Unemployment Issues: केंद्र सरकार समयसमय पर नई योजनाएं लाती है. इन का मकसद बताया जाता है रोजगार पैदा करना, कौशल विकास और अपने पैरों पर खड़ा होना. टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर बड़ेबड़े प्रचार अभियान चलते हैं, लेकिन कुछ महीनों बाद हकीकत सामने आती है और ऐसी योजनाएं जनता को राहत देने के बजाय राजनीतिक प्रचार और ठेकेदारी के कारोबार में बदल जाती हैं.

रोजगार मेले का सच

केंद्र और राज्य सरकार द्वारा राज्य की राजधानी और हर जिले में रोजगार मेले का आयोजन किया जाता है. ऐसे रोजगार मेले में कंपनियों द्वारा नौजवानों से आवेदन लिया जाता है और उन्हें चुना जाता है. महज 10-12 हजार रुपए महीना की नौकरी पर इन्हें महानगरों में ले जाते हैं.

पर जो नौजवान इन कंपनियों में काम करते हैं, उन के पास इतने पैसे नहीं बचते हैं कि वे अपने घरपरिवार के लिए भेज सकें. इन कंपनियों को कम पैसे में सस्ते कामगार मिल जाते हैं. सरकार को दिखाने के लिए यह भी हो जाता है कि हम ने इतने लोगों को रोजगार दिया.

इसी तरह सरकार ने अग्निवीर योजना को देशभक्ति और स्थायी रोजगार का मेल बताते हुए प्रचारित किया. लेकिन यह स्थायी भरती नहीं थी, बल्कि 4 साल की अस्थायी नौकरी.

पहले बैच का कार्यकाल अब खत्म होने को है, पर न सेना में स्थायी जगह, न आगे की नौकरी की गारंटी. जो नौजवान बड़ी उम्मीदों के साथ इस में गए थे, वे अब महल्लों, अपार्टमैंट्स और दुकानों में सिक्योरिटी गार्ड बन कर काम करने को मजबूर होंगे.

क्या 4 साल सेना में काम करने के बाद यही सम्मानजनक भविष्य था? यह योजना न सेना के लिए लाभकारी साबित हुई और न ही नौजवानों के लिए.

विश्वकर्मा योजना : हवाई सपनों की हकीकत

सरकार ने बढ़ई, धोबी, सुनार और दूसरे परंपरागत कामगारों के लिए विश्वकर्मा योजना शुरू की. दावा था कि 2 लाख रुपए की मदद से उन की जिंदगी बदलेगी. पर जमीनी हकीकत यह है कि पहले लंबी ट्रेनिंग करनी है, उस के बाद काम शुरू करने के लिए लोन मिलेगा, जिसे ब्याज समेत चुकाना पड़ेगा.

जो लोग रोजाना की कमाई पर जीते हैं, वे इतने लंबे प्रोसैस और कर्ज के बोझ के लिए तैयार नहीं हो पा
रहे हैं और न ही इस योजना से उन का भविष्य अच्छा दिख रहा है. यह योजना भी अब ठंडी पड़ गई है.

लाभार्थी उम्मीद से बहुत कम हैं. सरकारी कोशिश के बाद भी इस ओर लोग खिंच नहीं पा रहे हैं.

इंटर्नशिप योजना ठेका मजदूरी का जाल

सरकार ने ग्रेजुएट से ले कर इंजीनियर और मैनेजमैंट पास नौजवानों के लिए इंटर्नशिप योजना शुरू की है. वादा था कि अनुभव के बाद स्थायी नौकरी. पर हकीकत कुछ अलग ही है. बैंकों और निजी कंपनियों ने सस्ते कामगार हासिल कर लिए. नौजवानों ने मेहनत की, लेकिन स्थायी नौकरी नहीं मिली.

इंटर्नशिप के नाम पर ठेका मजदूरी का खेल चल रहा है. इंटर्नशिप के नाम पर साल 2 साल काम करवाते हैं, फिर इन्हें छोड़ देते हैं और दूसरे लोगों को इंटर्नशिप के नाम पर रखते हैं. इंटर्नशिप के नाम पर कम पैसे पर कंपनी को वर्कर मिल रहे हैं.

आंकड़ों का खेल : दावों और हकीकत में खाई

सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022-23 में एक करोड़ नौजवानों को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य रखा गया, औफर मिला 1.25 लाख को, जिस में आवेदन 6.21 लाख आए थे और बुलाए गए महज 82,077. स्वीकार किए गए 28,000, जिस में जौइन केवल 8,700 ने किया.

इस की वजह से नौजवानों में सरकारी योजनाओं के प्रति भरोसा खत्म हो रहा है, क्योंकि उन्हें ठोस रोजगार नहीं मिल रहा, लेकिन इन्हें चलाने वाले एनजीओ और ठेकेदार मालामाल हो रहे हैं. Unemployment Issues

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