Politics Update: देशभर के 4 राज्यों की 5 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के नतीजों का ऐलान जब 23 जून, 2025 को हुआ, तो मीडिया ने इस पर कोई खास कवरेज नहीं दी, क्योंकि इन में भाजपा को करारी शिकस्त मिली थी, जो केवल एक सीट जीत पाई. इस के उलट आम आदमी पार्टी ने 2 सीटें जीत कर सब को चौंका दिया.

ये चुनाव पहलगाम हमले के बाद हुए थे, इसलिए इस लिहाज से ज्यादा अहम हो गए थे कि वोटर सरकार के ऐक्शन और रोल पर क्या सोचता है. इन्हीं दिनों में ‘आपरेशन सिंदूर’ का भी खासा हल्ला मचा हुआ था.

यह सोचना बेमानी है कि उपचुनाव में सौ फीसदी वोटिंग सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर ही होती है, बल्कि राष्ट्रीय घटनाओं का भी मतदान पर खासा असर पड़ता है, फिर पहलगाम हमला तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा हो कर भारतपाकिस्तान के युद्ध की भी वजह बना था.

इस लिहाज से देखें तो भाजपा की सिंदूर भुनाओ मुहिम को कोई भाव नहीं मिला. उस ने एकलौती गुजरात की कड़ी सीट जीती, लेकिन गुजरात की ही पटेल बाहुल्य विसावदर सीट पर उसे मुंह की खानी पड़ी, जहां आप के उम्मीदवार गोपाल इटालिया ने भाजपा के कीर्ति पटेल को 17,000 से भी ज्यादा वोटों से हराया.

दिलचस्प मुकाबला पंजाब की लुधियाना पश्चिम सीट पर भी देखने को मिला. इस सीट से आप के उम्मीदवार संजीव अरोड़ा ने कांग्रेस के भारत भूषण आशु को 10,000 से भी ज्यादा वोटों से शिकस्त दी. भाजपा इस सीट पर तीसरे नंबर पर रही.

जिस तरह लुधियाना के वोटरों ने सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के कामकाज पर रजामंदी की मोहर लगाई, उसी तर्ज पर पश्चिम बंगाल की कालीगंज सीट पर भी वोटरों ने तृणमूल कांग्रेस पर पहले से भी ज्यादा भरोसा जता कर भाजपा के मनसूबों पर पानी फेर दिया.

इस सीट से टीएमसी की उम्मीदवार पेशे से इंजीनियर 38 साला अलीफा अहमद ने भाजपा के आशीष घोष
को तकरीबन 50,000 वोटों से पटकनी दी.

यह सीट इस लिहाज से भी अहम थी कि भाजपा ने यहां भी खुल कर हिंदूमुसलिम किया था और सिंदूर को भी भुनाने का माहौल बनाया था. लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की शोहरत इन सब कवायदों पर भारी पड़ी. अगले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हैं, जिन के मद्देनजर भाजपा खेमे में इस नतीजे और हार के अंतर से मायूसी है.

भाजपा की तरह कांग्रेस को भी इन उपचुनावों में कोई खास कामयाबी नहीं मिली. उस के खाते में एकलौती सीट केरल की नीलांबुर आई, जो उस ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से छीनने में कामयाबी हासिल की.

उस के उम्मीदवार पेशे से फिल्मकार आर्यदान शौकत ने भाकपा (एम) के एम. स्वराज को 11,000 वोटों से हराया.

यह नतीजा इस लिहाज से भी अहम है कि नीलांबुर विधानसभा सीट वायनाड लोकसभा सीट के तहत आती है, जहां से प्रियंका गांधी सांसद हैं यानी वोटर ने उन की लोकप्रियता में और इजाफा ही किया है.

अलगअलग मिजाज वाले इन राज्यों के नतीजे यह तो साबित कर गए कि भाजपा अब पिछड़ने लगी है.

प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के गृह राज्य में ही एक सीट बड़े मार्जिन से हार जाना मामूली बात नहीं है. दूसरी तरफ से आम आदमी पार्टी ने जता दिया है कि वह दिल्ली गंवाने के बाद भी दौड़ से बाहर नहीं हुई है.

कांग्रेस को संगठन लैवल पर अभी और मेहनत की जरूरत है. गांधी परिवार की शोहरत केरल जैसे कुछ राज्यों में तो काम आ सकती है, पर हिंदी बैल्ट में ऐसा दिख नहीं रहा है. Politics Update

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