Social Problem, लेखिका सावित्री रानी

हमारे इस मौडर्न और हाईटैक समाज की नई और जबरदस्त खोज या कहिए कि नई टैक्निकल बीमारी है डिजिटल स्कैम, जो धीरेधीरे समाज की नसों में अपनी जगह बना रही है. स्पैम काल कहो या अकाउंट हैकिंग या फिर साइबर क्राइम, सब इसी बीमारी के भाईबंधु हैं और आज के समाज का कोई भी शख्स इस नई खतरनाक समस्या से अनजान नहीं है.

स्कैमर आज के पढ़ेलिखे समाज का वह डाकू है, जो अपने अड्डे से निकलने की जहमत उठाए बगैर किसी को भी लूट सकता है और लुटने वाले के पास बचने का कोई रास्ता नहीं छोड़ता, क्योंकि वह पहला अटैक इनसान की सोचनेसमझने की ताकत पर ही करता है.

हमारे दिमागों से गोटी खेलते ये ‘स्कैम भाई साहब’ अपने का पुरजोर ऐलान करते हुए हर जगह अपनी हाजिरी दर्ज करा चुके हैं. आज हर किसी को, कभी न कभी, कहीं न कहीं, इन भाई साहब के दिमाग से उपजे कांड का नमूना पढ़ने, सुनने और देखने को मिल जाता है. यह एक ऐसी बीमारी है, जो आप के शरीर से पहले आप के बैंक अकाउंट पर अटैक करती है. खून आप के शरीर से तो नहीं बहता, लेकिन आप के पैसे पर की गई चोट किसी को भी खून के आंसू रुलाने के लिए काफी होती है.

हर बार जब हम किसी स्कैम के बारे में सुनते हैं, तो इन स्कैमर्स के दिमाग की दाद दिए बिना नहीं रह पाते. इनसानी फितरत को ये लोग कितना बखूबी सम?ाते हैं और कितनी सफाई से इस कला का इस्तेमाल अपनी जेबें भरने के लिए करते हैं, यह बात सचमुच काबिल ए तारीफ है.

फर्स्ट वर्ल्ड कहे जाने वाले बहुत ज्यादा विकसित देशों की अकेली अमीर औरतों को बड़ी सफाई से ये लोग चूना लगाते हैं. इन के इशारों पर हिप्नोटाइज सी डोलती ये अबलाएं, अपने सपनों के शहजादों को पाने की खुशी में पूरी तरह डूबी होती हैं. परफैक्ट मैन जैसी कोई चीज दुनिया में न सिर्फ उपलब्ध है, बल्कि अब उन्हें बस मिलने भी वाली है, इस निराली खुशी के सामने भला कुछ लाख डौलर क्या माने रखते हैं.

सभी इनसानी खूबियों को गूंथ कर बना, जो मानवपुत्र इन के ख्वाबों में बसाया जाता है, वह तो आंख खुलते ही गायब हो जाता है, लेकिन बैंक अकाउंट के बदले नंबर वही रहते हैं. यानी जब तक ये बेचारी नींद से जागें और हालात को समझें, तब तक तो उन के राजकुमार के साथ उन का बैंक अकाउंट भी उन से बेवफा हो चुका होता है.

हमारे अति बुद्धिमान टैक धुरंधरों के बड़े से बड़े प्रोडक्ट का तोड़ निकालने में ये लोग समय नहीं लगाते. इधर प्रोडक्ट आया, उधर उस का तोड़ निकला और इस से पहले कि हमारे टैक्निकल महापुरुष संभलें, सोचे और कुछ करें, ये महानुभाव लोगों को मोटा चूना लगा कर अपनी जेब सहला चुके होते हैं. फिर बस आप लकीर पीटते रहिए, सांप तो निकल गया.

साइबर स्कैम इस कद्र हमारे समाज का हिस्सा बनता जा रहा है कि किसी भी सिक्योरिटी के दायरे को इस से सिक्योर रख पाना दिन ब दिन मुश्किल होता जा रहा है. आज की दुनिया को कोई और एक सूत्र में बांध सका हो या नहीं, लेकिन स्कैमर्स ने यह काम अपने तरीके से बखूबी किया है. उन की नजर में सब बराबर हैं.

विकसित देश हो या विकाशसील या फिर गरीब देश ही क्यों न हो, हमारे ये समानता के पुजारी सब को एक ही नजर से देखते हैं. इन्हें हर चलताफिरता इनसान एक बकरा और हर किसी की जेब अपनी सी ही लगती है. इस को कहते हैं दुनिया बराबर करना, जो हमारे बड़ेबड़े नेता तो बस कहते ही रह गए, लेकिन इन अकाउंट भक्तों ने कर दिखाया.

किसी ने इस समस्या का एक पक्ष देखा है तो किसी ने दूसरा. किसी के अकाउंट पर गाज गिरी है तो किसी के फोन को हैक कर के ही, उस के दोस्तों व रिश्तेदारों तक को चूना लगाया गया है. कोई अगर इस जाल में अभी नहीं फंसा तो इस का यह मतलब कतई नहीं है कि वह बहुत बुद्धिमान है. इस का सिर्फ एक ही मतलब है कि उस का नंबर अभी नहीं आया.

अब यह समस्या और भी भीषण है, यह तो सब को पता है, लेकिन समाधान के नाम पर सब चुप.

हमारे महान दार्शनिक हमेशा से कहते आए हैं कि हर समस्या अपने समाधान के साथ ही जन्म लेती है, बस उसे देखने वाली नजर और समझने वाला नजरिया चाहिए. तो ठीक है उसी नजरिए से देख लेते हैं. अब किसी भी दुश्मन को मिटाने के 2 ही तरीके हैं, या तो दुश्मन खत्म कर दो या दुश्मनी.

अब अगर दुश्मन कमजोर है, तब तो कोई समस्या ही नहीं है. कमजोर को मिटाने में तो हम वैसे भी माहिर हैं फिर चाहे वह गरीब मजदूर हो, किसान हो या फिर कोई पिछड़ा अल्पसंख्यक. रही बात ताकतवर की तो उस की ओर तो दोस्ती का हाथ ही बढ़ाया जा सकता है. इतिहास गवाह है कि पहाड़ से सिर टकराने
पर सिर ही फूटता है, पहाड़ का कुछ नहीं बिगड़ता.

अब देखिए, जब शराब और सिगरेट के पहाड़ से सिर टकरा टकरा कर समाज थक गया और बीमारी, गरीबी, पारिवारिक असुरक्षा, कोई भी डर चेन स्मोकर्स और शराबियों को उन की राह से न हिला सका, तो थकहार कर सरकार ने भी नशा और धूम्रपान निषेध के नाम पर हर सिगरेट की डब्बी और शराब
की बोतल पर लिखवा दिया कि ‘शराब और धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ और अपनी जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लिए.

अब इन नुकसानदायक चीजों से लाभदायक टैक्स बटोर कर, हमारे शराबी भाइयों को देश की अर्थव्यवस्था को संभालने का मजबूत खंभा ही बता दिया. हींग लगी न फिटकरी और रंग भी चोखा आ गया. देखी अपनी चतुराई, है न गजब का कमाल.

तो पिछले अनुभवों से सीख लेते हुए क्या हमें स्कैम इंडस्ट्री को भी सिगरेट और शराब की तरह कानूनी कर देना चाहिए? क्या ‘यह’ दुश्मन भी पहाड़ बन चुका है, जिस से सिर ही फूटता है? क्या यह दुश्मन भी दुश्मन मिटाने वाले दायरे से निकल चुका है?

शायद हां, शायद न. अब न की हालत में तो कोई समस्या ही नहीं है, बस एक और कमजोर को कुचलना है. फिर यह तो दुश्मन भी है.

लेकिन, लेकिन… इस बड़े ‘लेकिन’ का क्या किया जाए जो मुंह बाए हमारी ओर बढ़ा चला आ रहा है? तो क्या एक बार फिर इस दुश्मन को नहीं, दुश्मनी को मिटाना होगा? क्या एक बार फिर इसे बैंक अकाउंट के स्वास्थ्य के लिए ‘हानिकारक, समाज और मानवता के लिए हानिकारक’, लिखवा कर इन स्कैमस को भी डब्बियों और बोतलों में भर कर बेचना होगा?

सोचो, सोच कर देखो कि अगर ऐसा हुआ तो किसकिस लैवल पर बदलाव किए जाएंगे और क्याक्या फायदेनुकसान, किसकिस को मिलने और झेलने होंगे. यह एक व्यंग्यकार की उड़ान है. आप भी सवारी का मजा लीजिए और मजे को साथ ले जाइए, सवारी नहीं.

इतिहास गवाह है कि जिस से जीता न जा सके उस दुश्मन से हाथ मिला लेना चाहिए. जो खिलाड़ी जितना मजबूत हो, उस का अपनी टीम में खेलना उतना ही जरूरी है.

इस ज्ञान के साए तले क्या हमें स्कैम इंडस्ट्री को भी कानूनी कर देना चाहिए, जैसे सिगरेट और शराब को किया गया था? अगर हां, तो फिर बहुत से बदलाव बेसिक ढांचे से ही शुरू करने होंगे.

स्कैम कोर्स स्कूल के सिलेबस में शामिल करने होंगे और हर सर्टिफिकेट पर लिखवाना होगा ‘स्कैम समाज के लिए हानिकारक हैं’. समाज की जिम्मेदारी से पल्लू झाड़ने का फुलप्रूफ तरीका. बाकी सवारी अपने समान की खुद जिम्मेदार है.

इस के अलावा डिगरी लैवल के कोर्स यूनिवर्सिटी में करवाए जाने होंगे. किस ने, कितने लोगों को, कितने का चूना लगाया है, यह सिलैक्शन का आधार होगा. ऐंट्रैंस ऐग्जाम किताबी कीड़ों के नहीं, असली खिलाडि़यों के अनुभवों पर आधारित होंगे. नकल की कोई गुंजाइश ही नहीं. असली शुद्ध क्रीम ही चुन कर आएगी.

यों भी हमारी डिगरियां आज नौजवानों को नौकरी दिलवाने में तो मददगार ही होती हैं, ऊपर से उन्हें हाथ से काम करने लायक भी नही छोड़तीं. फिर आजकल पोस्ट स्कूल नौलेज तो ह्वाट्सअप यूनिवर्सिटी मुफ्त में मुहैया कर ही रही है, तो उस के लिए भला स्कूलकालेज खोल कर क्यों टाइम और पैसा खोटी करने का रे बाबा. यह बाबू राव का स्टाइल है. कुछ करने का नहीं रे बाबा.

इधर बैंकों को भी चाहिए कि स्कैमर्स को महंगी मैंबरशिप औफर करें, जिस से हैकर्स को बैंक अकाउंट में बेरोकटोक ऐंट्री मिल सके और बैंकों को मोटी फीस.

वैसे भी आजकल बैंकों के महंगे कर्मचारी बैंकिंग का काम छोड़ कर, पौलिसी बेचने वाले दलाल ही तो बन कर रह गए हैं. क्या मजाल किसी टैक्निकल जाल में फंसे ग्राहक की खातिर जरा भी टस से मस हो जाएं, लेकिन एक बार इन की पौलिसी खरीद लो, दामाद की तरह आप की खातिरदारी करेंगे. तो बस स्कैमर्स की मोटी फीस इन की टपकती लार को भी दोबाला (दोगुना) कर देगी.

इस के साथ ही स्कैमर्स का इनकम टैक्स भी बाकी लोगों के मुकाबले ज्यादा होना चाहिए. इस से सरकारी खेतों को भी पानी मिलता रहेगा. इस के लिए सरकार को ज्यादा कुछ करना भी नहीं होगा, बस कभीकभार स्कैमर्स की भलाई के लिए एकाध अमैंडमैंट करना होगा. इतने से ही सरकार की कमाई का चांद रातोंरात पूर्णिमा को प्राप्त हो जाएगा.

देश के नौजवानों को रोजगार मुहैया न करवाने की जो तोहमत सरकार पर बरसों से लगती आई है, उस का समाधान भी इसी खेत के एक कोने में आसानी से उगाया जा सकता है.

इस मुहिम में लोकल यूथ को शामिल कर के, बेरोजगारी के कलंक से भी छुटकारा मिल सकता है.
लोकल यूथ को फटाफट छोटेमोटे क्रैश कोर्स करवा कर ग्रास रूट लैवल पर खड़ा किया जा सकता है. हजारों गरीबों को रातोंरात काम मिल जाएगा और सरकार को वोटों का आशीर्वाद.

यों भी साइबर क्राइम वाले, जामताड़ा और दूसरे पिछड़े इलाकों से औपरेट कर के, पहले से ही आदिवासियों और पिछड़े इलाकों में अपनी सेवाएं शुरू कर ही चुके हैं. अब किसी को तो पिछड़े इलाकों के विकास के बारे में भी सोचना होगा न. महानगरों के विकास के चूल्हे पर कब तक रोटी पकाइएगा. इधर नूह को अपना हैडक्वार्टर बनाने वाले भी अल्पसंख्यकों के ही हमदर्द लगते हैं.

यह एक व्यंग्यकार की खयाली थाली है. इसे दिल पर न लें. अगर इसे पचा न सकें, तो अगली गोली का इंतजार करें. Social Problem

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