Funny Story : अगर आप के पास चुनाव पर चर्चा करने से जरा सी भी फुरसत हो तो एक बात तो बताना कि आदमी बूढ़ा क्यों होता है? जब वह जवान होता है, तो उस की जवानी वहीं क्यों नहीं रुक जाती?
बस, मजबूरी का चिंतक हुआ इसी उधेड़बुन में चुनावी बुखार से सने अखबार का वासंती धूप में कभी इस टांग के दर्द को दबाता, तो कभी उस टांग के दर्द को सहलाते हुए चुनावी खबरों का रसपान करता पड़ोसी के दरवाजे की ओर अपनी लातें किए मजे ले रहा था कि अचानक सामने से गब्बर सिंह आ गया. मु झे उसे पहचानते देर न लगी.
अब आप पूछोगे कि मैं ने गब्बर सिंह को कैसे पहचान लिया? तो सच यह है कि अपनी इमेज वालों को सज्जन से सज्जन भी आंखें मूंद कर पहचान लेते हैं. अपनी इमेज वालों के बदन से एक खास किस्म की बदबू आती है, जो उन्हें कभी न मिलने के बाद भी मु झ जैसों को अपनी ओर खींच लेती है, लाख नाक बंद करने के बाद भी.
सच कहूं तो अपने समय में मैं भी अपने औफिस में किसी गब्बर सिंह से कम न था. तब पूरे औफिस में साहब के होते हुए भी मेरा ही लौ ऐंड और्डर चलता था. होली हो या दीवाली. अहा, क्या दिन थे वे भी.
‘‘और चचाजान, कैसे हो?’’ गब्बर ने मेरी कुरसी के साथ अपने कंधे से अपनी बंदूक उतार खड़ी करते हुए मेरी दाढ़ी को हाथ लगाया, तो मु झे अपने औफिस के दिन याद आ गए. काश, मैं लाइफटाइम औफिस में ही रहता लाइफटाइम सिम की तरह.
‘‘बस, बुढ़ापे की दया से ठीक ही हूं भतीजे. अरे, जमीन पर नहीं, कुरसी पर बैठो. अब गए दिन डाकूलुटेरों के जमीन पर बैठने के. व्यवस्थागत कुरसियां अब तुम जैसों से ही सार्थकता को प्राप्त होती हैं. बुढ़ापा इस उम्र में जो दिन न दिखाए वही सही.’’
‘‘और अब तुम्हारे घुटनों का दर्द कैसा है?’’ गब्बर सिंह ने मेरे दाएं घुटने पर जोरों से हाथ रखा, तो मैं चिल्लातेचिल्लाते बचा.
‘‘खा रहा हूं डाक्टर की कमीशन वाली दवाएं, जिन में दवा कम डाक्टर का कमीशन ज्यादा होता है. पर एक घुटनों का दर्द है कि न कम हो रहा है, न बढ़ रहा है.’’
‘‘तो चचाजान, इस का मतलब साफ है कि दवा काम कर रही है. काश, इसी तरह तुम्हारी जवानी की दवाएं भी काम करतीं तो आज…’’ गब्बर सिंह ने कुरसी पर बैठते कामदेव से मेरे बुढ़ापे में जवानी बरकरार रहने की दुआ मांगी, तो मन किया कि उसे अपनी गोद में बिठा कर गोदी डाकू बना लूं.
मैं ने उसे सामने की खाली कुरसी पर जबरदस्ती बैठाते हुए कहा, तो वह थोड़ा झेंपा. पता नहीं क्यों?
‘‘आराम से कुरसी पर बैठो गब्बर. बड़े दिनों बाद आए हो?’’
मेरी गुजारिश पर गब्बर सिंह िझ झकते हुए कुरसी पर बैठा. इस का मतलब उसे इस बात का कतई इल्म न था कि आजकल कुरसियां उस की बिरादरी की बांदी चल रही हैं.
‘‘हां चचाजान, जंगल में कौवों, गिद्धों, सियारों से पता चला था कि लोकतंत्र का महापर्व मनाया जा रहा है, तो सोचा कि लोकतंत्र के महापर्व में जरा घूमघाम आऊं. जंगल में रहतेरहते बहुत बोर हो रहा था.’’
‘‘गुड… अच्छा नहीं, बहुत अच्छा किया मेरे भतीजे. हवापानी बदलने के लिए बीचबीच में जंगली गुंडों को मौडर्न गुंडों के बीच आ जाना चाहिए. इस से न केवल कुलीन गुंडों से मधुर संबंध बनते रहते हैं, बल्कि सुरक्षित गुंडई की नई तकनीकों का पता भी चलता रहता है.’’
‘‘सो तो ठीक है चचाजान, पर अब मैं भी सोच रहा हूं कि चुनाव में खड़ा हो जाऊं, पर…’’
‘‘तो इस में पर वाली बात ही क्या है? चुनाव की गंगा बह रही है, तुम भी डुबकी लगा लो,’’ मैं ने उसे सलाह दी, तो वह तनिक चिंतित लगा, तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘परेशान क्यों हो गए?’’
‘‘यही चचा कि मैं ठहरा आपराधिक इमेज का और…’’ कह कर उसे डिप्रैशन ने घेर लिया.
‘‘अरे, तो क्या हो गया… यहां चुनाव होते ही अपराधियों को चुनने के लिए हैं. तुम तो केवल आपराधिक इमेज वाले हो. इस पर्व का बेसब्री से इंतजार गंभीर आपराधिक इमेज वाले तक करते हैं, ताकि इस में डुबकी लगा कर वे अपना चरित्र धो सकें और जैसे ही आपराधिक छवियों को माननीय छवियों में बदलने का यह महापर्व आता है, वे सब अपराधी से माननीय, सम्माननीय सज्जनता को प्राप्त हो कर कानून व्यवस्था को मजबूत करने में जुट जाते हैं.
‘‘यह देखो, आज के अपराधियों को मिले टिकटों की लिस्ट. हर पार्टी ने तुम से छोटे दागियोंबागियों को टिकट पर टिकट दिए हैं. तुम एक बार किसी भी पार्टी में टिकट के लिए आवेदन करना तो छोड़ो, उन के पार्टी प्रमुख से जरा मेरे फोन से बात भर कर के तो देखो, वे उसी वक्त तुम्हें टिकट औफर न करें, तो मु झे कल से अपना चचा मत कहना.
‘‘मुझे तो ताज्जुब इस बात का हो रहा है कि अब तक किसी पार्टी की इतने ख्यातिप्राप्त पर अपना उम्मीदवार बनाने की नजर क्यों नहीं पड़ी, जबकि… भतीजे, यह समय तुम्हारा जंगल में लेटे रहने का नहीं, सांसद बन कर संसद में खानेकमाने का है,’’ मैं ने गब्बर सिंह को अखबार में गंभीर से गंभीर अपराधियों को मिले टिकटों की लिस्ट दिखाई, तो उस के मुंह में पानी आ गया.वह अपने मुंह से बहता पानी पोंछता हुआ बोला, ‘‘तो चचाजान, इस का मतलब है कि मैं सही समय पर जंगल से बाहर आया हूं?’’
‘‘बिलकुल सही समय पर आए हो मेरे गब्बर,’’ मैं ने उस की पीठ थपथपाते हुए कहा.
‘‘तो मुझे टिकट के लिए अब क्या करना होगा?’’
‘‘यह लो मेरा फोन और जिस पार्टी को चाहो बस एक फोन भर कर दो. तुम्हारा फोन सुन कर वे खुशी से झूम उठेंगे. बस, सम झ लो फिर तुम्हारा टिकट पक्का.’’
‘‘तुम जैसे लोकतंत्र रक्षकों को तो आज पार्टियां हाथोंहाथ ले रही हैं, क्योंकि अब तुम जैसों के हाथों में आधुनिक लोकतंत्र जितना महफूज है, उतना ईमानदारों के हाथों में नहीं. फिर मजे से अपराधी से माननीय बन कर पुलिस की सलामी लेते रहना. पुलिस को कानून व्यवस्था बनाने के जब चाहे और्डर देते रहना…’’
मेरे इतना भर कहने की देर थी कि गब्बर सिंह ने मेरी जेब से मोबाइल निकाला और मिला दिया. पता नहीं, पार्टी मुख्यालय में… और 2 मिनट बाद ही गब्बर का चेहरा सांसदी के टिकट से गुलाल हो उठा. तय है, अगली दफा अब मैं ही उस से मिलने दिल्ली जाऊंगा.
पता नहीं, तब उस के पास अपने चचा से मिलने का वक्त भी होगा या नहीं? पर चलो, किसी के धंधे का तरीका इज्जतदार हो जाए, मैं तो बस इसी में खुश हूं.