Funny Story: शर्माजी दिल्ली से पटना जाने वाली ट्रेन में सवार हुए. विंडो सीट पर बैठा साथी मुसाफिर हथेली पर खैनी रगड़ रहा था. तय समय पर ट्रेन चल पड़ी. थोड़ी देर बाद उस साथी मुसाफिर ने शर्माजी से बातचीत करना शुरू कर दिया और बीचबीच में खैनी मिले थूक को खिड़की से बाहर ट्रांसफर कर रहा था.

नाम, पता और मंजिल की जानकारी लेने के बाद वह साथी मुसाफिर पूछ बैठा, ‘‘और बताइए शर्माजी, क्या करते हैं आप?’’

शर्माजी ने कहा, ‘‘भाई, आज की तारीख में धरती पर कौन सा ऐसा काम है, जो हम नहीं करते.’’

साथी मुसाफिर ने चौंकते हुए पूछा, ‘‘आप का मतलब…?’’

शर्माजी ने बताया, ‘‘भाई साहब, हम लोगों के घर जाजा कर उन के परिवार की पूरी जानकारी जमा करते हैं. मसलन, परिवार में कितने लोग हैं, उन की उम्र, पढ़ाईलिखाई वगैरह…’’

साथी मुसाफिर ने बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘अजी, हम सम झ गए… आप जनगणना महकमे में काम करते हैं.’’

शर्माजी ने हलकी मुसकान बिखेरते हुए कहा, ‘‘अरे, नहीं भाई. कैंप लगा कर कभी बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाते हैं, तो कभी अपने संस्थान में पेट के कीड़ों की गोली, एनीमिया की गोली, तो कभी हैपेटाइटिस का टीका भी लगवाते हैं.’’

साथी मुसाफिर तपाक से बोला, ‘‘सम झ गए, आप हैल्थ महकमे में कंपाउंडर हैं.’’

शर्माजी दोबारा मुसकराते हुए बोले, ‘‘अभी भी आप नहीं सम झे… हम न छोटेछोटे बच्चों को अपने संस्थान में दोपहर में मुफ्त भोजन करवाते हैं,

हर साल कपड़े, साइकिल वगैरह भी बांटते हैं…’’

साथी मुसाफिर ने बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘तो ऐसा बोलिए न कि आप एनजीओ चलाते हैं. वाकई, बड़ा नेक काम कर रहे हैं भाई आप.’’

शर्माजी खिलखिला कर हंसते हुए बोले, ‘‘भैया, हम कोई एनजीओ या रिलायंस जियो नहीं चलाते हैं. हम तो संस्थान के लिए कपड़ा, चावल, अंडा, कौपीकिताब, जूताचप्पल, राजमा वगैरह की खरीदारी करते हैं और उस का हिसाबकिताब रखते हैं.’’

वह साथी मुसाफिर फिर बोला, ‘‘अच्छाअच्छा, आप अकाउंटैंट हैं.’’

शर्माजी भी अपनी गरदन हिलाते हुए बोले, ‘‘नहीं, वह भी नहीं हैं. दरअसल, मैं पंचायत चुनाव, विधानसभा चुनाव से ले कर संसदीय चुनाव तक करवाता हूं.’’

साथी मुसाफिर मुसकराते हुए बोला, ‘‘तो ऐसे बोलिए न महाराज कि इलैक्शन कमीशन में काम करते हैं.’’

शर्माजी फिर बोले, ‘‘न… अभी भी आप नहीं सम झ पाए. हम वह भी नहीं हैं. वैसे, हम छात्रों को हर महीने स्कौलरशिप भी बांटते हैं.’’

साथी मुसाफिर ने चौंकते हुए कहा, ‘‘कहीं आप जनकल्याण महकमे में बड़े अफसर तो नहीं हैं…’’

शर्माजी ने गरदन उचकाते हुए कहा, ‘‘अरे नहीं भाई, बड़ा अफसर बनना हमारे नसीब में कहां… वैसे, कभीकभी हम अपने हक के लिए सरकार के खिलाफ मोरचा खोल कर अधनंगा आंदोलन भी करते हैं. हालांकि, इस के एवज में हम पुलिस की लाठियां भी खा लेते हैं.’’

साथी मुसाफिर ने सिर खुजाते हुए कहा, ‘‘मतलब, आप या तो क्रांतिकारी हैं या फिर समाजसेवी…’’

शर्माजी तल्ख शब्दों में बोले, ‘‘कमाल करते हैं भाई, क्या मैं आप को असामाजिक तत्त्व दिख रहा हूं? आप की जानकारी के लिए मैं बता दूं कि असामाजिक तत्त्वों और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए कभीकभी हमें दंडाधिकारी भी बनना पड़ता है.’’

साथी मुसाफिर हैरानी से देखते हुए बोला, ‘‘तो फिर आप किसी कोर्ट में मजिस्ट्रेट हैं…’’

शर्माजी ने यह सुन कर भी ‘न’ के संकेत में मुंह बनाया.

साथी मुसाफिर ने झुं झलाते हुए कहा, ‘‘गजब है जनाब, आप तो अपनेआप में एक पहेली हैं जी. आखिर आप किस महकमे में और किस पद पर काम करते हैं भाई?’’

शर्माजी ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘देखिए, जब हम इन कामों से फ्री होते हैं, तो कभीकभी बच्चों को पढ़ालिखा भी देते हैं.’’

साथी मुसाफिर खैनी को खिड़की से बाहर थूकते हुए धीरे से कहा, ‘‘मतलब, कहीं आप सरकारी स्कूल मास्टर…’’

शर्माजी ने उस आदमी के कंधे पर हाथ रख कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘एकदम सही पकड़े हैं आप. दरअसल, मैं ‘शिक्षक दिवस’ पर हुए एक कार्यक्रम में सम्मानित होने के लिए दिल्ली आया था.’’

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