Hindi Romantic Story, लेखिका – डा. आरती मंडलोई
शहर की हलचल से कोसों दूर पहाड़ों के बीच बसा हुआ यह रिसौर्ट किसी सपने की तरह लग रहा था. हरियाली से ढके ऊंचऊंचे पहाड़, हलकीहलकी बारिश और ठंडी हवा में घुली ताजगी… सबकुछ जैसे किसी पुराने रोमांटिक गीत की धुन में बंधा हुआ था.
अनिका बालकनी में खड़ी थी. उस के लंबे घने गीले बाल उस की पीठ पर लहरों की तरह बिखरे हुए थे. हलकी हवा उस के चेहरे को छू कर गुजर रही थी, लेकिन उस की बेचैनी कम नहीं हो रही थी.
यह वीकैंड उस ने बहुत सोचसम झ कर चुना था. कुछ दिनों के लिए खुद से मिलने के बहाने, लेकिन कहीं न कहीं वह जानती थी कि असल में यह वक्त आरव के साथ बिताने के लिए था.
आरव… उस की जिंदगी में किसी गहरी नदी की तरह उतरा था. उन का रिश्ता बहुत साधारण तरीके से शुरू हुआ था. एक कौरपोरेट औफिस में साथी मुलाजिम के रूप में. शुरुआत में काम के सिलसिले में बातचीत हुई, फिर हलकीफुलकी दोस्ती और धीरेधीरे यह दोस्ती एक अलग एहसास में ढल गई थी.
पहली बार जब वे दोनों बारिश में भीगे थे, तो अनिका ने महसूस किया था कि आरव की नजरें उसे बस यों ही नहीं देख रहीं. वह पहली बार उस के इतने करीब आया था कि उस की सांसों की गरमाहट तक महसूस हो रही थी. अब वह यहां थी आरव के साथ, इस पहाड़ी रिसौर्ट में.
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई.
अनिका ने दरवाजा खोला. सामने वही था, जिस की आहट तक उसे पहचानने लगी थी.
आरव भीगा हुआ था. सफेद टीशर्ट उस के बदन से चिपकी हुई थी. बालों से पानी टपक रहा था और आंखों में वही पुरानी बेचैनी थी, जो हर बार उसे बेचैन कर देती थी.
‘‘बहुत तेज बारिश हो रही है,’’ आरव ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘हां…’’ अनिका ने बड़ी ही धीमी आवाज में जवाब दिया.
आरव कमरे में भीतर आ गया था और अंदर से दरवाजा बंद कर दिया. कमरे में मोमबत्तियों की हलकी रोशनी फैली हुई थी. बाहर बारिश तेज हो गई थी और खिड़की के शीशों पर पानी की बूंदें धीमेधीमे फिसल रही थीं.
आरव ने जैकेट उतारी और उसे पास की कुरसी पर रख दिया. उस की नजरें अनिका पर टिकी थीं.
अनिका हलके नीले रंग की साटन की ड्रैस में थी, जो उस के बदन को छू कर फिसल रही थी.
‘‘क्या सोच रही हो?’’ आरव ने धीमे से पूछा.
‘‘कुछ नहीं,’’ अनिका ने मुसकरा कर कहा, लेकिन उस की आंखें कुछ और ही कह रही थीं.
आरव उस के करीब आया. उस की उंगलियां धीरे से अनिका की कलाई पर टिकीं. यह छुअन कोई नई नहीं थी, लेकिन फिर भी हर बार की तरह इस में कुछ नया था.
‘‘तुम्हें ठंड लग रही होगी,’’ अनिका ने कहा, लेकिन उस की आवाज में हलकी कंपकंपी थी.
आरव ने उस की उंगलियों को थाम लिया. उस की पकड़ थोड़ी हलकी थी, लेकिन फिर भी उस में एक अनदेखी ताकत थी.
‘‘मु झे ठंड नहीं लगती… लेकिन, तुम्हारे करीब आने की चाह जरूर लगती है,’’ उस के शब्द जैसे किसी गरम लहर की तरह अनिका के जिस्म को छू गए.
आरव ने धीरे से उस के चेहरे को अपनी हथेलियों में लिया. उस की उंगलियां उस के गालों को छू रही थीं. अनिका की पलकों में हलकी कंपन थी.
कमरे में हलकी धुंध थी. बारिश की खुशबू हवा में घुल गई थी. आरव ने धीरे से उस की हथेलियां फिर अपने हाथों में लीं. उन की उंगलियां आपस में उल झ गईं. जैसे बारिश की बूंदें पत्तों से लिपट जाती हैं. जैसे नदी किसी किनारे से मिल कर उस में समा जाना चाहती है.
आरव और करीब आया. उस की सांसों की गरमी अब अनिका की गरदन पर महसूस हो रही थी. अनिका ने अपनी आंखें बंद कर लीं.
आरव के होंठों की हलकी छुअन उस की कनपटी से होते हुए उस के गालों तक उतर आई. अनिका का दिल तेजी से धड़कने लगा था.
बाहर बरसात और भी तेज हो गई थी. आरव ने धीरेधीरे अपनी उंगलियां उस की पीठ पर फिराईं. उस के रेशमी बालों में अपनी उंगलियां उल झा दीं. फिर जैसे दो बेचैन लहरें आपस में समा गईं.
बरसात की बूंदें खिड़की से टकरा रही थीं. मोमबत्तियों की लौ भी कांप रही थी. अब दो धड़कनें एक लय में बंध रही थीं. उस रात बारिश बहुत देर तक यों ही बरसती रही.