Hindi Story, लेखक – हरे राम मिश्र
दिल्ली के पहाड़गंज में बने उस चमचमाते होटल में, जहां मास्टर मटरूराम हर महीने की 28 तारीख को अपने कारोबार के सिलसिले में रात को रुकते थे, तीसरे फ्लोर के कमरा नंबर 2 में 19 साल की एक बेहद खूबसूरत बर्फ सी सफेद, गोरे बदन वाली लड़की जूली बिस्तर पर बिछी, पर सिकुड़न भरी सफेद चादर पर आड़ीतिरछी बिना कपड़ों के पड़ी हुई थी.
आखिर एक घंटे तक मास्टर मटरूराम द्वारा रौंदे जाने के बाद वह बेसुध हो कर अपनी बचीखुची ताकत को दोबारा इकट्ठा कर के अगली बार के लिए खुद को दिमागी और जिस्मानी तौर पर तैयार कर रही थी.
मास्टर मटरूराम जैसे कांइयां और पैसा वसूल सोच के शख्स, जो पूरी दुनिया को सिर्फ नफा और नुकसान के नजरिए से ही देखने का आदी था, ने बहुत ही दर्दनाक तरीके से किए गए सैक्स से जूली को अंदर तक हिला डाला था.
जूली इस बेइंतिहा दर्द को महसूस कर सकती थी. बेदर्दी से रौंदे जाने से उपजी थकान और दर्द से टूटते बदन से वह बेदम सी हो गई थी. वह मन ही मन बुदबुदा रही थी कि किस ‘कसाई’ से आज उस का पाला पड़ गया है.
जूली होटल के इस कमरे को छोड़ कर भागना चाहती थी, लेकिन अपने उस चचेरे भाई, जो इस धंधे में उस का ‘दलाल’ भी था, को धोखा नहीं दे सकती थी. यही ‘दलाल’ उस के लिए 30 फीसदी कमीशन पर अकसर अमीर ग्राहक का जुगाड़ कर देता था, जो अमूमन कौर्पोरेट कंपनियों के अफसरों से ले कर बड़े सरकारी मुलाजिम और नेता तक होते थे.
चूंकि उस के सिर पर दिल्ली के एक मंत्री का हाथ था. लिहाजा, पुलिस के लफड़े और बेगार में अपनी ‘सैक्स सेवा’ देने से वह बच जाती थी.
जूली हमबिस्तरी के लिए अकसर अमीर ग्राहक ही चुनती थी, क्योंकि अपनी कैंसर से पीडि़त मां के इलाज, जांच और दवा के लिए उसे अकसर बड़ी रकम का जुगाड़ करना होता था. जिस्म के बाजार में वह यह जान चुकी थी कि जवानी ढलते ही उसे कुत्ता भी नहीं सूंघेगा, इसलिए सेवा के बदले पूरा पैसा वसूल करना उस के दिमाग में भरा हुआ था.
खैर, होटल पहुंचते ही मास्टर मटरूराम ने अपने ड्राइवर अनोखेलाल तिवारी को पहले ही बाहर भेज दिया था. वह उन का बेहद ही खास कारिंदा था, जो अकसर उन की गैरहाजिरी में उन की फर्म का हिसाबकिताब भी देख लेता था और कभीकभी नकद रकम भी उन के घर तक ले आता था.
इस होटल में चखना, दारू और डिनर का इंतजाम अनोखेलाल ही करता था. मास्टर मटरूराम और अनोखेलाल की पहचान उन के टैंपो चलाने के दिनों से थी. दोनों साथ बैठ कर देशी ठर्रा पीते थे.
समय के साथ मास्टर मटरूराम नेता बन गए और अनोखेलाल मामूली ड्राइवर ही रह गया. भले ही दोनों हमउम्र थे, लेकिन उन के बीच विश्वास की डोर बहुत मजबूत थी.
मास्टर मटरूराम अनोखेलाल पर काफी भरोसा करते थे और अनोखेलाल ने कभी उस भरोसे को दागदार नहीं होने दिया था.
अनोखेलाल को ड्राइवर रखने का एक फायदा और था. अपने समाज की मीटिंग में सामने खड़ी जनता को मटरूराम बहुत दावे से बताते थे कि अपनी गुलामी के दिन अब जा चुके हैं. हमें अब ताकतवर होना है और उन्हें नौकर रखना है, जिन्होंने हम पर अब तक राज किया है.
हालांकि, असलियत यह थी कि अपनी जातबिरादरी के लोगों को मास्टर मटरूराम ने इसलिए ड्राइवर नहीं रखा, क्योंकि जात और समाज को यह नहीं जानना चाहिए कि मास्टर मटरूराम असल में क्या हैं, वरना सियासत में दिक्कत होती है. अपनी जात से एक खास दूरी सियासत में जमे रहने के लिए बहुत जरूरी होती है, ऐसा मास्टर मटरूराम का मानना था.
खैर, इसी कमरे में सफेद रोशनी से चमचमाते बिस्तर से कुछ ही दूरी पर रखे गए एक बड़े से सोफे पर एक सफेद वी कट कच्छा पहने मास्टर मटरूराम बैठ कर ह्विस्की पी कर उस का स्वाद ले रहे थे. वे 1-2 पैग से ज्यादा कभी नहीं पीते थे, लेकिन कम से कम 2 घंटे जरूर लगाते थे.
सामने रखी टेबल पर काजू और बादाम के साथ भुने हुए लहसुन और सामने पीसों में कटे हुए सेब, केला और प्याज की पकौड़ी की प्लेट सजी हुई थी. बस वे हर चुसकी के बाद चखना मुंह में भरते और आंखें मूंद कर दोनों के स्वाद का पूरा मजा लेते.
हालांकि, कमरे में ही बिना कपड़ों के लेटी जूली से मास्टर मटरूराम ने एक बार भी यह नहीं पूछा कि क्या वह भी उन के साथ कुछ खानापीना चाहेगी?
इस मामले में मास्टर मटरूराम इस तरह से बरताव कर रहे थे, जैसे कमरे में कोई और मौजूद ही न हो या फिर उन्हें एक ‘धंधेवाली’ को तवज्जुह देने की कोई जरूरत नहीं है.
कमरे की सफेद रोशनी में गोरे और साफ चेहरे वाले मास्टर मटरूराम के चेहरे पर एक अलग किस्म की चमक दिख रही थी. उन्होंने गले में सोने की एक मोटी चेन भी पहन रखी थी, जो इस रोशनी में कुछ अलग ही चमक रही थी. अपनी चालढाल और बरताव में वे खुद को दबंग के तौर पर दिखाते थे.
शराब की चुसकी के बीच कुछ देर के बाद वे अपनी मूंछ भी मरोड़ते थे. उन के अपने इलाके में कुछ ऊंची जाति के लोग उन्हें एक खूनी मानते थे, जिस ने कम से कम एक ब्राह्मण की हत्या की है. हालांकि, इस का सच क्या है, इस पर किसी के पास कोई ठोस सुबूत नहीं था. पुलिस आज तक उन्हें पूछताछ के लिए भी नहीं बुला सकी थी.
उन के समाज के लोग यह मानते थे कि इस तरह जंजीर पहनने का मतलब इलाके के क्षत्रियों को यह बताना होता है कि हम आप को कुछ नहीं सम?ाते. हम भी इन क्षत्रियों से किसी भी मामले में कम नहीं हैं.
हमारे समाज का नेता भी क्षत्रियों से कमतर बरताव किसी भी कीमत पर नहीं करता है. हम भी अब जमींदार हैं और कोई हमें टक्कर नहीं दे सकता.
शराब पीते हुए, उस की चुसकी के बीच अपने आई फोन से बीचबीच में किसी को तेज आवाज में मास्टर मटरूराम गंदीगंदी गालियां देते और फिर भुना काजू खाते. शायद यह उन के घर का केयरटेकर था, जो उन के जातसमाज से ही आता था. उस का काम उन के विदेशी कुत्ते की ढंग से देखभाल करना था, जिस में नाकाम होने पर वह मास्टर मटरूराम से गालियां सुन रहा था.
दरअसल, मास्टर मटरूराम का महंगा विदेशी कुत्ता किसी देशी कुतिया के चक्कर में गेट से बाहर निकल कर भाग गया था, जिसे देशी कुत्तों ने नोंचनोंच कर घायल कर दिया था. इस तरह उन का कुत्ता करैक्टर का ‘लूज’ होता जा रहा था. लूज करैक्टर का कुत्ता घर की रखवाली नहीं कर सकता, ऐसा उन का मानना था.
जिस काम के लिए आज अचानक मास्टर मटरूराम को दिल्ली आना पड़ा था, वह खास काम था.
दरअसल, मास्टर मटरूराम को एक ऐसा फोन आने की उम्मीद थी, जिस से उन्हें 50 लाख की तीसरी किस्त की सूचना मिलने वाली थी. 2 किस्त वे पहले ही ले चुके थे.
पैसा कल मिलना था. बस, फोन पर केवल जगह का फिक्स होना बाकी था, जिस के लिए वे दिल्ली के इस होटल में इंतजार और मजा कर रहे थे.
थोड़ा सुरूर में आने पर फोन पर ही वे अपनी किसी तथाकथित प्रेमिका को मसूरी ट्रिप पर ले चलने और ‘मस्ती’ करने के प्लान के बारे में भी बोलते थे.
मास्टर मटरूराम भले ही इन दिनों अपने इलाके के बड़े नेता बन चुके थे, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन की 20 साल की जद्दोजेहद थी. यह एक ऐसे लड़के का उदय था, जो अपने परिवार के चमड़ा छीलने और संवारने के पुश्तैनी काम को छोड़ कर, कपड़ा सिलने के काम में शिफ्ट होता है.
हालांकि, यहां से भी मन उचटने पर वह टैंपो ड्राइवर बनता है. फिर टैंपो यूनियन का कार्यकर्ता और फिर अपनी ग्राम पंचायत का सदस्य बनने से ले कर सरपंच और जिला लैवल का नेता बन जाता है. ‘मास्टर’ शब्द उन के कपड़ा सिलने के समय का लोगों का दिया हुआ नाम था, जिसे उन्होंने अपने नाम के पहले जोड़ लिया था.
अपनी 20 साल की इस सियासी जिंदगी में मास्टर मटरूराम ने यह सीखा कि जातसमाज का नेता बनना आसान नहीं है. उन्होंने अपने पैर जमाने के लिए काफी मेहनत की थी.
उन के मुताबिक, समाज की समस्याओं को पहचानना, उस के खिलाफ लड़ाई का बीड़ा उठाना, भाषणों में उन्हें दोहराना ही समाज के भीतर किसी नेता के मशहूर होने का सब से बेहतर तरीका है.
उन का यह भी सोचना था कि समाज की समस्याओं पर बात करना, समस्याओं के हल करने के बारे में बात करना ही समाज में मजबूती दिलाता है. इस के साथ खुद को सामाजिक और पैसे के तौर पर मजबूत करने पर भी काम होना चाहिए. बिना पैसे की मजबूती के सियासी मजबूती का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि चुनाव में पैसा लगता है.
भले ही मास्टर मटरूराम 5वीं जमात से आगे स्कूल नहीं जा सके, लेकिन अपने अनुभव से यह सीख लिया कि जातसमाज का ‘विश्वास’ कैसे जीता जाता है. वे मानते थे कि कम बोलना भी अपने समाज पर असर जमाने का एक अच्छा तरीका होता है.
अपने शुरुआती दिनों में तकरीबन 3 साल तक टैंपो यूनियन के संगठन में बिताने के बाद मास्टर मटरूराम ने अपने समुदाय के लिए एक संगठन बनाया था. संगठन में इस नजरिए को मजबूत करने की बात हुई कि अपनी जातसमाज के लोग पहले राजा थे. अब हमें वह दौर फिर से वापस लाना है. अपने समाज को शासक बनाना है.
इस के लिए उन्होंने अपने समाज के किसी एक काल्पनिक देवता के नाम को गढ़ा और खुद को उस का वंशज घोषित किया, जो एक बड़ा काम करने के, अपने समाज के उद्धार के लिए इस धरती पर आ चुका था. ऐसा शख्स, जो समाज के लिए खटने और कुछ चमत्कार करने के लिए आया था.
शुरुआत में मास्टर मटरूराम के जातसमाज के लोगों ने उन के इस दावे पर कम ध्यान दिया, लेकिन कुछ समय बाद ऊंची जाति के लड़कों से ‘तूतूमैंमैं’ या सामान्य सी मारपीट के बाद इलाके के लोगों का ध्यान उन की तरफ गया. आखिर इन ब्राह्मण के लौंडों को पीटने की हिम्मत किसी आम कलेजे में नहीं हो सकती. यह उन की निगाह में संघर्ष की शुरुआत थी. और फिर, आम लोग उन के राजा बननेबनाने की बात में रुचि भी लेने लगे.
तकरीबन एक साल में ही मास्टर मटरूराम ने समाज से मिले चंदे पर एक कार खरीदी, कुछ पैसे भी जोड़े और अपने छोटे भाई को सीमेंटबालू की सप्लाई का एक कारोबार भी शुरू करवा दिया, जो चल निकला.
अपनी जातसमाज के लिए काम करते हुए मास्टर मटरूराम को इसी समाज से पहचान, पैसा, प्रचार सबकुछ मिला. सरपंच के अगले चुनाव में वे ब्राह्मणों के उम्मीदवार को हराते हुए सरपंच भी बने और कुछ साल के भीतर ही वे जिला पंचायत के सदस्य भी बन गए.
इलाके में ब्राह्मण ज्यादा नहीं थे, कोरियों की तादाद ज्यादा थी. ब्राह्मणों के मैदान से हटते ही कोरियों से इन के समुदाय का सीधा मुकाबला होने लगा.
इलाके में मास्टर मटरूराम की जातसमाज और कोरी, दोनों समुदायों की तादाद तकरीबन बराबर थी. मास्टर मटरूराम को लगने लगा कि वे एक दिन विधायक भी बन सकते हैं और कोरियों के दबदबे वाली इस सीट से उन्हें खदेड़ा जा सकता है.
मास्टर मटरूराम अपनी मुहिम में लग गए और ‘अपना वोट अपना समाज’ का नारा बुलंद करने लगे. उन की लोकप्रियता बढ़ चुकी थी. आखिर कपड़ा सिलने वाला एक मामूली दर्जी, जिसे गांव में सब ‘मास्टर’ बोलते थे, आज अपने समाज की एक ऐसी हस्ती बन चुके थे, जिन्हें इलाके के सामाजिक संगठन, जातसमाज की पंचायतें अपने यहां बुला कर मंच पर ‘इज्जत’ देते थे.
ऐसा मास्टर, जो आम आदमी से अपनी जाति का अभिमान बन चुका था. अब समाज के लोग पुलिस थाने जाने से पहले उन का आशीर्वाद लेना जरूरी समझते थे.
हालांकि, मास्टर मटरूराम अब विधायक बनना चाहते थे. उन्हें इस के लिए पैसे की जरूरत भी थी.
लिहाजा, उन्होंने ठेकेदारी का काम भी शुरू किया. काम चल निकला. पैसे से मजबूत होने के साथ वे अपने समाज का बड़ा चेहरा पहले ही बन चुके थे. कई दलों में उन्हें अब समाज के नेता के तौर पर मंच पर बुलाया जाता था.
वे भाईचारा सम्मेलनों में शिरकत करते थे. वे मंच पर जाते भी थे तो इस नीयत से कि कोई पार्टी उन्हें टिकट दे कर उम्मीदवार बना दे. इस मुकाम पर पहुंचने में उन्होंने 25 साल का लंबा समय बिताया. अब उन की उम्र 44 साल हो गई थी.
चुनाव के समय कई पार्टियों के नेता उन से उन की जाति का वोट ट्रांसफर कराने के लिए मेलजोल रखते थे, क्योंकि उन की जेब में तकरीबन 10 से 15 हजार वोट ट्रांसफर कराने की ताकत आ गई थी, लेकिन इस के लिए वे बड़ी रकम भी लेते थे. वोटिंग के 3 दिन पहले वे तय करते थे कि किसे समर्थन देंगे.
पिछले 2 चुनाव में उन्होंने सत्ताधारी पार्टी के स्थानीय विधायक से 10 लाख रुपए ले कर अपनी जाति के वोट ट्रांसफर करवाए थे. इस के लिए उन्होंने बड़ी चालाकी से ब्राह्मणों और क्षत्रियों को कौम का दुश्मन बता दिया था.
हालांकि, इस बार के चुनाव में उम्मीदवार उलटफेर कोरी ने मास्टर मटरूराम को 30 लाख दे कर उन दलितों के वोट हासिल किए, जिन्हें वे जात का दुश्मन नंबर 3 बता चुके थे.
इस बार मास्टर मटरूराम ने अपनी जातसमाज के लोगों को समझाया कि ब्राह्मण और क्षत्रियों को बेइज्जत करने के लिए इस बार रघु पांडे की जगह उलटफेर कोरी को सपोर्ट देना है. वे चुने जाने के बाद समाज के महल्लों में विकास का काम करवाएंगे. उन्होंने भाषण भी दिया और उलटफेर कोरी के लिए खूब प्रचार भी किया.
उन के भाषण में यह बात बहुत साफ थी कि समाज के लिए काम करने वाले लोगों को समाज का साथ मिलेगा. हालांकि, वह काम क्या था, जिस पर काम होना है, इस के बारे में सार्वजानिक तौर पर कभी उन्होंने कुछ भी नहीं कहा.
खैर, विधानसभा के चुनाव हुए. चुनाव में उलटफेर कोरी की जीत हुई. ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदाय के साथ आने, यादव समुदाय के खुले सहयोग के बावजूद 2 बार के विधायक रघु पांडे चुनाव हार गए.
पिछली बार मास्टर मटरूराम ने उन्हें समर्थन किया था, लेकिन इस बार वह समर्थन के एवज में मांगी गई बढ़ी रकम देने को तैयार नहीं हुए, लिहाजा मटरूराम ने नया लौजिक गढ़ कर 20 हजार वोट का ट्रांसफर करवा कर पूरा पाला बदल दिया.
चुनाव के बाद 2 साल बीते. मास्टर मटरूराम के जातसमाज के इलाकों में विधायक उलटफेर कोरी की तरफ से विकास का कोई काम नहीं हुआ. इस से जुड़ी जातसमाज के लोगों की शिकायतों पर भी मास्टर मटरूराम ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई.
हालांकि, इस इलाके के विकास के लिए वर्तमान विधायक उलटफेर कोरी ने पैस्टीसाइड बनाने वाली एक कंपनी को सरकार से कारखाना लगाने का करार करवा दिया. जब जगह को चुना गया, तो सब से पहले कारखाने से निकलने वाले कचरे और गंदे जहरीले पानी पर बात शुरू हुई. कुछ एनजीओ कार्यकर्ताओं ने इलाके में कारखाना लगाए जाने के खिलाफ स्लोगन लिखना शुरू कर दिया.
मास्टर मटरूराम के समुदाय के लोगों ने भी इस के खिलाफ धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया, क्योंकि कारखाने से जहरीले पानी की निकासी दलितों के गांव की तरफ होनी थी. तकरीबन 8,000 की आबादी सीधे इस की जद में थी.
मास्टर मटरूराम के जातसमाज के कुछ जोशीले नौजवानों ने कारखाने के बनने का काम मारपीट कर जबरिया रुकवा दिया. इस के खिलाफ इलाके के ऊंचे और पिछड़े समुदाय के कुछ लोग कारखाना बनने के पक्ष में खड़े हो गए.
वे लोग चाहते थे कि कारखाना लगे, ताकि जमीन का मोटा मुआवजा ले कर वे शहर में फ्लैट खरीद सकें, लेकिन मास्टर मटरूराम के गांव के लोग कारखाने से निकलने वाले जहरीले पानी और कचरे से काफी डरे हुए थे.
यही नहीं, इलाके के कोरी समुदाय के लोग इस प्रोजैक्ट का रुकना अपने समाज की बेइज्जती समझने लगे. इस के लिए विधायक के लोगों ने गांव में कारखाना लगाने का विरोध कर रहे लोगों पर हमला कर उन को जम कर पीटा. औरतों और लड़कियों को नंगा कर दिया गया. जब रोज हंगामा बढ़ने लगा, तो सरकार को भी दखल देने की जरूरत महसूस हुई.
मास्टर मटरूराम भी इस मारपीट के बाद आंदोलन में शामिल हो गए. उन्होंने इस आंदोलन को ‘दलित बनाम पिछड़ा’ एंगल दे दिया. लेकिन इस के पक्ष में खड़े ब्राह्मणों और क्षत्रियों को कैसे और कहां सैट करें, यह तय नहीं कर पा रहे थे. फिर इन्हें भी दलित जातसमाज विरोधी घोषित किया गया.
क्षेत्र के कोरियों के बहिष्कार का ऐलान खुलेआम किया जाने लगा. कहा गया कि अब कोरियों, ब्राह्मणों और क्षत्रियों की फसल हमारे समाज के लोग नहीं काटेंगे.
पूरे क्षेत्र में हंगामा बढ़ने लगा. रोज के तनाव से हिंसा हुई और पुलिस फायरिंग में 2 लोग मारे गए.
अब राज्य सरकार को भी इस प्रोजैक्ट के पूरा होने में शक होने लगा. बातचीत के रास्ते समस्या के समाधान पर जोर दिया जाने लगा. स्थानीय प्रशासन ने इस के लिए कंपनी के अफसरों से ले कर एनजीओ के कार्यकर्ताओं तक की मीटिंग बुलाई.
जहरीले पानी से प्रभावित गांव के लोगों ने मटरूराम को इसलिए प्रतिनिधि चुना, क्योंकि वे समाज के नेता थे और समाज की बात ठीक से इस मीटिंग में रख सकते थे.
3 बार की मीटिंग बेनतीजा रही, लेकिन चौथी मीटिंग से पहले ही कंपनी के अफसरों ने एनजीओ कार्यकर्ताओं को मोटा फंड देने की बात कह कर आंदोलन से ही बाहर कर दिया. सब अपना सामान समेट कर रात में ही चले गए. कोरी समुदाय पहले से ही इस कारखाने के पक्ष में था, लिहाजा स्थानीय विधायक को भी मामले में शामिल किया गया. मीटिंग के बाहर ब्राह्मण और क्षत्रिय समाज प्रोजैक्ट लगाए जाने के पक्ष में नारेबाजी कर रहे थे.
मास्टर मटरूराम इस बार की मीटिंग में फिर शामिल हुए. कुल 3 लोगों की मीटिंग हुई. यह तय हुआ कि कारखाने का कचरा नए रास्ते से गांव के बाहर बहने वाली नदी में मिलाया जाएगा.
अब यह दलितों की आबादी की तरफ नहीं जाएगा.
लेकिन मास्टर मटरूराम अपनी बात पर कायम रहे कि इस कारखाने से उन के समाज को क्या फायदा होगा और यह गांव में क्यों लगे? हवापानी सब जहरीले हो जाएंगे और बदले में हमारे समाज को कुछ मिलेगा भी नहीं. वे कुछ भी मानने को तैयार नहीं थे.
काफी सोचविचार के बाद यह तय हुआ कि 3 करोड़ रुपए खर्च कर के मामला सैटल किया जाएगा. एक करोड़ विधायक उलटफेर कोरी को मिलेंगे.
50 लाख मास्टर मटरूराम लेंगे. 5 लाख पुलिस के और बाकी रकम जिले के प्रशासन को मिलेगी.
सब बाहर निकले और बताया कि सम?ाता हो गया है. यह कंपनी अपना डिजाइन बदलेगी. मास्टर मटरूराम ने कौम की जीत की घोषणा की. विधायकजी ने भीड़ के सामने हाथ जोड़े और अपनी गाड़ी से चले गए.
जिन समुदायों की जमीन का अधिग्रहण होना था, उन्हें भी खुशी हुई कि चलो, अब जमीन का बड़ा मुआवजा मिलेगा और शान से थार गाड़ी में घूमेंगे और शहर में जमीन खरीदेंगे. हालांकि, गांव के उन दलितों को इस सम?ाते में क्या मिला, इस बारे में कोई ठोस बात ही नहीं हुई.
कारखाना बनने लगा. मास्टर मटरूराम की जातसमाज के लोग कारखाने में मजदूर बने और उलटफेर कोरी के लोगों ने सीमेंटबालू मजदूर सप्लाई का काम शुरू कर दिया. सब को तय रकम की 2 किस्तें जल्द ही मिल गईं.
तकरीबन 3 महीने बाद उसी सौदे की तीसरी किस्त लेने के लिए मास्टर मटरूराम दिल्ली के इस होटल में रुके हुए थे. वे फोन का इंतजार कर रहे थे.
थोड़ी देर में उन्हें एक फोन आया कि कल 10 बजे बेनी स्टेडियम के बगल के फार्महाउस में मिलिए, काम हो जाएगा. यह नंबर 10 बजे चालू मिलेगा. ओके कह कर बात दोनों ओर से खत्म हुई.
मास्टर मटरूराम ने गिलास की बची ह्विस्की को एक सांस में पूरा पी लिया. गरम रोस्टेड चिकन खाया. पैसे मिलने की खुशी में उन का जोश ज्यादा बढ़ गया. मुंह साफ किया और अपने बैग से एक गोली निकाली और उसे चूसने लगे. इस के बाद वे फोन पर ही पोर्न मूवी देखने लगे.
5 मिनट के बाद अचानक मास्टर मटरूराम ने अपना जांघिया उतारा और जूली के ऊपर चढ़ गए. जूली के कटे होंठों से निकलते खून को वे चाटने लगे. शराब और चिकन में लगे मसाले की बास भरी महक से जूली का गला भर गया.
रात के 12 बजने वाले थे. पिछले आधे घंटे से वे जूली को रौंद रहे थे. यह राउंड जूली के लिए पहले से और ज्यादा दर्द देने वाला था. लेकिन मास्टर मटरूराम और ज्यादा जोश में आ चुके थे. अब वे जूली को रौंदने में लगे हुए थे.
आखिर मास्टर मटरूराम ने आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पैसे का इंतजाम जो कर लिया था. भले ही उस समाज को उन्होंने धोखा दिया था, जिस ने उन्हें एक मामूली टैंपो ड्राइवर से ऊपर उठा कर ‘हीरो’ बना दिया था.
मास्टर मटरूराम का मानना था कि जातसमाज वाले केवल चमत्कार को ही सिर झुकाते हैं, इसलिए उन्हें अपने समाज में मजबूत बने रहने के लिए बड़े चमत्कार करते रहना जरूरी था. यही उन की सियासत की समझ का कुल हासिल था, जहां धोखा, फरेब, ऐयाशी, भ्रष्टाचार सब जायज है, क्योंकि जातसमाज को सिर्फ चमत्कारी लोग ही चाहिए.
उस चमत्कार के पीछे कितना घना अंधेरा है, लोकतंत्र और समाज को निगलने वाला कितना बड़ा साम्राज्य है, कितनी ज्यादा गहरी कालिख है, यह किसी को जाननेसम?ाने में दिलचस्पी नहीं है.
खैर, अब रात के 2 बज रहे थे. मास्टर मटरूराम उसी बिस्तर पर निढाल हो कर नंगे ही सो गए. जूली भी वहीं पड़ी रही. सुबह के 5 बजे उस ने अपने कपड़े पहने, रिसैप्शन से बैग लिया और अंधेरी गलियों में गुम हो गई.
मास्टर मटरूराम ने अपनी कौम को जो धोखा दिया था, उस की कीमत लेने के लिए वे सुबह से ही 10 बजने का इंतजार करते हुए बादाम मिक्स बिसकुट के साथ चाय की चुसकी लेने लगे. तय समय पर उन्होंने अपना हिस्सा लिया और एक नई जूली के शिकार में इस बार गोवा चले गए.
हालांकि, इस पैस्टीसाइड कारखाने के जहरीले कचरे का बहाव मास्टर के जातसमाज के गांव की ओर ही हुआ, जिस पर अब कोई बोलने को तैयार नहीं था. उन लोगों ने जो भरोसा किया था, मास्टर मटरूराम ने उसे तारतार कर दिया था.