Long Hindi Story, लेखक – शकील प्रेम
विनय के पास इनोवा जैसी 2 गाडि़यां थीं. एक वह खुद चलाता था और दूसरी गाड़ी किराए पर दी हुई थी. विनय बिहार के दूरदराज इलाकों तक सवारियों को ले जाता था. हालांकि, ज्यादातर सवारियां रेलवे स्टेशन तक की होती थीं.
सुबह ही विनय की गाड़ी को भगीरथ नाम के एक आदमी ने बुक किया था, जो इस वक्त ड्राइवर की पिछली सीट पर बैठा था. 7 सीटों वाली इनोवा कार में विनय समेत कुल 8 लोग बैठे थे, जिन्हें मोतिहारी से पटना तक जाना था. वे सभी भगीरथ के परिवार के लोग थे. मोतिहारी से पटना का सफर 6 घंटे का था.
गाड़ी के अंदर लगे बैक मिरर पर विनय की नजर पड़ी, तो उस में एक खूबसूरत सा चेहरा नजर आया.
सवारियों में एक शादीशुदा खूबसूरत औरत थी, जिस के बगल में ही भगीरथ बैठा था, जो शायद उस खूबसूरत औरत का पति था.
विनय ने गाड़ी स्टार्ट की और मोतिहारी की भीड़ भरी सड़कों से आगे हाईवे पर आ गया. कभीकभार वह बैक मिरर में झांक कर उस खूबसूरत औरत को देख लेता था.
पीछे बैठी उस औरत के चेहरे पर एक अजीब सी खामोशी थी. यह खामोशी थी या उदासी विनय समझ नहीं पा रहा था.
मुजफ्फरपुर हाईवे पर गाड़ी पहुंचते ही विनय ने म्यूजिक सिस्टम को औन किया. एक रोमांटिक गाना बजना शुरू हुआ, ‘प्यार कभी कम नहीं करना…’
यह गाना बजना शुरू ही हुआ था
कि पीछे बैठी वह खूबसूरत औरत झल्लाते हुए बोली, ‘‘प्लीज… यह गाना बंद कर दो.’’
विनय ने तुरंत उंगली से म्यूजिक सिस्टम का अगला बटन दबा दिया और ‘जिंदगी का सफर, है ये कैसा सफर, कोई समझ नहीं, कोई जाना नहीं…’ गीत बजने लगा.
इस गाने के बजने के साथ ही विनय ने आवाज को कम कर दिया, तभी फिर वही आवाज विनय के कानों में आई, ‘‘आवाज क्यों कम की?’’
आवाज को तेज करते हुए विनय समझ गया था कि पीछे बैठी औरत को शायद पुराने गाने पसंद हैं.
विनय की गाड़ी मुजफ्फरपुर हाईवे पर तेजी से दौड़ रही थी. टोल आने से पहले ही विनय को गाड़ी रोकनी पड़ी, क्योंकि पीछे बैठी एक बूढ़ी औरत को उलटियां होने लगी थीं. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे तीनों लोग नीचे उतरे और उस बूढ़ी औरत को संभालने लगे.
भगीरथ अपनी पत्नी को डांटते हुए बोला, ‘‘सुमन, तुम्हें सुबहसुबह परांठे बनाने की क्या जरूरत थी… तुम मेरी मां को मारना चाहती हो.’’
सुमन कुछ नहीं बोली और पानी से अपनी सास के मुंह को अच्छी तरह साफ कर उन्हें थामते हुए गाड़ी में
ले आई.
जब सुमन की सास गाड़ी में बैठ गईं, तो सुमन ने अपने हाथ धोए और पानी पीने के बाद उस ने विनय की ओर पानी की बोतल बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पानी पी लीजिए.’’
भगीरथ के साथ आया एक लड़का विनय के बराबर में बैठा था, जिसे सुमन की यह हरकत पसंद नहीं आई. वह सुमन की ओर देखते हुए बोला, ‘‘भाभी, ड्राइवर को प्यास लगेगी तो वह खुद पानी पी लेगा. तुम्हें ज्यादा मदर टैरेसा बनने की जरूरत नहीं है.’’
विनय ने गाड़ी स्टार्ट की और आगे बढ़ गया. पीछे बैठा भगीरथ धीमी आवाज में सुमन से कुछ कह रहा था और सुमन सिर नीचे किए सुने जा रही थी.
एक घंटे के बाद भगीरथ के कहने पर विनय ने मुजफ्फरपुरपटना हाईवे के किनारे एक रैस्टोरैंट पर गाड़ी रोक दी. भगीरथ का परिवार गाड़ी से उतर कर सीधा रैस्टोरैंट की ओर बढ़ गया.
सब से आगे भगीरथ अपनी मां के हाथ को थामे चल रहा था, उस के पीछे परिवार के बाकी लोग थे और सब से पीछे सुमन थी.
सुमन को देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह भी भगीरथ के परिवार का हिस्सा है. भगीरथ को तो अपनी पत्नी की जरा भी परवाह नहीं थी और ऐसा लगता था कि सुमन ने भी परिवार की परवाह करना छोड़ दिया था.
रैस्टोरैंट में अंदर दाखिल होने से पहले सुमन ने विनय की ओर देखा और हाथ के इशारे से कुछ खा लेने को कह कर वह अंदर दाखिल हो गई.
विनय के लिए यह लमहा बेहद भावुकता भरा था. विनय की उम्र 27 साल थी और उस की 3 साल पहले शादी हो चुकी थी, लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही विनय की बीवी मीनाक्षी अपने पहले प्रेमी के साथ चली गई थी.
विनय तभी से औरतों से नफरत करता था, लेकिन सुमन जैसी औरत को देख कर उसे एहसास हुआ कि कुछ औरतों के वजूद में ही मुहब्बत की खुशबू होती है.
सुमन के प्रति विनय का खिंचाव हर पल बढ़ता जा रहा था, लेकिन उसे पता था कि बस कुछ ही देर में मुहब्बत की यह खुशबू दुनिया की भीड़ में हमेशा के लिए खो जाएगी.
रैस्टोरैंट से निकलते भगीरथ को देख कर विनय ने गाड़ी का दरवाजा खोल दिया. विनय की नजरें सब से पीछे चल रही सुमन को ढूंढ़ रही थीं. सभी के गाड़ी में बैठने के बाद सुमन भी बैठ गई और विनय ने गाड़ी को स्टार्ट कर वहां से आगे बढ़ा ली.
पीछे बैठा भगीरथ सुमन पर चिल्ला रहा था, ‘‘तुम्हारे मांबाप ने यही सिखाया है कि किसी की इज्जत न करो. अरे, अगर तुम मां के साथ टौयलेट में चली जाती तो छोटी हो जाती. मेरी किस्मत ही खराब थी, जो तुम जैसी औरत मेरे गले पड़ गई.’’
भगीरथ गुस्से में था. अपने बेटे के गुस्से को शांत करने के बजाय भगीरथ की मां उस के गुस्से को और भड़काने में लगी थीं, ‘‘जाने दे बेटा, किस्मत तो मेरी फूटी थी, जो मैं ने सोहनलाल की बेटी के रिश्ते को ठुकरा कर इस नकचढ़ी से तेरी शादी कराई.’’
दोनों मांबेटे के बीच बैठी सुमन बिलकुल खामोश थी. उस की आंखों में आए आंसू भी सूख चुके थे. विनय के लिए सुमन के साथ होने वाला यह बरताव बरदाश्त से बाहर की बात थी, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था.
तभी भगीरथ की तेज आवाज विनय तक आई, ‘‘भैया, थोड़ा तेज चलाओ.
5 बज कर 10 मिनट पर हमें पटना से चेन्नई की ट्रेन पकड़नी है. और 4 यहीं बज गए हैं.’’
विनय ने कहा, ‘‘आप चिंता न कीजिए. मुझे खुद भी जल्दी है, क्योंकि आप लोगों को स्टेशन छोड़ने के बाद मुझे घर भी लौटना है.’’
विनय ने गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और थोड़ी देर में ही वह गांधी सेतु पर पहुंच गया. भयंकर ट्रैफिक जाम से निकलते ही पटना स्टेशन आ गया.
विनय ने गाड़ी की छत से सामान उतारना शुरू किया. गाड़ी की छत पर सुमन का सूटकेस भी था, जिस के लिए वह खड़ी थी.
तभी भगीरथ सुमन के करीब आया और उस ने एक जोरदार थप्पड़ सुमन के गाल पर जड़ दिया, ‘‘तुम्हें अपने सूटकेस की पड़ी है और गाड़ी में जो सामान है, उस की कोई चिंता नहीं. वह सामान क्या तुम्हारा बाप उठाएगा.’’
विनय के मन में आया कि वह अभी छत से नीचे उतरे और भगीरथ को जान से मार दे, लेकिन तभी सुमन ने उस की ओर देखा जैसे कह रही हो कि ‘गुस्से पर काबू पाओ विनय’.
सुमन के कंधे पर एक भारी बैग था और उस के हाथ में एक सूटकेस था, जिसे वह घसीटते हुए भगीरथ के परिवार के पीछेपीछे चल रही थी. भगीरथ सामान उठाने के लिए कुली भी कर सकता था, लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. भगीरथ सारा सामान परिवार वालों के हाथों में दे कर खुद खाली हाथ चल रहा था.
विनय को अपनी गाड़ी का किराया मिल चुका था. अब वह अपनी गाड़ी ले कर घर जा सकता था, लेकिन सुमन अभी उस की आंखों से ओझल नहीं हुई थी.
प्लेटफार्म नंबर एक की ओर मुड़ते हुए सुमन ने पीछे मुड़ कर विनय की ओर देखा और फिर विनय की आंखों से ओझल हो गई.
विनय ने गाड़ी स्टार्ट की और उसे सड़क पर एक साइड में खड़ी कर प्लेटफार्म नंबर एक की ओर बढ़ गया. विनय को खुद नहीं मालूम था कि वह प्लेटफार्म पर क्यों जा रहा है. उसे न गाड़ी की फिक्र थी और न ही अपनी कोई चिंता थी. वह तो सुमन के सम्मोहन में खोया हुआ था.
ऐसा नहीं था कि विनय सुमन की खूबसूरती के सम्मोहन में उस के पीछे चल पड़ा था, बल्कि विनय को सुमन की चिंता सता रही थी, इसलिए वह प्लेटफार्म नंबर एक की तरफ बढ़ गया.
पटना स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक पर खड़ी चेन्नई जाने वाली ट्रेन खचाखच भरी हुई थी. विनय ने भीड़ में सुमन को ढूंढ़ना शुरू किया. इसी बीच गाड़ी तेज हौर्न के साथ प्लेटफार्म से खिसकना शुरू हो गई. बहुत से लोग तेजी से चलती ट्रेन में घुस रहे थे.
विनय को लगा कि सुमन और उस का परिवार ट्रेन में बैठ चुका है, फिर भी वह गाड़ी को प्लेटफार्म से पूरी तरह चले जाने का इंतजार करने लगा.
जब ट्रेन पूरी तरह आंखों से ओझल हो गई, तब ही विनय प्लेटफार्म से बाहर जाने के लिए एक तरफ मुड़ा, तभी उस के सामने सुमन खड़ी नजर आई.
सुमन को देख कर विनय बुरी तरह चौंक गया. सुमन के हाथों में सिर्फ उस का सूटकेस था. विनय ने सूटकेस अपने हाथों में लिया और बोला, ‘‘सुमनजी, लगता है, आप की ट्रेन छूट गई है. आप अपने घर फोन कर दीजिए, मैं आप को आप के घर तक छोड़ दूंगा.’’
सुमन ने अपने हाथ में पकड़ी पानी की बोतल विनय की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मेरा कोई घर नहीं है.’’
विनय ने हैरानी भरी आवाज में कहा, ‘‘आप ऐसा क्यों बोल रहीं हैं? आप लोग मोतिहारी से बैठे थे न. वहीं आसपास आप की ससुराल होगी. ससुराल नहीं जाना हो तो मायके चली जाइएगा. बताइए, मैं आप को कहां तक छोड़ दूं?’’
सुमन ने विनय से पूछा, ‘‘क्या यहां आसपास कोई लौज होगा? चेन्नई की अगली ट्रेन 2 दिन के बाद इसी प्लेटफार्म से खुलेगी, तब तक के लिए मुझे स्टेशन के नजदीक के किसी लौज में ठहरने का बंदोबस्त कर दीजिए.’’
विनय ने कहा, ‘‘क्या आप का पति अगले स्टेशन पर उतर कर आप को यहां से नहीं ले जाएगा?’’
सुमन ने कहा, ‘‘मेरे पैरों में दर्द है, जिस की वजह से ट्रेन खुलते समय मैं पीछे रह गई. उन्होंने मुड़ कर भी नहीं देखा. ट्रेन खुल गई तो मैं ने उन्हें फोन किया, तो उन्होंने कहा कि नजदीक के लौज में ठहर जाओ, अगली ट्रेन से चेन्नई आ जाना.
मुझे कल सुबह तत्काल में अगली ट्रेन की रिजर्वेशन भी करवानी है, इसलिए स्टेशन के पास ही कोई लौज मिल जाए तो बेहतर होगा.’’
विनय ने कहा, ‘‘क्या आप के पति आप की टिकट करवा कर आप के ह्वाट्सएप पर नहीं भेज सकते? यह जिम्मेदारी तो उन की है न…’’
सुमन ने कहा, ‘‘प्लीज, आप लौज दिलवा दीजिए.’’
विनय ने कहा, ‘‘देखिए सुमनजी, यहां लौज तो मिल जाएगा, लेकिन आप अकेली हैं और यहां के माहौल से
भी आप बिलकुल अनजान हैं. अगर आप को मुझ पर भरोसा हो, तो आप मेरे घर चल सकती हैं. वहां मेरी मां और मेरी छोटी बहन हैं. उन के साथ आप का मन लग जाएगा. कल सुबह मैं ही आप की तत्काल टिकट निकलवा दूंगा और आप को यहां से ट्रेन में भी बिठा दूंगा.’’
सुमन काफी देर सोचती रही, फिर विनय के साथ उस के घर जाने को तैयार हो गई. एक अजनबी शहर में एक अजनबी के साथ अनजानी राहों पर सुमन की जिंदगी की गाड़ी विनय की गाड़ी के साथ चल रही थी. जिंदगी के इस सफर में सुमन को एक अनजाना सा हमराही मिल गया था, जिस पर उसे न जाने क्यों पूरा भरोसा था.
पटना से मोतिहारी के 6 घंटे के सफर में सुमन विनय के बगल वाली सीट पर खामोशी से बैठी रही. इस बीच विनय ने भी उस से कोई सवाल नहीं किया. जिस औरत की जिंदगी ही एक सवाल हो, उस से दूसरा सवाल भी क्या करना?
विनय की इनोवा की अगली सीट पर बैठी सुमन की आंखे बंद थीं. शायद थकान की वजह से वह सो गई थी या आंखें बंद कर अपनी जिंदगी की दुश्वारियों में खो चुकी थी.
विनय बारबार सुमन के खूबसूरत चेहरे को देखता और फिर नजरें घुमा लेता.
रात के 12 बज चुके थे. विनय ने सोती हुई सुमन को आवाज दी, ‘‘सुमनजी, मेरा घर आ गया है.’’
विनय सूटकेस ले कर घर में दाखिल हुआ. सामने विनय की मां और उस की बहन लता खड़ी थीं. विनय के साथ एक खूबसूरत औरत को देख कर वे दोनों काफी हैरान थीं.
विनय ने अपनी मां से कहा, ‘‘मां, ये सुमनजी हैं. इन की ट्रेन छूट गई है, तो मैं इन्हें अपने घर ले आया हूं. 2 दिन बाद अगली ट्रेन है, उस से ये चली जाएंगी.’’
सुमन का सूटकेस लता ने अपने हाथों में लिया और सुमन को ले कर अपने कमरे में चली गई.
अगली सुबह विनय को बहुत सारा काम था. सुमन का तत्काल टिकट करवाना था और सुमन के साथ कुछ वक्त भी गुजारना था, वरना वह 2 अजनबी महिलाओं के साथ बोरियत महसूस करती.
विनय की बहन लता सुमन के साथ घुलमिल गई थी. वह तो सुमन से ऐसे खुश थी जैसे सुमन उस की भाभी हो. सुमन नहाधो कर फ्रैश हो चुकी थी. नए सूट में वह और भी खूबसूरत लग रही थी.
मां ने सुबह का नाश्ता तैयार कर दिया और चारों ने साथ बैठ कर नाश्ता किया. सुमन के घर में आने से घर की रौनक बढ़ गई थी, लेकिन यह रौनक सिर्फ अगले दिन के लिए ही तो थी.
नाश्ते के बाद विनय सुबहसवेरे सुमन की तत्काल टिकट निकलवा लाया और सुमन के हाथों में टिकट रखते हुए वह धीरे से बोला, ‘‘यह लीजिए, कल शाम 5 बज कर 10 मिनट पर चेन्नई की टिकट.’’
सुमन ने विनय के हाथों से टिकट थामते हुए विनय की ओर देखा और बोली, ‘‘टिकट के कितने रुपए देने हैं?’’
विनय ने कहा, ‘‘आप रुपयों की टैंशन छोडि़ए, जब सहीसलामत चेन्नई पहुंच जाना, तो मुझे एक फोन कर देना. बस, वही मेरा मेहनताना होगा.’’
टिकट को मुट्ठी में भींचे सुमन कमरे की ओर बढ़ गई. टिकट कंफर्म होने की कोई खुशी सुमन के चेहरे पर नहीं थी, बल्कि वह चेन्नई जाने का नाम सुन कर ही उदास हो गई थी.
विनय ने लता को आवाज दी और कहा, ‘‘लता, देखो मौसम कितना सुहाना है, तुम सुमन को नदी के किनारे वाले हमारे बगीचे में घुमा लाओ. उन्हें अच्छा लगेगा और दिन भी कट जाएगा. दोपहर तक आ जाना, तब तक खाना तैयार हो जाएगा. फिर सब साथ ही बैठ कर खाएंगे.’’
विनय की बात सुमन ने भी सुन ली थी. वह बोली, ‘‘लता के साथ आप भी चलो न बगीचे में.’’
सुमन की बात सुन कर लता मन ही मन मुसकराई और बोली, ‘‘भैया, आप और सुमनजी दोनों ही बगीचे में चले जाओ. मुझे पढ़ाई करनी है. 2 दिन बाद मेरा इम्तिहान है.’’
थोड़ी ही देर में विनय और सुमन नदी के किनारे बैठे थे. हवा का तेज झांका जब भी सुमन के चेहरे पर पड़ता, उस के खूबसूरत बाल हवा में लहराने लगते. सुहाना मौसम, नदी का किनारा और विनय जैसे आदमी का साथ पा कर सुमन बहुत खुश थी और विनय के लिए भी यह जिंदगी का सब से खूबसूरत पल था.
तभी सुमन की खूबसूरत आवाज विनय के कानों तक आई, ‘‘विनय, पता है, आसमान और जमीन कभी नहीं मिल पाते, लेकिन ये बादल और यह मौसम ही दोनों को मिला देते हैं. आसमान में उठती हवाएं और आसमान के बादलों से बरसती बूंदें कुछ पल के लिए आसमान और जमीन को एक कर देती हैं.’’
विनय को सुमन की बातों की गहराई सम?ा नहीं आई. वह बोला, ‘‘सुमनजी, क्या मैं आप के बारे में कुछ जान सकता हूं?’’
सुमन ने गहरी सांस ली और कहा, ‘‘भगीरथ से मेरी शादी पिछले साल ही हुई थी. मैं गोपालगंज की रहने वाली हूं और भागीरथ का गांव मोतिहारी है.
2 साल पहले जब मैं बीए में थी, तभी भागीरथ का रिश्ता आया. उस वक्त मैं प्रकाश से प्यार करती थी.
प्रकाश गरीब परिवार से था और जाति भी उस की अलग थी. वह आजीविका के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. भगीरथ सरकारी नौकरी में था और पिछले कई सालों से चेन्नई में पोस्टैड था.
‘‘सरकारी नौकरी के चक्कर में मेरे घर वालों ने भगीरथ से मेरी शादी कर दी. मैं चाह कर भी कुछ न कर पाई.
10 दिन पहले भगीरथ के पापा का देहांत हुआ, तो वह अपने परिवार के साथ गांव आया था.
‘‘मैं शादी के बाद भगीरथ के संग चेन्नई चली गई. शादी के बाद मैं भी बहुत खुश थी, लेकिन मेरी यह खुशी जल्दी ही खत्म हो गई. भगीरथ में प्यार नाम की कोई चीज नहीं है. वह छोटीछोटी बात पर मुझे डांटता है और कई बार हाथ उठा देता है. उस के घर वाले भी उसी का साथ देते हैं. भगीरथ के घर में नौकरानी से ज्यादा मेरी कोई औकात नहीं.’’
‘‘मायके में मेरे भैयाभाभी के अलावा कोई नहीं है. मां पहले ही मर चुकी थीं और मेरी शादी के अगले महीने ही मेरे पिताजी भी गुजर गए. तब मैं चेन्नई में थी और भगीरथ ने मुझे अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी नहीं आने दिया था.’’
इतना कह कर सुमन फफकफफक कर रोने लगी. विनय को समझ नहीं आ रहा था कि सुमन को बिना हाथ लगाए चुप कैसे कराए. आखिरकार विनय ने सुमन के सिर पर हाथ रखा और बोला, ‘‘सुमन, चुप हो जाओ. थोड़ी देर में बारिश होने वाली है. हमें घर चलना चाहिए.’’ Long Hindi Story