती, और कुछ को रमा देवी ने इसलिए खारिज कर दिया कि वे कोई नौकरी व कामधंधा नहीं करते थे. कामिनी को वे ऐसे घराने में ब्याहना चाहती थीं कि वह सुख से रह सके.
ऐसे में विधवा रमा देवी ने कहांकहां दौड़ नहीं लगाई. आगेपीछे उस की शादी तो करना ही है, इसी वजह से कामिनी और विवेक को उस ने ज्यादा छूट दे रखी थी.
आखिर वही हुआ, जिस की उम्मीद थी. कामिनी और विवेक ने गुपचुप तरीके से कोर्टमैरिज कर ली. शादी कर वे उज्जैन चले गए. तब यह बात सारे महल्ले के साथ रिश्तेदारों में भी फैल गई. रमा देवी जो चाहती
थीं, वह हो गया. मगर अब रिश्तेदारों व महल्ले वालों के ताने भी वे सुन रही थीं.
जब रमा देवी ने इस बात की खबर अपने दोनों बेटों को दी, उन्होंने भी यही राय दी कि हमें भी यह रिश्ता मंजूर है. कामिनी ने जिस से भी शादी की, वह कमाऊ है. तुम भी तो कमाऊ दामाद चाहती थीं. रहा रिश्तेदारों और महल्ले वालों का तो थोड़े दिनों तक कह कर वे भी चुप हो जाएंगे. Hindi Family Story