Family Story In Hindi: गांव में एक पेड़ के नीचे बैठे हरिया, गोपाल, सोमनाथ और बदरी ताश खेल रहे थे. उन के बीच दारू की खाली बोतल लुढ़की पड़ी थी.

बदरी पत्ता फेंकते हुए बोला, ‘‘हरिया, इस बार तो मैं बाजी जीतूंगा.’’

इस से पहले कि हरिया कुछ बोलता, गोपाल ने कहा, ‘‘उस्ताद, वह देख तेरी मंगेतर, सामने सिर पर पानी का घड़ा उठाए…’’

नशे की हालत में सब की नजरें उधर उठीं. रमिया सिर पर पानी का घड़ा उठाए बढ़ी चली आ रही थी.

हरिया का जवान जिस्म एक मीठी आग से जलने लगा था. अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराते हुए वह रमिया के सांचे में ढले जिस्म को इस तरह देख रहा था, जैसे कोई बच्चा मिठाई को देखता है.

हरिया ने अचानक एक पत्थर का टुकड़ा उठाया. फिर… ‘धड़ाक’ की आवाज के साथ रमिया के सिर पर रखा घड़ा फूट गया और उस के कपड़े गीले हो गए.

गुस्से से बेकाबू होते हुए रमिया हरिया और उस के दोस्तों के पास पहुंची, जो उस की हालत पर ठहाके लगा रहे थे.

अचानक रमिया का दायां हाथ घूमा और ‘चटाक’ की आवाज के साथ हरिया का बायां गाल झनझना गया.

‘‘तेरी यह हिम्मत. तू… तू… मुझ पर हाथ उठाती है, अपने होने वाले पति पर… तू…’’ कहते हुए हरिया ने रमिया की बांह मरोड़ दी.

रमिया दर्द के मारे कराह उठी. आंखों में आंसू छलछला आए. अपनी बांह छुड़ाने की कोशिश में वह नाकाम रही. उस की मजबूरी पर हंसते हुए हरिया बोला, ‘‘हाथ थामा है तेरा… इतनी आसानी से यह नहीं छूटने वाला.’’

‘‘मैं तुझे अपना पति बनाऊंगी? कभी आईने में अपनी शक्ल देखी है तू ने. तुझ जैसे शराबी, जुआरी से शादी करने की बजाय मैं मरना पसंद करूंगी,’’ रमिया गुस्से से बोली.

‘‘शादी तो तेरी मुझ से ही होगी. लड़कपन में ही तेरी शादी मुझ से करा दी गई थी. बस, अब तो बरात ले कर आने की बात है. तू मेरी होगी. तेरी यह जवानी मेरी बांहों में…’’ नशे में बड़बड़ा उठा हरिया.

‘‘तुझ से शादी कर के मैं अपनी जिंदगी खराब नहीं करूंगी. मेरी जूती भी तुझ से शादी नहीं करेगी.’’

बेइज्जती की आग में हरिया झुलस उठा था. अपने साथियों के बीच उस की मंगेतर कोरा जवाब दे, इस बात ने उस के गुस्से को और भड़का दिया था, ‘‘देख लेना रमिया, तेरी शादी तो मुझ से ही होगी. आज ही बापू को तेरे घर भेजता हूं. देखता हूं, कब तक बचेगी मुझ से. तेरे सारे कसबल न निकाले तो मेरा नाम हरिया नहीं… समझी?’’

‘‘हुं…’’ रमिया पैर पटकते हुए वहां से चली गई.

रमिया बनवारी लाल की एकलौती बेटी थी. पिता ने रमिया का रिश्ता बचपन में ही अपने दोस्त किशन लाल के बेटे हरिया से कर दिया था. बनवारी ने रमिया को हायर सैकेंडरी पास करवा दी थी.

उधर हरिया पढ़लिख न सका था. बुरे दोस्तों की सोहबत और बाप के लाड़दुलार ने उसे जिद्दी, आवारा व शराबी, जुआरी बना दिया था. गांव की बहूबेटियों को छेड़ना उस के लिए मामूली सी बात थी, गांव वाले कभीकभार किशन लाल को टोकते, शिकायतें करते तो वह कहता, ‘‘जवानी का जोश है न बस, शादी हो जाएगी तो वह खुद ही सुधर जाएगा.’’

पर क्या कुत्ते की दुम कभी सीधी हुई है? सभी सोचते, हरिया नहीं सुधर सकता. पर कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी. सभी हरिया और उस की चांडाल चौकड़ी से डरते थे. वे सोचते कि इस से जो ब्याह करेगी, उस की तो जिंदगी ही बरबाद हो जाएगी.

इस बात को बनवारी भी जानता था, पर अपने पैरों पर वह खुद ही कुल्हाड़ी मार चुका था. वह रमिया का बाल विवाह कर चुका था, वह भी अपने दोस्त के बेटे से. चाह कर भी वह इस रिश्ते को तोड़ नहीं सकता था.

शाम का वक्त था. किशन लाल बनवारी के पास आया. बनवारी चेहरे पर खुशामदी मुसकान लिए बोला, ‘‘कैसे आना हुआ किशन लाल?’’

‘‘बताता हूं… बताता हूं… पहले लस्सी तो पिला.’’

बनवारी समझ गया कि आज कुछ खास बात है. उस ने रमिया को लस्सी और मिठाई लाने को कहा.

‘‘यार, तुम्हारे लिए खुशखबरी है. अब तुम्हारी सारी चिंता दूर हो जाएगी,’’ पहेली सी बुझाते हुए किशन लाल के चेहरे पर एक खास चमक थी.

‘‘कैसी चिंता? मैं समझा नहीं… जरा खुल कर बताओ कि क्या बात है?’’ बनवारी जल्दीजल्दी बोला, जबकि वह समझ गया था कि किशन लाल क्या कहना चाहता है.

‘‘अरे, बुद्धू है यार तू भी… हरिया शादी के लिए मान गया है. मैं तारीख ले कर आया हूं. बेटी की जिम्मेदारियों से अब तू बेफिक्र हो जाएगा.’’

बनवारी का चेहरा बुझ गया. हरिया की हरकतों से वह अनजान नहीं था. क्या कहे, समझ ही नहीं पा रहा था. उस के बुझे चेहरे को देख कर किशन लाल बोला, ‘‘क्या बात है, तुम्हें खुशी नहीं हुई?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ बनवारी लाल धीरे से बोला, ‘‘सोच रहा था कि रमिया इस रिश्ते के लिए…’’

किशन लाल के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘रमिया की आड़ में कहीं तुम अपनी राय तो नहीं बता रहे?’’

बनवारी लाल किशन लाल की नाराजगी को भांप गया था. वह संभलते हुए बोला, ‘‘नहींनहीं, तुम मुझे गलत समझ रहे हो. मैं…’’ इस से आगे वह कुछ बोलता कि रमिया एक हाथ में लस्सी का बड़ा गिलास और एक हाथ में मिठाई की प्लेट ले कर आ गई.

‘‘नमस्ते चाचाजी,’’ रमिया ने कहा.

‘‘जीती रहो बेटी, कैसी हो?’’ आवाज को मुलायम रखते हुए किशन लाल बोला.

‘‘ठीक हूं चाचाजी.’’

‘‘लो बनवारी, बिटिया भी यहीं है… अब इसी से पूछ लेते हैं कि…?’’

बनवारी लाल अचानक घबरा गया और बोला, ‘‘क्या बेटी से यह सब पूछना अच्छा लगेगा?’’

‘‘क्यों, तुम्हीं तो कह रहे थे कि पता नहीं रमिया को यह रिश्ता पसंद है या नहीं?’’ किशन लाल ने चालाकी से बनवारी लाल की बात कह दी थी.

रमिया पलभर में ही सबकुछ समझ गई. वह अपने पिता के झुके चेहरे को देखती रह गई. फिर सोचते हुए बोली, ‘‘चाचाजी, मैं जानती हूं कि मुझे बड़ों के बीच नहीं बोलना चाहिए… पर जहां मेरी जिंदगी का फैसला होने जा रहा हो, तो मेरी राय को भी जानना चाहिए.’’

किशन लाल बोला, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘चाचाजी, शादी गुड्डेगुडि़यों का खेल नहीं हैं और बाल विवाह तो एकदम बेवकूफी है, ढकोसला है. आप मेरी शादी अपने बेटे से करना चाहते हैं, बाल विवाह की आड़ ले कर. मैं उस शराबी, जुआरी से शादी करने की बजाय मर जाना या कुंआरी रहना ज्यादा पसंद करूंगी.’’

‘‘अरे, तू चार जमात क्या पढ़ गई, खुद को अफलातून समझने लगी है. मानता हूं कि मेरा बेटा शराबी है, जुआरी है, पर बेटी, शादी के बाद वह सुधर भी तो सकता है.’’

‘‘और अगर वह न सुधरा तो?’’ रमिया उलट कर बोली.

‘‘तो… तो…?’’ किशन लाल को कुछ न सूझा. वह बगलें झांकने लगा.

‘‘तो आप के बेटे के साथसाथ मेरी जिंदगी भी खराब हो जाएगी,’’ रमिया बोली.

‘‘पर तुम्हारा बाल विवाह हुआ है, तुम अपने बाप के घर मेरे बेटे की अमानत हो,’’ किशन लाल ने आखिरी तीर चलाया.

‘‘बाल विवाह… हुं… एक घिसापिटा रिवाज. मैं ऐसे रिवाजों को नहीं मानती,’’ रमिया गुस्से से बोली.

‘‘देख बनवारी, अपनी बेटी को समझा, वरना बहुत बुरा होगा,’’ किशन लाल ने नीचता पर उतरते हुए धमकी दे डाली.

‘‘किशन लाल, हम वादे को निभाने के लिए पुराने रीतिरिवाजों की खातिर रमिया की जिंदगी से खिलवाड़ नहीं करेंगे,’’ बनवारी लाल बोला.

‘‘बनवारी,’’ किशन लाल चीख उठा, ‘‘देख लूंगा तुम दोनों को. अगर बिरादरी से मैं ने तुम्हारा हुक्कापानी बंद न करवा दिया, तो मेरा नाम किशन लाल नहीं. देख लेना, कल पंचायत बुलाऊंगा मैं. तुम ने मेरी दोस्ती देखी है, अब दुश्मनी देखना,’’ किसी भी तरह अपनी दाल न गलते देख किशन लाल नीचता पर उतर आया था.

फिर वही हुआ, जिस का बनवारी लाल को डर था. किशन लाल ने पंचायत बुलाई.

पंचायत ने अपना फैसला किशन लाल के हक में देते हुए कहा, ‘‘बनवारी लाल को अपनी बेटी रमिया की शादी हरिया से करनी होगी. अगर वह ऐसा नहीं करता तो उस का गांव में हुक्कापानी बंद. उसे अपना फैसला 24 घंटों में पंचायत को सुनाना होगा.’’

पंचायत उठ गई थी. पर बनवारी लाल का दिल बैठ गया. ठगा सा सोचता रह गया कि क्या करे और क्या न करे?

रमिया जानती थी, पंचायत का फैसला. लेकिन अभी पंचायत को उस के फैसले का पता नहीं था. पूरा गांव नींद की आगोश में डूबा था. बाहर घना अंधेरा फैला था. ऐसे में रमिया एक छोटी सी अटैची उठाए गांव से हमेशाहमेशा के लिए दूर जा रही थी. वह अपने पिता को घुटघुट कर मरते नहीं देख सकती थी. वह यह भी जानती थी कि उस के पिता कभी यह गांव नहीं?छोड़ेंगे, इसलिए उस ने गांव छोड़ कर खुद शहर जाने का फैसला कर लिया था.

जैसतैसे रमिया स्टेशन पहुंच गई. पर कहां जाए? कुछ सूझा नहीं. जैसे ही गाड़ी आई, वह सामने वाले डब्बे में चढ़ गई. वह पहले दर्जे का डब्बा था.

एक केबिन में घुस कर रमिया एक खाली सीट पर बैठ गई. अटैची उस ने एक तरफ रखी. खुली खिड़की से बाहर फैले अंधेरे को देखने लगी. गाड़ी चल पड़ी थी. गांव पीछे छूटता जा रहा था और वह अनजानी मंजिल की ओर चल पड़ी थी. पिता के बारे में सोच कर उस की आंखों में आंसू छलक आए थे.

रमिया को याद आया कि जब मां मरी थी तो पिताजी बहुत रोए थे. नन्ही रमिया को सीने से लगाए वह अकसर मां की बातें करते थे. बेटी की खातिर ही उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी. आज उन्हीं पिता को वह गांव में छोड़ आई थी, अकेला और बेसहारा.

सरला देवी उसी डब्बे में सफर कर रहीं थीं. जब से रमिया गाड़ी में चढ़ी थी, वह एकटक उस की हरकतें देख रही थीं. उन की आंखों से यह छिपा नहीं था कि लड़की घर से भागी है. काफी देर सोचने के बाद उन्होंने रमिया से पूछा, ‘‘क्या बात है बेटी, तुम रो क्यों रही हो?’’

भीगी पलकें ऊपर उठीं थीं. रमिया ने सरला देवी को पहली बार देखा. चेहरे पर तेज व चमक लिए एक अधेड़ औरत उस से अपनेपन से पूछ रही थी, ‘‘घर से भागी हो क्या?’’

रमिया चुप रही. सिर झुकाए, कुछ सोचती रही.

‘‘देखो बेटी, मुझे गलत मत समझना. मेरा नाम सरला है. ‘नारी मुक्ति संगठन,’ दिल्ली की मुखिया हूं. अगर तुम्हें कोई परेशानी है तो मुझे बताओ. कहीं तुम हीरोइन बनने के चक्कर में…?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो… मैं…’’ और फिर अंदर की दुखभरी कहानी आंसुओं के संग बहती चली गई. अपनी हर बात उस ने बताई.

‘‘तुम ने ठीक किया बेटी, औरत को अपनी मरजी से फैसले लेने का हक मिलना ही चाहिए. मैं तुम्हारी मदद करूंगी. क्या तुम बालिग हो?’’ सरला देवी ने पूछा.

‘‘जी हां, मैं 19वें साल में हूं.’’

‘‘देखो बेटी, तुम्हारी अभी कोई मंजिल नहीं है. तुम हायर सैकेंडरी पास हो… तुम मेरे पास रह कर कंप्यूटर वगैरह सीख सकती हो. नर्स का कोर्स भी कर सकती हो… आगे अपनी पढ़ाई भी जारी रख सकती हो.’’

सरला देवी के शब्दों ने रमिया को राहत पहुंचाई. उसे लगा कि घर से भाग कर उस ने कोई गलती नहीं की.
सरला देवी की छत्रछाया में 5 साल पंख लगा कर कब उड़ गए, पता ही नहीं चला. इस दौरान रमिया, ‘रमा’ बन चुकी थी. उस ने बीए पास कर लिया था और नर्स का कोर्स भी कर लिया था.

इस दौरान वह अपने पिता को खो चुकी थी. बनवारी लाल ने खुदकुशी कर ली थी. यह सुन कर वह बेहद दुखी हुई थी. पर समय ने उस के इन घावों पर मरहम लगा दिया था.

अब रमा सरकारी अस्पताल में नर्स का काम करती थी. उस के साथ डाक्टर थे, प्रभाकर, बेहद सुलझे हुए, सुंदर और लायक आदमी. वह रमा को चाहने लगे थे. पर अपने प्यार की बात वह होंठों तक न ला पाए थे. इस बात को रमा भी जानती थी.

एक दिन प्रभाकर ने अपनी दिल की बात रमा को कह देने का फैसला कर लिया था. वह बोले, ‘‘रमा, शाम को क्या कर रही हो?’’

‘‘कुछ खास नहीं.’’

‘‘ठीक है, आज घूमने चलेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ रमा ने हौले से कहा.

शाम को डाक्टर प्रभाकर अपनी कार में रमा के साथ घूमने निकल पड़े. एक बाग में वे काफी देर तक चहलकदमी करते रहे कि अचानक प्रभाकर बोले, ‘‘रमा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

रमा एकदम चौंक उठी, ‘‘डाक्टर साहब, आप… आप क्या कह रहे हैं? कहां आप और कहां मैं… एक मामूली सी नर्स.’’

‘‘मैं किसी नर्स से नहीं, तुम से शादी की बात कर रहा हूं,’’ मुसकरा कर प्रभाकर बोले.

‘‘लेकिन… आप मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानते. मैं कौन हूं… किस जात की हूं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानना चाहता. तुम एक सुंदर और सुशील लड़की हो. मेरे लिए इतना ही बहुत है. हां, यह बात और है कि शायद तुम मुझे पसंद न करती हो?’’

‘‘नहीं डाक्टर साहब, आप से जो भी लड़की शादी करेगी, उस की जिंदगी तो खुशहाल हो जाएगी.’’

‘‘तो वह लड़की तुम क्यों नहीं बन जाती?’’ प्रभाकर बोले.

‘‘एक शर्त पर… आप को मेरे बारे में जानना होगा?’’ रमा ने कहा.

‘‘ठीक है आओ, होटल में चलते हैं. तुम जो बताना चाहो, वहां बता देना. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ प्रभाकर हंस कर बोले, मानो उन्हें मंजिल मिल गई हो.

होटल में रमा ने अपनी जिंदगी की किताब प्रभाकर के सामने खोल कर रख दी.

प्रभाकर चुपचाप सुनते रहे, फिर वे बोले, ‘‘बस, तुम ने बहुत अच्छा किया. लड़कपन में की गई शादी तो एक बेहूदा रिवाज है. तुम ने जो कदम उठाया, मैं उस की कद्र करता हूं.

‘‘आज जमाना बदल चुका है. पता नहीं लोग अब भी क्यों उन्हीं घिसेपिटे, मरे, सड़े सांपों को रीतिरिवाजों का नाम दे कर गले से लिपटाए हैं… तुम ने बहुत अच्छा किया रमा. अपने लिए खुद रास्ता तलाश किया.

अब तो दुनिया की कोई ताकत मुझे तुम से शादी करने से नहीं रोक सकती, क्योंकि अब तो तुम ही मेरी दुनिया हो, मेरी जिंदगी हो.’’

जब वे होटल से बाहर निकल रहे थे, तो दोनों के हाथ एकदूसरे के हाथों में थे. Family Story In Hindi

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